विचार / लेख
-अभय कुमार सिंह
14 फरवरी 2014- वो तारीख जब अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर पहली बार इस्तीफा दिया था।
बारिश के बीच केजरीवाल ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था, ‘दोस्तों, मैं बहुत छोटा आदमी हूं। मैं यहां कुर्सी के लिए नहीं आया हूं। मैं यहां जनलोकपाल बिल के लिए आया हूं। आज लोकपाल बिल गिर गया है और हमारी सरकार इस्तीफा देती है। लोकपाल बिल के लिए सौ बार मुख्यमंत्री की कुर्सी न्योछावर करने के लिए तैयार हैं। मैं इस बिल के लिए जान भी देने के लिए तैयार हूं।’
उस वक्त अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी नई-नई अस्तित्व में आई थी। कार्यकर्ता उनके इस एलान से उत्साहित थे। उन्हें भरोसा था कि वो दोबारा चुनाव में जाएंगे और जीत दजऱ् करेंगे। हुआ भी यही।
अब एक दशक से ज़्यादा समय हो चुका है, अरविंद केजरीवाल तीन बार दिल्ली के मुख्यमंत्री चुने गए हैं और पार्टी भी तमाम राजनीतिक जोर-आज़माइश में पहले से कहीं ज़्यादा अनुभवी हो गई है।
15 सितंबर 2024 को एक बार फिर अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा देने की तारीख का ऐलान किया है और इस बार भी वो दोबारा चुनाव में जाने और सत्ता हासिल करने का भरोसा जता रहे हैं।
उनका कहना है कि जब तक जनता उनको इस पद पर बैठने के लिए नहीं कहेगी, तब तक वो फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठेंगे।
रविवार को पार्टी मुख्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘जब तक दिल्ली में चुनाव नहीं होंगे तब तक कोई अन्य नेता दिल्ली का मुख्यमंत्री होगा।’
इसके लिए दो दिनों के भीतर आम आदमी पार्टी के विधायक दल की बैठक होगी, उसी में नए मुख्यमंत्री का नाम तय होगा।
केजरीवाल ने कहा, ‘मैं जनता के बीच में जाऊंगा, गली-गली में जाऊंगा, घर-घर जाऊंगा और जब तक जनता अपना फैसला न सुना दे कि केजरीवाल ईमानदार है तब तक मैं सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठूंगा।’
उनकी इस घोषणा को बीजेपी ने पीआर स्टंट करार दिया है। लेकिन उनके इस एलान के बाद कई सवाल उठ रहे हैं। बीबीसी हिंदी ने ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब जानने की कोशिश की है।
पहला ये कि इस्तीफे का एलान इस वक्त क्यों, इसका हरियाणा चुनाव से कोई कनेक्शन तो नहीं?
दूसरा ये कि पहले चुनाव कराने की मांग का आधार क्या है? तीसरा ये कि, अगला मुख्यमंत्री चुनने का आधार क्या होगा, और क्या दिल्ली बीजेपी की रणनीति पर इसका असर होगा?
एक अहम सवाल ये भी कि 2014 के केजरीवाल के इस्तीफे से 2024 के इस्तीफे तक आम आदमी पार्टी कितनी बदली?
इस्तीफे का ऐलान अभी क्यों?
कऱीब पांच महीने जेल में रहने और जेल के अंदर से ही सरकार चलाने के बाद, अरविंद केजरीवाल 13 सितंबर देर शाम ज़मानत मिलने के बाद बाहर आए। इसके दो दिन बाद ही उन्होंने दो दिन बाद इस्तीफ़ा देने की घोषणा कर दी। आखऱि अभी ही इस्तीफ़े की पेशकश क्यों की गई?
वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी कहते हैं कि अचानक लिए गए इस फ़ैसले को अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक शैली से जोडक़र देखना चाहिए।
वो कहते हैं, ‘अगर आप 10-12 साल के केजरीवाल के राजनीतिक इतिहास को देखें तो उनके फैसलों में कुछ न कुछ नाटकीयता होती है। नाटकीयता ऐसी कि जिसमें ‘आदर्श’ भी दिख जाए और उसके पीछे कोई रणनीति भी छिपी हो, वो बतौर राजनेता इतने सरल व्यक्ति नहीं हैं।’
प्रमोद जोशी का मानना है, ‘केजरीवाल इस अचानक लिए फ़ैसले से संदेश देना चाहते हैं, ‘मैं इन सब चीज़ों से ऊपर हूं और मैं साधारण व्यक्ति हूं’।’
प्रमोद जोशी का मानना है कि केजरीवाल जिस समय गिरफ़्तार हुए थे तभी इस्तीफ़ा दे सकते थे, क्योंकि इससे पहले भी जो नेता ऐसे गिरफ़्तार हुए उन्होंने इस्तीफ़ा दिया। लेकिन अब जेल से बाहर आने के बाद इस्तीफ़ा देने के कारणों के पीछे प्रमोद जोशी मानते हैं, ‘हो सकता है कि वो ये भी साबित करना चाहते हों तो उन्होंने कानूनी लड़ाई लड़ी और सिद्धांतों की वजह से इस्तीफा नहीं दिया। आज वो मान रहे हैं कि वो दूसरे सिद्धांत की बात कर रहे हैं कि वो जनता के फ़ैसलों पर ही मुख्यमंत्री की गद्दी लेंगे।’
‘टू लेट, टू लिटिल’
वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष, केजरीवाल के इस फ़ैसले को ‘टू लेट, टू लिटिल’ बताते हैं।
उन्होंने कहा, ‘केजरीवाल ने इस फ़ैसले को लेने में देरी कर दी है। ये डेस्परेट लगता है, लोगों के बीच गिरती छवि को बचाने वाले कदम जैसा लगता है। जिस दिन गिरफ़्तारी वाली बात सामने आई थी तभी उन्हें ऐसा करना चाहिए था।’
आशुतोष भी प्रमोद जोशी की राय से सहमत हैं कि ये एलान नाटकीयता भरा दिखता है। उनका कहना है, ‘दो दिन पहले इस तरह का एलान करना ‘रहस्य’जैसा है और उन्हें इस ‘नाटक’ से बचना चाहिए था।’
बता दें कि दिल्ली की मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल अगले साल फऱवरी में समाप्त हो रहा है। इसके बाद यहां चुनाव होना है। मतलब ये है कि चुनाव में अब कऱीब 5 महीने का ही वक्त बचा है।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक शरद गुप्ता इसे हालिया चुनाव और कानूनी बंदिशों से जोडक़र देखते हैं।
उन्होंने बीबीसी से कहा, ‘कोर्ट से बाहर आने के बाद भी उनके हाथ में कुछ नहीं है। वो कोई फ़ैसला नहीं ले सकते, कैबिनेट की मीटिंग में भाग नहीं ले सकते। बाहर आने के बाद लोग उन पर काम करने और वादे पूरा करने का दबाव बनाते, अब उनके पास ये कहने के लिए हो जाएगा कि ‘मैं मुख्यमंत्री नहीं हूं, कुछ नहीं कर सकता, लेकिन हमारी पार्टी कर सकती है’।’
शरद गुप्ता यह भी कहते हैं, ‘इस फैसले का दूसरा पहलू हरियाणा और दिल्ली चुनाव भी हो सकता है। बतौर मुख्यमंत्री बंदिशें खत्म होने के बाद वो हरियाणा चुनाव में ज़ोर लगाएंगे। अगले कुछ महीनों में दिल्ली चुनाव आने वाले हैं। तीन बार जीतने के बाद चौथा चुनाव आम आदमी पार्टी के लिए इतना आसान नहीं होगा।''
