राजपथ - जनपथ
बस, सिर्फ पांच टिकट...
चुनाव नजदीक आते ही अलग-अलग समाज के लोगों ने विधानसभा टिकट में अपनी हिस्सेदारी के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है। इसमें सिंधी समाज सबसे आगे है।
सिंधी समाज के कुछ प्रमुख नेता तो सीएम भूपेश बघेल, और प्रदेश भाजपा के बड़े नेताओं से भी मिलकर आ गए। बताते हैं कि सीएम से मिलने सिंधी अकादमी के चेयरमैन राम गिडलानी की अगुवाई में पहुंचे थे। सिंधी नेताओं ने सीएम से आबादी को देखते हुए विधानसभा की पांच टिकट देने की मांग की।
सीएम ने मजकिए लहजे में कहा बताते हैं कि बस, पांच टिकट। फिर उन्होंने आगे कहा कि सरकार ने समाज के लोगों को पद दिया है। भगवान झुलेलाल जयंती पर अवकाश घोषित किया है। सिंधी नेताओं ने माना भी, कि सरकार ने समाज के हितों का ध्यान रखा है।
सीएम ने उनकी मांगों पर विचार का भरोसा दिलाया है। ये अलग बात है कि कांग्रेस में जितने भी सिंधी लीडर हैं, उनका जमीनी आधार सीमित है। यही वजह है कि पिछले चुनाव में समाज से एक भी टिकट नहीं दी गई थी। अलबत्ता, सरकारी संस्थानों में एक दर्जन सिंधी नेताओं को पद दिए गए हैं।
सीएम से मिलने के बाद सिंधी नेता, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरूण साव, अजय जामवाल, और पवन साय से मिलने गए। वहां भी पांच टिकट की मांग रखी। सिंधी नेताओं ने उनसे कहा कि प्रदेश में 10 लाख के आसपास है। पिछली बार रायपुर उत्तर से एकमात्र टिकट दी गई थी। जबकि पहले राजनांदगांव शहर से भी सिंधी समाज से प्रत्याशी तय किए जाते थे।
सिंधी नेताओं ने सुझाव दिया कि रायपुर उत्तर के अलावा रायपुर पश्चिम व ग्रामीण में भी सिंधी समाज के वोटर अच्छी खासी तादात में हैं। ऐसे में इन सीटों पर भी पार्टी सिंधी समाज से प्रत्याशी कर सकती है। भाजपा नेताओं ने भरोसा दिलाया कि उनकी मांगों पर विचार किया जाएगा। देखना है कि दोनों प्रमुख दल सिंधी समाज से प्रत्याशी बनाती है या नहीं।
भाजपा नेता भी घेरे में !!
शराब-कोल, और हवाला कारोबार से जुड़े लोगों पर ईडी ताबड़तोड़ कार्रवाई कर रही है। चर्चा तो यह भी है कि जांच सही ढंग से हुई, तो कम से कम तीन भाजपा नेता भी घेरे में आ सकते हैं। राजनीतिक हल्कों आरोप लगते हैं कि किसी भी भाजपा नेता के यहां ईडी-आईटी की टीम नहीं जाती है।
सीएम भूपेश बघेल तो सेंट्रल एजेंसियों को भाजपा का एजेंट तक करार देने में नहीं हिचक रहे हैं। इससे परे छत्तीसगढ़ में अभी सिर्फ भाजपा नेता नितिन अग्रवाल को ही जांच पड़ताल का सामना करना पड़ा है। जिन तीन नेताओं के यहां ईडी कभी भी पहुंच सकती है उनमें से एक तो रायपुर जिले के प्रमुख पदाधिकारी हैं।
सुनते हैं कि जो लोग अभी ईडी की गिरफ्त में हैं, उनसे भाजपा नेताओं के कारोबारी रिश्ते हैं। एक ने तो मोबाइल भी बंद कर रखा है। यही नहीं, ईडी की एक पत्र की खूब चर्चा हो रही है। यह पत्र प्रशासनिक प्रमुख को भेजा गया है, जिसमें शराब-कोल के हितग्राहियों में अफसरों के साथ-साथ मीडिया जगत के लोगों का भी नाम है। देखना है कि पत्र सार्वजनिक होता है या नहीं।
बदहाल स्टेशन में हजारों यात्री
रेलवे ने 3 मई से 10 मई तक निर्माण कार्यों के चलते रायपुर स्टेशन पर अधिकांश ट्रेनों का स्टॉपेज रोक रखा है। मंगलवार के लिए तो यह भी अनाउंस किया गया है कि यहां पर एक भी ट्रेन नहीं रुकेगी। हावड़ा और कटनी मार्ग की रायपुर से गुजरने वाली ट्रेनों को उरकुरा रेलवे स्टेशन पर रोका जाएगा। जाहिर है कि इतने लंबे ब्रेक के लिए काफी पहले से रेलवे ने तैयारी की होगी, लेकिन यह किस तरह से की गई है यह उरकुरा स्टेशन से रवाना होने वाले यात्री बता रहे हैं। यहां पर रेलवे ने किसी तरह के अस्थायी शेड, कुर्सियां आदि तो लगाया नहीं है। इसके अलावा पीने का पानी उपलब्ध नहीं है, टोटियां टूटी हुई हैं। ट्रेन घंटों विलंब से चल रही हैं। यात्री समय पर पहुंचकर चिलचिलाती धूप में खड़े होते हैं। रायपुर स्टेशन से जिन बसों को यात्री लाने ले जाने के लिए लगाया गया है उसका भी काफी इंतजार करना पड़ रहा है। मतलब यह है कि यात्री सेवा रेलवे की प्राथमिकता में है ही नहीं।
सिलेब्रिटी के बीच सिलेब्रिटी परिवार
आईपीएस आरिफ शेख ने सोशल मीडिया पर कॉमेडियन कपिल शर्मा के साथ अपने परिवार की फोटो शेयर की है। अपनी पत्नी आईएएस शम्मी आबिदी और दोनों बच्चों के साथ वे इसमें दिखाई दे रहे हैं। सोनी टीवी पर शनिवार रविवार को आने वाले द कपिल शर्मा शो की शूटिंग में वे परिवार के साथ दर्शक दीर्घा में बैठे। इसके पहले भी शेख सोशल मीडिया पर सलमान खान, रवि किशन, मोहम्मद अजहरूद्दीन जैसे क्रिकेट और बॉलीवुड के सितारों के साथ फोटो डालते रहे हैं। खुद भी सिलेब्रिटी हैं, पर दूसरे सिलेब्रिटीज से मिलने जुलने उनके साथ तस्वीरें लेने का शौक बना हुआ है।
स्कूली बच्चों की बेबाक रिपोर्टिंग
बेमेतरा जिले के चारभाठा के सरकारी स्कूल की छात्राओं ने एक मार्मिक चि_ी एसडीएम, प्रशिक्षु आईएएस सुरुचि सिंह को लिखी। बताया कि हमारे स्कूल के पास शराब अवैध रूप से बिकती है। शराबी यहां से गुजरते हैं और माहौल खराब करते हैं। चि_ी पर एक्शन लेते हुए एसडीएम ने छापा मारा और अवैध शराब बेचने वालों को गिरफ्तार कराया। बताते हैं कि इस स्कूल के बच्चे सच कहने से खौफ नहीं खाते। एक प्रधानाध्यापक ने उन्हें साप्ताहिक अखबार निकालने का टास्क दिया। उसमें मेरा प्यारा स्कूल, पूजनीय गुरुदेव जैसे आदर्श निबंध उसमें नहीं छपे छात्रों ने लिखा-टीचर गुटका खाकर आते हैं, इधर-उधर थूकते हैं। स्कूल की दीवार को गंदा करते हैं। मध्यान्ह भोजन देने वाली माता जब भोजन लेकर आती है तो ऐसा लगता है कि वह खाना खिलाने नहीं पीटने आ रही है। दाल पतली होती है। वगैरह-वगैरह। अब स्कूली अखबार का छपना बंद है पर व्यवस्था ठीक करने में छात्र छात्राएं लगी हुई हैं। इसी का नतीजा था कि उन्होंने अवैध शराब की बिक्री रुकवाई। ([email protected])
ढेबर से अधिक वकील परेशान
आबकारी घोटाले की ईडी पड़ताल कर रही है। ईडी ने होटल कारोबारी अनवर ढेबर को मुख्य आरोपी तो बना लिया है, लेकिन कहा जा रहा है कि अब तक की पूछताछ से अनवर के वकील ज्यादा परेशान हो रहे हैं। जिला अदालत ने अनवर के वकील की मौजूदगी में पूछताछ की अनुमति दी है। पूछताछ की वीडियोग्राफी भी हो रही है।
सुनते हैं कि ईडी के अफसरों ने शनिवार, और रविवार को रात 2 बजे तक पूछताछ की। रोजाना 12-15 घंटे की लंबी पूछताछ से अनवर का तो पता नहीं, लेकिन साथ रहने वाले वकील हलाकान हैं। वो अब कोर्ट की तरफ रूख करने वाले हैं। अनवर के वकीलों का तर्क है कि पूछताछ के लिए समय नियत होना चाहिए। तडक़े तक पूछताछ चलने से अगले दिन की उनकी दिनचर्या प्रभावित हो रही है। अब आगे क्या होता है, यह तो एक-दो दिन बाद पता चलेगा।
आबकारी मामला कहां-कहां
सीएम भूपेश बघेल ने ईडी के आबकारी घोटाले के आरोपों का तीखा प्रतिवाद किया है। ईडी ने आबकारी की जांच के लिए बड़ी टीम लगाई है। इस केस में संभवत: 12 मई को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई होगी। याचिकाकर्ता अनवर ढेबर ने ईडी के समंस को कोर्ट में चुनौती दी थी। याचिका लगने के बाद ईडी ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
अनवर को आबकारी से जुड़े केस में दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट के फैसले के खिलाफ सेशन कोर्ट से राहत मिली हुई है। अब सुप्रीम कोर्ट पर निगाहें है। दूसरी तरफ, ईडी ने प्लेसमेंट एजेंसी के संचालक सिद्धार्थ सिंघानिया से लगातार पूछताछ कर रही है। लेकिन उन्हें गिरफ्तार नहीं किया है। कुछ लोगों का अंदाजा है कि जल्द ही ईडी कुछ और लोगों की गिरफ्तारी कर सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
भाजपा हुई आक्रामक
छत्तीसगढ़ के आबकारी कारोबार की ईडी तो जांच कर रही है, लेकिन अब घोटाला राजनीतिक रंग ले रहा है। चर्चा है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश इकाई को इस प्रकरण को हर स्तर पर उठाने के निर्देश दिए हैं। कर्नाटक चुनाव में भी भाजपा के नेता इस केस को सभाओं में प्रचारित कर रहे हैं।
भाजपा के रणनीतिकार छत्तीसगढ़ के आबकारी केस की तुलना दिल्ली के शराब घोटाले से कर रहे हैं, और उससे बड़ा बता रहे हैं। दिल्ली में तो इस केस में डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया समेत कई लोगों की गिरफ्तारी हुई है। ये सभी अभी जेल में है। भाजपा के लोग भी इसी अंदाज में छत्तीसगढ़ में कार्रवाई की बात कर रहे हैं, लेकिन यहां सीएम ने जिस तरह पलटवार किया है, और प्रकरण से जुड़े लोग अदालती लड़ाई लड़ रहे हैं। इससे यह मामला उलझ गया है। चाहे कुछ भी हो, मई के महीने में तापमान बढऩे के साथ-साथ छत्तीसगढ़ का राजनीतिक पारा भी गरम रहेगा।
जवानों में कामयाबी की खुशी
अपने-आप में हम उलझे होते हैं। जो हमारी हिफाजत करते हैं उनका खयाल भी नहीं करते। चाहे उनकी अरनपुर की तरह सामूहिक शहादत क्यों न हो जाए। मगर जो जवान मैदान पर होते हैं, आप परवाह करें न करें-अपनी कामयाबी पर जश्न मना लेते हैं। यह 3 मई की तस्वीर है जब गरियाबंद में सीआरपीएफ के 207 कोबरा जवानों की टीम ने माओवादियों से लोहा लिया और उन्हें खदेडक़र भगा दिया। एक शव मिला और ढेर सारे हथियार भी मिले।
‘आप’ जो दिल्ली से चल रही
छत्तीसगढ़ मे तीसरी ताकत के तौर पर पैर जमाने की कोशिश कर रही आम आदमी पार्टी के स्थानीय नेताओं को इस बात का बड़ा अफसोस है कि किसी को फ्री हैंड दिया ही नहीं गया है। छत्तीसगढ़ के पदाधिकारियों ने ऐसे नेताओं की एक सूची बनाई जो अपने-अपने दल से नाराज हैं। कांग्रेस के कुछ नेता हैं, कुछ भाजपा के। यह सूची महीनों पहले दिल्ली भेजी जा चुकी है। छत्तीसगढ़ का दौरा करने, प्रभार संभालने वाले आप नेताओं को भी दे दी गई। पर इनको पार्टी में लाने की कोई कोशिश नहीं हुई, दिलचस्पी ही नहीं दिखाई। बोले कि केजरीवाल से पूछेंगे, और उनसे बात करने का वक्त नहीं मिल पाता।
आप के एक बड़े पदाधिकारी का कहना है कि हमें अगले चुनाव में टिकट मिली तो अपनी तय सीट से ठीक-ठाक वोट तो पा लेंगे, पर राज्य में तीसरी ताकत के तौर पर खड़ा करने के लिए कुछ ऐसे नाम चाहिए जिनकी जमीन पर दशकों से पकड़ है, चेहरा जाना-पहचाना हो। छवि साफ-सुथरी हो-भ्रष्टाचार का कोई आरोप न हो। बात ही बात में वे धर्मजीत सिंह, नंदकुमार साय, टीएस सिंहदेव और नोबेल वर्मा जैसे कई नाम ले गए। पर बात यह है कि इनमें से एक धर्मजीत सिंह किसी दल में आज नहीं हैं, साय कांग्रेस में जा चुके, सिंहदेव पार्टी से नाराज तो हैं पर किसी सूरत में कांग्रेस छोडऩे के लिए राजी नहीं हैं।
पठान और केरला स्टोरी
द केरला स्टोरी मूवी रायपुर के पीवीआर और दूसरे मल्टीप्पेक्स सहित धमतरी, भाटापारा और छत्तीसगढ़ के अन्य देहातों में शान से चल रही है। कहीं कोई हंगामा नहीं हो रहा है, कोई तोडफ़ोड़ नहीं। फिल्म का प्रदर्शन बंद करने का कोई एक आंदोलन दिखाई नहीं दे रहा है। मध्यप्रदेश में इस मूवी को टैक्स फ्री कर दिया गया है। एक मंत्री ने वहां महिलाओं के लिए फ्री थियेटर भी बुक कर दी है। पर छत्तीसगढ़ में ऐसा नहीं हो रहा है। यह सब ब्यौरा इसलिए क्योंकि इसी साल जब जनवरी में पठान मूवी आई थी तो रायपुर के कई थियेटरों पर बजरंग दल ने पोस्टर जलाए थे। शाहरूख खान और दीपिका पादुकोण को राष्ट्रविरोधी बताया था। सोचने की बात है कि हंगामा कब होता है और कोन करता है?
एक दूसरे को पॉवर दिखाने का मौसम
जनप्रतिनिधियों, पार्टी नेताओं का सरकारी महकमे के बीच तालमेल इन दिनों बिगड़ता ही जा रहा है। दरिमा, अंबिकापुर के नए रन वे पर कल सीएम का विमान पहली बार उतरने वाला था इसके पहले ही भीतर घुसने के नाम पर कांग्रेसियों का एक गुट पुलिस वालों से भिड़ गया। एक दूसरे के खिलाफ वे अपशब्दों का इस्तेमाल करने लगे। वहां मौजूद एसडीएम पर भी उनका रोष फूटा। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव कुछ दूरी पर खड़े थे। बात बढ़ी तो उनका ध्यान गया। उनके बीच-बचाव से किसी तरह विवाद शांत हो पाया। इसके एक दिन पहले तो सूरजपुर जिले में और गजब हो गया। विश्रामपुर में दाखिला संबंधी किसी विवाद के चलते एनएसययूआई ने डीएवी स्कूल के घेराव किया था। पुलिस वालों से छात्र नेताओं की बहस हो गई। एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें छात्र नेता का हाथ हवलदार की गर्दन तक पहुंच गया है। इस छात्र नेता का नाम बॉबी अग्रवाल बताया गया है। विधायक बृहस्पत सिंह का एक बैंक कर्मचारी को थप्पड़ जडऩा, फिर सुलह कर लेना भी तो कुछ दिन पहले की ही बात है। जशपुर में भाजपा के जिला पंचायत सदस्य गेंदबिहारी सिंह को जबरदस्ती खींचकर पुलिस गाड़ी में डालने और कथित मारपीट का मामला भी पिछले हफ्ते सामने आ चुका है। इसमें एसडीओपी और दो पुलिस कर्मचारियों पर एक्शन भी लिया गया। पर ऐसा केवल सरगुजा संभाग में नहीं हो रहा है। जगदलपुर में एक प्रशिक्षु आईपीएस और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच हाथापाई की घटना 4 दिन पहले ही हुई है। दोनों पक्ष एक दूसरे पर दुर्व्यवहार का आरोप लगा रहे हैं। प्रशासन को लगता है कि कानून व्यवस्था संभालना हमारी जिम्मेदारी है जिसमें नेता अवरोध खड़ा करते हैं। नेताओं, जनप्रतिनिधियों को लगता है कि पुलिस और प्रशासन का तेवर उनके प्रति गैरजरूरी ढंग से आक्रामक है।
बीजेपी मीडिया में फेरबदल
आखिरकार भाजपा में बड़े नेताओं की नाराजगी के चलते मीडिया सेल में बदलाव किया गया है। पार्टी के बड़े नेताओं ने मीडिया सेल अपनी शिकायतों को संगठन प्रमुखों के पास रखा था। कहा जा रहा है कि प्रदेश सहप्रभारी ने कल मीडिया प्रकोष्ठ की बैठक भी ली थी। इसमें उन्होंने विषय की पकड़, तथ्यान्वेषण और सत्ता पक्ष को घेरने के बिन्दुओं, मीडिया से संपर्क तालमेल जैसे विषयों पर प्रकोष्ठ को परखा।
उन्होंने यह महसूस किया कि जब वे, पूर्व आयोजित प्रेस मीट करते है तो उसके लिए तथ्य, विषय से संबंधित प्रकोष्ठ से लेना पड़ता है। जबकि यह कार्य मीडिया सेल को करना चाहिए। बहरहाल बदलाव के अन्याय कारणों को देखते हुए चार लोगों को जिम्मेदारी दी गई है।
दीपकमल के पूर्व संपादक पंकज झा अब सभी के रिपोर्टिंग मैनेजर होंगे। टीवी डिबेट की जिम्मेदारी, जगदलपुर के युवा पत्रकार हेमंत पाणिग्रही को, और प्रेस नोट और मीडिया समन्वय का काम मौजूदा दोनों पदाधिकारी अमित चिमनानी, और अनुराग अग्रवाल देखेंगे। वैसे दिल्ली से भी कुछ लोग पंकज के सहयोग के लिए आ सकते हैं। देखना है कि सेल में बदलाव कितना कारगर रहता है।
खौफ से परे हैं अफसर
ईडी की कार्रवाई तेजी से चल रही है। नई खबर यह है कि जिस आईएएस दंपत्ति के यहां छापेमारी हुई थी, उन पर शिकंजा कस सकता है। चर्चा यह भी थी कि आईएएस दंपत्ति असम, और दिल्ली में अपने संपर्कों के जरिए अपने खिलाफ केस को मैनेज करने में सफल रही है। कई दिनों तक जांच-पड़ताल के बाद आगे की कार्रवाई रूकी पड़ी थी।
चर्चा है कि आईएएस दंपत्ति के खिलाफ ईडी अब जल्द चालान पेश कर सकती है। दंपत्ति और उनके करीबियों के पास से बड़े पैमाने पर बेनामी संपत्ति का पता चला है। यह भी दावा किया जा रहा है कि गिरफ्तारी भी हो सकती है। हालांकि दंपत्ति बेखौफ काम करते नजर आ रहे हैं। काम करने का अंदाज भी पुराना है। ऐसे में आगे क्या होगा, यह तो कुछ दिनों बाद ही पता चलेगा।
बैस, कितने पास कितने दूर
पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस भले ही महाराष्ट्र के राज्यपाल बनकर सक्रिय राजनीति से दूर हैं। मगर वो पार्टी की छोटी-बड़ी गतिविधियों से वाकिफ रहते हैं। अरुण साव को भले ही प्रदेश अध्यक्ष बनवाने में संघ परिवार, और पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह की भूमिका रही है, लेकिन बैस ही साव के गाडफादर माने जाते हैं। चर्चा यह है कि बैस का उन्हें मार्गदर्शन भी हासिल है।
दूसरी तरफ, नारायण चंदेल को नेता प्रतिपक्ष बनवाने में रमेश बैस की भूमिका रही है, लेकिन चर्चा है कि बैस उनके काम से संतुष्ट नहीं हैं। बेटे के खिलाफ रेप केस की वजह से नारायण चंदेल खुद ही बैकफुट पर आ गए थे। प्रदेश के असंतुष्ट नेताओं को बैस से काफी उम्मीदें हैं। वो भले ही मुंबई में रहते हैं, लेकिन असंतुष्ट नेता वहां जाकर उनसे मिल ही आते हैं। बैस के राज्यपाल बनने के बाद छत्तीसगढ़ के नेताओं की महाराष्ट्र राजभवन में आवाजाही बढ़ी है।
आईआरसीटीसी की मार्केटिंग
भारतीय रेल की सहायक कंपनी आईआरसीटीसी ने इस बार अपने पर्यटन स्थलों के टूर पैकेज को नई पैकेजिंग के साथ पेश किया है। पहले पोर्टल पर विवरण डाल दिया जाता था, लोग बुकिंग करा लेते थे। पर इस बार उन्होंने इसे ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ योजना का हिस्सा बताया। पहली यात्रा बिलासपुर से दक्षिण के पर्यटन स्थलों के लिए चलाई जा रही ट्रेन को ‘भारत गौरव टूरिस्ट ट्रेन’ नाम दिया है अमृत महोत्सव, एक भारत-श्रेष्ठ भारत जैसे लेवल लगाकर साधारण कामों को भी असाधारण दर्शाने के काम में वैसे भी केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालय, विभाग लगे हुए हैं। तो, इस बार आईआरसीटीसी ने इस गौरव यात्रा के लिए न केवल विभिन्न स्थानों पर मीडिया से बातचीत की बल्कि जन प्रतिनिधियों से मुलाकात कर उन्हें ब्रोसर सौंपे। आम लोगों को बस यही शिकायत है कि नियमित यात्री ट्रेनों को चलाने में भारी अनियमितता दिखाई दे रही है। पर्यटकों की कनेक्टिंग ट्रेन और फ्लाइट भी इस देरी के कारण छूट जा रही है। रेलवे इस तरह के गौरव वाले अतिरिक्त ट्रेन चलाकर वाहवाही लूटे, यह ठीक है पर जो लोग बिना आईआरसीटीसी का पैकेज लिए घूमने-फिरने जा रहे हैं उनका भी ख्याल रखे।
पंडो आदिवासियों की प्रगतिशील सोच
समाज ने धीरे-धीरे कई कुरीतियों से छुटकारा पाया। बाल विवाह ऐसी ही एक प्रथा है। छत्तीसगढ़ में सरकारी, गैर सरकारी संगठन कम उम्र में होने वाली शादियां रोकने में लगे रहते हैं। कहीं, समझाने-बुझाने से काम चल जाता है तो कहीं पुलिस हस्तक्षेप की नौबत आ जाती है। पर राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले विशेष संरक्षित जनजातियों में से एक पंडो समाज ने जो तय किया है उसमें ऐसे दखल की जरूरत नहीं पड़ रही है। यह जानकर हैरानी हो सकती है कि सरगुजा संभाग के बलरामपुर और सूरजपुर जिलों में बीते एक साल के भीतर पंडो समाज में 112 शादियां तय की गईं, पर इनमें से सिर्फ 55 हो पाई, बाकी रोक दी गईं। दरअसल, जो 57 शादियां भविष्य के लिए टाल दी गईं, वे कम उम्र में की जा रही थीं।
दरअसल, पंडो समाज के कुछ बड़े-बुजुर्गों ने इस बात को समझा कि छोटी उम्र में शादी होने से बच्चियां बीमार होती हैं, बच्चों और माताओं की मौत की दर बढ़ रही है। इनके साथ हिंसा और उत्पीडऩ की घटनाएं भी हो रही हैं, काम का बोझ कमजोर बना देता है। अब इन दोनों जिलों में प्रमुख लोगों की एक पंचायत बना ली गई है। अब जब भी कोई परिवार अपने बच्चों की शादी तय करता है तो इसकी जानकारी इस पंचायत को देनी पड़ती है। पंचायत दूल्हे दुल्हन दोनों की उम्र की जानकारी हासिल करता है। इसमें सरकारी मदद भी ली जाती है। जब यह तय हो जाता है कि लडक़ी की उम्र 18 और लडक़े की 21 है तभी इस शादी की मंजूरी मिल पाती है। बाकी को बता दिया जाता है कि वे अभी रुकें, जब समय आए तब करें। अक्सर पंडो और दूसरी विशेष संरक्षित जनजातियों के बारे में खबर आती है कि उन्हें सामूहिक रूप से किसी बीमारी ने घेर लिया। पूरा गांव पीडि़त है। मौतें भी हो चुकी हैं। इस समय पंडो जनजाति का अस्तित्व संकट में चल रहा है। इन्हें विलुप्त होने से बचाने के लिए कई योजनाएं चल रही हैं। ऐसे में, पंडो समाज, जिसे बहुत पिछड़ा माना जाता है उस की यह प्रगतिशील सोच उनकी आबादी को स्वस्थ बनाने, मृत्यु दर घटाने में मदद कर रही है।
पानी की तलाश तो नहीं?
