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जब नरगिस ने मांगी कसौली वाले घर की चाबी, किस्से खुशवंत सिंह की बेफिक्र जिंदगी से
25-Apr-2025 4:43 PM
जब नरगिस ने मांगी कसौली वाले घर की चाबी, किस्से खुशवंत सिंह की बेफिक्र जिंदगी से

-राजवीर कौर गिल

‘दादाजी, क्या आप औरतों को आकर्षित करने का प्रयास करते हैं?’

खुशवंत सिंह की पोती ने जब अपने 77 वर्षीय दादा से यह सवाल पूछा था तो उनकी मां और दादी भी वहीं बैठी थीं। दरअसल, यह 16 वर्षीय स्कूली छात्रा अपने दादा खुशवंत सिंह से महिलाओं के साथ उनके संबंधों के बारे में पूछ रही थी।

खुशवंत सिंह लिखते हैं, ‘मैंने इसका सीधा जवाब दिया। हाँ, बिलकुल, तुम्हें नहीं पता कि हर दिन कितनी खूबसूरत महिलाएँ मुझसे मिलने आती हैं?’

खुशवंत सिंह ने ये कि़स्सा अपनी एक किताब में दर्ज किया है।

पोती के इस सवाल की भी वजह थी। स्कूल में खुशवंत सिंह की एक कहानी पढ़ाते हुए अध्यापक ने कहा था कि खुशवंत सिंह ‘एक शराबी और लापरवाह व्यक्ति’ हैं।

इसके बारे में खुशवंत लिखते हैं, ‘मैं इसके लिए उन्हें दोषी नहीं मानता। आम लोग मुझे इसी नजऱ से देखते हैं। काफ़ी हद तक इसके लिए मैं ख़ुद ही जि़म्मेदार हूं। मैंने ख़ुद को इस तरह रंग लिया है लेकिन असलियत में ऐसा बिल्कुल नहीं हूँ। पिछले 50 सालों से मैं शराब पी रहा हूँ लेकिन एक भी दिन मैं नशे में नहीं रहा और न ही महिलाओं को लेकर मेरी मानसिकता ऐसी है।’

खुशवंत सिंह की ये बातें उनकी किताब ‘अनफ़ॉरगेटेबल खुशवंत सिंह’ में दर्ज है। ट्रेन टू पाकिस्तान और सिख इतिहास जैसे संवेदनशील विषयों पर लिखने वाले खुशवंत सिंह को उनके बेटे और लेखक राहुल सिंह ‘बहुत मूडी और बेफिक्र इंसान’ बताते हैं।

पंजाबी इतिहासकार हरपाल सिंह पन्नू कहते हैं, ‘खुशवंत सिंह पंजाब और पंजाबी को दुनिया के सामने ले आए। उनकी वजह से पंजाब को पूरी दुनिया में सम्मान मिला।’ अपनी आत्मकथा में महिलाओं के साथ रिश्तों के बारे में इतनी स्पष्टता से लिखने के कारण पाठकों के एक वर्ग में ख़ुशवंत की आलोचना भी हुई।

हालाँकि, इस आलोचना का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और उन्होंने 99 सालों तक अपना जीवन अपने अंदाज़ में जिया।

 

‘महिलाओं को मेरा साथ पसंद है’

खुशवंत सिंह की आलोचना न केवल उनके लेखन में महिला पात्रों के चित्रण के लिए की गई बल्कि कई महिलाओं के साथ उनके संबंधों के दावों के लिए भी की गई। उन्होंने स्वयं ‘फैमिली मैटर्स’ शीर्षक से लेख में लिखा था।

उस लेख में खुशवंत ने लिखा, ‘हालांकि, मेरे जीवन में कई महिलाएं आईं, ठीक वैसे ही जैसे कई पुरुषों के जीवन में आती हैं लेकिन मैंने कभी भी किसी का अनावश्यक रूप से मज़ाक नहीं उड़ाया और न ही मैं किसी के साथ अनावश्यक रूप से खुला। उन महिलाओं ने भी मुझे कभी नहीं डांटा।’

खुशवंत सिंह लिखते हैं कि महिलाओं को उनका साथ पसंद था क्योंकि वह एक अच्छे श्रोता और उदार दिल वाले इंसान थे।

इस बारे में राहुल सिंह कहते हैं, ‘वह हमारी मां के प्रति बेहद समर्पित थे, इसीलिए उनका रिश्ता इतना लंबा और ख़ूबसूरत था। उन्होंने जो लिखा वह मूलत: उनके काल्पनिक विचार थे।’

जब नरगिस को दी घर की चाबी

राहुल अपने पिता खुशवंत सिंह के विनोदी स्वभाव को लेकर एक किस्सा साझा करते हुए उनकी काल्पनिक दुनिया का उदाहरण देते हैं।

उन्होंने बताया कि प्रसिद्ध बॉलीवुड अभिनेत्री नरगिस के बच्चे हिमाचल प्रदेश के सोलन के एक स्कूल में पढ़ते थे। नरगिस को बच्चों के स्कूल में एक समारोह में भाग लेना था लेकिन वहां उन्हें कोई होटल नहीं मिल रहा था। उनके पिता खुशवंत सिंह के पास कसौली में एक विला था। नरगिस ने खुशवंत सिंह को फ़ोन किया और कहा कि वे उनके कसौली वाले घर में रहना चाहती हैं।

खुशवंत सिंह ने पूछा कि क्या ‘आप मदर इंडिया वाली नरगिस हैं?’