2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी 46 सीटों पर लड़ी थी। मगर पार्टी का प्रदर्शन काफ़ी निराशाजनक रहा था और वो एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। इस बार पार्टी सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
इस्तीफे से दो दिन पहले इसकी घोषणा को वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता ‘हेडलाइन मैनेजमेंट’ की तरकीब बताते हैं।
उनका कहना है कि ऐसा कर के पार्टी ख़बरों में बने रहना चाहती है। वो कहते हैं, ‘जब इस्तीफ़ा देना चाहिए घोषणा उसी दिन करनी चाहिए, पहले करने का मतलब क्या है? या, ये हो सकता है कि केजरीवाल को इस बात का डर था कि कहीं ये ख़बर लीक न हो जाए। इसके अलावा अब तक बीजेपी हैडलाइन मैनेजमेंट की मास्टर मानी जाती रही है, लेकिन अब आम आदमी पार्टी भी इसमें आगे है।’
हालांकि, इस्तीफ़े के लिए दो दिन की मोहलत मांगने के सवाल पर दिल्ली सरकार में मंत्री आतिशी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ‘इसका सीधा सा कारण है। आज रविवार है और कल सोमवार को ईद की छुट्टी है। इसलिए अगले वर्किंग डे यानी मंगलवार को केजरीवाल इस्तीफ़ा देंगे।’
आबकारी नीति में कथित घोटाले के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल को जमानत तो दे दी है लेकिन उन पर कई शर्तें लागू हैं। कोर्ट ने कहा है कि ईडी मामले में लगाई गई शर्तें इस मामले में भी लागू होंगी।
उन पर लगी शर्तों के अनुसार केजरीवाल मुख्यमंत्री कार्यालय और दिल्ली सचिवालय नहीं जाएंगे, वो अदालत में विचाराधीन अपने मामले को लेकर कोई सार्वजनिक बयान नहीं देंगे। वो किसी भी सरकारी फाइल पर तब तक हस्ताक्षर नहीं करेंगे जब तक कि ऐसा करना आवश्यक न हो और दिल्ली के उपराज्यपाल की मंजूरी लेने के लिए ये जरूरी न हो।
इसके अलावा वो मामले में अपनी भूमिका के संबंध में सार्वजनिक तौर पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे। वो न तो किसी गवाह से बात करेंगे और न ही मामले से जुड़ी किसी भी आधिकारिक फाइल तक पहुंच बनाएंगे।
नए चुनाव पर ‘कॉन्फिडेंस’ में है
आम आदमी पार्टी?
मुख्यमंत्री केजरीवाल समेत आम आदमी पार्टी के तकरीबन सभी चेहरे इस बात को कहते नजऱ आ रहे हैं कि पार्टी चुनाव में जाने के लिए तैयार है। इसके बावजूद केजरीवाल की तरफ से विधानसभा भंग करने की बात नहीं की गई और कहा गया है कि अब कोई नया चेहरा मुख्यमंत्री बनेगा।
आशुतोष और प्रमोद जोशी दोनों ही इसे ‘कॉन्फिडेंस’ के तौर पर नहीं देखते हैं।
आशुतोष कहते हैं, ‘अगर ऐसा कुछ होता तो पार्टी को विधानसभा भंग करनी चाहिए थी। ऐसा नहीं किया गया और नए मुख्यमंत्री की बात की जा रही है। मतलब ये है कि चुनाव के लिए पार्टी को वक्त चाहिए। हालांकि, पार्टी की तरफ से महाराष्ट्र के साथ दिल्ली में चुनाव कराए जाने की बात कही जा रही है लेकिन ऐसा भी था तो कैबिनेट को इस्तीफा देना चाहिए था।’
हालांकि, प्रमोद जोशी ये भी कहते हैं कि पिछले कुछ महीनों में जिस तरह की परिस्थितियां बनी हैं, उससे पार्टी को ऐसा लग रहा है कि अगर चुनाव जल्दी हो जाते हैं तो उसे उसका फायदा मिलेगा।
