विचार / लेख
-आलोक पुतुल
क्या छत्तीसगढ़ में माओवादियों के खिलाफ सुरक्षाबलों की लड़ाई किसी निर्णायक दौर में है?
अगर एक के बाद एक संदिग्ध माओवादियों के खिलाफ चलने वाले ऑपरेशन और उसके आंकड़ों को देखें तो इसका जवाब देना मुश्किल नहीं होगा।
हालांकि, माओवादियों की लंबे समय से चली आने वाली गुरिल्ला लड़ाई को जानने वाले शायद इन आंकड़ों के बाद भी संशय में हो सकते हैं।
लेकिन मौजूदा आंकड़े बताते हैं कि माओवादी आंदोलन 1970 के बाद अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। इस साल एक जनवरी से अब तक, छत्तीसगढ़ के अलग-अलग हिस्सों में पुलिस ने 45 संदिग्ध माओवादियों को मारने का दावा किया है।
हालांकि, इस दौरान सुरक्षाबल के 9 जवानों समेत 10 लोग भी मारे गए। माओवादियों के ख़िलाफ़ ऑपरेशन का सिलसिला लगभग हर दिन जारी रहा।
3 जनवरी को हुई साल की पहली मुठभेड़
माओवादियों के साथ साल की पहली मुठभेड़ की घटना तीन जनवरी को राज्य के गरियाबंद जिले में हुई, जहां ओडिशा और छत्तीसगढ़ के सुरक्षाबलों के संयुक्त ऑपरेशन में एक माओवादी के मारे जाने का पुलिस ने दावा किया था।
अब उसी गरियाबंद जि़ले में ओडिशा और छत्तीसगढ़ के सुरक्षाबलों के साथ रविवार से मंगलवार तक चले मुठभेड़ के बाद पुलिस ने 14 माओवादियों के शव बरामद करने की बात कही है।
इससे पहले 16 जनवरी को बीजापुर जि़ले के पुजारी कांकेर इलाके में 18 माओवादी मारे गए थे।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मंगलवार को 14 माओवादियों के शव बरामद किए जाने के बाद सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, ‘नक्सलवाद को एक और झटका। हमारे सुरक्षा बलों ने नक्सल मुक्त भारत बनाने की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है।’
उनके मुताबिक़, ‘सीआरपीएफ, ओडिशा पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप और छत्तीसगढ़ पुलिस ने एक संयुक्त ऑपरेशन में ओडिशा-छत्तीसगढ़ सीमा पर 14 नक्सलियों को मारा है।’
उन्होंने लिखा, ‘नक्सल मुक्त भारत के हमारे संकल्प और सुरक्षाबलों की संयुक्त कार्रवाई के साथ ही नक्सलवाद अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है।’
इधर राज्य के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ताज़ा मुठभेड़ की सफलता से बेहद उत्साहित हैं।
उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार अब माओवाद में अंतिम कील ठोंकने का काम कर रही है।''
विष्णुदेव साय ने कहा, ‘एक सप्ताह के भीतर माओवादियों के साथ दो बड़ी मुठभेड़ की घटनाएं हुई हैं। हमें लगातार सफलता मिल रही है। 31 मार्च 2026 तक देश से माओवाद को खत्म करने का संकल्प पूरा हो कर रहेगा।’
2024 में हुई मुठभेड़ों में 223 माओवादी मारे गए
दिसंबर 2023 में जब छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार आई तो राज्य के गृहमंत्री विजय शर्मा ने माओवादियों के साथ शांति वार्ता की पेशकश की।
वे अपने अधिकांश सार्वजनिक संबोधनों में शांति वार्ता की बात दुहराते रहे लेकिन दूसरी तरफ़ राज्य में सुरक्षाबलों ने माओवादियों के खिलाफ अपना ऑपरेशन भी धीरे-धीरे तेज़ कर दिया।
आंकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में 2020 से 2023 के चार सालों में 141 माओवादी मारे गये थे। लेकिन राज्य में भाजपा की सत्ता आने के बाद अकेले 2024 में सुरक्षाबलों ने 223 माओवादियों को मुठभेड़ में मारने का दावा किया। इसके अलावा बस्तर के इलाके में सुरक्षाबलों के 28 कैंप भी खोले गये।
इस दौरान राज्य में अलग-अलग जन संगठनों के लोगों की भारी संख्या में गिरफ़्तारी भी हुई। निर्दोष आदिवासियों की प्रताडऩा की ख़बरें भी सामने आई, कई मुठभेड़ों पर सवाल भी उठे।
मानवाधिकार संगठनों ने कहा कि बस्तर में ऑपरेशन इसलिए नहीं चलाया जा रहा है कि सरकार माओवाद को ख़त्म करना चाहती है, बल्कि इसलिए चलाया जा रहा है कि औद्योगिक घरानों के लिए खनन का रास्ता साफ़ हो। लेकिन इससे सरकारी कार्रवाई पर कोई फर्क़ नहीं पड़ा।
16 अप्रैल, 2024 को कांकेर के छोटेबेठिया में माओवादियों को बड़ा झटका उस समय लगा, जब सुरक्षाबलों ने एक मुठभेड़ में 29 संदिग्ध माओवादियों को मारने का दावा किया।
छत्तीसगढ़ में यह माओवादियों के ख़िलाफ़ सबसे बड़ी कार्रवाई थी। लेकिन इस घटना के 6 महीने बाद 4 अक्टूबर को दंतेवाड़ा के थुलथुली में 38 संदिग्ध माओवादियों के मारे जाने की घटना ने पिछले सारे रिकार्ड तोड़ दिए।
इस दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के छत्तीसगढ़ में दौरे होते रहे। अगस्त और दिसंबर में तो अमित शाह ने तीन-तीन दिन लगातार छत्तीसगढ़ में गुजारे, बस्तर में सुरक्षाबलों के साथ रात गुजारी। माओवाद को लेकर समीक्षा बैठकें की गई और अमित शाह ने 31 मार्च 2026 तक छत्तीसगढ़ समेत पूरे देश से माओवाद, पूरी तरह से ख़त्म करने की समय सीमा भी तय कर दी।
उन्होंने इस बात को कई बार दोहराया कि नक्सलवाद समाप्त होगा तो कश्मीर से ज्यादा पर्यटक बस्तर में आएंगे। नक्सलियों से अपील करता हूं, पीएम को समझिए, समर्पण करिए, हिंसा करेंगे तो हमारे जवान निपटेंगे।
अमित शाह जिस आत्मविश्वास से यह बात कह रहे हैं, असल में उसके पीछे भी माओवादी मोर्चे पर सुरक्षाबलों की सफलता के आंकड़े ही हैं।
माओवाद प्रभावित राज्य और
जिलों को जानने वाले क्या कहते हैं?
