विचार / लेख
-कनुप्रिया
जावेद अख़्तर न बीमार थे, न पेट खराब था। स्वस्थ थे, टैलेंटेड थे और सफल भी। शबाना के गले कोई आफत नही मढ़ी गई थी जिसका बोझ बतौर पत्नी ईरानी पर था और अब शबाना को सुपुर्द कर दी गई थी। शबाना उनके साथ ख़ुश रहीं , जीवन भर उनका साथ रहा।
जावेद अख्तर और सलीम जावेद पर बनी डॉक्यूमेंट्री में हनी ईरानी के स्वर में जावेद अख्तर के लिये तल्खी दिखती है जो कि जाहिर है होगी ही, और जावेद अख्तर भी उनके प्रति अपना अपराध स्वीकारते हैं, शबाना भी उन्हें सराहती हैं। मगर इससे कुछ नही बदलता, अक्सर जीवन ऐसा ही क्रूर होता है, आपकी पीड़ाओं को कहीं से न्याय नही मिलता, बस समय के साथ उनकी तीव्रता कम हो जाती है।
यह बहुत कष्टप्रद होता है कि जिस व्यक्ति के साथ आपने अपने जीवन के बड़े हिस्से का समय, आपका भावनात्मक, मानसिक, सामाजिक, पारिवारिक, शारीरिक , आर्थिक निवेश किया हो, पता चले कि वो व्यर्थ गया और अब आपको फिर से वही निवेश नए सिरे करने हैं। यह आसान नही, बिल्कुल आसान नहीं। इसके अलावा रिजेक्शन आपके आत्मबल को भी किसी हद तक तोड़ देता है, इस सबसे उबरने और अपने जीवन में वापसी के लिये बहुत मानसिक और भावनात्मक ऊर्जा की ज़रूरत होती है।
फिर यह राहत भी ज़रूरी नही कि ख़ारिज करने वाला पुरुष ख़ुद ख़ारिज करने लायक ही हो, बीमार हो, पादता हो, दुनिया भर के नखरे हों और नींद लेने के लिये आपके द्वारा पैरों की मालिश पर निर्भर हो। रिजेक्शन एक सफल, स्वस्थ और हैंडसम व्यक्ति की तरफ़ से भी आ सकता है, और प्रेमिका उसे भुगते ही ये ज़रूरी नहीं।
फिर भी पुरुष कोई ट्रॉफ़ी नहीं है, न रक्षक है, अगर वो किसी और के साथ प्रेम में है तो आपके लिये छोड़ देने लायक ही है।
स्त्रियों के लिये कहीं न कहीं ये बेहद जरूरी है कि वो पुरूष से इतर भी अपनी जीवन यात्रा को, उसकी सार्थकता को समझें, जीवन आपका है, यही सबसे महत्वपूर्ण बात है, पुरुष या तो पार्टनर है या फिर नहीं है।
अच्छी बात ये है कि हनी ईरानी ने मजबूती से एक शानदार जीवन जिया, अनेक सफल और ‘क्या कहना’ जैसी ज़बरदस्त मूवी की लेखिका रहीं, उनके बच्चे भी टैलेंटेड और सफल हैं, उनकी जीवन यात्रा जावेद अख्तर के जाने से ख़त्म नहीं हो गई। अगर सफलताएँ उनके हिस्से न भी आती हों तब भी उनका जीवन उनका जीवन ही होता।


