विचार / लेख
-अकबर हुसैन
आग से जले इस भवन को देख कर यह समझना मुश्किल है कि यह ढाका के मीरपुर पुलिस स्टेशन की इमारत है। इसकी दीवारें आग से जल कर काली पड़ चुकी हैं।
थाने के सामने पुलिस की कुछ वर्दियों, कुछ जोड़ी जूतों और कुछ बुलेटप्रूफ जैकेटों के अलावा दूसरे सामानों का ढेर लगा है। यह तमाम चीज़ें आधी से ज़्यादा जल चुकी हैं।
अब इनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
गुरुवार को सुबह कऱीब साढ़े 9 बजे ढाका के मीरपुर मॉडल थाने की तस्वीर ऐसी ही थी। इस थाने में अंसार (अर्धसैनिक बल) के आठ कर्मचारी ड्यूटी कर रहे हैं।
मीरपुर थाने की यह जली हुई इमारत इस बात का गवाह है कि आम लोगों में पुलिस के प्रति किस हद तक नाराजग़ी थी।
एक दफ्तर में काम करने वाले कमाल हुसैन थाने के सामने खड़े होकर हालात का मुआयना कर रहे थे।
उन्होंने बीबीसी बांग्ला से कहा, ‘मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि पुलिस की ऐसी हालत हो जाएगी।’
सिर्फ मीरपुर ही नहीं, बांग्लादेश के किसी भी थाने में बीते सोमवार दोपहर से ही कोई पुलिस वाला नहीं है।
इससे पहले तमाम थानों से एक साथ सभी पुलिसवालों के फऱार होने की घटना बांग्लादेश में कभी नहीं हुई थी।
मौजूदा और पूर्व अधिकारियों का कहना है कि दुनिया के दूसरे देशों में भी ऐसी घटना बहुत विरले ही होती है। उनका कहना है कि कई बार युद्धकालीन हालात में ऐसी घटनाएं देखने को मिलती हैं।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखऱि पुलिस के सामने ऐसी परिस्थिति क्यों पैदा हुई?
‘मनमाने तरीके से फायरिंग की’
ढाका के भाटारा थाने की स्थिति भी मीरपुर थाने जैसी ही है। आगजऩी के बाद वहां चारों ओर अब थाने का मलबा ही बिखरा पड़ा है।
अंसार के कई सदस्य थाने में ड्यूटी कर रहे हैं। थाने के भीतर छात्र-छात्राओं के एक समूह से भी मुलाकात हुई। उन्होंने बताया कि वो लोग थाने से बाहर बिखरे मलबे की सफाई करने यहां आए हैं।
पुलिस का जिक्र करते ही उनके सुरों में नाराजग़ी उभर आती है। लेकिन पुलिस को लेकर आम लोगों में जो गुस्सा है उसे दूर कर हालात सामान्य कैसे बनाया जा सकता है।
एक निजी विश्वविद्यालय के छात्र अब्दुर रज़्ज़ाक़ बीबीसी बांग्ला से कहते हैं, ‘आम लोगों के साथ एकजुटता दिखाते हुए अपने बर्ताव में नरमी लाकर ही हालात को सामान्य किया जा सकता है।’
ढाका के न्यू मॉडल कॉलेज के छात्र शाहजलाल पटवारी कहते हैं, ‘मुझे पुलिस वालों के साथ बात करने में डर लगता था। पुलिस का रवैया बेहद खऱाब था। इसके अलावा पुलिस वालों ने छात्रों और आम लोगों पर बर्बर हमले किए हैं। उन लोगों ने मनमाने तरीके से गोलियां चलाई हैं।’
पुलिस के खिलाफ लोगों के मन में उपजे इस गुस्से से वरिष्ठ अधिकारी भी वाकिफ हैं।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बीबीसी बांग्ला से कहा कि ‘साल 2012 से पुलिस ने जब बड़े पैमाने पर बल प्रयोग शुरू किया उसी समय से लोगों के मन में उसके प्रति भारी अविश्वास पैदा हो गया।’
