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हरियाणा विधानसभा चुनाव: क्यों गलत साबित हुए एग्जिट पोल?
09-Oct-2024 3:02 PM
हरियाणा विधानसभा चुनाव: क्यों गलत साबित हुए एग्जिट पोल?

-अंशुल सिंह

इंडिया टुडे-सी वोटर: कांग्रेस को 50 से 58 सीटें और बीजेपी को 20 से 28 सीटें।

एक्सिस माई-इंडिया: कांग्रेस को 53 से 65 सीटें और बीजेपी को 18 से 28 सीटें।

भास्कर रिपोर्टर्स पोल: कांग्रेस को 44 से 54 और बीजेपी को 19 से 29 सीटें।

रिपब्लिक मैट्रिज: कांग्रेस को 55 से 62 और बीजेपी को 18 से 24 सीटें।

ये कुछ एग्जि़ट पोल हैं जिनमें हरियाणा में कांग्रेस की स्पष्ट बहुमत से सरकार बनने की बात कही गई थी। लेकिन जब नतीजे आए तो इसके ठीक उलट हुआ।

हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी ने अपने दम पर स्पष्ट बहुमत हासिल किया और राज्य में जीत की हैट्रिक लगाई। नतीजों में बीजेपी को 48 और कांग्रेस को 37 सीटें मिली हैं। 90 सीटों वाली हरियाणा विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 46 है।

इन चुनावी नतीजों ने एक बार फिर एग्जि़ट पोल और उनको करने वाली एजेंसियों की विश्वसनीयता को सवालों के घेरे में ला दिया है।

हालांकि जम्मू-कश्मीर के नतीजे एग्जि़ट पोल के इर्द-गिर्द रहे। यहां नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन को बहुमत मिला है।

एग्जिट पोल पर उठे सवाल

ऐसा पहली बार नहीं है जब नतीजों के बाद एग्जिट पोल करने वालीं सर्वे एजेंसियों को आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है।

कुछ महीने पहले लोकसभा चुनाव के नतीजे आए थे तब भी एग्जि़ट पोल्स को लेकर कमोबेश ऐसी ही स्थिति थी क्योंकि नतीजे एग्जि़ट पोल से अलग थे।

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्लाह एग्जिट पोल्स की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते रहे हैं।

मतगणना वाले दिन भी उमर अब्दुल्लाह ने इस विषय को लेकर एक्स पर एक पोस्ट लिखा है।

उमर ने लिखा, ‘यदि आप एग्जि़ट पोल्स के लिए भुगतान करते हैं या उन पर चर्चा करने में समय बर्बाद करते हैं तो आप सभी चुटकुलों/मीम्स/उपहास के पात्र हैं। कुछ दिन पहले मैंने उन्हें समय की बर्बादी कहने का एक कारण बताया था।’

5 अक्टूबर को उमर अब्दुल्ला ने एग्जिट पोल्स को टाइम पास बताते हुए इग्नोर करने की बात कही थी।

नतीजे के दिन पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने सवाल पूछते हुए लिखा, ‘एग्जि़ट पोल्स से एग्जिट तक?’

पत्रकार निधि राजदान ने भी एग्जि़ट पोल्स को लेकर अपनी राय साझा की है।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर निधि ने लिखा, ‘अगर अब भी कोई एग्जिट पोल को गंभीरता से लेता है, तो वो मजाक का पात्र है।’

क्यों गलत साबित हुए एग्जिट पोल?

पिछले साल के अंत में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हुए थे। यहां भी नतीजे एग्जिट पोल के मुताबिक नहीं आए थे।

आखिर हरियाणा समेत दूसरे राज्यों में ऐसे अहम मौक़ों पर सर्वे करने वाली एजेंसियों से कहां चूक हुई?

