विचार / लेख

शादी की हल्दी
12-Sep-2024 4:10 PM
शादी की हल्दी

-ध्रुव गुप्त

विवाह-परंपरा की शुरुआत कैसे हुई, इस बारे में एक दिलचस्प उडिय़ा आदिवासी लोककथा पढऩे को मिली। इस कथा के मुताबिक़ पुराने ज़माने में विवाह नाम की कोई संस्था नही थी। आपस में प्रेम करने वाले लडक़े-लडकियां स्वेच्छा से साथ रहने को स्वतंत्र थे। यह व्यवस्था कबीले के मुखिया और ओझा को नागवार गुजऱती थी। इससे उन्हें न कोई आर्थिक लाभ था और न दारू-मुर्गा की प्राप्ति होती थी। एक दिन दोनों ने मंत्रणा कर यह फैसला सुनाया कि कबीले के युवक-युवती अपनी मर्जी से साथ नहीं रह सकते। लडक़े को लडक़ी के साथ ओझा की देखरेख में ब्याह कर स्थायी रूप से साथ रहना होगा। और यह ब्याह भी तब होगा जब लडक़ा अपने भावी ससुर, मुखिया और ओझा को मदिरा और मुर्गे का भरपूर उपहार देकर खुश कर देगा। गांव के एक युवा ने इस आदेश का विरोध किया तो मुखिया ने उसका ब्याह अपनी बेटी से करने का आदेश सुना दिया। 

 एक दूसरी युवती को प्रेम करने वाला वह युवक ब्याह से बचने के लिए बरगद के एक खोखले पेड़ के भीतर जा छिपा। ओझा ने वधु के परिवार की औरतों से कहा कि इस खोखले वृक्ष में खूब हल्दी लगाओ, उसमें बहुत सारा पानी डालो और देर तक पंखा झलो। हल्दी, पानी और हवा के मिले-जुले असर से बेचारे लडक़े को इस कदर ठंढ लगी कि उसे बाहर आकर मुखिया का आदेश मान लेना पड़ा। ओझा ने मंत्र पढ़े और दोनों की शादी हो गई। तभी से शादी और शादी से पहले लडक़े और लडक़ी को हल्दी लगाने, नहलाने और पंखा झलने की प्रथा की शुरूआत हुई जो धीरे-धीरे लगभग समूचे देश में फैल गई।

उस उडिय़ा मुखिया और ओझा की कृपा थी कि हम सब ब्याह करने और हल्दी लगवाने के सुख-दुख आजतक भोग रहे हैं।


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