राजधानी रायपुर से लगे मांढऱ रेलवे स्टेशन पर काफी देर तक यह बारहसिंगा पटरियों और प्लेटफॉर्म पर उछलकूद करता रहा, फिर वह जंगल की ओर वापस चला गया। इन दिनों चीतल, हिरण और दूसरे जंगली जानवर पानी की तलाश में मानव बस्तियों की ओर पहुंच रहे हैं। इनमें से कई दुर्घटनाओं के शिकार हो जाते हैं तो कुछ को शिकारी ही अपना निशाना बनाते हैं। वन विभाग के अफसरों को पता नहीं इस खतरे का अंदाजा है भी या नहीं।
दो राज्यों में मारपीट की नौबत
महानदी जल विवाद न्यायाधिकरण पिछले दिनों छत्तीसगढ़ दौरे पर था। न्यायाधिकरण के सदस्य के अलावा विधिक सलाहकार, और दोनों ही राज्य ओडिशा, और छत्तीसगढ़ के आला सिंचाई अफसर भी थे। दौरे की शुरुआत महानदी के धमतरी जिले स्थित उद्गम स्थल से शुरू हुई। कई मौके ऐसे आए जब अपना-अपना पक्ष रखते दोनों राज्यों के अफसर भिड़ गए, और उनके बीच तू-तू, मैं-मैं भी हुई।
सुनते हैं कि जांजगीर-चांपा के डैम के निरीक्षण के बीच ओडिशा के एक अफसर ने यह कह दिया कि छत्तीसगढ़ ज्यादा जल स्टोरेज कर रहा है। इसको लेकर सीडब्ल्यूसी ने चि_ी लिखी है। उस समय तो छत्तीसगढ़ के अफसर थोड़ी देर के लिए चुप रह गए। फिर आपस में सीडब्ल्यूसी के पत्र पर चर्चा हुई।
थोड़ी देर बाद स्थिति स्पष्ट हुई कि सीडब्ल्यूसी ने कभी इस तरह का पत्र लिखा ही नहीं है। बस फिर क्या था छत्तीसगढ़ के अफसर गुस्से में आ गए। एक सीनियर इंजीनियर ने ओडिशा के दल से सीडब्ल्यूसी पत्र दिखाने के लिए कहा, तो ओडिशा के अफसर बगलें झांकने को मजबूर हो गए। इस पर छत्तीसगढ़ी इंजीनियर अपना आपा खो बैठे, और उन्होंने झूठ बोलने के लिए सबके सामने ओडिशा के अफसरों को गालियां बकना शुरू कर दिया। इसके बाद मारपीट की नौबत आ गई। तब हड़बड़ाए अन्य लोगों ने उन्हें किसी तरह शांत किया। बाद में सिंचाई सचिव पी अलबंगन ने छत्तीसगढ़ी इंजीनियर को राज्य के हितों को लेकर सतर्क रहने की सराहना की, साथ ही साथ उन्हें भाषा पर नियंत्रण रखने की भी नसीहत दे गए।
एक अफसर को हटाकर दूसरे से...
महानदी जल विवाद पर छत्तीसगढ़ का पक्ष हमेशा से मजबूत रहा है। पिछली सरकार में सिंचाई ठेकों में भ्रष्टाचार को लेकर विभाग जरूर कुख्यात रहा है, लेकिन उस वक्त भी इस संवेदनशील मुद्दे पर अपना पक्ष हर फोरम में बेहतर ढंग से रखा। खुद तत्कालीन सीएम डॉ. रमन सिंह भी इसको लेकर गंभीर रहे हैं।
कुछ लोग बताते हैं कि दिल्ली में जल विवाद के निपटारे के लिए तत्कालीन केंद्रीय मंत्री उमा भारती की मध्यस्थता में बैठक हुई थी। जिसमें दोनों राज्यों के सीएम नवीन पटनायक, और डॉ. रमन सिंह भी थे। उस समय गणेश शंकर मिश्रा सिंचाई सचिव थे। छत्तीसगढ़ सरकार को बैठक में अपना प्रेजेंटेशन देना था, लेकिन इस गंभीर विषय पर तत्कालीन सीएम डॉ. रमन सिंह के कहने पर गणेश शंकर मिश्रा की जगह तत्कालीन सीएस विवेक ढांड ने प्रेजेंटेशन दिया। ढांड लंबे समय तक सिंचाई सचिव भी रहे हैं, और इसकी बारीकी से अवगत रहे हैं। उनके प्रेजेंटेशन के बाद पूरा माहौल छत्तीसगढ़ के पक्ष में हो गया। ओडिशा के अफसरों के लिए ज्यादा कुछ कहने को नहीं रह गया था, और फिर आपसी चर्चा से विवाद सुलझाने के लिए कहा गया।
काम नहीं आए आइसोलेशन कोच..
कोविड-19 के दौरान रेल के डिब्बों को जब आइसोलेशन कोच बनाया जा रहा था तभी लोग सवाल कर रहे थे कि क्या इनका इस्तेमाल किया जाना व्यवहारिक हो पाएगा। हालांकि इसका रेलवे ने बड़ा महिमामंडन किया था। अस्पतालों में जब बिस्तर की कमी पड़ गई तो लोगों ने घरों में रहकर उपचार कराना ठीक समझा। रेलवे ने भी कोच तैयार तो कर दिए पर डॉक्टर और स्टाफ लगाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर डाल दी थी। इधर राज्य की स्वास्थ्य टीम अपने ही अस्पतालों में ठीक तरह से मरीजों की देखभाल नहीं कर पा रहे थे, रेल के डिब्बों में क्या कर पाते। 18 लाख रुपये की लागत से तैयार किए गए 55 आइसोलेशन कोच एक भी बार काम में नहीं लाया गया। ये सभी कोच दुर्ग की कोचिंग डिपो में खड़े-खड़े कंडम हो रहे हैं।
मछुआरों के बच्चे अंतर्जाल में...
छत्तीसगढ़ के प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा का स्तर कितना नीचे है इस पर असर की रिपोर्ट हर साल आ जाती है। पर कुछ ऐसे स्कूल भी हैं जहां शिक्षकों की लगन ने नामुमकिन सा बदलाव ला दिया है। ऐसा एक स्कूल रायपुर जिले के पठारीडीह में चल रहा है। खारून नदी के तट पर बसे इस गांव में ज्यादातर मछुआरों का परिवार हैं। यहां शिक्षक उत्तम देवांगन के कमरे में कम्प्यूटर देखकर बच्चों ने उसके बारे में जानना चाहा। शिक्षक ने पहले एक कम्प्यूटर लाकर बच्चों के सीखने के लिए रखा। फिर कुछ लोगों से मदद मिल गई और कम्प्यूटर सेट लाए गए। साथ ही साथ उन्होंने अंग्रेजी सिखाना शुरू किया। अब स्थिति यह है कि बच्चे फर्राटे से अंग्रेजी टाइपिंग कर लेते हैं। अंग्रेजी बोलने और खुद से लिखने की कोशिश भी कर रहे हैं। हिंदी टाइपिंग और कम्प्यूटर के दूसरे कमांड भी सीख रहे हैं। काम अच्छा होता देख अभिभावक भी सहयोग कर रहे हैं। सीख यह है कि स्कूल को उत्कृष्ट बनाने के लिए सरकार की किसी मदद या योजना की जरूरत नहीं है। शिक्षक और अभिभावक चाहें तो रास्ते खुल जाते हैं।
नींद सबकी एक जैसी जरूरत...
नींद के लिए गद्देदार बिस्तर की जरूरत नहीं, केवल थका होना जरूरी है, ताकि जब यह पूरी हो जाए तो दिमाग और शरीर तरोताजा होकर नए दिन, नए काम की शुरूआत हो सके। फिर वह जगह कोई भी हो सकती है। शौचालय के पास, मवेशियों के बीच। राजनांदगांव रेलवे स्टेशन की यह फर्श कम से कम साफ सुथरी दिखाई दे रही है। सफर की थकान उतारने के लिए काफी है।
मन की बात में मनमानी की बात
चर्चा है कि पीएम नरेंद्र मोदी के मन की बात कार्यक्रम को लेकर भाजपा के अंदरखाने में खूब तमाशा हुआ है। प्रदेश में मन की बात सुनने के लिए 16 जगहों पर विशेष इंतजाम किए गए थे। यहां पार्टी के बड़े नेताओं की तैनाती की गई थी।
प्रदेश प्रभारी ओम माथुर, और प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव ने मन की बात सुनने आरंग के भानसोज गांव पहुंचे थे। यहां बड़ी संख्या में जिले के कार्यकर्ता भी थे। बताते हैं कि मन की बात कार्यक्रम के कवरेज दूरदर्शन की टीम को भानसोज पहुंचना था। मगर ऐसा नहीं हुआ, और दूरदर्शन टीम बालोद के कार्यक्रम का कवरेज कर चली गई। बालोद में मन की बात सुनने कुछ कारोबारी और स्थानीय नेता ही थे।
सुनते हैं कि भानसोज के कार्यक्रम का कवरेज नहीं होने पर अरुण साव ने दूरदर्शन के लोगों से जानकारी चाही, तो पता चला कि दिल्ली से बालोद जाने के लिए निर्देशित किया गया था। चर्चा है कि साव ने दिल्ली दूरदर्शन मुख्यालय में संपर्क किया, तो पीएमओ से निर्देश मिलने की बात कही गई।
बाद में साव ने माथुर, और अजय जामवाल से चर्चा की। और कवरेज का स्थान बदलने पर ऐतराज किया, तो वस्तु स्थिति की जानकारी लेने की कोशिश की गई। यह बात उभरकर सामने आई कि प्रदेश के एक छुटभैय्ये नेता ने एक पूर्व संगठन की शह पर अपने संपर्कों का उपयोग कर दूरदर्शन के कवरेज का स्थल ही बदलवा दिया।
चर्चा है कि साव ने बड़े नेताओं के समक्ष इस पर कड़ी आपत्ति जताई है। हल्ला तो यह भी है कि बाद में छुटभैय्ये नेता ने अपने कृत्य के लिए प्रदेश अध्यक्ष से माफी भी मांगी है। इस पूरे वाक्ये की पार्टी के अंदर खाने में खूब चर्चा हो रही है।
सभी के विदिशा जाने की तैयारी
प्रदेश भाजपा में ताकतवर रहे संगठन मंत्रियों के यहां विवाह समारोह चल रहा है। इसमें पार्टी के दिग्गज नेताओं का जमावड़ा है। इसके बीच नंदकुमार साय एपिसोड की चर्चा भी हो रही है।
पिछले दिनों प्रदेश भाजपा के पूर्व महामंत्री (संगठन) रामप्रताप सिंह के पुत्र, और पुत्री का विवाह समारोह था। रामप्रताप जशपुर के रहवासी हैं, और पार्टी छोडक़र जाने वाले दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय भी जशपुर के ही हैं।
बताते हैं कि रामप्रताप सिंह भी नंदकुमार साय को निमंत्रण भेजा था, लेकिन वो नहीं आए। अलबत्ता, पवन साय तीन दिन तक जशपुर में डेरा डाले रहे। इस दौरान नंदकुमार साय के पार्टी छोडऩे से उपजे हालात पर स्थानीय नेताओं से चर्चा करते रहे।
इसी तरह, छत्तीसगढ़ भाजपा संगठन के सबसे प्रभावशाली नेता सौदान सिंह के भतीजे का 10 तारीख को विवाह है। विवाह विदिशा में है। सौदान सिंह ने तमाम प्रमुख नेताओं, और विधायकों को शादी में शामिल होने का न्योता दिया है। तकरीबन सभी प्रमुख नेताओं के विदिशा जाने की तैयारी भी है। चुनाव नजदीक हैं, और तमाम प्रमुख नेता साथ होंगे, तो कुछ न कुछ बात तो होगी ही।
तस्वीरें दो, हालत एक जैसी...
ये दो तस्वीरें हैं। पहली तस्वीर जिसमें महिला ने चेहरे को साड़ी से ढंका है, 2017 की है। दूसरी तस्वीर कल की है। दोनों ही कांकेर जिले की है। पहली तस्वीर में एक शव है, जिसे खाट पर लिटाकर परिजन अस्पताल से वापस ले जा रहे हैं, क्योंकि उन्हें मुक्तांजलि गाड़ी नहीं मिली। दूसरी तस्वीर में मरीज है, जिसे भी खाट पर ही लिटाकर 8 किलोमीटर दूर अस्पताल पहुंचाया गया, क्योंकि उन्हें एंबुलेंस नहीं आ सकी। इन 6 सालों में ग्रामीण, खासकर आदिवासी बाहुल्य इलाकों में स्वास्थ्य सेवा में कितना सुधार हुआ है, एक अंदाजा तो लगा ही सकते हैं।
आरक्षण विधेयक पर नया पेंच
सन् 2023 के विधानसभा और करीब एक साल बाद होने वाले 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा विरोधी दलों की कोशिश वोटों के हिंदुत्व या राष्ट्रवाद के नाम पर ध्रुवीकरण होने रोकने की है। बीते एक दशक से भाजपा सरकारों की तमाम नाकामियों को विपक्ष ने मुद्दा बनाया, पर असरदार नहीं रहे। जातिगत गणना या सर्वेक्षण पर जोर इसी का विकल्प है।
बिहार में मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने भाजपा की जगह राष्ट्रीय जनता दल से नाता जोड़ा तो केंद्र पर जातिगत सर्वेक्षण नहीं कराने का आरोप लगाया। सरकार से भाजपा को अलग करने के बाद बिहार में सर्वेक्षण शुरू हुआ। कुछ ही दिन इसका दूसरा चरण पूरा होना था लेकिन इस पर हाईकोर्ट ने तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। रोक अंतरिम है, अगली सुनवाई जुलाई में रखी गई है। जातिगत जनगणना के विरोध में दी गई अनेक दलीलों में से एक यह भी थी कि यह केंद्र सरकार का काम है, राज्य जनगणना नहीं करा सकती। राज्य सरकार की यह दलील कोर्ट ने नहीं मानी कि यह जनगणना नहीं सिर्फ सर्वेक्षण है।
कर्नाटक चुनाव में राहुल गांधी और अन्य कांग्रेस नेताओं की जनसभाओं में-जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी भागीदारी की बात कही जा रही है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस केंद्र से जातिगत गणना के साथ जनगणना कराने की मांग कर चुकी है। केंद्र सरकार शायद ध्रुवीकरण में बिखराव की आशंका के चलते नहीं करा रही है। जब जनगणना की घोषणा हो तब पता चल सकेगा कि वह क्या जातियों की अलग-अलग गणना भी कराएगी, जैसा कि कई राज्यों में विपक्ष की मांग है। अभी भी अगर जनगणना की तैयारी शुरू कर ली जाए तो रिपोर्ट आने में दो साल लग जाएंगे।
पटना हाईकोर्ट की रोक के बाद यह तय है कि ऐसी कोई शुरूआत दूसरे राज्यों की ओर से गई तो उसे भी कोर्ट में चुनौती मिल जाएगी। आरक्षण पर छत्तीसगढ़ विधानसभा में पारित विधेयक पर राज्यपाल का हस्ताक्षर नहीं होने का एक आधार यह भी बताया गया है कि आरक्षण के समर्थन में स्पष्ट आंकड़े नहीं है। ऐसे आंकड़े जुटाने के लिए अब यदि छत्तीसगढ़ सरकार अपनी ओर से बिहार की तरह कोई कोशिश करेगी तो उसे भी आसानी से चुनौती दे दी जा सकेगी। यानि आरक्षण विधेयक के राजभवन से बाहर आने की निकट भविष्य में कोई संभावना नहीं दिखती, पर चुनाव के लिए यह एक बड़ा मुद्दा जरूर बना रहेगा।
कांकेर में सडक़ किनारे दीवार पर लिखा हुआ यह नोटिस शायद शादी-ब्याह में नाचने वालों
के लिए है। इसे फेसबुक पर बस्तर के एक पत्रकार तामेश्वर सिन्हा ने पोस्ट किया है।
फटा पोस्टर, निकला पार्टी का ही कोई ?