इस सवाल के जवाब में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग स्टडीज (सीएसडीएस)-लोकनीति के सह निदेशक प्रोफेसर संजय कुमार एग्जिट पोल्स की कार्य पद्धति को कठघरे में खड़ा करते हैं।

संजय कुमार कहते हैं, ‘जिस तरह से धड़ल्ले से पोल्स सामने आ रहे हैं उनमें मेथोडोलॉजी को फॉलो नहीं किया जा रहा है। कोई भी पोल करने से पहले वोटरों के पास जाना होता और कुछ सवाल पूछने होते हैं। तो कम से कम सभी एजेंसियों को ये सवाल, वोट शेयर और अन्य जानकारियां सामने रखनी चाहिए क्योंकि इसके बाद ही हम सही आकलन कर सकते हैं।’

संजय कुमार का कहना है कि मेथोडोलॉजी (कार्य पद्धति) में ज़रूर कुछ न कुछ गड़बड़ी है तभी ये सारे एग्जि़ट पोल्स ग़लत साबित हो रहे हैं।

यशवंत देशमुख सेंटर फॉर वोटिंग ओपिनियन एंड ट्रेंड्स इन इलेक्शन रिसर्च यानी सी वोटर के निदेशक और संस्थापक संपादक हैं।

सी वोटर भारत में चुनाव संबंधी सर्वे के लिए एक जानी-मानी एजेंसी है और दो राज्यों के विधानसभा चुनाव में सीवोटर ने इंडिया टुडे मीडिया समूह के साथ एग्जि़ट पोल सर्वे किया था।

यशवंत देशमुख का कहना है एग्जिट पोल से सीटों की अपेक्षा सही नहीं है क्योंकि कई बार यह सीधा न होकर टेढ़ी खीर होता है।

यशवंत कहते हैं, ‘फस्र्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम में सबसे पहली ज़रूरत होती है कि आप वोट शेयर को सही से पकड़ें। फिर वोट शेयर को सीट में बदलने की क़वायद तिरछी है और वो सर्वे के विज्ञान का हिस्सा नहीं है। इसलिए ब्रिटेन में भी सिर्फ वोट शेयर बताया जाता है, सीटों की संख्या नहीं। एजेंसियों का काम वोट को सीट में बदलने का नहीं है यह काम सांख्यिकीविद करते हैं।’

यशवंत आगे बताते हैं, ‘सीवोटर ने हरियाणा में 10 साल सत्ता रहने के बाद बीजेपी के वोट शेयर बढऩे की बात कही है। कांग्रेस का भी वोट शेयर बढऩे की बात कही है क्योंकि वो अन्य क्षेत्रीय दलों के वोटरों को अपने पाले में खींच रही है। आम धारणा यह कहती है कि जिसे वोट ज़्यादा उसकी सीटें ज्यादा लेकिन फस्र्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम में ऐसा नहीं होता है।’

वो कहते हैं, ‘आज हरियाणा में कांग्रेस को बीजेपी के बराबर वोट मिला लेकिन सीटें नहीं मिलीं। कर्नाटक में बीजेपी जब-जब सत्ता में आई तब-तब कांग्रेस का वोट शेयर ज़्यादा रहा। ये उलटबांसियां सिस्टम में होती हैं और इन उलटबांसियों के चलते सीट शेयर का आकलन मुश्किल हो जाता है।’

एग्जि़ट पोल की ‘कमियां’ कैसे दूर होंगी?

बीबीसी से बातचीत में यशवंत देशमुख सर्वे एजेंसियों की सर्वे की पद्धति को दर्शक के सामने रखने पर ज़ोर देते हैं।

यशवंत बताते हैं, ‘सर्वे एजेंसियों को अपनी क्षमताओं को ध्यान में रखकर बहुत साफ बोलना चाहिए कि वोट शेयर, मुद्दे और लोकप्रियता के मानकों पर ये आंकड़े सही हैं लेकिन यह जरूरी नहीं वोट शेयर जब सीट के आंकड़ों में बदलेगा तब उतना ही सटीक हो। दुर्भाग्य यह है कि वोट शेयर कोई बताए न बताए लेकिन हर कोई सीट शेयर बताने पर आमादा होता है। सारे एग्जिट पोल्स में दो या तीन ही ऐसे होंगे जिन्होंने वोट शेयर बताया हो अन्यथा किसी ने भी यह जहमत नहीं उठाई है। साथ ही वोट को सीट में बदलने वाले अवैज्ञानिक हिस्से को भी खुलकर दर्शकों या पाठकों को बताना चाहिए।’

