विचार / लेख

-डॉ. आर.के. पालीवाल
2025 का बजट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल का पहला पूर्ण बजट है इसलिए इससे लोगों को काफी उम्मीद है। दिल्ली और बिहार में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं इसके मद्देनजर भी दिल्ली और बिहार के निवासियों को बजट से खास आशा है। हाल में केंद्र सरकार ने काफी विलंब से कभी हां कभी ना करते हुए केंद्रीय कर्मचारियों को खुश करने के लिए आठवें वेतन आयोग की अचानक घोषणा की है। दिल्ली में केंद्र सरकार का मुख्यालय होने की वजह से बहुत से सरकारी कर्मचारी हैं। ऐसे में दिल्ली के अन्य मतदाता भी सरकारी कर्मचारियों की तरह बजट से लाभ की अपेक्षा कर रहे हैं।
सामान्य धारणा तो यही है कि चुनाव के पहले केंद्र और राज्य सरकारों का बजट ज्यादा आकर्षक और लोकलुभावन बनता है और चुनाव जीतने के बाद बजट में कर उगाही से राजस्व बढ़ाना ही अधिकांश सरकारों का प्रमुख ध्येय बन जाता है और जनता का ध्यान नहीं रखा जाता। सच्ची लोकतांत्रिक व्यवस्था वही है जिसमें सरकारों द्वारा हर बजट में आम जनता के कल्याण की नीतियां बनें । दुर्भाग्य से केंद्र सरकार कॉरपोरेट जगत के प्रभाव और अपने वोट बैंक और विचारधारा को ध्यान में रखकर बजट बनाती हैं और उसमें आम जनता और प्रबुद्ध लोगों की सलाह की अनदेखी होती है। इस लेख में कुछ ऐसे ही सुझाव हैं जो बहुत से अनुभवी साथियों और प्रबुद्ध जनों से चर्चा के बाद निकले हैं।
1. सरकार पिछले कुछ साल से छूट रहित टैक्स के नए रिजीम को आकर्षक बनाने की कोशिश कर रही है लेकिन उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही। इसके लिए उसमें होम लोन आदि की कुछ बहुत जरुरी छूट दी जानी चाहिए । दूसरे नए टैक्स रेजीम को बाय डिफॉल्ट जनता पर नहीं थोपना चाहिए।
2. कर निर्धारण और अपील की फैसलेस प्रणाली में करदाताओं को काफी समस्या आ रही है। टैक्स रेजीम की तरह यह विकल्प होना चाहिए कि करदाता अपना कर निर्धारण और अपील फेसलेस करना चाहता है या सीधी सुनवाई से। एक तरफ सरकार जन अदालत में खुली सुनवाई को बढ़ावा देती है लेकिन आयकरदाता सीधी सुनवाई के अधिकार से वंचित हैं जो उचित नहीं है।
3. कर मुक्त आय की सीमा में बढ़ोतरी डी ए की तरह महंगाई से लिंक होनी चाहिए । यह तार्किक और वैज्ञानिक तरीका है जिसे हर साल अपनाया जाना चाहिए।
4. सरकार अपनी जन कल्याण की स्वास्थ्य सेवा लाभ जैसी लाभकारी योजनाओं से आयकरदाताओं को बाहर रखती है।करदाताओं को अच्छी योजनाओं से बाहर रखने से आयकरदाताओं को कर देना बोझ लगता है। उन्हें यह महसूस होता है कि यदि वे कर नहीं देंगे तो इन योजनाओं का लाभ उठा सकते हैं। इससे करोड़ों की संख्या में आयकरदाता कर चुकाने से बचते हैं। यह लाभ सबको मिलना चाहिए।
5.व्यक्तिगत कर की अधिकतम दर कॉर्पोरेट कर से अधिक है ,यह भी व्यक्तिगत करदाताओं को खलता है क्योंकि वे कंपनी बनाने में सक्षम नहीं हैं।
6. हमारे यहां करदाताओं के लिए स्वास्थ्य की सोशल सिक्योरिटी नहीं है उल्टे उन्हें अपने और अपने परिवार के मेडिकल इंश्योरेंस पर भी जी एस टी का भुगतान करना पड़ता है जो करदाताओं के जले पर नमक छिडक़ने जैसा है।
7.आम जनता को मुफ्त राशन के बजाय यदि रोजगार के अवसर देंगे तभी देश प्रगति करेगा। इसके लिए मनरेगा के कार्यक्षेत्र में विस्तार होना चाहिए। ग्राम पंचायत के माध्यम से जल संरक्षण और बागवानी आदि के निजी कार्यों में भी रोजगार सृजन की इस योजना का उपयोग होना चाहिए।
8. प्राकृतिक और जैविक खेती स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए बहुत जरूरी है। जैविक किसानों को रासायनिक खाद पर मिलने वाली सब्सिडी की एवज में जैविक सब्सिडी मिलनी चाहिए ।
9. पेंशनर्स के लिए टैक्स में राहत मिलनी चाहिए। साठ से सत्तर साल आयु वर्ग वालो को भी स्वास्थ्य लाभ मिलना चाहिए।