विधानसभा चुनाव में अभी पांच माह बाकी हैं, लेकिन भाजपा में टिकट के दावेदारों में जंग छिड़ गई है। दावेदार एक-दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। रायपुर शहर से सटे धरसींवा विधानसभा में पोस्टर फाडऩे की घटना को इसी से जोडक़र देखा जा रहा है।
हुआ यूं कि प्रधानमंत्री की योजना के प्रचार-प्रसार, और उपलब्धियों को लेकर दावेदारों ने पोस्टर लगाए थे। धरसींवा में टिकट के लिए आधा दर्जन से अधिक दावेदार मशक्कत कर रहे हैं। आर्थिक रूप से सक्षम इन दावेदारों ने विधानसभा मार्ग से लेकर अन्य जगहों पर पोस्टर लगवाए, लेकिन एक-दो दिनों बाद एक को छोडक़र बाकी दावेदारों के पोस्टर फटे पाए गए।
इसकी शिकायत भाजपा के प्रमुख पदाधिकारी ने थाने में भी की है। पार्टी के नेता उस दावेदार पर शक जता रहे हैं, जिसके पोस्टर सही सलामत हैं। कुछ इसी तरह का अंदाजा पुलिस भी लगा रही है। मगर कार्रवाई मुश्किल है। वजह यह है कि पोस्टर फाडऩे की घटना के प्रमाण नहीं है। शिकायत भी नामजद नहीं है। लेकिन इससे भाजपा में अंदरूनी लड़ाई और तेज हो गई है।
दारू के साथ रेत का चखना !
खबर है कि कोल-परिवहन शराब के बाद ईडी अब रेत कारोबार की पड़ताल में जुट गई है। कहा जा रहा है कि शराब ठेकेदारों ने रिंग बनाकर ऑन लाइन फार्म भरे, और खदानें भी हासिल कर ली। पहली नजर में तो प्रक्रियागत त्रुटि नहीं है। क्योंकि सारी प्रक्रिया ऑनलाइन हुई थी। मगर पहले ही जांच से घिरे शराब ठेकेदारों के रेत कारोबार की पड़ताल हो रही है। चर्चा है कि पिछले दिनों एक कारोबारी से सिर्फ रेत को लेकर भी पूछताछ हुई है। कुछ लोगों का अंदाजा है कि जल्द ही कुछ गिरफ्तारियां भी हो सकती हैं।
हालांकि अब तक के छापे में क्या कुछ मिला, ये तो ईडी बता नहीं पाई है। ईडी की कार्रवाई के खिलाफ कई पीडि़त कोर्ट भी गए थे। ये अलग बात है कि किसी को राहत नहीं मिल पाई। सीएम से भी आबकारी अफसर ईडी की शिकायत कर चुके हैं। कुल मिलाकर हालात यह है कि गिरफ्तारियां हुई, तो प्रतिक्रिया भी उसी तरह की होगी। अंदाजा लगाया जा रहा है कि आने वाले दिनों में तापमान बढऩे के साथ-साथ राजनीतिक पारा भी चढ़ा रहेगा।
बालक बजरंगी क्या बोल रहा?
सआदत हसन मंटो ने कभी कहा था कि मजहब जब दिलों से निकलकर दिमाग पर चढ़ जाए तो वह जहर बन जाता है। और जब यह जहर बच्चों के दिमाग में आ जाए तो वह और भी खतरनाक है।
इस बच्चे के हाथ में एक ध्वज है। किसी जुलूस में शामिल है। जब इससे कहा गया कोई नारा लगाओ, उसने पूछा क्या नारा लगाऊं? बोला गया –जय श्री राम बोलो...। बच्चे ने जय श्री...तक कहा, फिर रुक गया। क्या दिमाग में आया, उसने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर एक बेहूदे गाली का नारा लगाया, और फिर आगे बढ़ गया। खुद मुख्यमंत्री ने इस वीडियो को अपने ट्विटर हैंडल पर साझा किया है। उन्होंने लिखा है- भगवान राम का नाम लेने से परहेज कर रहा ये बच्चा मुझे गाली दे रहा है। यह बजरंग दल का सदस्य है। धर्म की आड़ में इन लोगों ने हमारे बच्चों को क्या बना दिया है देखिए। मैं इस बच्चे के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं। ईश्वर सभी बच्चों को हनुमान जी की तरह ज्ञानवान और बलवान बनाए।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा आज बजरंग दल को जिस तरह बजरंगबली से जोड़ रहे हैं, उसकी हकीकत सामने है।
दुरुस्त हाईवे पर दुर्घटनाएं...
बालोद के पुरूर और चारामा के बीच बीती रात हुई सडक़ दुर्घटना में 11 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इनमें महिलाएं और बच्चे भी हैं। प्राय: सभी एक ही परिवार के थे। बीते फरवरी 23 तारीख को बलौदाबाजार जिले में ट्रक और पिकअप के बीच टक्कर हुई थी। इसमें भी 11 लोगों की मौत हो गई थी। मृतकों में चार बच्चे थे। 9 फरवरी को कांकेर जिले के कोकर में ट्रक से आटो रिक्शा की भिड़ंत हो गई थी। इसमें 7 बच्चों की मौत हो गई थी। रायपुर- बिलासपुर नेशनल हाईवे पर बीते नवंबर में एक खड़े ट्रक से कार टकराई थी, तीन की मौत हो गई। इनके अलावा भी दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें एक या दो लोगों की मृत्यु इस हाईवे पर हुई। कटघोरा अंबिकापुर रोड में साल भर के भीतर कई दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। बिलासपुर से पथर्रापाली के बीच लगभग बनाई जा चुकी सडक़ पर कुछ ऐसे ब्लैक स्पॉट हैं जिनमें लगातार सडक़ पर मौतें हो रही हैं। हाईकोर्ट में प्रदेश की खस्ता हाल सडक़ों पर सुनवाई हो रही है। इसमें न्याय मित्रों से रिपोर्ट भी ली जा रही है। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में प्रदेश की कई खराब सडक़ों का जिक्र किया है वह तो अपनी जगह है, पर जो ठीक ठाक और चौड़ी सडक़ें बनी हैं उनमें हो रही दुर्घटनाओं का ब्यौरा भी दिया गया है। चालकों की लापरवाही, नशे में ड्राइविंग न हो तब भी हो रही हैं।
अधिकतर दुर्घटनाएं रात में हो रही हैं। नेशनल हाईवे ने सडक़ों को बना लिया पर गति को नियंत्रित रखने के लिए संकेतक नहीं, हाईवे पेट्रोलिंग लचर हैं। सामने से आ रही गाडिय़ों की रोशनी से बचने के लिए डिवाइडर पर पौधे नहीं लगाए गए हैं। ब्रेक डाउन खड़े भारी वाहनों को हटाया नहीं जाता, बिना रिफ्लेक्टर खड़े होते हैं। यह तस्वीर बेमेतरा-दुर्ग सडक़ की है। छोटी गाडिय़ों के साथ भारी गाडिय़ां चल रही हैं, दिन में तो टूटी रेलिंग दिख रही है लेकिन रात में गाड़ी नीचे गिरे इसका पूरा इंतजाम है।
टॉपर बिरहोर छात्रा का हाल
राष्ट्रपति की दत्तक संतान कही जाने वाली समूचे बिरहोर जाति की निर्मला पहली लडक़ी थी जिसने तीन साल पहले 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। उस दौरान कलेक्टर, मंत्री सबने निर्मला को बुलाकर सम्मानित किया। सीएम के हाथों से भी सम्मान कराया गया। एक जिला पंचायत सदस्य ने घोषणा की कि सिंहदेव फाउंडेशन से उसे नीट की तैयारी कराई जाएगी। निर्मला डॉक्टर बनना चाहती थी। उस वक्त दर्जनों लोगों की तस्वीर अलग-अलग खबरों के साथ छपीं, मदद के लिए हाथ बढ़ाने के वादे के साथ। इस वाहवाही और आश्वासन के बाद ऐसा लगा कि निर्मला का भविष्य उजला है, उसे आसमान छूने से कोई नहीं रोक सकता। पर स्वागत-सम्मान कुछ ही दिनों का था। उसके बहाने अपना प्रचार करने के बाद सब उसे भूल गए। सरकार ने जरूर योजना के मुताबिक 2 लाख रुपये देकर उसे प्रोत्साहित किया। लडक़ी का परिवार बेहद गरीब है। उसने ये रुपये घर बनाने के लिए अपनी मां को दे दिया। आगे निर्मला की पढ़ाई छूट गई। बड़ी बड़ी बातें करने वाले सामने नहीं आए। घर में खाली-खाली बैठी रह गई। ऊपर से घर बनाने व एक भाई की शादी में परिवार पर कर्ज चढ़ा था, जिसे लौटाने का दबाव था। निर्मला की एक सहेली जो बाहर काम करती है, निर्मला उसके साथ पुणे, महाराष्ट्र चली गई।
यहां पर यह ध्यान रखना जरूरी है कि छत्तीसगढ़ और झारखंड के इस सीमा पर मानव तस्करी एक बड़ी समस्या है। धोखे से युवक युवतियों को ले जाया जाता है और कैद कर लिया जाता है, तमाम तरह से शोषण होता है। हालांकि प्रशासन की मुस्तैदी से ऐसी घटनाएं कम हुई हैं, पर खत्म नहीं। इनसे घरों, होटलों और सेहत के लिए खतरनाक किस्म की फैक्ट्रियों में रखकर 14-16 घंटे काम लिया जाता है। इसलिए निर्मला कितनी बेहतर स्थिति में पुणे में होगी, सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।
अब इस मामले में एक नया मोड़ आ गया है। सीएम की घोषणा के अनुरूप 12वीं परीक्षा पास 142 विशेष संरक्षित जाति के युवाओं को सहायक शिक्षक बनाया गया है। इस सूची के मुताबिक निर्मला अकेली ही बिरहोर समुदाय से है, जिसे नियुक्ति दी गई है। शेष 141 पहाड़ी कोरवा हैं। नौकरी मिलने की खबर निर्मला की मां बिरसमणि को दी गई तो चौंक गईं। अब वह अपनी बेटी की सहेली को फोन लगा रही है तो फोन बंद मिल रहा है। साथ गए अन्य परिचितों के जरिये वह संपर्क कर जल्द से जल्द बेटी को वापस बुलाना चाहती है। उम्मीद कर सकते हैं, निर्मला जल्द लौटकर सरकारी नौकरी ज्वाइन कर लेगी। निर्मला तो सरकारी नौकरी मिल जाने के चलते लौट रही हैं, पर न जाने कितनी ही बच्चियां जो 12वीं पढ़ भी नहीं पाईं वे अपने करियर के किस मुकाम पर होंगी।
हेराफेरी मिली पर कार्रवाई नहीं
यह भाजपा सरकार के दौरान हुए चावल घोटाले के मुकाबले छोटा है पर ताजा-ताजा है। राशन दुकानों में स्टाक की गड़बड़ी को लेकर प्रदेशभर में जांच की गई थी। फूड विभाग ने जांच की तो 4900 राशन दुकानों के स्टाक में करीब 42 हजार टन चावल, गेहूं, शक्कर गायब मिला, जिसका मूल्य 260 करोड़ रुपये से अधिक है। इसकी एक बड़ी वजह यह सामने आई कि दुकानदारों की स्टोरेज क्षमता को नजरअंदाज कर चावल आवंटन किया जाता रहा। इसके चलते गोदाम तो भरे दिखाई देते थे लेकिन अतिरिक्त राशन सीधे राइस मिल या बाजार में चला जाता था। मार्च माह के आखिरी सप्ताह में प्राय: सभी जिलों की रिपोर्ट कलेक्टर व खाद्य संचालनालय में भेज दी गई, पर एक माह से ज्यादा बीत जाने के बाद भी कार्रवाई का अता-पता नहीं है। प्रदेश में कुल 13 हजार 487 राशन दुकानें हैं। मतलब करीब 40 प्रतिशत दुकानों में गड़बड़ी थी। पर कार्रवाई की फाइल एक साथ सभी जिलों में दबी हुई है। क्या इतनी बड़ी संख्या में दुकानों पर कार्रवाई होने से राशन वितरण की व्यवस्था बिगडऩे का खतरा है? या फिर नुकसान की वसूली कर मामला समेटने की कोशिश हो रही है? यह भी गौर करने की बात है कि अधिकांश दुकान पूर्ववर्ती सरकार के दौरान आवंटित किए गए थे। इसलिए यदि विपक्ष ने इस घोटाले को मजबूती से नहीं उठाया है तो इसकी वजह समझी जा सकती है। ([email protected])
दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय के झटके से भाजपा उबर नहीं पा रही है। हल्ला है कि केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अरुण साव को फोन पर डांट पिलाई है। साव मंगलवार को लेह-लद्दाख में थे, इसलिए इसकी पुष्टि नहीं हो पाई। साय प्रकरण के बाद तो संगठन के प्रमुख रणनीतिकार ओम माथुर और अजय जामवाल की बोलती बंद हो गई है। पवन साय तो डैमेज कंट्रोल के लिए जशपुर निकल गए हैं।
बात यहीं खत्म नहीं होती है। पार्टी के शीर्षस्थ नेताओं ने पलटवार के लिए प्लान तैयार किया है। चर्चा है कि कांग्रेस के किसी प्रभावशाली नेता को भाजपा में शामिल होने के लिए तैयार किया जा सकता है। कहा जा रहा है कि शाह खुद इन सब चीजों को देख रहे हैं। कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि कांग्रेस के एक बड़े नेता से अमित शाह की चर्चा हो चुकी है। हल्ला यह भी है कि सब कुछ ठीक रहा, तो कर्नाटक चुनाव के बाद बड़ा धमाका हो सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
साय को रोकना नहीं हो पाया क्यूँकि
नंदकुमार साय एपिसोड में मान मनौव्वल का खूब ड्रामा भी चला। पवन साय, और एक-दो अन्य नेता भी साय बंगले पहुंच गए थे। अमित चिमनानी जैसे कई तो ऐसे थे जिन्हें साय पहचानते तक नहीं हैं।
चर्चा है कि संगठन नेताओं ने सबसे पहले रेप के आरोपों से घिरे, और हाल ही में जमानत पर छूटे पूर्व ओएसडी को दूत बनाकर साय के पास भेजा गया था। साय बंगले के बाहर पुलिस फोर्स देखकर ओएसडी की अंदर जाने की हिम्मत नहीं हुई।
बताते हैं कि भाजपा नेताओं ने साय को रोकने के लिए उनके पोते से सोशल मीडिया पर बयान दिलवा दिया कि सायजी पार्टी में ही रहेंगे। बस अज्ञात जगह पर मौजूद साय को इस बात की जानकारी हुई, तो उन्होंने अपने पोते को फोन पर जमकर फटकार भी लगाई।
मान मनौव्वल के तनाव भरे माहौल के बीच पार्टी के नेता हंसी-मजाक भी खूब कर रहे थे। एक नेता ने चुटकी ली कि साय इसलिए आसानी से चले गए कि वो इनकम टैक्स रिटर्न नहीं भरते हैं। इनकम टैक्स पेयी होते, तो आयकर-ईडी की टीम ढूंढकर ले आती। सोशल मीडिया में एक टिप्पणी आई कि साय के कांग्रेस प्रवेश से उनके बाल और अमरजीत भगत की मूंछ, दोनों बच गई।
जंगल में बेचैनी बहुत है
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के इतिहास में पहला मौका है जब एपीसीसीएफ स्तर के अफसर श्रीनिवास राव को फारेस्ट मुखिया बनाया गया है। इससे उनसे सीनियर अफसरों की नाराजगी स्वाभाविक है। इसका नजारा हेड ऑफ फारेस्ट फोर्स के पद से रिटायर होने वाले संजय शुक्ला के विदाई समारोह में भी देखने को मिला। श्रीनिवास से सीनियर पीसीसीएफ अतुल शुक्ला, सुधीर अग्रवाल, अनिल राय, और तपेश झा समारोह से दूर रहे। उन्होंने अलग-अलग व्यक्तिगत तौर पर संजय से मिलकर उन्हें रेरा चेयरमैन के नए दायित्व के लिए बधाई भी दी।
आरक्षण के आदेश पर सभी खुश क्यों?
सितंबर 2022 में आए हाईकोर्ट के उस आदेश से हर कोई असमंजस में था जिसमें 58 प्रतिशत आरक्षण के सन् 2012 के प्रावधान को असंवैधानिक ठहराये जाने के बाद प्रदेश में आरक्षण की स्थिति शून्य हो गई थी। इस आदेश में यह साफ नहीं था कि 58 प्रतिशत आरक्षण नहीं होगा तो कौन सा होगा? नतीजतन भर्तियों, प्रमोशन और एडमिशन पर रोक लग गई। इससे युवाओं, छात्रों में असंतोष बढ़ता जा रहा था। राज्यपाल के हस्ताक्षर नहीं करने को कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ मुद्दा जरूर बना रखा था लेकिन डेड लॉक की स्थिति बनने से सरकार के अलावा उन लोगों में भी बेचैनी थी जो आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने के विधेयक को पारित होते देखना चाहते थे। प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने इस स्थिति की भांपते हुए अक्टूबर महीने में हाईकोर्ट के आदेश पर स्थगन के लिए अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर स्थगन के बाद अब जरूर यह स्थिति बन गई है कि 58 प्रतिशत के आधार पर भर्तियां हो सकेंगी। भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जो प्रतिक्रिया दी है उससे यही प्रतीत होता है कि सन् 2012 में जो प्रावधान उसकी सरकार ने किये थे उसे सुप्रीम कोर्ट ने सही मान लिया है। पर, वस्तुस्थिति यह नहीं है। कानून के जानकारों ने आदेश को पढक़र यह साफ किया है कि भाजपा की यह दलील गलत है। दरअसल, सरकार की इस चिंता को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया है कि भर्तियां रुकने से जन-शक्ति का अभाव रोजमर्रा के प्रशासनिक कामकाज में दिक्कतें खड़ी कर सकता है। 58 प्रतिशत आरक्षण सही है, यह तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा ही नहीं है। इस बिंदु पर तो ग्रीष्म अवकाश के बाद सुनवाई होनी है। पर इस आदेश ने सभी को अपने-अपने हिस्से की प्रसन्नता दे दी है। राज्यपाल शायद यह सोच रहे हों कि अब विधेयक पर हस्ताक्षर का दबाव कम रहेगा। कांग्रेस यह सोच रही है कि चुनाव के समय एक भी भर्ती नहीं हो पा रही थी, युवाओं की नाराजगी से बच गए। भाजपा को खुशी है कि उनके शासनकाल में तय किए गए 58 प्रतिशत पर ही भर्ती हो रही है, ये बात वे मतदाताओं को बता सकेंगे। युवा और छात्र इसलिये खुश हैं कि प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उनकी तैयारी व्यर्थ नहीं जाएगी।
गीली सडक़ पर धूल की खोज...
