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महिला समानता दिवस:डिजिटल हिंसा क्या है और इससे निपटने के तरीके क्या हैं?
26-Aug-2024 3:19 PM
महिला समानता दिवस:डिजिटल हिंसा क्या है और इससे निपटने के तरीके क्या हैं?

- स्नेहा

श्वेता को डांस करना काफी पसंद है और वो अपना छोटा-छोटा वीडियो इंस्टाग्राम पर डालती हैं। उनका कहना है कि ये एक ऐसी चीज है, जिससे उन्हें सबसे ज़्यादा खुशी मिलती है।

लेकिन एक दिन जब उन्होंने अपनी तस्वीर के साथ इंस्टाग्राम पर कुछ अश्लील बातें लिखी देखीं तो वो हक्की-बक्की रह गईं।

पोस्ट हटने में भी कई दिन लग गए। इस घटना ने उन्हें अंदर से हिला दिया। वो अब डिजिटल स्पेस में सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं।

महिलाओं की बराबरी की राह में डिजिटल बराबरी और सुरक्षित स्पेस को अहम माना गया है लेकिन डिजिटल हिंसा ने इस राह की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।

26 अगस्त को वीमेन्स इक्वालिटी डे (महिला समानता दिवस) के तौर पर मनाया जाता है। अमेरिका में 26 अगस्त 1920 को संविधान में संशोधन कर महिलाओं को भी वोट डालने का अधिकार देने की घोषणा हुई थी।

आइए जानते हैं क्या है डिजिटल हिंसा और इसका सामना करने की स्थिति में कौन से कदम उठाने चाहिए।

डिजिटल हिंसा क्या है?

भारत में डिजिटल क्रांति के साथ ज़्यादा से ज़्यादा लोगों के पास मोबाइल और इंटरनेट पहुंचा। इसने लोगों को बेशक जागरूक और सशक्त किया लेकिन इस डिजिटल दुनिया में भी हिंसा का वो रूप रिस-रिसकर पहुंचा जिसका सामना वर्षों से असल दुनिया में महिलाएं कर रही थीं।

यूएन पॉपुलेशन फंड के मुताबिक़ महिलाओं और लड़कियों के मामले में ये सीधा बदनामी से जुड़ जाता है। मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव के साथ ही वो ऑफलाइन और ऑनलाइन दुनिया में अलग-थलग पडऩे लगती हैं। इसका कार्यस्थल, स्कूल या लीडरशिप पॉजिशन पर उनकी हिस्सेदारी में असर पड़ता है।

ऑनलाइन हैरेसमेंट, हेट स्पीच, तस्वीरों से छेड़छाड़, ब्लैकमेल, ऑनलाइन स्टॉकिंग, अभद्र सामग्रियां भेजना समेत कई चीजें डिजिटल वॉयलेंस का हिस्सा हैं। एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के साथ इसके ख़तरे और भी बढ़ गए हैं।

यूएन के अनुसार, एक या एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा की गई वैसी हिंसा जिसकी जड़ें लैंगिक असमानता और लैंगिक भेदभाव में धंसी हुई हों और जिसे अंजाम देने में या बढ़ावा देने में डिजिटल मीडिया या कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया हो, वो इसके दायरे में हैं।

द इकोनॉमिस्ट की इंटेलिजेंस यूनिट के एक सर्वे के अनुसार, दुनिया भर में 85 प्रतिशत महिलाओं ने किसी न किसी फॉर्म में ऑनलाइन हिंसा का सामना किया।

भारत में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ साइबर अपराध के मामले कोविड के बाद ज़्यादा दर्ज हुए हैं। इस अपराध में ब्लैकमेलिंग/बदनाम करना/तस्वीरों के साथ छेड़छाड़/अभद्र सामग्री भेजना/फेक प्रोफाइल जैसी चीजें शामिल हैं।