देश भर में माओवाद प्रभावित जि़लों की संख्या 126 से घट कर अप्रैल 2018 में 90 रह गई। जुलाई 2021 में ऐसे जि़लों की संख्या 70 हो गई और अप्रैल 2024 में माओवाद प्रभावित जिलों की संख्या महज 38 रह गई। इनमें भी 40 फीसदी जिले छत्तीसगढ़ के हैं।
छत्तीसगढ़ के 15 जिले- बीजापुर, बस्तर, दंतेवाड़ा, धमतरी, गरियाबंद, कांकेर, कोंडागांव, महासमुंद, नारायणपुर, राजनांदगांव, मोहला- मानपुर-अबांगढ़ चौकी, खैरागढ़-छुईखदान-गंडई, मुंगेली, कबीरधाम और सुकमा माओवाद से प्रभावित हैं।
अब इनमें से अधिकांश जिलों में माओवादी हिंसा की घटनाएं नहीं के बराबर हो रही हैं।
हालांकि माओवादी मामलों के जानकार एक पुलिस अधिकारी कहते हैं, ‘सुरक्षाबलों को जब मौका मिलता है, वो हमले करते हैं। जब माओवादियों को मौका मिलता है, वो हमले करते हैं। मामला केवल अवसर का है। जहां हज़ारों की फोर्स तैनात हैं, वहीं तो पिछले सप्ताह सुरक्षाबलों के 8 जवान समेत 9 लोग शहीद हुए। यह ठीक है कि माओवादी बैकफुट पर हैं लेकिन माओवादियों की ताक़त को कम करके आंकना ठीक नहीं होगा।’
लेकिन सर्व आदिवासी समाज के नेता अरविंद नेताम के पास अपनी चिंताएं हैं।
कई बार के सांसद और केंद्र सरकार में मंत्री रह चुके अरविंद नेताम का कहना है कि बस्तर में लंबे समय से गृहयुद्ध जैसी स्थितियां हैं। लेकिन इसका सबसे अधिक नुकसान आदिवासियों को हो रहा है।
वे कहते हैं, ‘मरने वाला भी आदिवासी है और मारने वाला भी। आदिवासी को दोनों तरफ़ से हथियार थमा दिया गया है। आखिरकार मारा तो आदिवासी ही जा रहा है।’
अरविंद नेताम की बात अपनी जगह सही भी है।
छत्तीसगढ़ के एक पुलिस अधिकारी का बयान
बस्तर के इलाके में अधिकांश माओवादी आदिवासी हैं। वहीं डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड और बस्तर फाइटर जैसे सुरक्षा संगठनों में भी आदिवासी ही हैं। ऐसे में अधिकांश अवसरों पर आदिवासी ही मारे जाते हैं।
यहां तक कि माओवादी संगठन छोड़ कर आत्मसमर्पण करने वाले आदिवासी भी सुरक्षित नहीं हैं। आत्मसमर्पण के बाद सरकार उन्हें फिर से हथियार थमा देती है।
इसी महीने की 6 तारीख को बीजापुर जिले के कुटरु में संदिग्ध माओवादियों द्वारा पहले से सडक़ में लगाए गए आईईडी यानी इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस की चपेट में आ कर 8 सुरक्षाकर्मियों समेत 9 लोग मारे गए। इनमें से डिस्ट्रिक्ट रिज़र्व गार्ड के हेड कांस्टेबल बुधराम कोरसा, सिपाही दुम्मा मरकाम, पंडारू राम, बामन सोढ़ी और बस्तर फाइटर्स के सिपाही सोमडू वेट्टी ऐसे आदिवासी थे।
इन लोगों ने कई सालों तक माओवादी आंदोलन का हिस्सा रहने के बाद आत्मसमर्पण किया था। यानी मारे जाने वाले 8 जवानों में से 5 ऐसे थे, जो पहले माओवादी रह चुके थे और अब सुरक्षाबलों का हिस्सा थे। (bbc.com/hindi)