बारिश तो अपने साथ धूल बहा ले गई, सडक़ धुल चुकी है। पर पता नहीं रायपुर की सडक़ पर यह भारी-भरकम झांकी क्यों उतारी गई है। तस्वीर मंगलवार की ही है।
हादसों को बुलावा देते आवारा पशु
एक भारतीय के साथ यूरोप से घूमने आया मित्र रायपुर एयरपोर्ट से बस्तर के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहुंचा। गाय-भैंसों का बड़ा झुंड बीच सडक़ पर इत्मीनान बैठा हुआ था। पहली बार भारत आया यूरोपियन मित्र सीट से उछल पड़ा। गाड़ी रुकवाई और बैग से कैमरा निकालकर फोटो खींचना चालू कर दिया। दोस्त ने पूछा, ऐसी क्या विशेष बात देखी। उन्होंने कहा जानवरों में तो कोई विशेष अंतर नहीं है लेकिन मैंने अपने जीवन में इस तरह से राष्ट्रीय राजमार्ग को कब्जाए हुए जानवरों का झुंड कभी नहीं देखा। इस वाकये का जिक्र बस्तर के एक किसान नेता ने अपने ब्लॉग में किया है।
बालोद में बीती रात एक आवारा पशु को बचाने की कोशिश में कार ट्रक से जा भिड़ी। तीन को जान गंवानी पड़ी और इतने ही लोग घायल भी हो गए। आवारा पशुओं के चलते हो रही दुर्घटनाओं की संख्या इतनी अधिक है कि अब हाईवे पर भी लोग रफ्तार में गाड़ी चलाने से बचते हैं। पिछले साल जारी पशुधन जनगणना रिपोर्ट में बताया गया था कि में करीब 25 लाख आवारा पशु सडक़ों पर हैं। ये दुर्घटनाओं के बड़े कारण हैं। एक और रिपोर्ट में बताया गया था कि कोरोना महामारी से ज्यादा पशुओं के सडक़ में होने के चलते हुई दुर्घटनाओं में लोग मारे गए।
छत्तीसगढ़ में हजारों गौठान बनाए गए हैं। रोका-छेका अभियान भी चलता है। इन्हें ग्रामीणों की आमदनी से जोड़ा गया है, पर समस्या हल नहीं हो रही है। आवारा पशुओं को लेकर छत्तीसगढ़ की तरह मध्यप्रदेश में भी समय-समय पर हाईकोर्ट की फटकार पड़ती है। इसके बाद वहां देसी गाय पालने पर 900 रुपये प्रतिमाह अनुदान देने का ऐलान सरकार ने कर दिया है। पर सिर्फ गायों को अनुदान देने से क्या होगा, गोवंश में दूसरे जानवर भी हैं। छत्तीसगढ़ में गौठानों को सशक्त बनाने के लिए सरकारी सहायता दी ही जा रही है। यूपी में भी लगभग छत्तीसगढ़ की तरह कार्यक्रम चल रहे हैं। वहां योगी सरकार ने गौठानों में सीएनजी बनाने तक का प्लान तैयार किया है। पर आंकड़ा बताता है कि 11.84 लाख आवारा पशु सडक़ों पर हैं, जो राजस्थान के 12.72 लाख पशुओं से थोड़ा कम है। छत्तीसगढ़ का स्थान मध्यप्रदेश और गुजरात के बाद पांचवां है। यहां 1 लाख 85 हजार पशु सडक़ों पर हैं। गौठानों या पशुपालन केंद्रों पर बनाई गई योजनाओं का जमीन पर ठीक तरह से क्रियान्वयन हो तो समस्या पूरी नहीं तो कुछ हद तक तो दूर हो ही सकती है। बजट प्रत्येक राज्य ने इस समस्या से निपटने के लिए भारी-भरकम रखा है, पर सडक़ों पर डेरा डाल बैठे पशुओं की संख्या लाखों में हो तो समझ सकते हैं कि बजट का सदुपयोग भी हो रहा है, या नहीं। ([email protected])
एक मई को पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का भी जन्मदिन था। वे भाजपा के बड़े लीडर हैं, और मिलनसार भी हैं। ऐसे में उन्हें जन्मदिन की बधाई देने सुबह से रात तक बंगले में कार्यकर्ताओं का मजमा लगा रहा। खाने-पीने के तमाम इंतजाम थे। बावजूद इसके वहां पहले जैसी रौनक गायब थी। हर कोई एक-दूसरे से दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय के पार्टी छोडऩे पर बतियाते नजर आ रहे थे।
एक-दो अनुशासित कार्यकर्ता तो साय का हिसाब-किताब लेकर बैठे थे। वो यह बताने से नहीं चूक रहे थे कि नंदकुमार साय भाजपा में 32 साल तक अलग-अलग पदों पर रहे। पार्टी ने उनका पूरा सम्मान दिया। बावजूद इसके पार्टी छोडऩा समझ से परे है। यह भी तर्क दिया जा रहा था कि साय का कोई जनाधार नहीं रह गया है। उनकी पुत्री, और बहू तक पंचायत चुनाव हार चुकी है। मगर कई लोग ऐसे भी थे जो यह मानकर चल रहे थे कि साय के जाने से पार्टी को बहुत डैमेज हुआ है, और इसे कंट्रोल करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। कुछ लोग तो साय के पार्टी छोडऩे के लिए रमन सिंह, और सौदान सिंह को जिम्मेदार ठहरा रहे थे।
बृजमोहन के कई समर्थक तो चिंतित दिखे, और कुछ तो उन्हें बधाई देते वक्त साय का पार्टी छोडऩे पर प्रतिक्रिया जानने के लिए उत्सुक थे। बृजमोहन कहते सुने गए कि जशपुर में उनकी पार्टी नेताओं से बात हुई है, और दिलासा दे रहे थे कि उनके जाने से कोई नुकसान नहीं होगा। मगर इस बात पर आम राय थी कि नंदकुमार साय चुनाव से पहले भाजपा का माहौल खराब कर गए।
शहीद तो ड्राइवर भी हुआ
दंतेवाड़ा के अरनपुर में आईईडी ब्लास्ट कर जिस गाड़ी को उड़ाया गया, उसे एक निजी वाहन चालक धनीराम यादव चला रहा था। डीआरजी ने यह गाड़ी किराये पर ली थी। नक्सली पुलिस वाहनों को पहचान कर लेते हैं, इसलिए निजी वाहनों को सर्चिंग और जवानों को लाने-ले-जाने के लिए किराये पर लिया जाता है। इन गाडिय़ों को लेकर चलने वाले ड्राइवरों को भी उतना ही खतरा होता है, जितना जवानों को। पर इनकी जोखिम का दर्जा समान नहीं माना जाता। पुलिस विभाग का ड्राइवर यदि शहीद होता तो उसे बाकी जवानों के परिजनों के बराबर मुआवजा मिलता। इस घटना में शहीद प्रत्येक जवान के परिवार को 35 लाख रुपये मिले हैं, पर धनीराम के परिवार को केवल 5 लाख। धनीराम की पत्नी को इस बात से ऐतराज है। बस्तर में मीडिया से उन्होंने कहा कि जब पति को भी तिरंगा में लिपटाया गया और सलामी दी गई तो मुआवजा भी बराबर मिलना चाहिए।
निजी वाहनों में पुलिस बल को लेकर धुर नक्सल क्षेत्र में घुसते रहे दूसरे ड्राइवरों का कहना है कि हम जाने से मना करें तो हमारे साथ पिटाई भी की जाती है। निजी वाहनों के मालिक कोई और होते हैं, जिन्हें जान का खतरा तो होता ही नहीं, गाड़ी को नुकसान हो तो क्लेम भी मिल जाता है। मृतक बलराम यादव तो करीब 21 साल से अपने मालिक की अलग-अलग गाडिय़ां चलाता रहा है। उसे कुल 7 हजार वेतन मिलते थे। कुछ भत्ते आदि मिल जाते थे, जिससे घर चलता था। अब धनीराम अपने पीछे न केवल पत्नी को बल्कि दो बच्चे भी छोड़ गया है। एक बेटी है। उसका करियर संवारने का वक्त आ चुका, वह 11वीं कक्षा में पढ़ रही है। इस पांच लाख से उन्हें भविष्य सुधारने में कितनी मदद मिलेगी, कहा नहीं जा सकता। बस्तर में नक्सल मोर्चे के खिलाफ नेतृत्व कर रहे पुलिस अफसर शायद अब इस बारे में सोचें कि वे साथ के सिविलियन्स के साथ कोई अनहोनी हो जाती है तो उसके परिवार को आर्थिक, सामाजिक मदद में भेदभाव न हो।
कलेक्टर की 10 माह में विदाई
कुछ कलेक्टर किसी जिले में थोड़े दिन ही काम करते हैं, पर वहां अपनी छाप स्थायी रूप से छोड़ जाते हैं। बलौदाबाजार-भाटापारा से आईएएस रजत बंसल का तबादला हो गया। वे पिछले साल जून के आखिरी हफ्ते में बस्तर से यहां आए थे। वहां नागरिकों ने एक विदाई समारोह उनके लिए रखा था, जिसमें उन्होंने गाना भी गाया था- रुक जाना नहीं...। बलौदाबाजार में कल जब नये कलेक्टर चंदन कुमार को पदभार सौंपकर वे वापस रायपुर रवाना हो रहे थे तो पलारी मुख्य सडक़ पर उनकी विदाई के लिए भावुक भीड़ खड़ी थी। यह देखकर बंसल गाड़ी से उतरे। सबसे बुके, फूल स्वीकार किया। उन्हें एक सिद्धेश्वर भगवान की प्रतिमा भी भेंट की गई। भीड़ के बीच से अमेरा ग्राम की सोनी कुर्रे आगे आईं, उसने कहा कि आपकी कोशिशों से मुझे सीएम साहब ने बेटी के लीवर ट्रांसप्लांट के लिए 22 लाख रुपये दिए, अब मेरी बेटी स्वस्थ हो गई है। ऐसे ही कई लोगों ने अपने अनुभव बताए कि उनसे किस तरह मदद मिली। बंसल ने कहा- मुझे भी यहां से जाने का दुख तो हो रहा है, पर शासकीय जिम्मेदारी है। यहां काम करना अच्छा लगा। कभी भी कोई जरूरत हो रायपुर आकर मिलें।
बहुत कम अफसर होते हैं जो आम लोगों के दिलों में जगह बना पाते हैं। अपने प्रदेश के कुछ जिलों में तो ऐसे भी शीर्ष अधिकारी देखे गए हैं जो नागरिकों, संगठनों के प्रतिनिधियों से दुर्व्यवहार की वजह से चर्चा में होते हैं। हाल के वर्षों में भी ऐसा हुआ है।
हाफ योजना का दुरुपयोग?
क्या बिजली बिल हाफ योजना का लाभ लेने के लिए ऐसा भी किया जा रहा है कि एक ही घर में चार-पांच मीटर लगवा लिए जाएं ताकि रीडिंग 400 यूनिट से ज्यादा न आए। सोशल मीडिया पर राजधानी रायपुर के एक पेज में इस तरह की कुछ तस्वीरों के साथ यही दावा किया जा रहा है। एक बिल्डिंग में यदि अलग-अलग लोगों के कई फ्लैट्स या ऑफिस हों तो एक ही दीवार पर कई मीटर लगा होना तो गलत नहीं है, पर यदि एक ही घर में ऐसा किया जा रहा है तो सीएसपीडीसीएल के मैदानी कर्मचारियों की मिलीभगत से ही यह मुमकिन है।
सभी मौजूदा एमएलए को टिकट?
कांग्रेस ने मौजूदा विधायकों का संगठन के जरिये परफार्मेंस का पता किया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी सर्वे कराया था। प्रदेशभर में चल रही भेंट मुलाकात का एक मकसद यह भी है। इसके चलते कई मौजूदा विधायकों को चिंता है कि अगली बार उन्हें टिकट मिलेगी या नहीं। दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने दूसरा ही बयान दे दिया है। उनका कहना है कि वे तो चाहते हैं कि सभी मौजूदा 71 विधायकों को टिकट मिले। मरकाम ने यह कहा तो इसका मतलब यह है कि वे अपनी टिकट की बात भी कर रहे हैं। मरकाम का यह भी कहना है कि इस बार 75 सीटों का टारगेट लेकर चुनाव लड़ेंगे। इन दोनों बातों को जोडक़र देखें तो कहा जा सकता है कि सभी विधायकों ने अच्छा काम किया। सर्वे की जरूरत ही नहीं।( [email protected])
यूं ही भाजपा नहीं छोड़ी...
दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय यूं ही कांग्रेस में नहीं गए। सीएम भूपेश बघेल ने न सिर्फ नंदकुमार साय बल्कि ननकीराम कंवर के सम्मान का पूरा ख्याल रखा। सरकार में आने के बाद कंवर की शिकायत पर चर्चित आईपीएस मुकेश गुप्ता के खिलाफ कार्रवाई की, जो कि रमन सरकार में सबसे ताकतवर पुलिस अफसर थे।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि मुकेश गुप्ता ने रायपुर एसएसपी रहते भाजपा नेताओं पर लाठी चार्ज करवाई थी। जिसमें नंदकुमार साय का पैर टूटा था। मुकेश गुप्ता को विधानसभा की कमेटी ने लाठी चार्ज मामले में दोषी भी करार दिया था। मगर मुकेश गुप्ता भाजपा सरकार के आने के बाद और पॉवरफुल हो गए।
न सिर्फसाय बल्कि दिवंगत आदिवासी नेता सोहन पोटाई ने भी सीएम डॉ. रमन सिंह मुकेश गुप्ता पर कार्रवाई के लिए दबाव बनाया था। मगर रमन सरकार में ठीक इसका उल्टा हुआ। दोनों नेता हासिए पर ढकेल दिए गए। नंदकुमार साय को कोर ग्रुप से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। फिर पोटाई के पर कतर दिए गए। सांसद टिकट कटने के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी।
नंदकुमार साय पार्टी में बने रहे, लेकिन स्थानीय स्तर पर वो मुख्यधारा से अलग ही रहे। यद्यपि पीएम नरेंद्र मोदी तक उनका सम्मान करते हैं। उन्हें अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष पद से नवाजा गया। मगर अध्यक्ष का कार्यकाल खत्म होने के बाद स्थानीय स्तर पर भी उनकी पूछ परख कम हो गई थी। सीएम भूपेश बघेल ने आदिवासियों के बीच उनकी पैठ को समझा, और उनका पूरा सम्मान किया। किसी पद पर न रहने के बाद भी सीएम भूपेश बघेल ने सरकारी बंगला तक उनके पास सरकारी बंगला रहने दिया गया। जबकि रमन सरकार में तो एक बार साय को बंगला खाली करने के लिए नोटिस जारी कर दिया गया था। आखिरकार भाजपा में उपेक्षा, और सीएम के सम्मान से प्रभावित होकर कांग्रेस का दामन थाम लिया।
ननकीराम पर नजर
नंदकुमार साय के पार्टी छोडऩे से केंद्र से लेकर प्रदेश तक के भाजपा नेता हिल गए हैं। पार्टी के रणनीतिकार अब उपनेता ननकीराम कंवर पर नजर जमाए हुए हैं। जो कि पार्टी की कार्यप्रणाली से नाखुश बताए जाते हैं। कंवर उस वक्त काफी गुस्से में थे, जब धरमलाल कौशिक को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था।
उन्होंने अपनी बात विधायक दल की बैठक में रखी थी। उनके तेवर देखकर नेता प्रतिपक्ष का नाम तय करने आए तत्कालीन केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत भी हिल गए थे। कांग्रेस सरकार में कंवर की सिफारिशों का पूरा ध्यान रखा जाता है। सीएम व्यक्तिगत तौर पर उनका सम्मान करते हैं। इससे परे नंदकुमार साय और ननकीराम कंवर की अच्छी ट्यूनिंग है। ऐसे में भाजपा के कई नेता इस बात से सशंकित हैं कि कहीं वो नंदकुमार साय की राह न पकड़ ले। यही वजह है कि कुछ नेताओं को कंवर के लगातार संपर्क बनाए रखने की जिम्मेदारी दी गई है।
जफर इस्लाम की भूमिका में एजाज
नंदकुमार साय एपिसोड में मेयर एजाज ढेबर, भाजपा प्रवक्ता जफर इस्लाम की भूमिका में नजर आए। जफर इस्लाम ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस में शामिल करने में अहम भूमिका निभाई थी। जफर इस्लाम की तरह ढेबर भी नंदकुमार साय के साथ साए की तरह लगे रहे। हालांकि सीएम ने उन्हें साय के साथ रहने की जिम्मेदारी दी थी, और उन्होंने अपने दायित्व का भरपूर निर्वहन किया। ढेबर खुद गाड़ी में साथ लेकर राजीव भवन पहुंचे। ([email protected])
कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करोगे, तो...
विधानसभा चुनाव में पांच माह बाकी रह गए हैं। मगर भाजपा के बड़े नेता पिछली बुरी हार को अब तक भुला नहीं पा रहे हैं। रह-रहकर बैठकों में हार पर चर्चा हो जाती है। कुछ इसी तरह चर्चा दुर्ग की संभागीय बैठक में भी हुई। प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने बैठक में कहा बताते हैं कि मुझे उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्य का प्रभार दिया गया था। मैंने वहां काम किया। इसके बाद बड़े राज्य गुजरात, और फिर मध्यप्रदेश में भी अपने दायित्व का निर्वहन किया।
माथुर ने आगे कहा कि उन्हें छोटे राज्य छत्तीसगढ़ का प्रभार दिया गया है। यहां भी वो काम कर रहे हैं। मगर उन्हें इस बात की पीड़ा महसुस हो रही है कि 15 साल की सत्ता में रहने के बाद सरकार, और संगठन कार्यकर्ताओं के आक्रोश को कैसे भांप नहीं पाये, और पार्टी सिर्फ 15 सीटों पर ही सिमटकर रह गई। उन्होंने चेताया कि कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करोगे, तो बरसों तक सरकार में नहीं आ पाओगे। माथुर की इस टिप्पणी की पार्टी हल्कों में खूब चर्चा हो रही है।
न आने की वजहें और मतलब
दिवंगत पूर्व सीएम अजीत जोगी की शनिवार को जयंती के मौके पर सर्वधर्म प्रार्थना सभा में अच्छी खासी भीड़ उमड़ी। वैसे तो सीएम भूपेश बघेल को भी प्रार्थना सभा में आना था, और वो मुख्य अतिथि भी थे। मगर तबियत ठीक नहीं होने की वजह से वो नहीं आ पाए। अलबत्ता, सरकार के मंत्री टीएस सिंहदेव, डॉ. शिव डहरिया, मोहम्मद अकबर, और सांसद ज्योत्सना महंत समेत कई पूर्व विधायक भी सभा में शामिल होकर जोगीजी को श्रद्धांजलि दी।
प्रार्थना सभा में हिस्सा लेने जोगी परिवार के कभी बेहद करीबी रहे मेयर एजाज ढेबर भी डेढ़ दशक बाद सागौन बंगले पहुंचे। भाजपा से भी नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल समेत आधा दर्जन नेता प्रार्थना सभा में शामिल हुए। लोगों की निगाहें उनकी अपनी पार्टी के विधायक धर्मजीत सिंह, और प्रमोद शर्मा को ढूंढ रही थी, लेकिन वो नहीं पहुंचे। धर्मजीत की जोगी परिवार से दूरियां जग जाहिर है, और दोनों विधायकों ने एक तरह से पार्टी भी छोड़ दी है।
प्रार्थना सभा के पहले जोगी परिवार के कांग्रेस में शामिल होने की अटकलें भी लगाई जाती रही है। यह भी चर्चा रही कि कोटा से रेणु जोगी की जगह कांग्रेस की टिकट पर ऋचा जोगी चुनाव लड़ सकती हैं। रेणु जोगी और अमित कांग्रेस का प्रचार करेंगे, लेकिन सीएम चाहे किसी भी कारण से न आ पाए हो, जोगी परिवार के कांग्रेस में शामिल होने की अटकलों पर फिलहाल विराम लग गया है।
जो बाघ का निवाला छीन ले...
