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बिहार : क्या वाकई घट रही लड़कियों की संख्या
14-Jun-2025 8:59 PM
बिहार : क्या वाकई घट रही लड़कियों की संख्या

बिहार में प्रति 1,000 लडक़ों पर मात्र 891 लड़कियों का जन्म हो रहा है। यह देश के सभी राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे कम लिंगानुपात है। लेकिन क्यों?

 डॉयचे वैले पर मनीष कुमार  का लिखा-

रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया द्वारा जारी नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) पर आधारित नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, बिहार में 2022 में पूरे देश में जन्म के समय सबसे कम लिंगानुपात (एसआरबी) देखा गया है।

इसके अलावा महाराष्ट्र, गुजरात तथा तेलंगाना में भी लिंगानुपात में गिरावट दर्ज की गई है। केंद्र सरकार ने लगभग चार साल की देरी से बीते सप्ताह साल 2022 के लिए सीआरएस और एमसीसीडी (मेडिकल सर्टिफिकेशन ऑफ कॉज ऑफ डेथ) जारी किया है।

क्या तस्वीर दिखाते हैं आंकड़े

बिहार में प्रति 1,000 लडक़ों पर मात्र 891 लड़कियों का जन्म हो रहा है। यह देश के सभी राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे कम लिंगानुपात है। 2020 में यह अनुपात 964, जो 2021 में गिरकर 908 पर आया और 2022 में यह और भी नीचे 891 पर आ गया। यानी साल 2020 से हर साल जन्म के समय लिंगानुपात प्रदेश में लगातार घटता जा रहा है।

इसके विपरीत पिछले सालों में इस मामले में खराब प्रदर्शन करने वाले असम राज्य में वर्ष 2021 में एसआरबी (सेक्स रेशियो एट बर्थ) जहां 863 थी, वह 2022 में बढक़र 933 हो गई। वहीं, महाराष्ट्र, तेलंगाना और गुजरात में यह क्रमश: 906, 907 और 908 रही। ये आंकड़े बिहार से बहुत अधिक नहीं हैं, किंतु इन राज्यों में बिहार की तरह लगातार गिरावट नहीं देखी गई है। वहीं, नागालैंड में सबसे अधिक एसआरबी दर्ज की गई जो 1,068 रही। इसके बाद अरुणाचल प्रदेश (1,036), लद्दाख (1,027), मेघालय (972) तथा केरल (971) का स्थान रहा।

क्या कहती हैं राज्य की महिलाएं

महिलाओं के लिए काम करने वाली संस्था की सदस्य जायना शबनम कहतीं हैं, ‘ये आंकड़े लैंगिक असंतुलन की ओर तो इशारा कर ही रहे हैं। इनका तात्कालिक असर भले ही न दिखे, दीर्घकालिक परिणाम तो भयावह ही होगा। बिहार के समाज में बेटियां अभी भी स्वीकार्य कहां बन सकी हैं। तमन्ना तो यही रहती है कि बेटा ही हो।’

वहीं, बीएससी की छात्रा कलश कश्यप कहती हैं, ‘हमारे समाज में बेटियों के प्रति एक पूर्वाग्रह तो छिपा ही है। सोच बदली है, किंतु अभी भी दोनों के बीच सम्मान और समानता में गहरी खाई बरकरार है। बेटियों से सीधे कह दिया जाता है, तुमसे न होगा। जबकि, जहां-जहां हमें मौका दिया गया, हमने कर दिखाया। ऐसा न होता तो बिहार पुलिस में सर्वाधिक महिलाएं न होतीं। वे अपना काम तो मुस्तैदी से कर ही रही हैं ना।’

जन्म के मामले में तीसरे स्थान पर बिहार

प्रति एक हजार लडक़ों पर 943 लड़कियों की एसआरबी के राष्ट्रीय औसत से बिहार भले ही काफी पीछे रहा हो, किंतु 2022 में सर्वाधिक जन्म (बर्थ) के मामले में यह राज्य तीसरे स्थान पर रहा। यहां कुल 30 लाख 70 हजार बच्चों का जन्म हुआ, जिनमें 13 लाख 10 हजार लड़कियां थीं और 14 लाख 70 हजार लडक़े थे। आशय यह कि लडक़े-लड़कियों की संख्या में 1,60,000 का अंतर रहा, जो देश भर में सबसे अधिक अंतर रहा।

प्रतिशत में देखा जाए तो 2022 में 52.4 फीसद लडक़े तथा 47.6 फीसद लड़कियों का जन्म हुआ। लगभग 43 प्रतिशत जन्म ग्रामीण क्षेत्रों में तो 56.5 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों में रजिस्टर्ड किए गए। अच्छी बात है कि 2022 में बर्थ रजिस्ट्रेशन की संख्या में अच्छी वृद्धि हुई है। हालांकि, 2022 के लिए एसआरएस (सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम) रिपोर्ट के आंकड़े अभी तक सामने नहीं आए हैं।

जातिवार गणना की रिपोर्ट में दिखा था सुधार

राज्य के मुख्य सचिव अमृत लाल मीणा ने इस रिपोर्ट को खारिज करते हुए राज्य में किए जातिवार गणना की रिपोर्ट को प्रमाणिक बताया है, जिसके अनुसार बिहार में लिंगानुपात 2011 में 918 से बढक़र 2023 में 953 हो गया है। उनका मानना है कि राज्य में हुए जातिवार गणना के आंकड़े ही प्रमाणिक हैं, लिंगानुपात इतना खराब कभी भी नहीं था।

