विचार / लेख

औरत हिंसा झेलते ही सुहाती है, करते नहीं?
28-Jun-2025 10:24 PM
औरत हिंसा झेलते ही सुहाती है, करते नहीं?

-सुजाता चोखेरबाली

हफ्ता भर पुरानी बात है। गाड़ी चला रही थी। रेडियो में एक एंकर बोल रहा था-भाई, बड़े मुश्किल दिन हैं लडक़ों के, आजकल लडक़े हनीमून मनाने जाते हैं लोटे में वापस आते हैं। मुझे नहीं याद कौन चैनल था, कौन एंकर। मैं बस हैरान थी कि औरतों के खिलाफ हिंसा को जिन्होंने धर्म की किताबों में भी जायज बताया है वे एक औरत के क्राइम से डर गए? जबकि उनके साथ पूरा इतिहास, समाजशास्त्र, परम्पराएँ, रीति-रिवाज, नियम-कानून, पॉवर, सत्ता और सो कॉल्ड सुपर मर्दानगी भी है!!

जबकि किसी महिला ने महिलाओं के क्राइम करने को जस्टिफ़ाई नहीं किया जैसे मर्द करते हैं मर्दों को! ऐसी दलील देकर कि कपड़े छोटे पहने होंगे, रात को अकेली बाहर निकली होगी, ज़बान लड़ाती होगी, खाना टाइम पर नहीं देती होगी, अफ़ेयर होगा किसी और से, बेटा पैदा नहीं किया होगा, बांझ होगी, कैरेक्टर ठीक नहीं होगा वगैरह-वगैरह।

क्या यह एंकर न्यूज़ नहीं देखता? इसे देखना चाहिए अपने आस-पास कि कैसे डरे हुए मर्द पत्नियों का गला घोट कर मार रहे हैं अपनी ही बच्चियों के सामने, बाप-भाई के साथ मिलकर छत से नीचे पटक के मार रहे हैं पत्नी को, बलात्कार तो रुकने का नाम ही नहीं लेते, इतने डरे हुए मर्द रोज़ औरतों के इनबॉक्स में कूद रहे हैं यह सोचकर कि शायद फँस जाए!

बदला कुछ नहीं है। क्राइम अगेंस्ट वुमन अब भी वैसे ही बदस्तूर पितृसत्ता के हवाले है। इसके जवाब में आप क्राइम अगेंस्ट मैन जैसा फ्रेज बना नहीं सकते क्योंकि वहाँ औरतें नहीं मर्द ही दोषी मिलेंगे। हत्या, चोरी, डकैती, लड़ाई, झगड़ा, युद्ध, षड्यंत्र सबमें मर्द मर्दों को मार रहे हैं।

पुरुष को पुरुष होने के लिए स्त्रियां मार रही हैं ऐसा कोई साक्ष्य इतिहास में नहीं। एक समाज जिसमें पुरुष का जन्म एक उत्सव हो स्त्री के लिए, गर्व का विषय हो, वहाँ मर्दों के खिलाफ जेंडर्ड क्राइम नहीं होता बल्कि वहाँ मर्द पॉवर के लिए मर्दों से संघर्ष करता है और उसी में सबसे ज़्यादा हताहत होता है। स्त्री का जन्म अब भी लानत है, अपने आस पास के शिक्षित परिवारों को मत देखिए सिर्फ। उन पाँच बहनों को भी देखिए जिनका जन्म एक लडक़े की आस में हुआ है।

एकाध सोनम के आ जाने से सूरज पश्चिम से नहीं उगने लगेगा यह उन्हें भी पता है जो कह रहे हैं मर्द डरे हुए हैं! मर्द बस शॉक में हैं क्योंकि क्राइम औरत पर सूट नहीं करता, क्योंकि उन्हें लगता था औरतें पीटी जाती हैं, जलाई जाती हैं, भोगी जाती हैं, इस्तेमाल की जाती हैं, मवेशी की तरह पाली जाती हैं, बेची-खऱीदी जाती हैं, अगवा की जाती हैं, दास बनाई जाती हैं और औरतों पर आँसू, मजबूरी, त्याग, बलिदान, असहायता सूट करती है। वह रोती, बिलखती, दया की भीख मांगती ही अच्छी लगती है।

स्त्री अधिकारों की किसी जंग में एक क़तरा ख़ून नहीं बहा है।

उन्हें मर्दों के बहकावे में आकर अपना जीवन नहीं खऱाब करना चाहिए।

मैं भी कहती हूँ, औरतों पर क्राइम सूट नहीं करता!

 

औरतों पर आजादी सूट करती है। औरतों पर जीने की अदम्य इच्छा सूट करती है जिसने हज़ारों सालों के अत्याचार और अन्याय के बावजूद उसे जीवित रखा। औरत पर मनुष्यता सूट करती है जिसकी वजह से उसने उन्हें भी प्यार और केयर दी जिन्होंने उसके व्यक्तित्व को कुचलने की कोशिश की। औरत पर सूट करती है कामना जिसने संसार को रचा है और जो स्त्री का भविष्य रचेगी। औरत पर सूट करता है अभिमान, अना, दृढ़ता, गुस्ताखी जिसके वजह से उसने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किए लेकिन किसी का एक बूँद ख़ून नहीं बहाया। औरत पर सूट करता है प्यार, ढेर सारा प्यार जो सबसे पहले वह ख़ुद के होने से करे। औरत पर सूट करती है महत्वाकांक्षा जिसके लिए वह कड़ी मेहनत करे, किसी के अप्रूवल के इंतजार के बिना आगे बढ़े, बिना किसी को नीचे धकेले ऊपर बढ़े। औरत पर सूट करती है आत्मनिर्भरता, ऐसी कि वह हजारों समुद्र अकेले पार कर जाए और फिर हजारों कश्तियाँ उन औरतों के लिए समुद्र में तैरा दे जो कोई एक तिनका खोज रही हैं उबरने के लिए।

औरत की ताक़त बेशक उसके अपने भीतर है लेकिन उसे तोडऩे वाले ये पितृसत्तात्मक लोग हैं जिनके पास अक़्ल से बड़ा अहंकार है और तिल से भी छोटी मनुष्यता की भावना।


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