उदंती सीतानदी टाइगर में नक्सली गतिविधियों के चलते विकास की गति ही धीमी नहीं है, बल्कि यहां जाने में पर्यटक भी कम दिलचस्पी लेते हैं। इसका एक बड़ा हिस्सा सिहावा विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है जहां के ग्रामीणों ने सडक़, बिजली जैसी सुविधाओं की मांग पर मार्च माह में एक बड़ी रैली भी निकाली थी। पर इन दिनों यहां पहुंचने वालों के लिए हार्नबिल पक्षी का आकर्षण बना हुआ है, जो पिछले कुछ महीनों से बड़ी संख्या में दिखाई दे रहे हैं। ये महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश की ओर से आए हो सकते हैं क्योंकि दक्षिणी राज्यों में ये बहुत पाए जाते हैं। नगालैंड में भी पाया जाता है। यहां इस पक्षी के नाम पर एक सालाना उत्सव भी होता है। उदंती में सैलानियों को इनका दीदार हो सके, इसके लिए वन विभाग उनके साथ जानकार मैदानी कर्मचारियों को भेजता है। सीतानदी अभयारण्य में बीते विश्व वन्यजीव दिवस के दौरान इस अभयारण्य की ट्रैकिंग के बाद पक्षियों के 152 प्रजातियों की पहचान की गई थी, जो संभवत: किसी दूसरे अभयारण्य से अधिक है। हार्नबिल का हिंदी नाम धनेश भी है, पर ज्यादा चलन में अंग्रेजी नाम ही है। सींग जैसा आकार और मजबूत चोंच होने के कारण इसका यह नाम पड़ा। इसी कठोर चोंच के भरोसे वह बाघ के मुंह से निवाला छीनकर फुर्र भी हो जाती है। ([email protected])
जंगल में पेड़ इधर-उधर होंगे
विधानसभा चुनाव को देखते हुए वन महकमे में नए सिरे से ट्रांसफर-पोस्टिंग की कवायद चल रही है। पीसीसीएफ से लेकर डीएफओ तक के अफसरों को इधर से उधर करने का प्रस्ताव तैयार हो रहा है। अरण्य भवन में प्रशासन का काम तो श्रीनिवास राव को सौंप दिया गया है। अब पीसीसीएफ हो चुके तीन अफसर तपेश झा, अनिल राय, और संजय ओझा की पोस्टिंग होगी।
चर्चा है कि सभी सातों पीसीसीएफ के प्रभार बदले जा सकते हैं। इसके अलावा फील्ड में भी सीसीएफ, और डीएफओ स्तर के अफसरों की नए सिरे से पदस्थापना की जाएगी। हल्ला है कि इसमें चुनावी गणित को भी ध्यान रखा जाएगा। सब कुछ अनुकुल रहा तो करीब 2 दर्जन से अधिक आईएफएस अफसरों के प्रभार बदले जा सकते हैं। सूची मई के पहले पखवाड़े में जारी हो सकती है।
प्रदेश कांग्रेस का फ़ैसला कर्नाटक के बाद
प्रदेश कांग्रेस में फेरबदल पर फैसला अब कर्नाटक चुनाव निपटने के बाद होने की उम्मीद है। एआईसीसी प्रदेश कांग्रेस में सचिवों की सूची जारी करने वाली थी। इसके लिए नाम भी मांगे गए थे। मगर यह सूची भी रूक गई है। दरअसल, कांग्रेस के कई दिग्गज मोहन मरकाम को बदलने के लिए दबाव बनाए हुए हैं, तो कुछ उन्हें पद पर बनाए रखने के पक्ष में है। दिग्गजों ने अपनी राय से हाईकमान को अवगत भी करा दिया है। पार्टी के तमाम राष्ट्रीय नेताओं का कर्नाटक में डेरा है। कर्नाटक में पार्टी की सरकार बनने की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में फिलहाल प्रदेश कांग्रेस पर फैसला अभी रोक दिया गया है। अब कोई भी फैसला 15 मई के बाद होने की उम्मीद है।
चुनावी साल की अलग चिंताएं
क्या मंत्रियों को पता नहीं होता कि उनके नाम पर उनके निजी सहायक, निजी सचिव क्या-क्या गुल खिलाते हैं। खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने बतौली में जिस भूपेंद्र यादव को निजी सचिव बना रखा था, उस पर गंभीर आरोप लगे हैं। करीब 30 एकड़ सरकारी जमीन को राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से उसने अपने और अपने परिवार के सदस्यों के नाम पर पट्टे में दर्ज करा लिया। इस जमीन की किसान किताब भी बन गई और बेच भी दिया। खरीदने वाले ने इसे खेती की जमीन बताई और इसके नाम पर धान भी सोसाइटी में बेचा। ग्रामीणों और भाजपा के कार्यकर्ताओं ने थाने में शिकायत की है और निजी सचिव के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की है। इसके बाद मंत्री ने सफाई में एक वीडियो जारी किया है। उन्होंने कलेक्टर को प्रकरण की जांच कर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की बात कही है। पर सवाल यही उठता है कि क्या निजी सचिव के परिवार के नाम पर इतनी बड़ी सरकारी जमीन को चढ़ाने का जोखिम पटवारी और तहसीलदार ने कैसे उठाया? यह सवाल भी उठ रहे हैं कि चुनाव नजदीक आ रहा है इसलिए मंत्री ने कार्रवाई के लिए तत्परता दिखाई।
सुपेबेड़ा जैसे कई गांव
गरियाबंद जिले के सुपेबेड़ा में प्रदूषित पानी के चलते ग्रामीण किडनी और दूसरी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। यह समस्या 10 साल पुरानी है। अनुसुइया उइके जब छत्तीसगढ़ की राज्यपाल बनी थीं तो उनका सबसे पहले यहीं का प्रवास हुआ। स्वास्थ्य और पीएचई के अधिकारियों ने भी इसके बाद बार-बार दौरा किया। कांग्रेस सरकार बनने के बाद तेल नदी से शुद्ध पेयजल की आपूर्ति की योजना बनाई गई थी। पर अभी तक योजना अधूरी है। सुपेबेड़ा मैं अब तक किडनी की बीमारी से 80 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। कोरबा जिले के चैतमा के पास जंगल के बीच स्थित महुआपानी ग्राम के 35 घरों की समस्या इससे कम नहीं है। यहां पर 3 हैंडपंप हैं पर तीनों से दूषित पानी आता है। यहां हर घर में एक बीमार आदमी मिलेगा।
कुछ लोग तो 40-45 की उम्र में लाठी लेकर चल रहे हैं। कई लोग बिस्तर पर पड़े पड़े दिन काट रहे हैं। प्रदेश के हर जिले, ब्लॉक में ऐसे गांव मिलेंगे, जहां प्रदूषित पानी पीना लोगों की मजबूरी है। उन कई गांवों की पहचान भी पीएचई ने कर रखी है। पर पीढ़ी दर पीढ़ी समस्या बनी हुई है, समाधान नहीं है। ऐसे में केंद्र सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना जल जीवन मिशन की ओर ध्यान जाता है जिसके तहत अगले साल तक प्रदेश के हर एक घर में शुद्ध पानी पहुंचा कर देने का लक्ष्य रखा गया है। इस मिशन की हाल के दिनों तो चर्चा सिर्फ इसकी धीमी रफ्तार और टेंडर घोटाले की वजह से हो रही है। मिशन से जुड़े अधिकारी दूषित जल वाले गांवों में इस योजना को पहले पहुंचा कर विभाग में हो रही गड़बडिय़ों का पश्चाताप कर सकते हैं।
इंसानों से सीखा कानून तोडऩा
फाटक बंद हो तो रेलवे क्रॉसिंग पार नहीं करनी चाहिए। इंसानों को इस नियम का उल्लंघन करते देख हाथी ने भी कानून तोडऩे का दुस्साहस कर लिया। सोशल मीडिया पर यह तस्वीर केरल से आई है।
रेरा में रौनक
मजदूर दिवस पर रेरा के नए चेयरमैन संजय शुक्ला, और सदस्य धनंजय देवांगन पदभार ग्रहण करेंगे। संजय ने इस्तीफा दे दिया है, और स्वीकृति की प्रक्रिया चल रही है। इसी तरह धनंजय देवांगन का भी 30 अप्रैल को रेरा अपीलेट अथॉरिटी के सदस्य के पद से इस्तीफे की नोटिस को तीन माह पूरे हो जाएंगे, और नियमानुसार वो एक मई को नई पदस्थापना रेरा सदस्य के रूप में जॉइनिंग दे देंगे। रेरा चेयरमैन विवेक ढांड, और सदस्य राजीव टम्टा व एनके असवाल का कार्यकाल खत्म होने के बाद से पिछले तीन माह से रेरा चेयरमैन, और सदस्य के पद खाली थे।
जल्दी-जल्दी बिदाई
प्रदेश के पांच नए जिले मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर, सक्ती, मानपुर-मोहला-चौकी, खैरागढ़-छुईखदान-गंडई, और सारंगढ़-बिलाईगढ़ करीब डेढ़ साल पहले अस्तित्व में आए थे। लेकिन सक्ती कलेक्टर नुपूर राशि पन्ना, और मानपुर-मोहला-चौकी कलेक्टर एस जयवर्धन को छोडक़र बाकी तीनों बदले जा चुके हैं।
सारंगढ़-बिलाईगढ़ के पहले कलेक्टर डी राहुल वैंकट तो मात्र दो महीने ही टिक पाए। हालांकि उनकी साख अच्छी है, लेकिन उनकी स्थानीय विधायक से पटरी नहीं बैठ रही थी, लिहाजा उन्हें बदल दिया गया। इस मामले में खैरागढ़-छुईखदान कलेक्टर जगदीश सोनकर पोस्टिंग के मामले में भाग्यशाली रहे, और डेढ़ साल टिक गए।
कहा जा रहा है कि सोनकर की भी स्थानीय नेताओं-विधायक से भी पटरी नहीं बैठ पा रही थी। एसपी से भी सामान्य बोलचाल बंद थी। इस वजह से उन्हें बदला गया। इसी तरह मनेंद्रगढ़-चिरमिरी कलेक्टर पीएस ध्रुव को लेकर भी शिकवा शिकायतें हुई थी। इसकी वजह से उन्हें बदल दिया गया।
पहले कलेक्टरों को कम से कम ढाई-तीन साल से पहले नहीं हटाया जाता था। तब कलेक्टरों की साख भी अच्छी थी अब अच्छी साख वाले अफसरों की कमी हो गई है। ऐसे में जल्दी-जल्दी बदलाव हो जा रहा है।
राम वनगमन पथ के निशान....
धरमजयगढ़ प्रवास के दौरान रायगढ़ कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा लिखामाड़ा गांव के आंगना ग्राम पहुंचे। ग्रामीणों ने वहां बने कुछ शैल चित्र दिखाए। सिन्हा ने सोशल मीडिया में जिक्र किया है कि लोगों का विश्वास है कि श्रीराम इसी पथ से दंडकारण्य की ओर निकले। आंगना आज भी दुर्गम है और कठिनाई से ही यहां तक पहुंचा जा सकता है। रोचक यह है कि यहां दो अस्पष्ट आकृतियां पत्थरों पर दिखाई देती हैं, जो स्थानीय लोगों के अनुसार रामायण के पात्रों की तरह हैं। पहाड़ तो हजारों साल पुरानी हो सकती है। पर क्या शैल चित्र भी उतने ही पुराने हैं? कलेक्टर का कहना है कि शोधार्थियों को इसका पता लगाना चाहिए।
एक मार्मिक तस्वीर..
दंतेवाड़ा में माओवादियों के हमले में मारे गये आदिवासी जवान, लखमू मरकाम का शव आज अंतिम संस्कार के लिए जब उनके गाँव कासोली पहुंचा तो उनकी पत्नी चिता पर लेट गईं। इस मार्मिक दृश्य को जिस किसी संवेदनशील व्यक्ति ने देखा, उसके आंसू छलक गए।
तीन दशक पहले के नक्सली हमले
दंतेवाड़ा के अरनपुर में आईईडी ब्लास्ट कर माओवादियों ने सरकार और सुरक्षा बलों के कुछ समय पहले तक किए जा रहे इस दावे को गलत ठहराने की कोशिश की है कि अब वे कमजोर हो रहे हैं और बड़ा नुकसान करने की स्थिति में नहीं हैं। पिछले माह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बस्तर दौरे पर यह बात दोहराई थी कि लोकसभा चुनाव से पहले बस्तर से नक्सल समस्या का अंत कर दिया जाएगा। पर, यह घटना बताती है कि नक्सलियों ने भी अभी हार नहीं मानी है और सुरक्षा में लगे जवानों और आम लोगों को, बस्तर में शांति के लिए अभी और कीमत चुकानी पड़ेगी, साथ ही धैर्य रखना पड़ेगा। हर बार सुरक्षा बल और सरकार नए सिरे से नक्सली हिंसा को समाप्त करने का संकल्प लेती है पर यह समस्या तीन दशक से ज्यादा पुरानी हो चुकी है।
बस्तर में 32 साल पहले 20 मई 1991 को सबसे पहला ब्लास्ट किया गया था। लोकसभा चुनाव के दौरान फरसगांव और बंगोली गांव के बीच नक्सलियों ने मतदान दल को विस्फोट से उड़ाया। बंगोली से मतपेटी लेकर वापस लौट रही टाटा 407 गाड़ी को गांव से 500 मीटर की दूरी पर विस्फोट से उड़ाया गया। इस हमले में 12 लोग शहीद हुए जिनमें मतदान कराने गई टीम के अलावा जवान भी शामिल थे। वाहन में सवार चिंगनार प्राथमिक स्कूल के शिक्षक गिरजा शंकर यादव भी थे, जो अब रिटायर्ड हो चुके हैं। उनके अलावा एक जवान और एक कोटवार जिंदा बचे। जोरदार विस्फोट के साथ सभी कई फीट दूर जाकर गिरे। जिंदा बचे जवान ने तुंरत कोटवार और शिक्षक को मेड़ की ओट में छिप जाने कहा। जवान ने हौसला नहीं खोया और वह खुद मेड़ की पीछे से विस्फोट करने के बाद फायरिंग कर रहे नक्सलियों से मुकाबला किया। दो तीन किलोमीटर वे पैदल चलकर एक दूसरे गांव पहुंचे, जहां उन्हें मदद मिली।
इसके बाद साल दर साल बारूदी सुरंग नक्सली बिछाते रहे और सुरक्षा में लगे जवान हताहत हो रहे। सोशल मीडिया पर डॉ. धीरेंद्र साव ने परसदा के अधिवक्ता मोहन ठाकुर के हवाले से बताया है कि सर्चिंग के लिए निकले सुरक्षा बलों पर पहली बार बारूद का विस्फोट कर हमला 4 जून 1992 को मड़ईगुड़ा में किया गया था। इसमें 18 पुलिस जवान शहीद हुए थे। शहीद होने वालों में खल्लारी के दो बेटे घनश्याम ठाकुर व शकुर सिंह ठाकुर शामिल थे। हमला तब हुआ था जब सर्चिंग करके टीम दंतेवाड़ा के गोलापल्ली की ओर से लौट रही थी। शहीद हुए घनश्याम ठाकुर वाहन चला रहे थे। उनके पुत्र इस समय मुख्यमंत्री की सुरक्षा टीम में तैनात हैं।
पूर्व प्रचारक का पूर्व सीएम के खिलाफ वीडियो
आरएसएस के एक पूर्व प्रचारक के स्टिंग ऑपरेशन की खूब चर्चा है। यह स्टिंग ऑपरेशन संघ से जुड़े एक कार्यकर्ता ने किया, जो न्यूज पोर्टल से भी जुड़े हैं। बाद में पोर्टल से वीडियो को हटा दिया गया। तब तक काफी लोगों तक पहुंच गया था, और लोगों ने वीडियो देख लिया।
बताते हैं कि वीडियो में आरएसएस के पूर्व पदाधिकारी, पूर्व सीएम को खूब भला-बुरा कह रहे थे। यही नहीं, भाजपा शासनकाल में नक्सल हिंसा में बढ़ोत्तरी के लिए तत्कालीन सीएम को दोषी मान रहे हैं। वो यह कहने से नहीं चूके कि प्रदेश में भाजपा को बहुमत मिलने पर हिन्दुत्व विचारधारा के नेता को सीएम बनाया जाएगा।
पार्टी के अंदरखाने में न्यूज-वीडियो की खूब चर्चा हो रही है। कहा जा रहा है कि आरएसएस के पूर्व प्रचारक की पूर्व सीएम से खुन्नस काफी पुरानी है। बताते हैं कि कुछ साल पहले क्षेत्रीय संगठन मंत्री के साथ मिलकर पूर्व सीएम ने उन्हें प्रचारक पद से हटवाने में अहम भूमिका निभाई थी। जबकि प्रचारक की राम मंदिर बनवाने में अहम भूमिका रही है। अब पूर्व हो चुके प्रचारक रह रहकर पूर्व सीएम, और अब राज्य छोड़ चुके तत्कालीन क्षेत्रीय संगठन मंत्री को खूब कोस रहे हैं।
प्रवक्ता के बदले प्रवक्ता
चुनाव नजदीक आते ही कांग्रेस, और भाजपा के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है। अब हाल यह है कि हेट स्पीच का आरोप लगाकर कांग्रेस ने भाजपा के चार प्रवक्ताओं शिवरतन शर्मा, केदार गुप्ता, संजय श्रीवास्तव, और गौरीशंकर श्रीवास का बहिष्कार कर दिया है। कांग्रेस के मीडिया विभाग ने यह तय किया है कि उनके प्रवक्ता भाजपा के चारों नेताओं के साथ किसी भी टीवी डिबेट में हिस्सा नहीं लेंगे। इससे पहले भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं को अपशब्द कहने पर इसी तरह की प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की गई थी। तब भाजपा ने डेढ़ साल पहले प्रवक्ता विकास तिवारी का बहिष्कार कर दिया था।
विकास तिवारी का बहिष्कार अभी भी जारी है। हालांकि कांग्रेस के मीडिया विभाग ने विकास तिवारी के बहिष्कार को ज्यादा तूल नहीं दिया। क्योंकि बहुत सारे प्रवक्ता हैं, जो टीवी डिबेट में बैठने के लिए लालायित रहते हैं। विकास के बहिष्कार से उन्हें टीवी डिबेट में जाने का मौका मिल रहा था। मगर अब प्रवक्ताओं के बहिष्कार के बाद भाजपा नेतृत्व ने जवाब में कुछ और तेज तर्रार कांग्रेस प्रवक्ताओं के बहिष्कार का मन बनाया है। कुल मिलाकर दोनों दलों के बीच हेट स्पीच पर जंग तेज हो सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
ट्रेन दुर्घटना के पीछे ज्यादा कमाई की धुन?
मालगाडिय़ों को आगे बढ़ाने के लिए यात्री ट्रेनों को जगह-जगह रोकने वाली रेलवे, सिंहपुर में हुई दुर्घटना के कारणों की जांच कर रही है। एक मालगाड़ी ने दूसरी को पीछे से टक्कर मारी थी, जिसमें एक लोको पायलट की मौत हो गई थी और पांच अन्य घायल हो गए थे। पहली गलती तो सबके सामने है। इसमें यह आया है कि पीछे वाली मालगाड़ी सामने रेड सिग्नल होने के बाद भी नहीं रुकी और सामने खड़ी ट्रेन से टकरा गई। प्रत्यक्षदर्शियों का यही बयान भी दर्ज किया गया है। मगर रेलवे के अफसरों ने जिस तरह से अधिक राजस्व के लिए ड्राइवर और स्टाफ के अन्य लोगों की जान की परवाह नहीं की है वह बात शायद जांच में छिपा ली जाएगी। रेलवे बोर्ड का वर्षों पुराना 29 नवंबर 2016 का आदेश है, जिसमें सभी जोन महाप्रबंधकों से कहा गया था कि चालकों से 9 घंटे से अधिक ड्यूटी नहीं ली जाए। इतनी देर में वह मानसिक व शारीरिक रूप से थक जाता है। पर इस आदेश का कभी पालन नहीं हुआ। प्राय: मालगाडिय़ों को ज्यादा से ज्यादा दूरी तक पहुंचाने के लिए उन पर अधिक काम करने का दबाव होता है। सिंहपुर दुर्घटना को लेकर भी यह बात सामने आई है कि लोको पायलट लगातार 14 घंटे से ड्यूटी कर रहे थे। हद यह है कि स्टाफ को पहले से यह नहीं बताया जाता। ऐन मौके पर ड्यूटी खत्म होने के पहले कहा जाता है कि अभी और ट्रेन चलाइये। लोको पायलटों का कहना है कि सिंहपुर दुर्घटना के बाद दबाव कुछ कम हुआ है, पर कब तक ऐसा रहेगा, कह नहीं सकते। अधिकारियों को अपने-अपने जोन से ज्यादा कमाई देने का दबाव भी रेलवे बोर्ड की तरफ से होता है। ऐसे में रनिंग स्टाफ से ज्यादा ड्यूटी लेने वाले अफसरों पर शायद ही कोई कार्रवाई हो।
हेंडपंप बुझा रहा मवेशियों की प्यास
शहरों में ही नहीं गांवों, जंगलों में भी पारंपरिक जलस्त्रोत पोखर, तालाब, नदी, नाले गायब होते जा रहे हैं। इन दिनों गर्मी के बीच छत्तीसगढ़ के अलग-अलग वनों से खबर आ रही है कि पानी की तलाश में जानवर मनुष्यों की आबादी में भटककर अपनी जान गवां रहे हैं। पालतू पशुओं के साथ सुविधा है कि तालाब, नदी सूख गए हों तो हेंडपंप के पास आकर खड़े हो जाएं, उन्हें पानी मिल सकता है। यह तस्वीर बोड़ला-चिल्फी नेशनल हाइवे के किनारे बसे एक गांव की है, जहां से कान्हा नेशनल पार्क का जंगल भी शुरू होता है।
अब आधा रह गया साम्राज्य
आईएएस के 25 अफसरों को इधर से उधर किया गया। कुछ अफसरों के तबादले अपेक्षित थे। एक-दो तबादले ऐसे हैं, जिनको लेकर काफी चर्चा हो रही है। मसलन, डायरेक्टर समग्र शिक्षा नरेंद्र दुग्गा को नया जिला मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर का कलेक्टर बनाया गया है।
विशेष सचिव स्तर के अफसर दुग्गा दो साल कोरिया कलेक्टर रहे हैं। उन्होंने ही पिछले विधानसभा का चुनाव कराया था। मगर अब कोरिया से अलग होकर अस्तित्व में आए मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर के कलेक्टर बनाए गए। यानी वो पहले के मुकाबले आधा जिले के कलेक्टर रह गए। हालांकि कोल माइंस के कारण आधा जिला भी काफी महत्वपूर्ण हो चला है।
प्रसन्ना ही प्रसन्ना
वैसे तो मंत्रालय में अफसरों की कमी है। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव अपने विभाग में अनुभवी, और काबिल अफसरों की पोस्टिंग चाहते रहे हैं। इस बार स्वास्थ्य विभाग में आधा दर्जन अफसरों की पोस्टिंग की गई है, जिनमें से एक-दो तो लकीर के फकीर माने जाते हैं।
एसीएस रेणु पिल्ले को स्वास्थ्य का जिम्मा दिया गया है। रेणु पहले भी स्वास्थ्य विभाग संभाल चुकी हैं। उनके नीचे प्रसन्ना आर तो हैं ही। इसके अलावा चिकित्सा शिक्षा सचिव का दायित्व पी दयानंद को सौंपा गया है।
यही नहीं, डॉ. सीआर प्रसन्ना को आयुक्त स्वास्थ्य सेवाएं बनाया गया है। प्रसन्ना आर, और सीआर प्रसन्ना, दोनों तमिलनाडू में आसपास के गांव के ही रहने वाले हैं। आयुक्त चिकित्सा शिक्षा नम्रता गांधी को संचालक आयुष के पद पर पदस्थ किया गया है। भीम सिंह तो पहले से ही एनआरएचएम का प्रभार संभाल रहे हैं। कुल मिलाकर सिंहदेव एकमात्र मंत्री हैं, जिनके एक विभाग में आधा दर्जन आईएएस बिठाए गए हैं। स्वाभाविक तौर पर चुनावी साल में अब सिंहदेव पर परफॉर्मेंस दिखाने का दबाव बन गया है।
अंकित आनंद लगातार महत्वपूर्ण
प्रशासनिक फेरबदल के बाद सीएम के सचिव अंकित आनंद, और ताकतवर हुए हैं। उन्हें वित्त विभाग, और पेंशन निराकरण समिति का चेयरमैन का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है। जबकि ऊर्जा सचिव, और सीएसईबी के चेयरमैन का दायित्व पहले से ही संभाल रहे हैं। अंकित की साख बहुत अच्छी है, और कई सीनियर अफसरों के मुकाबले ज्यादा तेज रफ्तार से काम करने की क्षमता है। यही वजह है कि अलरमेल मंगई डी के छुट्टी पर जाने की वजह से वित्त जैसा महत्वपूर्ण महकमे का प्रभार उन्हें दिया गया है। यद्यपि वो बजट सत्र के बाद से ही वित्त का काम देख रहे हैं।
लिस्ट अभी बाकी है
खबर है कि दो दर्जन से अधिक आईएएस अफसरों को इधर से उधर करने के बावजूद कुछ कमी अभी भी बाकी है। इस कमी को दूर करने के लिए जल्द ही एक और लिस्ट आ सकती है। इसमें भी एक-दो कलेक्टर को बदला जा सकता है। देखना है कि सूची कलेक्टर कॉन्फ्रेंस के बाद आती है अथवा पहले।
छत्तीसगढिय़ा प्री वेडिंग शूट
अपने यहां खासियत है कि विदेशों की परिपाटी, पर्व, परम्पराओं को आयात करते हैं तो अपने हिसाब से उसमें बदलाव भी कर लेते हैं। मोमबत्ती के साथ केक काटते हैं तो साथ में बर्थडे ब्वाय की आरती भी उतार लेते हैं। वेलेंटाइन डे यहां केवल प्रेमी-प्रेमिका के लिए नहीं रह गया है बल्कि दोस्त, परिवार के प्रिय लोगों के लिए भी मना लिया जाता है।
पिछले कुछ वर्षों से पश्चिम से ही प्रेरित शादी के पहले के इवेंट, प्री-वेडिंग शूट का चलन बढ़ा है। सगाई और शादी के बीच हिल स्टेशन और रिजॉर्ट पर जाकर युगल वीडियो और फोटो शूट कराते हैं। इसे कारपोरेट की हवा कुछ ऐसी लगी कि लडक़े-लडक़ी कुछ ज्यादा ही नजदीकी से तस्वीरें खिंचाने लगे। कुछ सामाजिक बैठकों में इसका विरोध होने लगा। कई समाजों में इसे प्रतिबंधित भी कर दिया गया है। पर यहां बात हो रही है, अनोखे अंदाज में गांव और जड़ों की स्मृतियों को सहेजने वाले प्री वेडिंग शूट की। जांजगीर के पुरानी बस्ती में रहने वाले बिजली विभाग में इंजीनियर देवेंद्र राठौर ने अपने जोड़े रश्मि के साथ छत्तीसगढिय़ा वेशभूषा में तस्वीरें खिंचवाई और वीडियो तैयार कराया। यही नहीं शादी का निमंत्रण पत्र भी छत्तीसगढ़ी में ही है। यह प्रयोग लोगों को भा रहा है। शादी के 20-25 बरस बाद जब ये वीडियो वे देखेंगे तो मालूम होगा कि वह गांव ढूंढने से भी नहीं मिल रहा है।
हसदेव से जुडऩे का न्यौता
विवाह का निमंत्रण पत्र अब अपनी मिट्टी से प्रेम दर्शाने का ही नहीं, सामाजिक जागरूकता लाने का माध्यम भी बनता जा रहा है। इन दिनों अनेक ऐसे निमंत्रण पत्र देखे जा रहे हैं जो छत्तीसगढ़ी में हैं, या फिर उनमें पर्यावरण, स्वास्थ्य आदि से संबंधित संदेश दिए गए हैं। हसदेव आंदोलन को बल देने के लिए भी निमंत्रण पत्रों का उपयोग हो रहा है। ऐसा ही एक कार्ड सीमा और अमित के विवाह का सामने आया है। निमंत्रण पत्र के शीर्ष में हसदेव बचाओ आंदोलन का लोगो है और पीछे आधे कार्ड पर आंदोलन की तस्वीर है। जितने हाथों में यह कार्ड पहुंचेगा, वे हसदेव के लिए किए जा रहे संघर्ष के महत्व को समझेंगे।
गलत दवा खरीद ली तो क्या?