जब नरगिस ने हां कहा तो खुशवंत सिंह ने अपने मज़ाकिया अंदाज़ में जवाब दिया, ‘हां, आप रुक सकती हैं। शर्त ये है कि आप मुझे अपने दोस्तों को ये बताने दें कि नरगिस मेरे कमरे में सोई थी।’

यह शर्त सुनकर नरगिस खिलखिलाकर हंस पड़ीं।

आपातकाल के समर्थन पर परिवार का विरोध

राहुल सिंह कहते हैं कि खुशवंत बहुत गंभीर और भावुक व्यक्ति थे। वह इंदिरा गांधी और संजय गांधी के कऱीबी थे। वह दोनों की नीतियों के समर्थक भी थे। इसलिए जब इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल लगाया तो खुशवंत सिंह ने इसका समर्थन किया।

एक लेखक के रूप में, ऐसा रुख अपनाने के लिए उन्हें अंतहीन आलोचना का सामना करना पड़ा।

राहुल कहते हैं कि यह एकमात्र मौका था जब उन्होंने अपनी मां कंवल मलिक को अपने पिता के खिलाफ खड़ा देखा।

खुशवंत सिंह का पूरा परिवार उनके इमरजेंसी को समर्थन देने के फैसले के खिलाफ था।

राहुल सिंह बताते हैं कि उन्हें पिता के कारण कई बार शर्मिंदगी महसूस होती थी।

उन्होंने बताया कि आपातकाल के दौरान वे अमेरिका में थे और मैंने उनके फैसले का विरोध किया था लेकिन घर के बाहर ये बात लोगों को पता नहीं थी।

राहुल बताते हैं, ‘मैं अमेरिका में एक दोस्त के यहां पार्टी में गया। वहां कई भारतीय भी थे। पार्टी के दौरान आपातकाल के बारे में चर्चा शुरू हो गई। इस दौरान एक व्यक्ति इतना उत्तेजित हो गया कि उसने कहा कि अगर खुशवंत सिंह उसके सामने होते तो वो उन्हें गोली मार देता।’

राहुल के दोस्त ने माहौल को हल्का करने की कोशिश करते हुए कहा, ‘खुशवंत सिंह तो नहीं हैं लेकिन आप उनके बेटे को गोली मार सकते हैं।’

राहुल सिंह कहते हैं, ‘ऐसे मौकों पर शर्मिंदा होने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।’

हालाँकि, खुशवंत सिंह ने 1984 के ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में 1974 में मिला पद्म भूषण पुरस्कार लौटा दिया था।

इसके बाद में 2007 में उन्हें पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया।

आलोचकों की कभी परवाह नहीं की

राहुल सिंह बताते हैं कि उनके पिता ने आलोचना की कभी भी परवाह नहीं की।

हरपाल सिंह पन्नू कहते हैं, ‘खुशवंत सिंह के काम की केवल सराहना की जा सकती है। अधिकांश लोगों में उनके लेखन पर टिप्पणी करने की क्षमता नहीं है।’

पंजाबी लेखक गुलज़ार संधू खुशवंत सिंह के आलोचकों के बारे में लिखते हैं, ‘खुशवंत सिंह की ज़्यादातर कहानियाँ पढऩे से गुस्सा तो आता है लेकिन प्रेरणा भी मिलती है। शायद उनके आलोचक भी उनकी किताबें छिपकर पढ़ते हैं।’

‘मेरा अपना स्मारक’

खुशवंत सिंह इतने साहसी थे कि उन्होंने अपनी स्मारक पट्टिका पर लिखे जाने वाले अंतिम शब्द भी लिखे।

उन्होंने लिखा, ‘इस आदमी ने इंसान और ईश्वर दोनों को ही नहीं बख्शा। उस पर अपने आंसू बर्बाद मत करो।’

खुशवंत सिंह ने अपनी पुस्तक ‘डेथ एट माई डोरस्टेप’ में लिखा है, ‘मैं मृत्यु को अंतिम सत्य मानता हूं।’

उन्होंने लिखा, ‘मैं 90 वर्ष से अधिक उम्र का हूँ और मुझे पता है कि मृत्यु के साथ मेरे मिलन का समय निकट आ रहा है। मैंने इस बारे में बहुत सोचा है। एक तर्कवादी होने के नाते मैं जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के स्वीकृत सिद्धांत को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हूं।’

हरपाल सिंह पन्नू ने अपने एक लेख में हदाली गांव में पैदा हुए खुशवंत सिंह की मृत्यु के संबंध में प्रसिद्ध उर्दू कवि बलराज कोमल का लिखा जुमला दोहराते हैं।

बलराज कोमल ने कहा था, ‘खुशवंत सिंह जैसे लोगों को जिस सांचे में ढाला गया था, वह टूट चुका है।’

राहुल सिंह ने अपने पिता की मृत्यु के बाद कहा था, ‘मेरे पिता ने एक पूर्ण जीवन जिया, उन्होंने वो सब कुछ हासिल किया जिसकी वे कल्पना कर सकते थे। अपनी मृत्यु से पहले, वह केवल भारत और पाकिस्तान के बीच बेहतर संबंध देखना चाहते थे।’ (bbc.com/hindi)

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