वो कहते हैं, ‘अगर 6 महीने बाद या 8 महीने बाद चुनाव हो, या 10 महीने बाद हो, तो वो पार्टी के लिए उतना प्रभावी नहीं होगा। ऐसे में पार्टी का बनाया गया गुब्बारा फूट सकता है। इसलिए यहां से वो यह चाह रहे होंगे कि चुनाव पहले हो जाएं। ऐसा है तो उन्हें विधानसभा भंग करनी चाहिए और जल्दी चुनाव कराने की बात रखनी चाहिए।’
वहीं वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता इसे आम आदमी पार्टी के कई नेताओं के जेल में रहने और उसके बाद पैदा हुई सहानुभूति से जोडक़र देखते हैं। उनका कहना है कि पार्टी इस सहानुभूति को भुनाना चाहती है।
वो कहते हैं, ‘इतने दिन केजरीवाल, सिसोदिया और संजय सिंह जेल में थे, तो अब पार्टी को लग रहा है कि इस सहानुभूति को बटोर लेना चाहिए। क्योंकि समय के साथ-साथ लोग इसे भूल भी सकते हैं, इसलिए पार्टी चाहती होगी कि चुनाव जल्द से जल्द हो जाएं।’
हालांकि रविवार को हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में विधानसभा भंग करने के सवाल पर आतिशि ने कहा दिल्ली विधानसभा को भंग करने की जरूरत नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘किसी भी विधानसभा का अगर छह महीने से कम का कार्यकाल रह जाता है तो केंद्र सरकार और चुनाव आयोग कभी भी चुनाव करवा सकता है। इसके लिए विधानसभा भंग करने की जरूरत नहीं है।’
नए मुख्यमंत्री के लिए कौन लेगा फैसला?
केजरीवाल के इस्तीफ़े की घोषणा के बाद ये कयास लगाए जा रहे हैं कि दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री कौन हो सकता है।
कई नामों की चर्चा भी हो रही है। इनमें अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल, सरकार में मंत्री आतिशि, मंत्री सौरभ भारद्वाज, मंत्री कैलाश गहलोत समेत कुछ और नामों पर कयास लगाए जा रहे हैं।
लेकिन ये किस आधार पर तय किया जाएगा?
प्रमोद जोशी कहते हैं, ‘ये जो नए मुख्यमंत्री बनाने का फ़ैसला है, इसका कोई मतलब नहीं लगता। क्योंकि सब जानते हैं कि मुख्यमंत्री जो भी बने वो बस दिखावे के लिए होगा, जैसा जयललिता के केस में या लालू यादव के केस में हुआ था। इसके बहाने थोड़ा माहौल बनाने की कोशिश रहेगी।’
वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी ये मानते हैं कि सिद्धांत चाहें कुछ भी हों लेकिन नया मुख्यमंत्री चुनने में मुख्य भूमिका अरविंद केजरीवाल की होगी।
प्रमोद जोशी कहते हैं, ‘जो भी चेहरा होगा, वो उनका वफादार होगा, इसमें दोराय नहीं है। जैसे आतिशी का नाम आ रहा है, क्योंकि उन्होंने सरकार का काम अच्छे से किया है। लेकिन जैसा सरप्राइज केजरीवाल ने इस्तीफे़ में दिया, वैसा सरप्राइज़ अगर नए मुख्यमंत्री के तौर पर मिल जाए, तो इसकी भी संभावना है।’
सुनीता केजरीवाल की दावेदारी पर वो कहते हैं, ‘वो भी बन सकती हैं, इसमें हैरानी नहीं होगी। ये थोड़ा अजीब तो होगा, लेकिन अब इस पार्टी में इस तरह की कोई हिचक बची नहीं है।’
शरद गुप्ता भी कहते हैं कि इस चेहरे की पहली योग्यता यही होगी कि वो अरविंद केजरीवाल का बेहद वफ़ादार होना चाहिए।
वो इसे ‘यस मिनिस्टर’ का नाम देते हैं। वो कहते हैं, ‘इसे, चेहरा चुने जाने की पहली योग्यता के तौर पर देखा जाएगा। आप सोचिए कि अरविंद केजरीवाल ने जेल में रहकर झंडा फहराने के लिए किसे आगे भेजा था?’