श्वेता के मामले में उनकी तस्वीरें अपलोड करनेवाले को वो नहीं जानती थीं। उन्होंने पोस्ट को रिपोर्ट किया, जिसके बाद वो हट गया। लेकिन रिमझिम के केस में ऐसा नहीं था।

रिमझिम का कहना है कि उनके साथ जो हुआ, अगर उसमें उनके परिवारवालों का साथ नहीं मिला हुआ होता तो वो ये कानूनी लड़ाई कभी लड़ ही नहीं पातीं।

उनका दावा है कि उनके एक जानने वाले ने ही उनकी तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ कर सोशल मीडिया पर डालना शुरू किया, जब उन्होंने आईडी रिपोर्ट की तो उसने कई आईडी बनाकर उन्हें परेशान और ब्लैकमेल करना शुरू किया।

रिमझिम कहती हैं कि एक बात गौर करने वाली थी कि अभियुक्त को इस बात का पूरा भरोसा था कि उसका कुछ नहीं होगा और इनकी (रिमझिम) की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी।

रिमझिम और श्वेता के मामले में एक चीज कॉमन है कि उनके दिलो-दिमाग में इसकी छाप लंबे समय तक बनी रही। उन्हें लंबा वक़्त इससे उबरने में लगा।

कानून में इसके लिए क्या हैं प्रावधान?

बीबीसी ने जब इस बारे में पेशे से वकील सोनाली कड़वासरा से बातचीत की तो उनका कहना था कि भारत में इसके लिए कानून हैं लेकिन दिक्कत मामलों का लंबा चलना है।

वो कहती हैं कि डिजिटल हिंसा से निपटने के लिए भारतीय कानून में कई प्रावधान हैं। सबसे पहले तो ये दो चीजें करनी चाहिए।

आप जिस भी सोशल मीडिया पर हों वहां संबंधित आईडी को ब्लॉक करने का ऑप्शन आपके पास होता है, आप वहां इसे रिपोर्ट भी कर सकती हैं।

ये अपराध ‘साइबर क्राइम’ के दायरे में आते हैं, आप राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल पर ऑनलाइन मामला दर्ज करा सकती हैं।

सोनाली कड़वासरा के अनुसार, ‘कानून में कई सारे प्रावधान हैं। ये नए नहीं हैं, पहले से हैं। आईटी एक्ट में सेक्शन 66, 67, 71 ये सभी हैं, जो आपको डिजिटल हिंसा के खिलाफ सुरक्षा देते हैं। अगर किसी ने अपने असली नाम से आईडी बनाई है, जिससे वो आपको स्टॉक कर रहा है, आपकी तस्वीर के साथ छेड़छाड़ कर रहा है या आपको गंदे मैसेज कर रहा है या कुछ ऐसा है जो आपको डिफेम कर रहा हो तो आईटी एक्ट के साथ आप शिकायत दर्ज करा सकती हैं।’ अनजान व्यक्ति के केस में आप उस व्यक्ति की आईडी बताकर भी शिकायत दर्ज कर सकती हैं।

सोनाली कड़वासरा कहती हैं, ‘भारत में इस मामले में प्रावधान की दिक्कत नहीं है। मेरा मानना है कि दिक्कत मामलों के निपटारे में है। इसके लिए कुछ नया लाने की जरूरत है। जैसे अभी के समय में अपनी पहचान छिपाकर एक आईडी बना लेना और उससे किसी को परेशान करना बहुत ही आसान है। बिना पहचान जाहिर किए आईडी बनाने को थोड़ा मुश्किल किया जाए। ताकि उस व्यक्ति तक जल्दी पहुंचने में आसानी हो।’

‘पुलिस को ऐसे मामलों में ज़्यादा से ज़्यादा संवेदनशीलता दिखानी चाहिए। जरूरी नहीं है कि सिर्फ रेप हो या मर्डर हो तभी उनकी आंखें खुले। छोटी चिंगारी को भी उन्हें उतनी ही गंभीरता से लेने ज़रूरत है। छोटी-छोटी चीजें ही बड़े क्राइम का रूप ले लेती हैं। ’