कोविड महामारी की जब दहशत थी तब रेमेडसिविर का ऐसा संकट आया कि देशभर में कालाबाजारी, मुनाफाखोरी होने लगी। इस पर रोक लगाने के लिए जगह-जगह छापामारी भी की गई। कई लोग गिरफ्तार किए गए जिनमें डॉक्टर भी शामिल थे। बाद में पता चला कि रेमडेसिविर कोविड से निपटने में कारगर है ही नहीं। कुछ ऐसा ही टेबलेट डोला के बारे में कहा गया। अब इन दोनों दवाओं की कोई पूछ-परख नहीं रह गई है। पर दवा कंपनियों को जितना कमाना था, कमा चुके। यह एक उदाहरण है कि अपने देश में लोग दवा के मामलों में कुछ भी प्रयोग करने के लिए तैयार हो जाते हैं, उसके दुष्प्रभाव को जाने बिना। सिर, पेट के मामूली दर्द की दवा तो किसी डॉक्टर से पूछने की जरूरत ही पड़ती। दवा दुकानों का सेल्समेन, जो प्राय: केमिस्ट नहीं होता- सिर्फ सेल्समैन होता है, जो दवा बता दे, खरीदकर लोग सेवन कर लेते हैं। ऐसे में कल अखबारों में छपे एक छोटे से विज्ञापन ने ध्यान खींच लिया। यह एबॉट इंडिया लिमिटेड की ओर से है। कंपनी हाईपो थॉयरायडिज्म में काम आने वाली टेबलेट थॉयरोनार्म बनाती है। उसने लोगों से अपील की है कि इस-इस बैच की दवा आपने यदि खरीद ली हो तो उसे वापस कर दीजिए। दवा के लेबल पर उसमें मात्रा गलती से 25 एमसीजी लिखी है, जबकि यह 88 एमसीजी की दवा है। मालूम नहीं एक कोने में छपे विज्ञापन को कितने लोगों ने पढ़ा है, और पढ़ भी लिया हो तो क्या लौटाना जरूरी समझेंगे? कुछ लोग यह समझकर खुश भी हो सकते हैं कि चलो 25 के दाम में 88 मिल गया। ([email protected])
इंतजाम पर पानी फिरा
एक दौर था जब भाजपा में दिवंगत कुशाभाऊ ठाकरे, और गोविंद सारंग जैसे नेता तपती गर्मी में छोटे कार्यकर्ताओं के घर बैठक करने से परहेज नहीं करते थे। मगर वो जमाना गुजर चुका है। अब तो पुराने नेता भी सर्वसुविधायुक्त जगहों पर बैठक करने की फरमाइश करने लगे हैं।
सुनते हैं कि प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने तो यहां आने से पहले ही रायपुर संभाग के प्रभारी सौरभ सिंह को किसी ठंडी जगह में बैठक रखने की सलाह दे दी। चूंकि वो रायपुर जिले की पहली बार बैठक लेने वाले थे। लिहाजा, बैठक नवा रायपुर के फाइव स्टार होटल में रखने की योजना बनाई गई। मगर होटल ज्यादा महंगा पड़ रहा था। आखिरकार जोरा के पास एक रिसॉर्ट में बैठक करने का फैसला लिया गया।
माथुर को खुश करने के लिए पदाधिकारियों ने खाने-पीने का बेहतर इंतजाम भी किया। लेकिन बैठक शुरू होने से पहले माथुर का फोन आ गया कि उनकी तबियत ठीक नहीं है, इसलिए वो नहीं आ पाएंगे। यह भी कहा कि संगठन प्रभारी अजय जामवाल, और पवन साय ही बैठक लेंगे। माथुर के नहीं आने की सूचना मिलने से पदाधिकारी परेशान हो गए। क्योंकि जिन्हें बैठक लेने की जिम्मेदारी दी गई, वो तो दो दिन पहले ही बैठक ले चुके थे। स्वाभाविक है कि बैठक में कोई नई बात नहीं आनी थी। फिर भी पदाधिकारी मन मसोस कर जामवाल और पवन साय को सुनते रहे। जिले के पदाधिकारियों के लिए यह बैठक काफी महंगा पड़ गया।
पहले अंडा या मुर्गी?
धरती पर पहले अंडा आया या फिर मुर्गी, इस पर बहस होती रहती है। कुछ इसी अंदाज में मंत्रालय में प्रस्तावित फेरबदल पर चर्चा हो रही है। सीएम भूपेश बघेल कलेक्टर-एसपी कॉन्फ्रेंस लेने वाले हैं। प्रशासनिक हल्कों में इस बात पर बहस हो रही है कि पहले कॉन्फ्रेंस होगा या फेरबदल। इस पर जानकारों की राय बंटी हुई है।
कुछ का मानना है कि कॉन्फ्रेंस के बाद ही फेरबदल होगा। मगर कई मानते हैं कि फेरबदल के बाद ही कॉन्फ्रेंस होगा। क्योंकि कॉन्फ्रेंस से पहले फेरबदल का कोई औचित्य नहीं है। क्योंकि जिन्हें बदलना है उन्हें नए निर्देश देने का कोई फायदा नहीं है। खैर, इस बार फेरबदल में एक दर्जन कलेक्टर इधर से उधर हो सकते हैं। कुछ जूनियर अफसरों को कलेक्टरी का मौका मिल सकता है। इसी तरह जिलों में एसपी के बदलाव भी बड़े पैमाने पर होंगे। कई अफसर छुट्टी में है बावजूद इसके सूची लंबी होने के संकेत हैं। देखना है आगे क्या होता है।
परेड निकालने का साइड इफेक्ट
शातिर बदमाशों को जब पुलिस गिरफ्तार करती है तो सीधे हवालात और कोर्ट नहीं ले जाती। वह उनकी अकड़ ढीली करने और लोगों मे दहशत कम करने का उपाय करती है। इसका सबसे चालू तरीका है हथकड़ी लगाकर मार्केट से जुलूस निकालना। कभी-कभी मुंडन भी कर दिया जाता है। पुलिस मानती है कि इससे जनता का लॉ एंड ऑर्डर के प्रति भरोसा बढ़ता है।
धमतरी में बीते शुक्रवार को एक ऑटो चालक की पांच लोगों ने दिनदहाड़े बीच चौराहे पर चाकू मारकर हत्या कर दी थी। सभी को सोमवार को पुलिस ने पकड़ लिया। इसके बाद इनका शहर में पैदल मार्च निकाला गया। इससे गिरफ्तारी की खबर शहर में सबको एक साथ मिल गई। मृतक के वार्ड वालों को भी और उसके दोस्तों, रिश्तेदारों को भी, जो बदले की आग में सुलस रहे थे। जुलूस के चलते इन लोगों को एक जगह जल्दी इकट्ठा होने में मदद मिली। वैसे भी लोग आजकल न्यूज चैनल और सोशल मीडिया देखकर भीड़ हत्या और ऑन द स्पॉट फैसला करने में आनंद लेने लगे हैं। इस मामले में भीड़ को कोतवाली थाने में इकट्ठा होने में देर नहीं लगी। वे आरोपियों को अपने हवाले करने की मांग करते हुए थाने के भीतर घुसने लगे। पुलिस ने समझाया कि कानून के अनुसार सब होगा, अदालत सजा देगी। मगर भीड़ पीछे हटने को राजी नहीं थी। आखिरकार पुलिस को लात-घूंसे चलाने पड़े और लाठियां भी भांजनी पड़ी। तब जाकर परिसर खाली हुआ। पुलिस को कहीं-कहीं यह भी देखना जरूरी है कि बदमाशों की परेड निकालने के बाद आम लोगों में अपराधी का खौफ खत्म हो वहां तक ठीक है, पुलिस और कानून का खौफ न रहे तो नई समस्या खड़ी हो सकती है।
राहुल के खिलाफ यूथ कांग्रेस के नारे
मरवाही विधानसभा उप-चुनाव में कांग्रेस की ऐतिहासिक जीत इस मायने में बड़ी थी क्योंकि यह स्व. अजीत जोगी का गढ़ था और भाजपा प्रत्याशी जनता कांग्रेस के समर्थन के बावजूद हार गए थे। अब पांच छह माह बाद फिर राज्य की बाकी सीटों की तरह यहां भी विधानसभा चुनाव होना है। ऐसे में यहां के संगठन में पदाधिकारियों के बीच जमकर गुटबाजी फैली है। लगता है कि राजधानी के नेता भी ऐसे ही चलने देना चाहते हैं। इसका एक उदाहरण तब मिला था जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रायपुर में हुई संगठन की बैठक में सार्वजनिक रूप से नाराजगी जताई थी कि मेरी अनुशंसा के बावजूद जिला कांग्रेस अध्यक्ष मनोज गुप्ता को पद से नहीं हटाया गया। यह करीब डेढ़ साल पुरानी बात है। गुप्ता अपने पद पर अब तक जमे हुए हैं। जनवरी माह में दो ब्लॉक अध्यक्षों ने इसी जिला अध्यक्ष के खिलाफ प्रदेश संगठन से शिकायत की थी। उनका आरोप था कि कांग्रेस भवन के लिए लाखों रुपये का चंदा लिया गया है, पर उसे कहां खर्च किया जा रहा है किसी को नहीं मालूम। भवन का काम तो 20 प्रतिशत भी नहीं हुआ है।
ताजा मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पुतला फूंके जाने के दौराना नारेबाजी का है। युवक कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ताओं ने राहुल गांधी की सदस्यता छीने जाने के विरोध में कोटमी में प्रधानमंत्री का पुतला दहन किया था। कोटमी में ही यहां के जिला युवक कांग्रेस अध्यक्ष रहते हैं, पर उनको इस कार्यक्रम को कोई खबर ही नहीं थी। प्रदेश इकाई से भी इस बारे में कोई निर्देश नहीं आया था। पुतला फूंक दिया। इसके बाद उन्होंने राहुल गांधी मुर्दाबाद के नारे भी लगा दिए। पता चला कि ये नारे जान-बूझकर लगाए गए ताकि रिपोर्ट ऊपर जाए और कुछ विरोधियों पर कार्रवाई हो। अब जब यह पता चल गया कि जिला महासचिव ने नारे लगवाए तो उनको निलंबित कर दिया गया। हालांकि नारे लगाने वाले कई लोग थे, पर बाकी को बचा लिया गया है। संगठन के जमीनी स्तर पर कांग्रेस की शायद यही नियति है जो सत्ता में रहने पर और उभर जाती है।
पृथ्वी को बचाने के लिए...
कुछ दिन पहले विश्व पृथ्वी दिवस मनाया गया। पृथ्वी बचाने के लिए जरूरी है जंगलों का बचा होना। छत्तीसगढ़ राज्य की बड़ी आबादी जंगल पर ही आश्रित है। फरवरी माह से जून तक जंगलों में आग लगी रहती है। आग पर काबू पाना कठिन काम है। अब इस काम में महिलाएं भी प्रोफेशनल तरीके से आगे आ गई हैं। यह तस्वीर बिलासपुर जिले के बेलतरा फारेस्ट सर्किल की है, जहां जय शारदा महिला स्व सहायता समूह की महिलाएं भारी फ्लायर ब्लोअर मशीनों को पीठ पर लादकर आग पर नियंत्रण के लिए निकली हुई हैं। अफसरों ने कहा कि इन महिलाओं ने खुद ही संपर्क कर आग बुझाने में मदद करने का प्रस्ताव दिया था। हमने उन्हें थोड़ा प्रशिक्षण दिया और वे अब बड़ी गंभीरता में अपने काम से जुट गई हैं।
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पार्टी में दावेदारों की होड़
विधानसभा चुनाव में छह महीने बाकी हैं। लेकिन भाजपा के अंदरखाने में प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया पर चर्चा चल रही है। कई नेता तो प्रत्याशी चयन में गुजरात फार्मूला लागू होने के हल्ला मात्र से घबराए हुए हैं, और प्रतिद्वंदी को किनारे लगाने की कोशिश कर रहे हैं। टिकट वितरण में गुजरात फार्मूला लागू हुआ, तो तमाम हारे हुए, और कई दिग्गज नेताओं की टिकट खतरे में पड़ सकती है।
गुजरात फार्मूले के चलते कई नए नेता सक्रिय हो गए हैं, और खुद को विधानसभा के दावेदार के रूप में प्रोजेक्ट करने में लग गए हैं। ऐसे ही पार्टी के जिला मीडिया प्रभारी ने तो एक विधानसभा क्षेत्र का कथित तौर पर सर्वे कराया, और फिर पार्टी के शीर्षस्थ नेता की जगह वहां के जिला अध्यक्ष को बेहतर प्रत्याशी बता दिया। यही नहीं, खुद को भी बेहतर दावेदारों के पैनल में रखा है। मीडिया प्रभारी के सर्वे की जानकारी पार्टी के बड़े नेताओं तक पहुंची है। इसके बाद मीडिया प्रभारी को हटाने की मांग होने लगी है।
दूसरी तरफ, नारायणपुर के भाजयुमो अध्यक्ष जैकी कश्यप को अचानक हटाए जाने की खूब चर्चा हो रही है। जैकी नारायणपुर नगर पालिका में नेता प्रतिपक्ष भी हैं। उन्हें काफी सक्रिय नेता माना जाता है। उन्हें पूर्व मंत्री और टिकट के प्रबल दावेदार केदार कश्यप के विकल्प के रूप में भी देखा जा रहा है। और चर्चा है कि इसी वजह से उन्हें पद से हटा भी दिया गया। चाहे कुछ भी हो, विशेषकर भाजपा में हर विधानसभा से दर्जनभर दावेदारों के नाम सामने आ रहे हैं, और सभी गुजरात फार्मूले के चलते उम्मीद से है।
गुजरात मॉडल से यूपी मॉडल तक
दस साल पहले जब भावी प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी की छवि गढऩे का काम भाजपा ने शुरू किया था तो पार्टी की अधिकारिक वेबसाइट बीजेपी डॉट ओरआरजी में गुजरात मॉडल को देशभर के लिए एक आदर्श के रूप में पेश किया गया। इसका मतलब बताया गया था- भरपूर नौकरी, कम महंगाई, ज्यादा कमाई, तीव्र गति से अर्थव्यवस्था का विकास, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, दुरुस्त सुरक्षा और बेहतर जीवन। सन् 2014 में इंतजार खत्म हुआ, जब मोदी के हाथों में देश की कमान आ गई। सन् 2019 के आते-आते गुजरात मॉडल के फैक्ट और फिक्शन पर लोग सवाल उठाने लगे। पर इस बार, आतंकी हमला, शहादत, राष्ट्रवाद और ‘मैं भी चौकीदार’ का डंका ऐसा बजा कि सारे मुद्दे हवा हो गए। लोग गुजरात मॉडल को ही नहीं भूल गए बल्कि नोटबंदी, जीएसटी, राफेल आदि का शोर भी काम नहीं आया। भाजपा ने विधानसभा चुनावों में भी मोदी-शाह के इसी जादू को अब तक आजमाया है। इस दौरान, बाद में तोडऩे-जोडऩे से बनी सरकारों की बात नहीं करें तो हिंदी पट्टी के केवल गुजरात और उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनावों में एकतरफा जीत मिली। पश्चिम बंगाल, बिहार, राजस्थान, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, ओडिशा, झारखंड, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र के नतीजे भाजपा की उम्मीद के मुताबिक नहीं आए। हालांकि रणनीति तैयार करने में अमित शाह ने और चुनाव प्रचार में नरेंद्र मोदी ने कोई कसर बाकी नहीं रखी थी। सन् 2018 में छ्त्तीसगढ़ में भाजपा का प्रदर्शन ऐतिहासिक रूप से कमजोर रहा। इसीलिए उसने इस बार किसी को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट नहीं किया है। अब उन्हें 2023 के चुनाव में पहले से ज्यादा बड़े असर वाले स्टार प्रचारक तथा नायकों की जरूरत है। क्योंकि, बीजेपी के सामने सवाल है कि सन् 2018 में मोदी-शाह ने यहां भी धुआंधार चुनावी सभाएं ली थीं, तो क्या 2023 में इन्हीं नायकों से बेड़ा पार लग जाएगी?