शरद यहां आतिशि की तरफ़ इशारा कर रहे हैं, हालांकि आतिशि ने अब तक इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है। उनका कहना है कि ये फ़ैसला विधायक दल की बैठक में होगा।
बीजेपी और कांग्रेस के नजरिए से फ़ैसला कैसा है?
बीजेपी केजरीवाल के इस कदम को ‘नाटक’ बता रही है। दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा का कहना है कि लोकसभा चुनाव में ही दिल्ली की जनता ने अपना फैसला सुना दिया था।
वो कहते हैं, ‘केजरीवाल को दिल्ली की जनता ने तीन महीने पहले ही अपना फै़सला सुना दिया है। आप दिल्ली की सडक़ों पर खुद घूमे थे और आपने कहा था कि जेल के बदले वोट दीजिए और दिल्ली की जनता ने आपको माकूल जवाब दिया।’
रविवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बीजेपी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने 48 घंटे पहले इस्तीफे के एलान पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, ‘जब केजरीवाल जी ने इस्तीफे की बात की तो हम ये कह सकते हैं कि उनके जुर्म का ये इकबालिया बयान हो गया। यानी, आपने मान लिया कि आप पर जो आरोप हैं वो इस लायक है कि आप इस पद पर नहीं रह सकते।’
हालांकि प्रमोद जोशी मानते हैं कि दिल्ली बीजेपी के लिए ये फैसला चौंकाने वाला और अप्रत्याशित होगा। वो कहते हैं, ‘बीजेपी दिल्ली में विधानसभा के लिए उतनी आश्वस्त अभी नहीं होगी क्योंकि पहला, बीजेपी का दिल्ली का संगठन बहुत मजबूत नहीं है,
इसमें आंतरिक लेवल पर भी कोई बहुत ताकत नहीं है। दूसरा, ये कि शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर दिल्ली को लेकर बीजेपी के अंदर असमंजस रहता है।’ ‘इसका तीसरा कारण भी है। हरियाणा में चुनाव होने जा रहे हैं, तो इसका कुछ न कुछ असर दिल्ली के परिणामों पर पड़ेगा। मतलब बीजेपी को इन्होंने एक बार चौंका तो दिया है, इसमें कोई दोराय नहीं है।’
हालांकि, आशुतोष इस राय से इत्तेफ़ाक नहीं रखते हैं, उनका मानना है कि इसका बीजेपी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
वो कहते हैं, ‘दिल्ली चुनाव में कुछ महीनों का ही वक्त है और बीजेपी इसके लिए मानसिक तौर पर तैयार है। मुझे नहीं लगता कि केजरीवाल के इस क़दम का बीजेपी की रणनीति या राजनीति पर कोई ख़ास फर्क पड़ेगा।’
वहीं वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता मानते हैं कि केजरीवाल का ये कदम बीजेपी के लिए एक तरह से हैरानी भरा है, जो कि किसी भी तरह से बीजेपी के पक्ष में नहीं है।
वो कहते हैं, ‘बीजेपी चाहती थी कि केजरीवाल मुख्यमंत्री बने रहें और उन पर कीचड़ उछलता रहे। अब केजरीवाल ये कह सकते हैं कि कोर्ट ने उन्हें छोड़ दिया और छूटते ही उन्होंने मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया, वो कह सकते हैं कि उन्हें सत्ता का कोई लालच नहीं है।’