वैसे, जातिवार गणना की इस रिपोर्ट में पिछले 12 साल में प्रति हजार महिलाओं की संख्या में 35 की वृद्धि हुई है। इस गणना के अनुसार राज्य में पुरुषों की कुल संख्या 6.41 करोड़ तो महिलाओं की संख्या 6.11 करोड़ थी। सीआरएस के 2022 के आंकड़ों पर सामाजिक चिंतक इला गोस्वामी कहती हैं, ‘संभव है ये आंकड़े पूरी तरह सत्य न हों। कुछ खामियां हों, जो संभवत: ऐसे सर्वे में रहती हैं । किंतु, यदि ये सही हैं तो भविष्य में एक गंभीर सामाजिक अंसतुलन की ओर इशारा कर रहे। इतनी गिरावट तो कन्या भ्रूण हत्या के बिना शायद संभव नहीं है। हालांकि, इसकी कल्पना अभी बेमानी ही होगी। वैसे, अगली जनगणना में सब कुछ साफ हो जाएगा।’

दिसंबर 2024 में केंद्र स्वास्थ्य मंत्रालय की स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली 2023-24 की रिपोर्ट में भी बिहार में घटते सेक्स रेशियो पर चिंता जाहिर की गई थी। बिहार इस संदर्भ में सबसे खराब प्रदर्शन करने वालों राज्यों में शामिल था। इस रिपोर्ट के अनुसार बिहार में जन्म के समय लिंगानुपात प्रति एक हजार पुरुषों पर 882 था, जबकि 2022-23 में यह 894 तथा 2021-22 में 914 था। 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार बिहार के वैशाली जिले में तो यह अनुपात 800 से भी नीचे था।

लिंगानुपात पर सरकार की नजर

ऐसा नहीं है कि बिहार सरकार लैंगिक असमानता में सुधार के लिए प्रयास नहीं कर रही। लड़कियों के जन्म को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ही मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना चलाई जा रही, जो एक लडक़ी को जन्म लेने से लेकर उसके ग्रेजुएट होने तक कवर करती है। राजनीतिक समीक्षक एके चौधरी कहते हैं, ‘कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए बनाए गए नियमों के अनुपालन की सत्यता बताने को ये आंकड़े काफी हैं। यह एक नैतिक और सामाजिक मुद्दा है, जब तक समाज में बेटियों के प्रति नजरिये में बदलाव नहीं आएगा, तब तक लिंगानुपात गिरता ही रहेगा।’

बिहार में अजन्मे बच्चे यानी भ्रूण की लैंगिक पहचान पर प्रतिबंध है और इसके संदर्भ में कड़े कानून बनाए गए हैं। सीआरएस रिपोर्ट पर कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी बिहार सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा है कि यह संकेत है कि राज्य की डबल इंजन की सरकार महिलाओं के लिए खतरनाक साबित हो रही है। आखिर ऐसा क्या हो रहा कि जन्म लेने वाले बच्चों में बेटियों की संख्या लगातार घट रही है।

पत्रकार शिवानी सिंह कहती हैं, ‘बिहार में विधानसभा का चुनाव होना है। सभी पार्टियों के लिए महिला वोटरों का काफी महत्व है। इसलिए उनके पक्ष में आवाज आएगी ही। आखिर 7.46 करोड़ मतदाताओं में 47.6 प्रतिशत महिलाएं जो हैं। और वोटिंग में उनकी हिस्सेदारी 50 फीसद से अधिक जो रही है।’

घट रही भारत की प्रजनन दर

संयुक्त राष्ट्र की एक जनसांख्यिकी रिपोर्ट में भारत की जनसंख्या 2025 में 1.46 अरब पहुंचने का अनुमान है, जो कि विश्व में सर्वाधिक होगी। एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार द रियल फर्टिलिटी क्राइसिस शीर्षक वाली यूएनएफपीए की एसओडब्लूपी (विश्व जनसंख्या स्थिति) रिपोर्ट-2025 में कहा गया है कि देश के लाखों लोग अपने वास्तविक प्रजनन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम नहीं हैं।

वास्तविक संकट यही है जिसका उत्तर व्यापक रूप से बेहतर प्रजनन क्षमता अर्थात किसी व्यक्ति के संभोग, गर्भनिरोधक तथा परिवार शुरू करने के बारे में निर्णय लेने की क्षमता में निहित है। इस रिपोर्ट में प्रजनन क्षमता, जनसंख्या संरचना और जीवन प्रत्याशा में कई महत्वपूर्ण बदलावों का जिक्र है, जो एक बड़े जनसांख्किीय परिवर्तन का संकेत है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की प्रजनन दर घटकर 1।9 जन्म रह गई है, जो कि पहले 2।1 थी। तात्पर्य यह कि औसतन भारतीय महिलाएं एक से दूसरी पीढ़ी तक जनसंख्या का आकार बरकरार रखने के लिए जरूरी संख्या से कम बच्चे पैदा कर रही है। शायद इसका श्रेय दो बच्चों के प्रति महिलाओं की प्रतिबद्धता और बेहतर शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाओं को जाता है।

(dw.com/hi)


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