पिछले दो दिनों से प्रदेश की राजनीति प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव और उसके बाद दूसरे भाजपा नेताओं के उस बयान को लेकर गरमाई हुई है कि उनकी सरकार आएगी तो भू-माफिया और अपराधियों पर बुलडोजर चलाया जाएगा। बुलडोजर का नाम लेते ही सबके जेहन में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम आता है। जो लोग बुलडोजर ही नहीं, एनकाउंटर और आक्रामक हिंदुत्व भी की पैरवी करते हैं उनके लिए वे ऐसे नायक की तरह हैं, जिसके हाथ में अगर देश की बागडोर आ गई तो वे भारत को हिंदू राष्ट्र के रूप में स्थापित कर देंगे।
मध्यप्रदेश ने यूपी के बुलडोजर कल्चर को अपना लिया है। यूपी में एफआईआर दर्ज होने के बाद, अदालत से अपराधी घोषित करने से पहले ही बुलडोजर चलाए जा रहे हैं, न्यायिक प्रक्रिया के बिना ही दर्जनों अपराधी मौत के घाट उतार दिए गए हैं। बेरोजगारी, महंगाई, डूबते व्यापार से चिंताग्रस्त लोगों के बीच ऐसी खबरें सनसनी और उन्माद फैलाती है। बस्तर और बेमेतरा में हाल ही में हुए तनाव की घटनाएं भी इसी दिशा की ओर छत्तीसगढ़ को ले जाने की कोशिश है। हो सकता है लक्ष्य केवल 2023 के चुनाव का नहीं, 2024 का भी हो।
विधायक पर हमले के बाद सफाई
राज्य के सबसे दक्षिण के जिले बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर को माओवादियों के आखिरी गढ़ के रूप में माना जा सकता है। देश के बाकी हिस्सों में यह जरूर सिमटती गई है लेकिन यहां अब भी इनकी जीवंत मौजूदगी है। बीजापुर विधायक विक्रम मंडावी के काफिले पर बीते दिनों हुआ हमला इसका सबूत देता है। बस्तर में टीसीओसी, एक सामरिक जवाबी आक्रमण अभियान है, जो मार्च से जून माह के बीच, जब जंगलों में हरियाली कम हो जाती है और दृश्यता बढ़ जाती है तब नक्सली चलाते हैं। वे अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए हमला करते हैं। यह संयोग ही था कि विक्रम मंडावी के काफिले को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। अब इधर नक्सलियों की ओर से सफाई दी गई है कि विक्रम मंडावी उनके टारगेट में नहीं थे। यह उनके टीसीओसी अभियान का एक हिस्सा था। यानि सुरक्षा बलों की कार्रवाई के विरोध में वे केवल अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। नक्सली बस्तर में अपनी स्वीकार्यता बनाये रखने के लिए कई मौकों पर इस तरह की सफाई दे चुके हैं। विक्रम मंडावी के काफिले पर हुए हमले के बाद भी यही किया गया है। हमले के बाद अगले दिन विक्रम मंडावी क्रिकेट खेलते नजर आए थे। इस पर भाजपा नेता पूर्व वन मंत्री महेश गागड़ा का बयान आया कि यह हमला सस्ती लोकप्रियता के लिए विधायक की ओर से बनाई गई रणनीति थी। वैसे 9 अप्रैल 2019 इसी अवधि मार्च-जून के बीच की एक तारीख है। इस दिन दंतेवाड़ा के तत्कालीन भाजपा विधायक भीमा मंडावी नक्सली हमले में मारे गए थे। बीते दो तीन महीनों में भाजपा के चार स्थानीय नेताओं की नक्सलियों ने हत्या कर दी। एक कांग्रेस कार्यकर्ता की भी मार डाला गया। नक्सली अपनी स्वीकार्यता बनाए रखने के लिए भले ही विक्रम मंडावी के मामले में सफाई दे लेकिन इस पर यकीन करना मुश्किल है कि वे हमला करने के बावजूद यह चाहते थे कि कोई नुकसान न हो।
रायफल और बांसुरी एक साथ
अंबिकापुर में पदस्थ छत्तीसगढ़ पुलिस में प्रधान आरक्षक रामसाय की विभाग में ही नहीं, बल्कि शहर में भी अलग पहचान बन गई है। कोविड महामारी के समय जब पुलिस कर्मी चौबीसों घंटे काम करते थे और लोग मौतों और अस्पतालों की दौड़ में हताश-निराश हो रहे थे, तब रामसाय अपनी ड्यूटी के दौरान बांसुरी की धुन से लोगों को सुकून देते थे। अब यह उनकी दिनचर्या में शामिल हो गया है। ड्यूटी के दौरान जब भी आराम का समय मिलता है वे बांसुरी लेकर शास्त्रीय व फिल्मी गीतों पर बांसुरी बजाते हैं। सोशल मीडिया पर इनका वीडियो वायरल हो रहा है। अफसर इसे रोक टोक नहीं रहे हैं क्योंकि इसका नतीजा अच्छा ही निकल रहा है। बांसुरी की मिठास से सहकर्मियों तक सकारात्मकता पहुंचती है। रामसाय सशस्त्र बल में हैं। ए के 47 लेकर चलना उनकी ड्यूटी का हिस्सा है पर बांसुरी उनके पास हमेशा होती है। ([email protected])
थोक में लिया पैसा तो लौटा दो...
कभी पुलिस, तो कभी बैंक कर्मचारियों पर हमला करके विवादों से घिरते रहे रामानुजगंज के विधायक बृहस्पत सिंह करें तो क्या करें आखिर ! रोज उनके पास फरियादी ऐसी शिकायत ले आते हैं कि गुस्सा आ ही जाता है। पर, अब सोचने लगे हैं कि ज्यादा बदनामी ठीक नहीं। इसीलिए हाल के एक वाकये में उन्होंने नरमी से काम लिया। यहां तक कि छोटी-मोटी रिश्वत लेने पर ऐतराज नहीं होने की बात भी कह दी।
दरअसल, इलाके के महावीरगंज की एक महिला का पति घर में घुसकर छेड़छाड़ के मामले में एक साल से जेल में बंद है। विधायक ने उसकी शिकायत सुनी फिर विजयनगर चौकी के प्रभारी को लगाया फोन। कहा- ये जो कृष्णा रवि के माध्यम से जो तुम लोगों ने 50 हजार रुपये लिए हैं, उसको वापस करो। ये पैसा उसी ने रख लिया है तो उसे बुलाकर वापस कराओ। चालान पेश हो चुका है। हाईकोर्ट का मामला है, ये लोग अपनी जमानत कराते रहेंगे। देखो यार... थोड़ा बहुत रिश्वत लेते हो, कोई शिकायत नहीं है। लेकिन इसका पति जेल में है, उसका 50 हजार लेकर दौड़ाओगे? इसको वापस कराओ। नहीं तो ऊपर अधिकारी में शिकायत होगी, रिपोर्ट भी दर्ज होगी। आप लोगों को भी परेशानी होगी। दलाल पैसा नहीं लौटाता है तो महिला से शिकायत लो, एफआईआर करो।
विधायक ने फोन पर आगे कहा- हम सच बोलने पर विवादित हो जाते हैं। अगर हम इस मामले को उठाएंगे तो कल को फिर यही बात उठेगा कि विधायक अधिकारी से रोज लड़ाई करता है। आप लोग दो चार पांच हजार से नहाते हो, नहा लो। जो करना है कर लो, लेकिन थोक में जो पैसा लिए हो उसको वापस कर दो यार..। यह भी मालूम हुआ है कि महिला ने 50 हजार रुपये अपनी भैंस बेचकर जुटाए थे। जिस व्यक्ति का नाम आ रहा है उसे पूर्व मंत्री रामविचार नेताम का करीबी कहा जा रहा है।
रायपुर से निकले स्वामीजी
हेमचंद यादव विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित रामकृष्ण मठ राजकोट के प्रमुख स्वामी निखिलेश्वरानंद की इन दिनों खूब चर्चा हो रही है। दुनिया के अलग-अलग देशों में जीवन प्रबंध पर उनका व्याख्यान काफी मशहूर रहा। स्वामीजी रायपुर से सीधा नाता रहा है। वो सिविल लाइन रहवासी दिवंगत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नागरदास बावरिया के पुत्र हैं। उनका सन्यास लेने से पूर्व नाम प्रबोध बावरिया था। दो भाई, और दो बहनों में सबसे बड़े प्रबोध ने यहां गुजराती स्कूल से स्कूल की पढ़ाई पूरा करने के बाद रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से केमिकल इंजीनियरिंग में बीई की डिग्री हासिल की। वो गोल्ड मेडलिस्ट रहे।
प्रबोध ने मद्रास आईआईटी से इंड्रस्टीयल इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। इसके बाद उन्होंने देश की शीर्ष कंस्लटेंसी कंपनी में सलाहकार के रूप में सेवाएं दी। प्रबोध का रुझान शुरू से ही अध्यात्म की ओर रहा। बाद में वो बेलूर मठ के संपर्क में रहे, और 1976 में रामकृष्ण मिशन में दीक्षा लेकर सन्यास ग्रहण किया। उनका नामकरण स्वामी निखिश्वरानंद किया गया। स्वामी निखिलेश्वरानंद वर्तमान में मिशन के राजकोट मठ के प्रमुख है। वे मिशन के कार्यों को आगे बढ़ा रहे हैं।
तनाव खत्म नहीं
बिरनपुर घटना के बाद बेमेतरा, और आसपास के इलाकों में स्थिति नियंत्रण में है। धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य हो रहा है, लेकिन दो अलग-अलग घटना में तीन लोगों की मौत के बाद पुलिस ने कुछ आरोपियों को गिरफ्तार भी कर लिया है। मगर उन लोगों के खिलाफ अब तक कुछ कार्रवाई नहीं हुई, जिन्होंने माहौल को बिगाडऩे का काम किया। चर्चा है कि एक जनप्रतिनिधि ने तो खुले तौर पर बदला लेने की बात कह दी थी। इसके बाद माहौल और बिगड़ गया। घटना, और फिर बाद की परिस्थितियों पर सरकार के अंदरखाने में बारीक समीक्षा हो रही है। देर सबेर कुछ और लोगों पर कानूनी शिकंजा कस सकता है।
बिना तेल ही लाजवाब
बस्तर के आदिवासी समुदाय के पारम्परिक भोजन को खाने का आनंद कुछ और है। इस ट्राइबल मेन्यू में है चोपड़ा चटनी, कूरक साग, भेड़ा जीरा चटनी, बेसी गुड़ा चटनी, कोरआउग साग और चावल। खास बात यह है कि इसमें से किसी भी व्यंजन में तेल नहीं। फिर भी लाजवाब।
वाल पेंटिंग पर रिवर्स अटैक
महासमुंद की इस पानी टंकी में जो बड़े बड़े अक्षरों में दिख रहा है वह विधायक का नाम है- विनोद सेवनलाल चंद्राकर। साथ में पंजा निशान। पर यह अब इस स्थिति में नहीं है। पूर्व विधायक, भाजपा नेता विमल चोपड़ा और कार्यकर्ताओं ने टंकी पर चढक़र कालिख पोती और नाम मिटा दिया। टंकी के एक हिस्से में जल जीवन मिशन का प्रचार था, पर विधायक का नाम बड़े-बड़े अक्षरों में होने से 35 फीट नीचे सिर्फ वही साफ-साफ दिखाई दे रहा था। विधायक का कहना है कि केंद्र सरकार की राशि से बनी टंकी सरकारी संपत्ति है, जिसमें कांग्रेस विधायक अपना और अपनी पार्टी का प्रचार कर रहे हैं। जहां-जहां सरकारी दीवारों पर प्रचार दिखेगा, वे बाइक से घूम-घूम कर उनमें कालिख पोतेंगे। कुछ दिन पहले कोरिया विधायक डॉ. विनय जायसवाल के नाम को नेशनल हाईवे की पुलिया पर देखकर भी वहां के भाजपा कार्यकर्ताओं ने इसी तरह से विरोध किया था।
भाजपा ने अगले चुनावों में प्रचार के लिए वाल राइटिंग को खास टूल बनाने का फैसला लिया है। छत्तीसगढ़ में भी इसका अभियान चल रहा है। यह मानकर चलना चाहिए कि वे खुद भी सरकारी भवनों, दीवारों से बचेंगे, वरना कांग्रेसी भी हिसाब लेने उतर जाएंगे।
कर्नाटक चुनाव में ओनली अजय !
पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर प्रदेश भाजपा के अकेले नेता हैं, जिनकी कर्नाटक चुनाव में ड्यूटी लगी है। उन्हें बैंगलुरु ग्रामीण में प्रचार की जिम्मेदारी दी गई है। कांग्रेस से तो सीएम भूपेश बघेल स्टार प्रचारक तो हैं ही। उनके मुकाबले भाजपा ने अब अजय को आगे किया है। हालांकि अजय सिर्फ बैंगलुरु ग्रामीण तक ही सीमित रहेंगे।
बैंगलुरु के रिसॉर्ट में रहकर अजय पार्टी प्रत्याशी को जिताने की रणनीति तैयार करेंगे। वो चुनाव प्रचार खत्म होने तक यानी 6 मई तक वहां रहेंगे। पार्टी के भीतर अजय को महत्व दिए जाने की खूब चर्चा हो रही है। जबकि पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह, नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल, बृजमोहन अग्रवाल, और धरमलाल कौशिक को प्रचार के लिए नहीं बुलाया गया है।
हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में कुछ महीने बाकी रह गए हैं। ऐसे में बाकी स्थानीय नेताओं को कर्नाटक इसलिए नहीं भेजा जा रहा है, कि वो यहां रहकर चुनाव तैयारियों में लगे रहे। चाहे कुछ भी हो, अजय हाईकमान की नजर में हैं।
कर्नाटक और सट्टा बाजार
कर्नाटक में जीत हार को लेकर सट्टे का भाव खुल गया है। सटोरियों का अनुमान है कि कर्नाटक में स्पष्ट रूप से कांग्रेस को बहुमत मिलेगा। सट्टा बाजार में कांग्रेस को 118 से 121 सीट मिलने का दावा किया गया है। जबकि भाजपा को अधिकतम 75 सीटें मिलने की बात कही गई है। इसके अलावा जेडीएस को 21 से 25 सीट मिलने का अनुमान लगाया गया है। यानी भाजपा की सरकार बनने पर चार गुना रकम देने के लिए तैयार हैं। वैसे तो कुछ ओपिनियन पोल में भी कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बनने का दावा किया गया है, लेकिन जानकार लोग सट्टा बाजार को ज्यादा विश्वसनीय मानते हैं। चुनाव नतीजे 12 मई को घोषित किए जाएंगे। तब तक हार जीत को लेकर बहस चलती रहेगी।
दुष्कर्म पीडि़तों का परास्त हो जाना...
नाबालिगों के साथ होने वाले दुष्कर्म और छेड़छाड़ के मामले बेहद नाजुक होते हैं। ठीक तरह से विवेचना हो तो ऐसे मामलों में आरोपी को उम्र कैद और कभी-कभी फांसी तक की सजा हो सकती है। पुलिस ने यदि पीडि़त लडक़ी और परिजनों का जख्म महसूस किया हो तब तो वह प्रलोभन में नहीं आती वरना ऐसे मामले उनके लिए वसूली का सुनहरा मौका बन जाता है। हाल की दो घटनाएं झकझोरने वाली हैं। बिलासपुर जिले के चकरभाठा थाने की एक विवाहिता ने शादी के कुछ महीने बाद ही आत्महत्या कर ली। वह चार माह की गर्भवती भी थी। यह सामान्य विवाह नहीं था। उसकी शादी जिस युवक से हुई वह दूर का रिश्तेदार था। उसने तब लडक़ी से रेप किया जब वह नाबालिग थी। जैसा परिजनों ने बताया है, सरपंच और पुलिस ने बेटी और आरोपी युवक के भविष्य और कोर्ट कचहरी के नाम पर समझौता करा दिया। साथ ही रास्ता सुझाया गया कि आरोपी लडक़ा, लडक़ी से शादी करेगा। लडक़े ने शादी की लेकिन वह शादी के बाद मारपीट करने लगा क्योंकि वह किसी और के चक्कर में भी फंसा था। बेटी ने खुदकुशी के दो दिन पहले अपने मायके में फोन करके रोते-रोते अपना दर्द बयान किया था। लडक़ी ने अपनी जान दे दी। इसके बाद भी पुलिस इस वजह से पति के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही थी कि लडक़ी ने कोई सुसाइड नोट नहीं छोड़ा, या मरने से पहले प्रताडऩा की कोई शिकायत नहीं की थी। जबकि, परिजन हत्या का आरोप लगा रहे थे। एक महिला सामाजिक कार्यकर्ता की दौड़-धूप के बाद आखिरकार एसपी के निर्देश पर आरोपी पति को गिरफ्तार कर लिया गया। उस पर सिर्फ आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध दर्ज किया गया, जबकि विवाह के बाद प्रताडि़त लडक़ी के साथ तो नाबालिग अवस्था में रेप का शिकार भी हुई थी। आत्महत्या की नौबत आ गई तो शादी के उस समझौते का मतलब ही नहीं रह जाता। दूसरी घटना सूरजपुर जिले के रामानुजगंज की है। जहां 8वीं की छात्रा ने आत्महत्या कर ली। उसके साथ बिजली सुधारने वाले परिचित शादीशुदा आरोपी ने रेप किया। पुलिस ने कई दिन तक कोई कार्रवाई नहीं की। पुलिस यह सफाई दे रही है कि जान-पहचान के युवक के खिलाफ पीडि़ता के पिता ने सिर्फ चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराई। जबकि दूसरी ओर परिजनों का कहना है कि पीडि़त बच्ची और प्रत्यक्षदर्शी छोटे भाई को आरोपी और उसकी पत्नी ने कुछ रुपयों का प्रलोभन देकर मुंह बंद रखने कहा। नाबालिग से दुष्कर्म की शिकायत होने के बावजूद आरोपी खुले में घूम रहा था और पीडि़ता को घर से बाहर निकलते ही जान से मारने की धमकी दे रहा था। दहशत में छात्रा ने आत्महत्या कर ली। जान से मारने की धमकी में वजन महसूस किया होगा, क्योंकि एक साल पहले ही सूरजपुर में ऐसी घटना हो चुकी है। नाबालिग ने जब बलात्कार के बाद आरोपी के खिलाफ पुलिस में जाने की धमकी दी तो आरोपी ने उसकी हत्या कर दी थी।
बालकों के खिलाफ लैंगिक अपराधों को लेकर कानून बड़े सख्त हैं। पुलिस दावा करती है कि हर जिले में महिला रक्षकों की टीम है जो कॉल करते ही पीडि़त के पास पहुंचेगी। महिला थाना तो है ही, काउंसलिंग की प्रक्रिया भी अनिवार्य रूप से कराने का नियम है। पर बिल्हा और सूरजपुर जैसे मामले हर महीने-दो महीने में आ ही जाते हैं। छत्तीसगढ़ में बाल संरक्षण आयोग भी है, सुना नहीं गया कि कभी ऐसे मामलों के उजागर होने पर उसने अपनी ओर से कोई सुनवाई शुरू की हो।
आप अभी मैदान में डटी रहेगी...
बदले राजनीतिक हालत में क्या भाजपा के खिलाफ विपक्ष की एकजुटता का कोई असर छत्तीसगढ़, विधानसभा चुनाव में भी दिखाई देगा? इस बात का संकेत दिखाई दे रहा था जब नीतिश कुमार से मुलाकात के दौरान अरविंद केजरीवाल ने विपक्ष की एकजुटता पर सहमति जताई थी। आम आदमी पार्टी अब तक अकेले ही मैदान में उतरते रही। उसका राजनितिक उभार कांग्रेस विरोध से ही हुआ है। कांग्रेस को दिल्ली में हराकर ही वह पहली बार ऐतिहासिक जीत के साथ सरकार बना सकी। विपक्षी एकता से मतलब है कि कांग्रेस का साथ मिलकर काम करना। अकेले सारी लड़ाई लडऩे का मकसद लेकर चलने वाली आप पार्टी के रूख में लचीलापन अपने मंत्रियों की गिरफ्तारी और खुद केजरीवाल पर मंडरा रहे संकट के बाद आया है। कांग्रेस ने भी विपक्षी एकता की मुहिम में आप को लेकर अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाई थी, पर अब वह समान विचारों के साथ सभी दलों को एकजुट करने की बात कहने लगी है, जिसमें आप भी शामिल है। इन सभी विपक्षी दलों का लक्ष्य सन् 2024 में मोदी को केंद्र की सत्ता से बाहर करना है, पर उससे पहले होने वाले चुनावों में किसका क्या रुख रहेगा? छत्तीसगढ़ में दो साल से आम आदमी पार्टी मेहनत कर रही है। ब्लॉक व पंचायत स्तर पर इसके संगठन तैयार हो चुके हैं। प्रशिक्षण के कार्यक्रम चल रहे हैं। प्रदेश की कांग्रेस सरकार के खिलाफ कई आंदोलन वह कर चुकी। ऐसे में यह उम्मीद करना कि यहां किसी समझौते के रास्ते पर बात करेगी, गलत होगा। वह भी तब जब उसे हाल में राष्ट्रीय दल का दर्जा मिल गया हो। छ्त्तीसगढ़ के निवासी आप के राज्यसभा सदस्य का गोवा में कल दिया गया यह बयान महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रीय मुद्दों पर उनकी पार्टी विपक्ष के साथ है, लेकिन चुनाव मैदान में वह अकेले ही उतरेगी। इसका अर्थ यह भी है कि लोकसभा चुनाव में भी आप ने साझे उम्मीदवारी की किसी योजना के बारे में विचार नहीं किया है।
और इस आम की खास हिफाजत..