मानसिक सेहत पर असर

रिमझिम कहती हैं, ‘मैं घंटों रोती रहती थी, हमेशा ये सोचती रहती थी कि जिसकी नजर भी उस पोस्ट पर पड़ी होगी, वो मेरे बारे में क्या सोचता होगा। मैं सोचती थी कि क्या कोई रास्ता है कि मैं इस ब्लैकमेलिंग से बाहर निकल सकूं, मुझे बस अंधेरा ही अंधेरा दिखता था। मुझे पुलिस के पास भी जाने से डर लगता था कि कंप्लेन की बात एक दिन की तो है नहीं। मैं पढ़ाई करूं, नौकरी के बारे में सोचूं, मेरी शादी फिक्स हो रही थी, उस पर ध्यान दूं।’

रिमझिम ने एक दिन साहस कर जब परिवारवालों को बताया और उनके कहने पर वो पुलिस के पास गईं। (बाकी पेज 8 पर)

 लेकिन इन सब के बीच वो मानसिक तनाव में डूबती गईं। वो कहती हैं, ‘पहले मुझे लगता था कि ये मामला ज़्यादा से ज़्यादा साल भर लंबा चलेगा लेकिन साल दर साल ये लंबा खिंचता गया और मैं मानसिक तौर पर परेशान होती गई।’

क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर पूजाशिवम जेटली कहती हैं कि पितृसत्तात्मक समाज में जिस तरीके का पावर बाहरी दुनिया में दिखता है, वही ऑनलाइन स्पेस में भी मिलता है। ऑनलाइन स्पेस में लोग ये भी महसूस करते हैं कि वो कुछ भी बोल और किसी को कुछ भी कह सकते हैं।

‘अगर कोई महिला अपने काम के बारे में भी वहां बता रही हो तो आप देखोगे कि उस पर सेक्सुअल कमेंट्स, बॉडी शेमिंग की जाती है। खासतौर पर टीएनजर्स (किशोरी) लड़कियां इसका ज्यादा शिकार हो रही हैं।’

पूजाशिवम जेटली कहती हैं, ‘मेरे पास इस तरह के मामलों में मदद के लिए ज़्यादातर किशोरी लड़कियां आती हैं। उनके लिए डिजिटल दुनिया एक ऐसी दुनिया होती है, जहां वो अपना काफी समय बिताती हैं, अगर वो वहां हैरेसमेंट, बुलिंग की समस्या का सामना करती हैं तो वो काफी उहापोह की स्थिति में आ जाती हैं कि हेल्प किससे मांगें, क्या करें और उन्हें लगता है कि अगर यहां से हटे तो एक तरह से अपने दोस्तों और अपने ग्रुप से कट आउट हो जाएंगे।’

इससे कैसे निपटें, वो बताती हैं-

ब्लॉक करना, इग्नोर करना-अच्छा उपाय है

एक उपाय ये भी है कि उस कमेंट्स को आप शेयर करें, इससे आपको अपने सपोर्ट ग्रुप का समर्थन मिलता है।

कभी-कभी कुछ लोगों को डिजिटल स्पेस में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है, ऐसे में वहां से कुछ समय के लिए स्विच ऑफ़ होना भी एक उपाय है ताकि मानसिक शांति रह सके।

वही चीजें शेयर करें, जिसमें आप कंफर्टेबल हों।

अकाउंट को प्राइवेट रखना भी एक बेहतर विकल्प है

सीमित इस्तेमाल

कोई चीज जो हमें लगातार परेशान कर रही है तो उस स्थिति में वहां से बाहर निकल जाना चाहिए, जब हम किसी चीज को बार-बार देखते हैं तो उसका और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

जहां जरूरत लगे प्रोफेशनल हेल्प लेनी चाहिए।(bbc.com/hindi)


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