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महिलाओं को तलाकशुदा कहने पर कोर्ट के पाबंदी लगाने से क्या कुछ बदलेगा?
18-Feb-2025 10:58 PM
महिलाओं को तलाकशुदा कहने पर कोर्ट के पाबंदी लगाने से  क्या कुछ बदलेगा?

-  रियाज मसरूर

भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर के हाईकोर्ट ने एक मुकदमे के फैसले में उन महिलाओं को ‘डिवोर्सी’ या तलाकशुदा कहने पर पाबंदी लगा दी है जिनका तलाक हो चुका है।

गुरुवार को जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट ने एक वैवाहिक विवाद के मामले में तीन साल पहले दी गई अर्जी पर फैसला सुनाया है।

अदालत ने सुनवाई के दौरान तलाकशुदा कहकर महिलाओं को संबोधित करने को ‘बुरी आदत’ बताते हुए कहा कि आज भी औरत को ऐसे पुकारना कष्टदायक है।

मुकदमे की सुनवाई करने वाली बेंच में शामिल जस्टिस विनोद चटर्जी कौल ने कहा, ‘आज के दौर में भी एक तलाकशुदा महिला को इस तरह अदालती कागजात में ‘डिवोर्सी’ लिखा जा रहा है जैसे कि यह उसका सरनेम हो। ऐसा करना एक बुरी आदत है जिस पर तुरंत रोक लगनी चाहिए।’

जस्टिस विनोद चटर्जी कौल का कहना था कि फिर मर्द के लिए भी ‘डिवोर्सर’ लिखा जाए, हालांकि यह भी उचित नहीं है।

जस्टिस कौल ने निर्देश जारी करते हुए सभी निचली अदालतों को सख़्त ताकीद की कि मामला विवाह का हो या कोई और, सभी अर्जियों, अपीलों और दूसरी अदालती दस्तावेजों में तलाकशुदा महिलाओं को ‘डिवोर्सी पार्टी’ कहने की बजाय उनका पूरा नाम लिखा जाए।

‘तलाकशुदा’ शब्द के इस्तेमाल पर जुर्माना

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि ऐसी किसी भी अपील या अर्जी को रद्द कर दिया जाएगा जिसमें केवल तलाक के आधार पर किसी महिला का परिचय तलाकशुदा के रूप में कराया जाएगा।

इस चलन पर पाबंदी लगाने के लिए सभी निचली अदालतों और संबंधित संस्थाओं को एक पत्र भी जारी किया गया जिसमें इस फैसले पर सख़्ती से अमल करने की ताकीद की गई है।

अदालत की यह टिप्पणी तीन साल पहले दायर किए गए वैवाहिक विवाद के मुकदमे में दी गई पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुनाते हुए सामने आई है।

अदालत ने फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करने वाले आवेदकों पर संबंधित महिला के लिए ‘तलाक़शुदा’ शब्द के इस्तेमाल पर बीस हज़ार का जुर्माना भी लगाया है।

अदालती आदेश के अनुसार यह जुर्माना एक महीने में जमा करवाना होगा और जुर्माना जमा नहीं करवाने की स्थिति में ‘अदालत हर तरह की कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र होगी।’

‘मुझे तलाकशुदा कहलाने की आदत हो गई है’

बडगाम जि़ले की रहने वाली ज़ाहिदा हुसैन (बदला हुआ नाम) अपनी सात साल की बेटी के साथ अपने मायके में रहती हैं। तीन साल पहले उनके पति ने उन्हें तलाक़ दे दिया था और तब से वह अक्सर अदालत में सुनवाई के लिए आती हैं।

उन्होंने इस अदालती फैसले को सराहते हुए बीबीसी से कहा, ‘मुझे तो ख़ुद के लिए तलाक़शुदा शब्द सुनने की आदत हो गई है। मैं ख़ुद भी अपने आप को तलाक़शुदा के तौर पर परिचित करवाती थी।’

वह कहती हैं कि अदालत का इस मामले में फ़ैसला बहुत अच्छा कदम है। ‘तलाक़ एक आम बात है, आखिर हम भी इंसान हैं। हमारी भी पहचान है।’