यशवंत का मानना है कि मीडिया को चुनावी सर्वे के संबंध में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की गाइडलाइन्स को फॉलो करना चाहिए और दर्शकों को बताना चाहिए कि एग्जिट पोल से क्या अपेक्षाएं रखनी हैं और क्या नहीं।

अक्सर जब एग्जि़ट पोल ग़लत साबित होते हैं तो एक बहस शुरू हो जाती है कि क्या इस तरह के पोल या सर्वे को बंद कर देना चाहिए?

इस सवाल के जवाब में यशवंत जम्मू-कश्मीर का उदाहरण देते हैं।

वो कहते हैं, ‘अगर आप जम्मू-कश्मीर के मतदाताओं से एग्जिट पोल को बंद करने की बात कहेंगे तो शायद उनका जवाब ना होगा क्योंकि वहां एग्जिट पोल्स सही हुए हैं। इसलिए बंद का तो सवाल ही नहीं उठता है।’

एग्जिट पोल क्या है और कैसे किया जाता है?

अंग्रेजी भाषा के शब्द एग्जिट का मतलब होता है बाहर निकलना। इसलिए एग्जिट शब्द ही बताता है कि यह पोल क्या है।

जब मतदाता चुनाव में वोट देकर बूथ से बाहर निकलता है तो उससे पूछा जाता है कि क्या आप बताना चाहेंगे कि आपने किस पार्टी या किस उम्मीदवार को वोट दिया है।

एग्जिट पोल कराने वाली एजेंसियां अपने लोगों को पोलिंग बूथ के बाहर खड़ा कर देती हैं। जैसे-जैसे मतदाता वोट देकर बाहर आते हैं, उनसे पूछा जाता है कि उन्होंने किसे वोट दिया।

कुछ और सवाल भी पूछे जा सकते हैं, जैसे प्रधानमंत्री पद के लिए आपका पसंदीदा उम्मीदवार कौन है वगैरह।

आम तौर पर एक पोलिंग बूथ पर हर दसवें मतदाता या अगर पोलिंग स्टेशन बड़ा है तो हर बीसवें मतदाता से सवाल पूछा जाता है।

मतदाताओं से मिली जानकारी का विश्लेषण करके यह अनुमान लगाने की कोशिश की जाती है कि चुनावी नतीजे क्या होंगे।

सी-वोटर, एक्सिस माई इंडिया, सीएनएक्स भारत की कुछ प्रमुख एजेंसिया हैं जो एग्जिट पोल करती हैं।

एग्जिट पोल से जुड़े नियम-कानून क्या हैं?

रिप्रेजेंन्टेशन ऑफ द पीपल्स एक्ट, 1951 के सेक्शन 126ए के तहत एग्जिट पोल को नियंत्रित किया जाता है।

भारत में, चुनाव आयोग ने एग्जि़ट पोल को लेकर कुछ नियम बनाए हैं। इन नियमों का मकसद यह होता है कि किसी भी तरह से चुनाव को प्रभावित नहीं होने दिया जाए।

चुनाव आयोग समय-समय पर एग्जि़ट पोल को लेकर दिशा-निर्देश जारी करता है। इसमें यह बताया जाता है कि एग्जिट पोल करने का क्या तरीका होना चाहिए।

एक आम नियम यह है कि एग्जिट पोल के नतीजों को मतदान के दिन प्रसारित नहीं किया जा सकता है।

चुनावी प्रक्रिया शुरू होने से लेकर आखिरी चरण के मतदान खत्म होने के आधे घंटे बाद तक एग्जिट पोल को प्रसारित नहीं किया जा सकता है।

इसके अलावा एग्जिट पोल के परिणामों को मतदान के बाद प्रसारित करने के लिए, सर्वेक्षण-एजेंसी को चुनाव आयोग से अनुमति लेनी होती है। (bbc.com/hindi)


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