विचार / लेख
- द्वारिका प्रसाद अग्रवाल
किसी व्यक्ति के विषय में उसकी गैरहाजिरी में आलोचना करना हम सबको बहुत पसंद है। इसका आनंद अवर्णनीय है। घंटों बीत जाएं, बातों से बातें खुलती जाएँगी और हम सब मिलकर ऐसे रसमय संसार की रचना कर लेते हैं जिसकी कल्पना रसों के उद्घाटक आचार्य भरत मुनि ने भी नहीं की थी। इसे निंदा रस कहते हैं।
प्रत्येक व्यक्ति अपने विवेक के अनुसार अपना व्यवहार निश्चित करता है। यह जरूरी नहीं कि उसका तरीका सबको पसंद आए। फिर, उस पर टीका-टिप्पणी शुरू होती है। उचित-अनुचित पर तर्क दिए जाते हैं और बहस आरम्भ हो जाती है। वार्तालाप का एक ऐसा निरर्थक सिलसिला शुरू हो जाता है जिससे किसी को कुछ भी हासिल नहीं होता।
यदि किसी के सामने उसकी आलोचना करने का साहस न हो, या रिश्तों के बिगडऩे की बाधा न हो तो अपने मन का गुबार निकालने का यह एक मात्र तरीका है। वैसे, निंदा करने से दो फायदे होते हैं, प्रथम, इस प्रकार कुछ कह-सुन लेने से मन हल्का हो जाता है और द्वितीय, यह अत्यंत रोचक ‘टाइम पास’ खेल है इसलिए जिनके पास फुर्सत है, वे इसके निपुण खिलाड़ी होते हैं और जो व्यस्त हैं, वे कम शब्दों में कुछ कहकर या धीरे से मुस्कुरा कर इसका सुख प्राप्त कर लेते हैं।
हम सब निंदा करने में बहुत आगे रहते हैं लेकिन हम खुद इसे सहन नहीं कर पाते। किसी ‘भेदिये’ से अपने विषय में हो रही निंदा की जानकारी मिलते ही हमारे चेहरे की रंगत बदलने लगती है, कान गर्म होने लगते हैं और हमारे दिमाग में दूषित बातें जन्म लेने लगती हैं। कई बार हम अपने संबंधों पर पुनर्विचार करने लगते हैं। हमारी यह सोच न्यायोचित नहीं है।
कड़वाहट की तजऱ् पर आमने-सामने की आलोचना किसी का भी ह्रदय भेदती है और उसे जिद्दी बनाती है। यदि किसी समूह में किसी व्यक्ति की निंदा हो रही हो तो उसे रोकें और लोगों को प्रेरित करें कि भूलों की चर्चा केवल भूल करने वाले के सामने की जाएं। किसी के पीठ-पीछे उसकी आलोचना करने से होने वाली हानियाँ अत्यंत घातक होती हैं। किसी की गलतियां आमने-सामने भी बताई जा सकती हैं। सबसे पहले उसके अच्छे कार्यों की प्रशंसा करें, फिर धीरे से ‘शुगर कोटेड’ कैप्सूल की तरह उसकी भूलों की ओर इशारा करें। ध्यान रहे, किसी को भी दोषी ठहराने का हक आपको नहीं है। इस प्रकार उसकी गलतियों को सुधार का अवसर देकर हम उसके कार्यों तथा व्यवहार को सही दिशा दे सकते हैं। इससे हमारे सम्बन्ध और अधिक मधुर एवं प्रगाढ़ होते हैं।
निंदा रस में रस लेने वालों के लिए यह सुझाव है कि निंदा में रस लेना मानव व्यवहार के अनुरूप नहीं है। काना-फूसी और चरित्रहरण का काम घटिया लोग करते हैं इसलिए इससे बचें और आलोचना करने के लिए सकारात्मक तरीका अपनाएं।