जाहिदा कहती हैं, ‘यह लफ्ज इतनी बार दोहराया गया है कि मुझे वाकई अपनी पहचान एक तलाकशुदा के अलावा कुछ नहीं दिखती थी। लेकिन बेटी बड़ी हो रही है, उसपर क्या गुजरती जब उसको मालूम होता कि तलाक़ के बाद यह हम औरतों की पहचान ही बन जाती है। यह बहुत अच्छी बात है कि किसी को तो ख़्याल आया।’

ऐसे कई मुक़दमों की अदालत में पैरवी करने वाले सीनियर वकील हबील इकबाल इस फ़ैसले पर राय देते हुए कहते हैं, ‘तलाक हमारे समाज में अब भी एक नापसंदीदा चीज है। यह एक टैबू है। निकाह या तलाक़ एक व्यक्तिगत मामला है, यह कोई सरनेम नहीं है।’

वह कहते हैं कि अदालती कार्रवाइयों के दौरान महिलाओं को अमुक बनाम डिवोर्सी कहकर बुलाए जाने से कई महिलाएं तनाव का शिकार हो जाती हैं।

एडवोकेट इकबाल इस फ़ैसले का स्वागत करते हुए कहते हैं कि सभी जज इतने संवेदनशील नहीं होते हैं। ‘उन्हें इस मामले में जागरूक करने की ज़रूरत है। निर्देश का पालन करते-करते बरसों लगते हैं। अगर इस मामले में जजों के लिए कोई जागरूकता अभियान चलाया जाए तो अच्छा होगा।’

एक महिला वकील ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि वैवाहिक विवादों के मामलों की सुनवाई के दौरान अक्सर जज घरेलू हिंसा के बारे में कहते हैं कि अरे, यह तो हर घर में होता है, चलो सुलह कर लो। उनका कहना है, ‘हालांकि ऐसे रिमार्क्स फ़ैसले का हिस्सा नहीं होते। इससे एक माइंडसेट बनता है और महिलाओं का शोषण नॉर्मलाइज़ हो जाता है।’

‘तलाक़ या शादी औरत की पहचान नहीं’

जम्मू कश्मीर में सत्तारूढ़ दल नेशनल कॉन्फ्ऱेंस की नेता और विधानसभा सदस्य शमीमा फिऱदौस ने इस अदालती फ़ैसले के बारे में बीबीसी से बात करते हुए कहा कि सबको इस फ़ैसले का स्वागत होना चाहिए।

स्थानीय महिला आयोग की पूर्व प्रमुख शमीमा फिरदौस का कहना था कि तलाक को कश्मीर में ऐब की बात माना जाता रहा है।

वह कहती हैं, ‘औरत का तलाक़ हो जाए तो उसकी पहचान ही तलाकशुदा की बन जाती है, जैसे उसकी कोई व्यक्तिगत पहचान ही नहीं। मैं इस फ़ैसले को ऐसे मामलों में अदालत का सकारात्मक क़दम समझती हूं जिसे लोगों ने नॉर्मल समझ लिया था, हालांकि महिलाएं इससे मानसिक तनाव और हीन भावना का शिकार होती थीं।’

अगस्त 2023 में उस समय के चीफ़ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से एक हैंडबुक जारी किया था जिसमें विभिन्न मामलों में औरतों के लिए इस्तेमाल होने वाले कुछ खास शब्दों से बचने को कहा गया था।

इस हैंडबुक में बताया गया था, ‘मुजरिम मर्द हो या औरत, केवल इंसान होता है। इसलिए हम औरतों के लिए व्यभिचारी, दुष्चरित्र, तवायफ़, बदचलन, धोखेबाज़ और आवारा जैसे शब्द इस्तेमाल नहीं कर सकते।’

इसमें और भी दर्जनों ऐसे शब्द थे जिनके बारे में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी वेबसाइट पर जानकारी दे रखी है।

हालांकि कश्मीर के अलावा भारत की अक्सर अदालतों में भी महिलाओं के लिए इस तरह के शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं। (bbc.com/hindi)


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