विचार / लेख

- पुष्य मित्र
युद्ध शुरू हो चुका है और हम सब इस युद्ध के बीच में हैं। युद्ध मुझे पसंद नहीं आते। क्योंकि यह न्याय का सही तरीका नहीं है। क्योंकि इसमें इस बात की बड़ी संभावना रहती है कि कई निर्दोष लोग इसके शिकार बन जाएं। न्याय का तकाजा यही है कि जो लोग दोषी हैं, उन्हें ही सजा मिले। यही आदर्श स्थिति है।
मगर कई बार युद्ध जरूरी भी हो जातें है। अगर दोषी पक्ष अपना दोष स्वीकार न करे। बार-बार हिंसा, घुसपैठ और आतंक का सहारा ले और आपसे नैतिक व्यवहार की अपेक्षा करने लगे।
इसमें किसी को कोई शुब्हा नहीं होना चाहिए कि पाकिस्तान अपनी कमजोर सामरिक शक्ति और भारत के साथ बार-बार युद्ध में पराजित होने की वजह से आतंकवाद और घुसपैठ का सहारा भारत को दिक्कत में डालने के लिए लेता रहा है।
कई जानकार कहते हैं कि 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में पाकिस्तान की पराजय और उसका दो हिस्से में बंट जाना वहां के लोगों, सरकार और सेना के दिल में नासूर की तरह चुभा हुआ है। इसलिए वह आतंक के जरिये भारत को परेशान रखने की निरंतर कोशिश करता है।
मगर मैं इस तथ्य से बहुत सहमत नहीं। पाकिस्तान ने आजादी के ठीक बाद से ही युद्ध के इस गैरपारंपरिक तरीके का, आतंक और घुसपैठ का सहारा लेना शुरू कर दिया था। कश्मीर में कबायली घुसपैठ कराकर उस प्रांत को अपने कब्जे में लेने की कोशिश की थी। यह वहां की सेना का मूल स्वभाव है। उसकी बुनियादी सोच में शामिल है। उस वक्त भारतीय सेना ने वहां जाकर इन्हें कश्मीर से खदेड़ा था। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि कश्मीर भारत में इन्हीं परिस्थितियों के बीच शामिल हुआ। उसका कुछ हिस्सा जो पाकिस्तान के कब्जे में रह गया जिसे हम पीओके या पाकिस्तान ऑक्यूपाइड कश्मीर भी कहते हैं।
मैं गांधी जी के जीवन की घटनाएं पढ़ता रहता हूं। उनके जीवनकाल में कई युद्ध हुए। मगर आजाद भारत ने उनके जीवन में इकलौती सैन्य कार्रवाई कश्मीर में ही की थी।
जब यह कार्रवाई हो रही थी, तो लोग इसके विषय में गांधी जी के विचार जानकर हैरत में पड़ गये। 29 अक्टूबर, 1947 को शाम की प्रार्थना में उन्होंने कहा, ‘मैं यह माने बगैर नहीं रह सकता कि पाकिस्तान की सरकार ही इस घुसपैठ को प्रोत्साहन दे रही है। कहा जाता है कि सीमा प्रांत के मुख्यमंत्री ने इस आक्रमण को खुला बढ़ावा दिया है और इस्लामी दुनिया से सहायता की अपील भी की है। अत: भारत सरकार को जल्द से जल्द श्रीनगर सेना भेजकर उस सुंदर नगर को बचाना चाहिए।’
इसके बाद कहा जाने लगा कि अहिंसक गांधी को युद्ध के खिलाफ रहते थे, फिर उन्होंने इस सैन्य कार्रवाई का समर्थन कैसे किया। इस पर उन्होंने कहा, ‘अगर दो पक्ष जो हिंसा में विश्वास रखते हो और युद्धरत हो तो मेरा कर्तव्य उस पक्ष को समर्थन देना है, जो पीडि़त है। वैसे भी भारत सरकार का सेना में विश्वास है और अगर मैं भारत सरकार का समर्थन कर रहा हूं, तो यह मानकर चलता हूं कि सरकार आत्मरक्षा और पीडि़तों के पक्ष में सेना का इस्तेमाल करेगी। इससे मेरा अहिंसा धर्म भंग नहीं होता।’ गांधी ज्यादातर विवादित मामलों में मेरे लिए रोशनी का काम करते हैं।