उनका कहना था कि पुलिस वालों से ड्यूटी पर लौटने को कहा गया है।
पुलिस वाले जितनी जल्दी काम पर लौटकर कानून व्यवस्था को सामान्य बनाने में अपनी अहम भूमिका निभाएंगे, उतनी जल्दी ही उन पर भरोसा लौटेगा।
उस अधिकारी ने माना कि पुलिस के रवैये के कारण आम लोगों में उसके प्रति भारी नाराजग़ी पनपी है। अब एक साथ यह नाराजगी फूट पड़ी है।
इस बात में कोई शक नहीं है कि पुलिस के लिए मौजूदा हालात बेहद जटिल हैं।
तमाम थानों से बड़े पैमाने पर हथियार और गोला-बारूद लूटे लिए गए हैं। कई पुलिस वालों के पास वर्दी नहीं है। कई थानों में बैठने लायक हालत नहीं है।
गुरुवार को ढाका के कई स्थानों का दौरा करने पर देखने में आया कि सिटी कॉर्पोरेशन के कुछ कर्मचारी वहां मलबे को हटाने का काम कर रहे हैं।
ढाका के पल्लवी थाने के सामने कुछ स्थानीय लोग गटर के सामने खड़े थे। उनमें ढाका उत्तर सिटी कॉर्पोरेशन के 2 नंबर वार्ड के काउंसलर सज्जाद हुसैन भी थे।
सज्जाद ने बीबीसी बांग्ला से कहा, ‘पुलिस वाले थाने तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। इसलिए स्थानीय लोगों से सहयोग की अपील की जा रही है। अब कानून और व्यवस्था की स्थिति के लिए पुलिस की ज़रूरत तो पड़ेगी। पुलिस वाले हमसे संपर्क कर रहे हैं।’
पुलिस की मौजूदगी दिखनी चाहिए
फिलहाल पुलिस वाले सादी वर्दी में विभिन्न थाने में जाकर नुकसान का आकलन कर रहे हैं।
ऐसे ही एक थाने में काम कर रहे सब-इंस्पेक्टर अब्दुल लतीफ ने बीबीसी बांग्ला से कहा कि वे लोग मीरपुर इलाके के तमाम थानों में जाकर नुक़सान का आकलन कर रहे हैं।
वो कहते हैं, ‘उन थानों में पुलिस का कोई भी वाहन साबुत नहीं बचा है। उन सबको जलाकर राख कर दिया गया है।’
विश्लेषकों का कहना है कि हालात चाहे कितने भी प्रतिकूल क्यों न हों, पुलिस वालों को फील्ड में जाना ही होगा। उनको कहीं से इसकी शुरुआत करनी होगी।
पूर्व पुलिस प्रमुख नुरुल हुदा ने बीबीसी बांग्ला से कहा, ‘पुलिस की मौजूदगी दिखानी होगी। वह लोग विभिन्न संस्थानों में जाकर उनकी सुरक्षा का उपाय कर सकते हैं। इसके अलावा कानून व्यवस्था की स्थिति को सुधारने में अहम भूमिका निभानी होगी। उसके बाद ही पुलिस पर आम लोगों का भरोसा लौटेगा।’
पुलिस को लेकर लोगों के मन में जमे ग़ुस्से को दूर करने के लिए पुलिस सुधार जरूरी है। लेकिन नूरुल हुदा मानते हैं कि ऐसा कोई सुधार तेज़ी से करना संभव नहीं होगा।
हुदा मानते हैं कि पुलिस की मौजूदा हालत के लिए राजनीतिक नेतृत्व ही जि़म्मेदार है। इसकी वजह यह है कि लंबे अरसे से पुलिस का राजनीतिक इस्तेमाल किया गया है।
दूसरी ओर, पुलिस के शीर्ष अधिकारियों ने संकेत दिया है कि पुलिस बल में बड़े पैमाने पर बदलाव तय है।
एक शीर्ष पुलिस अधिकारी ने बीबीसी बांग्ला से कहा, ‘तमाम थानों के ओसी और हर जिले के पुलिस अधीक्षक के बारे में विचार-विमर्श किया जा रहा है।’
उनका कहना था कि सबसे पहले उन इलाकों में बदलाव किया जाएगा जहां छात्रों के आंदोलन के दौरान पुलिस ने सबसे ज़्यादा बल प्रयोग किया था।