जहां तक कांग्रेस की बात है तो दिल्ली में पहली बार चुनाव लडऩे के बाद केजरीवाल ने कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में सरकार बनाई थी। इसके लिए भी वो कई इलाक़ों में दिल्ली की आम जनता के बीच गए थे।
इस बार लोकसभा चुनाव में भी दोनों पार्टियां साथ चुनाव लड़ी थीं। लेकिन हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए दोनों के बीच गठबंधन नहीं हुआ है।
शरद गुप्ता कहते हैं, ‘लोकसभा चुनाव में गठबंधन से कमोबेश कांग्रेस को फ़ायदा मिला था। लेकिन आम आदमी पार्टी को कोई फ़ायदा नहीं मिला। अब वो हरियाणा में साथ नहीं लड़ रही हैं। ऐसे में ज़ाहिर है कि कांग्रेस कि प्रतिक्रिया केजरीवाल के खिलाफ एक विपक्षी पार्टी की जैसी होगी।’
वो कहते हैं कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ही दिल्ली में अपने नेतृत्व को मजबूत नहीं किया। वो कहते हैं, ‘प्रदेश संगठन में कोई भी ऐसा नेता नहीं दिखता, जो केजरीवाल जैसी शख़्सियत रखता हो। इसका ख़ामियाज़ा कांग्रेस को चुनाव में भुगतना में पड़ सकता है।’
कांग्रेस की तरफ़ से प्रतिक्रिया की बात करें तो कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने केजरीवाल के इस्तीफे को ‘नाटक’ कहा है और कहा है कि उन्हें बहुत पहले सीएम पद को छोड़ देना चाहिए था।
उन्होंने कहा, ‘जब उन्हें जेल हो गई थी तभी उन्हें सीएम पद छोड़ देना चाहिए था, लेकिन उसक वक्त उन्होंने ऐसा नहीं किया। अब बचा क्या है, अब ये घोषणा करने का क्या मतलब है।’
2014 के इस्तीफे से लेकर अब के इस्तीफे तक कितनी बदली पार्टी? इस सवाल पर आशुतोष कहते हैं, ‘आम आदमी पार्टी अब आंदोलन से जन्मी वो पार्टी नहीं रही। वो अलग दौर था जब देश बदलने का सपना था, आदर्शवाद था, नई तरह की राजनीति की उम्मीदें थीं। लेकिन 10 साल में चीज़ें बहुत बदल गई हैं। अब संगठन भी वैसा नहीं रहा, जैसा पहले था और इससे जुडऩे वाले लोग भी अब अलग तरह के हैं।’
आशुतोष कहते हैं कि इस बार दिल्ली की जनता भी ‘फ्री बिजली या फ्री पानी’ जैसे नारों पर जाने वाली नहीं है, अब तो तकऱीबन हर पार्टी ऐसा ही नारा दे रही है।
साल 2014 के इस्तीफ़े पर प्रमोद जोशी कहते हैं, ‘उस वक्त आम आदमी पार्टी आंदोलन से जन्मी हुई पार्टी थी और कार्यकर्ताओं में एक अलग तरह का उत्साह था। पार्टी ने जगह-जगह सभाएं की थीं, लोगों से पूछा था कि हमें सरकार बनानी चाहिए या हमें समर्थन लेना चाहिए। इस बार स्थिति अलग है। इन 10 सालों में पार्टी बहुत हद तक बदल चुकी है। अब पार्टी एक सामान्य राजनीतिक दल बन गई है।’
‘मुझे नहीं लगता कि कार्यकर्ताओं में अब उतनी एनर्जी है। पार्टी में अब कई लोग शामिल हो गए हैं, जो अपने लिए अलग-अलग तरह के फ़ायदे देखते हैं। आपने देखा कि राज्यसभा में मेंबर बनाने के लिए बाहर के लोग लाए गए, कार्यकर्ताओं की जगह नहीं दी गई। अब कार्यकर्ता वही नहीं रहे, जो शुरुआती दौर में थे।’ (www.bbc.com/hindi)