इसके बावजूद मेरा मानना है कि युद्ध न होता तो अच्छा होता। काश पाकिस्तान यह समझ पाता कि आतंकवाद का रास्ता सही नहीं है। अगर वह जैसा कहता है कि इसमें उसका हाथ नहीं है, तो उसे खुद आगे बढक़र अपने देश में पल रहे आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए थी। तब ज्यादा बेहतर स्थिति होती। काश दुनिया में ऐसा कोई मजबूत संगठन होता जो ईमानदार तरीके से इस मसले का हल निकालता। फिर युद्ध की नौबत नहीं आती।
मगर जिस तरह कश्मीर में आम पर्यटकों की दहला देने वाली हत्या हुई, उसके बाद तो भारत सरकार की जिम्मेदारी थी कि वह अपने नागरिकों को न्याय दिलाये, दोषियों पर कार्रवाई करे। मगर दोषी पाकिस्तान में हैं। किसी स्वतंत्र देश की सीमा का अतिक्रमण करना कभी उचित नहीं कहा जा सकता। मगर फिर यह सवाल उठता है कि भारत सरकार के पास रास्ते क्या बचे हैं।
युद्ध बुरा है, युद्धोन्माद उससे भी बुरा है। युद्ध की स्थिति में कई बुरी चीजें होती हैं। जीना आसान नहीं होता। सच बोलना और मुश्किल होता है। सबसे बड़े शिकार महिलाएं और बच्चे होते हैं। जबकि वे निर्दोष होते हैं। हम लोग सौभाग्य से उन इलाकों में बसते हैं, जहां पाकिस्तानी हमला आसानी से नहीं पहुंच सकता। मगर पाक सीमा से सटे इलाके के लोग इसका खतरा निस्संदेह महसूस कर रहे होंगे। भले ही सैन्य ताकत के लिहाज से पाकिस्तान भारत से कमजोर है। मगर इस हमले के बाद उस पर अपने नागरिकों का दबाव होगा कि वह कोई बड़ा एक्शन ले।
वह कुछ न कुछ करेगा। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि उसके पास परमाणु हथियार भी हैं। उचित यही है कि अभी भी दोनों देश के शासक बातचीत की मेज पर आयें और युद्ध को समाप्त करें। पाकिस्तान को अपनी आतंकपरस्त नीति को त्यागना चाहिए। इससे कोई लाभ नहीं, पाकिस्तान खुद अपने मुल्क में आतंक से जूझ रहा है। इस बारे में एक साझी नीति बने। दोनों देश मिलकर आतंकवाद का खात्मा करें।
पाकिस्तान के आम लोगों से भारतीयों को कोई बैर नहीं होना चाहिए। वे लोग भी हमारे जैसे ही हैं। थोड़े से सीधे, थोड़े से भावुक और कई लोग कट्टरपंथ के भी शिकार हैं। मगर सबसे अच्छी बात है कि वे लोग मजाकिये बहुत हैं। हमारे आपसी संबंध दोस्ताना होने चाहिए। न ही इस बहाने हम अपने देश में इस्लामोफोबिया को बढ़ावा दें। यह राजनीति का वक्त बिल्कुल नहीं। साथ ही हमारी भी जिम्मेदारी है कि हम इस वक्त अपने हरकतों से पाकिस्तान को कोई तथ्य या तर्क उपलब्ध करायें। अगर हम भारत की सरकारी नीतियों से असहमत हैं, तो उसे जाहिर करने के दूसरे तरीके भी तलाशने होंगे। अभी तो विपक्ष भी बिना किसी संकोच के सरकार के साथ खड़ा है।
इसके अलावा, जो लोग सोचते हैं कि भारत पाकिस्तान को जमींदोज कर दे। यह गलत सोच है। हमें अपने लोगों के लिए न्याय चाहिए और बेहतर हो कि वह न्याय पाकिस्तान खुद अपने यहां करे। भारत भी इसमें उसकी सहायता करे। बेहतर जीवन और समय के साथ विकास के लिए अपने पड़ोसियों से मधुर रिश्ते सबसे जरूरी चीज हैं। (इसे अडानी साहब से बेहतर कौन समझ सकता है।) मैं इस मामले में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से भी सहमत हूं कि यह युद्ध जल्द से जल्द समाप्त होना चाहिए। न्याय के दूसरे तरीके तलाशे जाने चाहिए।