उनका कहना है कि जिन पुलिस अफसरों ने पुलिस वालों को अतिरिक्त बल प्रयोग का निर्देश दिया था और जिनके खिलाफअतीत में मानवाधिकार उल्लंघन के गंभीर आरोप हैं।
उनके अनुसार, ऐसे अफसरों खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं करने या उनको सजा नहीं देने तक पुलिस के प्रति आम लोगों में भरोसा बहाल करना मुश्किल होगा। लेकिन एक साथ यह सब करना संभव नहीं है।
पुलिस वालों की मांगें
देश में थाने के ओसी और सब-इंस्पेक्टरों को लेकर गठित पुलिस एसोसिएशन का कहना है कि पुलिस के प्रति आम लोगों का भरोसा बहाल करने के लिए कुछ जरूरी कदम उठाने होंगे।
बुधवार को ढाका में आयोजित एसोसिएशन की एक बैठक में कुछ मांगें भी पेश की गईं।
पुलिस सब-इंस्पेक्टर जाहिदुल इस्लाम ने उस बैठक में कहा कि ‘पुलिस के राजनीतिक इस्तेमाल और वरिष्ठ अधिकारियों के मनमाने आदेश के कारण ही पुलिस वालों के सामने यह हालत पैदा हुई है।’
‘हम ऐसा नेतृत्व चाहते हैं जो आम लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए काम करे और हमें वैसा ही निर्देश दे। वह किसी राजनीतिक पार्टी की दलाली कर हमें जनता के ख़िलाफ़ न खड़ा करे।’
इस्लाम का कहना था कि छात्र और आम लोग जिस तरह के पुलिस अधिकारी चाहते हैं, विभाग में वैसे अफसर मौजूद हैं। लेकिन वह लोग सामने नहीं आ सकते।
उनके अनुसार, ‘ऐसे अफ़सरों की शिनाख्त कर उनको जिम्मेदारी सौंपनी होगी ताकि वो सही तरीके से विभाग का संचालन कर सकें।’
पुलिस एसोसिएशन की मांग
पुलिस एसोसिएशन की बैठक में जो मांगें रखी गईं वो इस प्रकार हैं-
पुलिस को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रहना होगा।
तमाम पुलिस वालों और उनके परिवारों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। ज़ाहिदुल इस्लाम का कहना था, ‘जिन सत्तालोलुप और दलाल पुलिस अफसरों के कारण पुलिस वालों, छात्रों और आम लोगों की मौत हुई हो, उनको तत्काल गिरफ्तार कर उनके खिलाफ बांग्लादेश के कानून के तहत मुकदमा चलाना चाहिए।’
ऐसे अधिकारियों की तमाम अवैध संपत्ति ज़ब्त कर उसका इस्तेमाल बांग्लादेश पुलिस के कल्याण के मद में करना चाहिए।
हिंसा में मृत पुलिस वालों के परिजनों और घायलों को मुआवज़ा देना चाहिए।
जिन पुलिस वालों ने जान-माल की रक्षा के लिए हथियारों का इस्तेमाल किया है, उनके खिलाफ कोई विभागीय कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए।
बांग्लादेश के श्रम कानून के मुताबिक पुलिस वालों के लिए आठ घंटे की ड्यूटी का प्रावधान सुनिश्चित करना चाहिए। काम के अतिरिक्त घंटे के लिए ओवरटाइम की व्यवस्था करनी चाहिए।
पुलिस की वर्दी के रंग को बदल कर कॉन्स्टेबल से लेकर आईजी तक सबके लिए समान ड्रेस कोड तय करना चाहिए।
जाहिदुल जब बैठक में इन मांगों को पढ़ रहे थे तो वहां मौजूद तमाम पुलिस वाले तालियां बजा कर इसका समर्थन कर रहे थे।
(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूजरूम की ओर से प्रकाशित)