यूं तो आम के बाग-बगीचों की रखवाली करने माली होते ही हैं, पर इस आम को खास सुरक्षा मिली हुई है, बिल्कुल किसी वीवीआईपी नेता की तरह। एक पत्थर पड़ा और मधुमक्खियों का झुंड पत्थर फेंकने वाले पर टूट पड़ेगा। यह आम पूरी तरह पक जाने के बाद अपने आप टूटकर गिरेगा, तभी खाने को मिल सकता है।
सीएम के सामने भी झूठी शिकायतें !
सीएम भूपेश बघेल के भेंट-मुलाकात का कार्यक्रम अंतिम चरण में है। सीएम करीब 70 से अधिक विधानसभाओं में लोगों से मिल चुके हैं। उनकी समस्याओं का निराकरण कर चुके हैं। कई बार राजनीतिक कारणों से शिकवा-शिकायतेें भी होती रही हैं, लेकिन सीएम इतने अलर्ट रहते हैं कि तुरंत शिकायतों की पड़ताल करवा देते हैं। झूठी शिकायत पर शिकायतकर्ता को लज्जित भी होना पड़ा है।
रायपुर पश्चिम में भेंट-मुलाकात कार्यक्रम में एक महिला ने राशन कार्ड नहीं बनने की शिकायत कर दी। सीएम ने स्थानीय विधायक विकास उपाध्याय की तरफ देखा, और फिर तुरंत फूड अफसरों से जांच करने के लिए कहा। थोड़ी देर बाद सच्चाई सामने भी आ गई। महिला का न सिर्फ राशन कार्ड बना था, बल्कि राशन भी ले रही थी।
कुछ इसी तरह की शिकायत बेमेतरा में भी हुई थी। तब एक व्यक्ति ने कह दिया था कि उनके यहां 10 हजार से अधिक बिजली बिल आए हैं। शिकायतकर्ता को तुरंत जांच होने की उम्मीद नहीं थी। सीएम ने तुरंत बिजली अफसरों को शिकायतकर्ता के घर दौड़ाया, और पुराने बिजली बिल भी मंगवाए। यह साफ हुआ कि दो साल से शिकायतकर्ता ने बिजली बिल ही नहीं पटाए थे।
रायपुर पश्चिम के भेंट-मुलाकात कार्यक्रम से पहले सीएम उस वक्त चकित रह गए, जब एक-एक कर 61 समाज के प्रतिनिधि मंडलों ने उनसे मुलाकात की। वो यह जानकर खुश भी हुए कि एक ही विधानसभा में इतनी बड़ी संख्या में अलग-अलग समाज के लोग रहते हैं। विशेषकर रायपुर पश्चिम कुछ हद तक भिलाई की तरह है जिसे मिनी भारत कहा जाता है। खैर, सीएम ने उदारतापूर्वक सभी को सामाजिक भवन बनाने के लिए 25 लाख तक आर्थिक मदद भी दी।
आबकारी में हडक़ंप
आबकारी कारोबार में कथित तौर पर मनी लॉन्ड्रिंग की ईडी पड़ताल कर रही है। कारोबारियों, और अफसरों के यहां छापे डाले गए, लेकिन किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। बताते हैं कि रोजमर्रा की पूछताछ से आबकारी अफसर-कर्मी इतने हलाकान हो चुके हैं कि विभाग के सहायक आयुक्त से लेकर निरीक्षक तक के करीब 25 फीसदी लोग छुट्टी पर चले गए।
चर्चा तो यह भी है कि ईडी ने आबकारी विभाग से जुड़ी प्लेसमेंट एजेंसी, कारोबारियों पर शिकंजा कसा, तो काफी कुछ बाहर निकल गया। हल्ला तो यह भी है कि ईडी आने वाले दिनों में कई और बड़े लोगों को निशाने पर ले सकती है। जितनी मुंह, उतनी बातें। देखना है आगे क्या होता है।
कवच सुरक्षा का दावा हवा में
बिलासपुर रेल जोन के सिंहपुर और शहडोल स्टेशनों के बीच रेड सिग्नल को एक मालगाड़ी ओवरशूट कर गई और सामने खड़ी दूसरी मालगाड़ी से टकरा गई। इंजन में आग लग गई। पायलट को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा और दोनों ट्रेनों में सवार गार्ड और सहायक पांच चालक बुरी तरह जख्मी हो गए। टक्कर दो मालगाडिय़ों के बीच हुई। सामने यात्री ट्रेन होती तो हादसा कितना बड़ा हो सकता था, अनुमान लगाया जा सकता है।
पिछले साल 4 मार्च 2022 को रेल मंत्री अश्विनी उपाध्याय एक ट्रेन पर सवार हुए थे। सामने खड़ी दूसरी ट्रेन के जैसे ही नजदीक पहुंची वह बिना ब्रेक दबाये अपने-आप रुक गई। इसकी तस्वीरें और वीडियो रिलीज किया गया था। यह दुर्घटना रोकने की तकनीक ‘कवच’ का परीक्षण था। संसद में भी इसे मंत्री जी ने ऐतिहासिक उपलब्धि बताते हुए वक्तव्य दिया था। यह घोषणा भी की गई थी कि सर्वाधिक व्यस्त मार्गों पर कवच प्रणाली शुरू करने पर तेजी से काम किया जाएगा। रेलवे की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दिसंबर 2022 तक 1455 किलोमीटर ट्रैक पर कवच सुरक्षा प्रणाली शुरू की जा चुकी है। इनमें पूर्वोत्तर के राज्य और दिल्ली से मुंबई को जोडऩे वाले रूट शामिल हैं। कुछ दक्षिण के राज्य हैं। बिलासपुर रेलवे जोन सर्वाधिक कोयला डिस्पैच करता है। इसके चलते रेलवे की आमदनी में सबसे बड़ा योगदान भी इसी का होता है। इस खनिज संपदा का छत्तीसगढ़ के यात्री नुकसान भी उठाते हैं। जोन से गुजरने वाली ट्रेनों को जगह-जगह मालगाडिय़ों को रास्ता देने के लिए रोका जाता है। जाहिर यहां ट्रैक अधिक व्यस्त हैं, तो दुर्घटनाओं की आशंका भी ज्यादा है। इसके बावजूद जोन कवच सुरक्षा की घोषणा फिलहाल हवा में है, वरना बुधवार की सुबह हुई दुर्घटना टल जाती। कुछ दिन पहले यूपी के सुल्तानपुर में भी ऐसी ही दुर्घटना हुई थी।
सामूहिक आत्महत्या पर सवाल
जशपुर जिले के डूमराडूमर गांव में एक आदिवासी दंपती और उसके दो मासूम बच्चों को फांसी पर लटका देखकर सबसे मान लिया कि वह आत्महत्या ही है। भाजपा के दो अलग-अलग दल जांच पर गए। प्रदेश की कमेटी ने उस पर कर्ज से लदे होने व गरीबी से त्रस्त होने का आरोप लगाया। राज्यपाल को ज्ञापन भी दिया। जिले के भाजपा नेताओं ने अलग कमेटी बनाकर जांच की और पाया कि उसके पास आर्थिक संकट नहीं था। प्रशासन ने आनन-फानन रिपोर्ट बनाई ताकि उस पर कोई आंच न आए। कहा कि उसे सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा था। इन सब बयानबाजियों के बीच किसी ने तह तक जाने की कोशिश नहीं की कि आखिर आत्महत्या क्यों की गई, इसका जवाब क्यों नहीं मिल रहा है। घटना के बाद से ही राजनीतिक और प्रशासनिक घटनाक्रम इस तरह तेज हो गए कि पुलिस ने ज्यादा छानबीन करने की कोशिश नहीं की। अब इस बात पर सवाल किया जा रहा है कि क्या सचमुच यह आत्महत्या ही है। यह कहा जा रहा है कि जिस फंदे पर मृतक राजूराम लटका मिला, उसकी ऊंचाई से सिर्फ तीन इंच ऊपर था। फांसी पर लटकने के दौरान शरीर में खिंचाव चाहिए जो राजू और उसकी पत्नी दोनों के फंदे की कम ऊंचाई में मुमकिन नहीं है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दम घुटने से मौत की बात तो कही गई है पर फोरेंसिक रिपोर्ट अब भी नहीं आई है। दो दिन पहले गांव में किसी से उसका महुआ तोडऩे के नाम पर भारी विवाद हुआ था और मृतक ने ऐलान किया था कि वह अब महुआ के लिए जंगल नहीं जाएगा। राजू के पिता की 10 साल पहले हत्या हो गई थी। इसके लिए दोषी करार दिए गए लोग कुछ दिन पहले ही गांव लौटे थे। मृतक के भाई का कहना है फांसी वाले दिन वह मुझसे मिलने आया था, काफी देर तक सहज बातचीत होती रही। ऐसे में सवाल उठता है कि वह आत्महत्या क्यों करेगा। घटना के तुरंत बाद इसमें राजनीति होने लगी, जिससे पुलिस को जांच से बचने का मौका मिल गया। यदि सुसाइड भी है तो इस घटना से उपजे सवालों का जवाब पुलिस को ढूंढकर केस फाइल करने के बारे में सोचना चाहिए।
और यहां शिमला मिर्च ने बर्बाद किया
उत्पादन अधिक हो और मांग कम तो ऐसी नौबत देश के किसी भी राज्य में आ सकती है। पंजाब जिसे उन्नत खेती और प्रगतिशील किसानों के लिए जाना जाता है, ठीक उसी तरह शिमला मिर्च को सडक़ पर बिखेर रहे हैं, जैसा साल में दो चार बार अपने छत्तीसगढ़ में टमाटर बिखरा मिलता है। वहां शिमला मिर्च लोग एक रुपये किलो में भी खरीदने के लिए तैयार नहीं। वैसे रायपुर, बिलासपुर के बाजारों में शिमला मिर्च 30 से 40 रुपये किलो में बिक रहा है।
डि-लिस्टिंग रैली में ऐसे जुटी भीड़
राजधानी में 16 अप्रैल को डि-लिस्टिंग, यानि दूसरे धर्म यानि ईसाई इत्यादि अपना चुके लोगों को आदिवासियों को मिलने वाली आरक्षण सुविधा से अलग करने की मांग पर रखी गई रैली में भाजपा सामने नहीं थी। यह आयोजन जनजाति सुरक्षा मंच के बैनर पर किया गया था, जिसमें भाजपा और आरएसएस से जुड़े लोग शामिल थे। भाजपा के कई आदिवासी नेता इसमें दिखे। रैली की भीड़ देखकर यह भ्रम हो सकता है कि इसमें शामिल होने वाले सब आदिवासी समुदाय से ही थे। पर ऐसा नहीं है। रैली में बड़ी संख्या में वे लोग शामिल थे सामान्य वर्ग अथवा अनारक्षित लोगों में से हैं। इन्हें रैली में लाने ले जाने के लिए बकायदा बसों की व्यवस्था की गई थी। इसके लिए सोशल मीडिया पर अभियान भी चला। इनके एक वाट्सएप ग्रुप में अपील की गई कि रायपुर की रैली में शामिल होना चाहते हैं, उनके लिए बस खड़ी रहेगी, नाम लिखा दें, फिर वाट्सएप नंबर भी दिया गया है। मतलब, रैली में शामिल होने के लिए भाजपा और आरएसएस से जुड़े उन तबके के लोगों की भी जबरदस्त भागीदारी थी, जिन्हें आदिवासी आरक्षण से लेना देना नहीं था लेकिन ताकत दिखानी थी। यह भी गौर की बात है कि डि-लिस्टिंग पर फैसला केंद्र सरकार को लेना है, जहां भाजपा की ही सरकार है। पर रैली से संदेश यह दिया गया कि प्रदेश सरकार अन्याय कर रही है।
वाट्सएप ग्रुप की जांच कौन करे?
यह बार-बार पुष्ट हो चुका है कि सौशल मीडिया कैंपनिंग में विपक्षी दलों की कोई हैसियत नहीं। पूरे प्रदेश में सैकड़ों ऐसे वाट्सएप ग्रुप उग्र हिंदुत्व से जुड़े लोगों के बने हुए हैं जो हर दिन लाखों लोगों तक अपना संदेश पहुंचाने में सफल हैं। यह पहले से तय होने के बावजूद कि सोशल मीडिया के जरिये नफरती संदेश, विभिन्न समुदायों के बीच कटुता फैलने वाले मेसैज, वीडियो आदि प्रसारित नहीं करें, कानूनन जुर्म है। अभी छत्तीसगढ़ पुलिस ने भी चेतावनी जारी की है। पर, इन सैकड़ों में से ज्यादातर वाट्सएप ग्रुप ऐसे हैं जिनमें बिना किसी रोक-टोक के आपत्तिजनक संदेश वायरल हो रहे हैं। पर ये सब आपस का मामला है। या कह लीजिए एक बड़े परिवार का, जिसकी भनक बाहर लगती नहीं। ऐसे संदेश आपस में ही घूमते रहते हैं। कई बार कुछ उत्साही लोग अपने दोस्तों और परिवारों के ग्रुप में इनमें से कुछ वीडियो वायरल कर देते हैं तो कभी-कभी हंगामा मच जाता है। पुलिस तब जाकर कोई एक्शन लेती है जब शिकायत होती है। छत्तीसगढ़ में ही रोजाना बेमेतरा, जगदलपुर,कवर्धा आदि की घटनाओं को लेकर अनेक आपत्तिजनक पोस्ट इनमें से कई ग्रुपों में चल रहे हैं। इन दिनों अतीक अहमद और योगी आदित्यनाथ भी इनमें हॉट टॉपिक है। जो काम आने वाले 2023 और 2024 के चुनावों के लिए ये समूह कर रहे हैं, उसका कितना अधिक असर है- कांग्रेस, आम आदमी पार्टी जैसे विपक्षी दलों को अंदाजा है ही नहीं।
कांकेर में ब्रह्मास्त्र का निर्माण
गोबर के बाद जब गायों के मूत्र को भी खरीदने का फैसला छत्तीसगढ़ सरकार ने लिया तो लगा यह शायद मुमकिन नहीं, अव्यावहारिक योजना है। यह जरूर है कि लक्ष्य के मुताबिक काम नहीं हो रहा हो, पर नए काम की शुरुआत तो हुई है। यह कांकेर में बना कीटनाशक जैविक रसायन है, जिसे गोमूत्र से बनाया गया है। नाम दिया गया है- ब्रह्मास्त्र। इसके उत्पादन और बिक्री में कांकेर जिला पूरे प्रदेश में पहले नंबर पर है।
सिंहदेव के करीबियों को झटका
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के इलाके में कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान चल रही है। सिंहदेव के करीबी दो अधिवक्ता संतोष सिंह, और हेमंत तिवारी को सरकारी वकील हटाया गया, तो इसको लेकर चर्चा शुरू हो गई।
बताते हैं कि संतोष सिंह को भाजपा नेता आलोक दुबे की शिकायत पर हटाया गया। आलोक दुबे, सिंहदेव के खिलाफ काफी मुखर हैं। उन्होंने आरोप लगाया था कि संतोष सिंह ने जमीन संबंधी कई मामलों में गलत अभिमत देकर करोड़ों का वारा-न्यारा किया है। आलोक दुबे ने इसकी कलेक्टर से शिकायत की थी।
यही नहीं, हेमंत तिवारी को लेकर यह कहा गया कि वो सिंहदेव परिवार के जमीन से जुड़े एक प्रकरण पर शासन की पैरवी करने से खुद को अलग करने की गुजारिश की थी। इसके बाद सिंहदेव समर्थक दोनों सरकारी अधिवक्ताओं को हटा दिया गया है।
चर्चा तो यह भी है कि दोनों को पद मुक्त करने से पहले सिंहदेव से पूछा तक नहीं गया। अब जब दोनों अधिवक्ताओं को हटाया गया है, तो सिंहदेव समर्थक उन पर अप्रत्यक्ष रूप से कार्रवाई के रूप में देख रहे हैं। सिंहदेव ने तो अब तक कुछ नहीं कहा, लेकिन अंबिकापुर के राजनीतिक गलियारों में खूब चर्चा हो रही है।
रेरा का खेला जारी है
सरकार ने रेरा चेयरमैन, और सदस्य के लिए विज्ञापन निकाले थे। हाईकोर्ट के जस्टिस संजय के अग्रवाल की अध्यक्षता में समिति की बैठक हो भी गई। चयन समिति ने चेयरमैन के लिए हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स संजय शुक्ला, और रिटायर्ड पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) नरसिम्ह राव के नाम का पैनल सरकार को भेजा है। तकरीबन तय है कि संजय शुक्ला ही रेरा के चेयरमैन होंगे।
नई खबर यह है कि सदस्य के लिए नाम तो बुलाए थे। आधा दर्जन से अधिक नाम आए भी थे, लेकिन सदस्य की नियुक्ति की प्रक्रिया रोक दी गई है। रेरा में सदस्य के दो पद हैं। इनमें से एक पद पर धनंजय देवांगन की नियुक्ति हो चुकी है।
धनंजय को पहले अपीलेट अथॉरिटी में नियुक्त किया गया था। वहां से इस्तीफा देकर रेरा सदस्य के लिए आवेदन किया था, और वो सलेक्ट भी हो गए हैं। सरकार की मंशा साफ है कि रेरा में चेयरमैन के अलावा एक ही सदस्य रखा जाएगा। दूसरे सदस्य की फिलहाल जरूरत नहीं है। क्योंकि केसेस भी कम है। बहरहाल, रेरा चेयरमैन की नियुक्ति संभवत: इस माह के अंत में हो सकती है।
पुराना पंजीयन भी नया नहीं
नौकरी के लिए धक्के खाना तो आम बात है पर इन दिनों छत्तीसगढ़ के युवा बेरोजगारी भत्ता पाने के लिए ठोकरें खा रहे हैं। जितनी कड़ी शर्तें नौकरी के आवेदन के लिए नहीं हैं, उससे ज्यादा तो बेरोजगारी भत्ते के लिए है। मसलन, बेरोजगारी भत्ते की पात्रता केवल 35 वर्ष या उससे कम उम्र के लोगों को होगी। जबकि छत्तीसगढ़ के स्थानीय निवासी अलग-अलग वर्गों में 40 वर्ष तक नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं। महिलाओं को 5 साल की और छूट है। आवेदन करने वाले युवाओं का रोजगार कार्यालय में दो साल का जीवित पंजीयन होना जरूरी है। यहां पर जीवित शब्द पर ध्यान देना जरूरी है। रोजगार पंजीयन एक बार हो जाने के बाद उसका साल दर साल नवीनीकरण भी कराना होता है। कई युवा तीन चार साल या उससे पहले रोजगार कार्यालय में पंजीयन करा चुके थे लेकिन नवीनीकरण की तरफ ध्यान नहीं दिया। कोरबा के रोजगार कार्यालय में चक्कर काट रहे ऐसे ही युवाओं ने अपनी तकलीफ साझा की और कहा कि कोविड के कारण तो दो साल पहले लोग घरों से निकल नहीं रहे थे। बेरोजगारी भत्ता देने के नियम में यह बंदिश लगाई जाएगी, यह पता होता तो वे नवीनीकरण भी समय पर करा लेते। चुनावी घोषणा में यह बात नहीं थी। सीधे अब चार साल बाद भत्ते की घोषणा करने के बाद अजीब नियम बना दिया गया।
बीते साल मई महीने में सरकारी सेवा के लिए चुनी गई एक महिला अभ्यर्थी के मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने फैसला दिया था कि नौकरी की पात्रता के लिए रोजगार कार्यालय का जीवित पंजीयन होना जरूरी नहीं है। मध्यप्रदेश और दूसरे राज्यों में भी हाईकोर्ट के ऐसे फैसले आ चुके हैं। मगर, बेरोजगारों के लिए शायद मुमकिन नहीं कि वे हाईकोर्ट जा सकें।
नक्सलगढ़ में पूना वेश
नक्सलगढ़ बस्तर में लोगों का विश्वास जीतने के लिए वहां की पुलिस कई तरह की सामाजिक गतिविधियां चलाती है। इसी दिशा में एक पहल हुई है ‘पूना वेश’ की। इसका मतलब होता है नई सुबह। आदिवासी बच्चों को यहां प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कराई जाती है। अंतागढ़ में कल इस सेंटर का उद्घाटन हुआ। ऐसा सेंटर पहले ताड़ोकी और कोयलीबेड़ा में भी खोला जा चुका है। खास बात यह है कि कोचिंग के लिए खुद जिले के एसपी, डीएसपी, टीआई, डॉक्टर और विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल हो चुके युवा अपनी मुफ्त सेवाएं देते हैं।12वीं के बाद किस तरह करियर बनाया जा सकता है इसकी जानकारी भी छात्रों को दी जाती है।
वंदेभारत इतनी सुस्त ट्रेन
बिलासपुर नागपुर के बीच वंदेभारत ट्रेन 5.30 घंटे में 412 किलोमीटर की दूरी तय करती है। रास्ते में इसका कुल सात मिनट स्टापेज है। रायपुर, दुर्ग, गोंदिया में 2-2 मिनट और राजनांदगांव में 1 मिनट। वंदेभारत ट्रेनों की श्रृंखला शुरू की जा रही थी तो बताया गया कि यह 130 किलोमीटर तक की रफ्तार से दौड़ेगी। अब मध्यप्रदेश के एक आरटीआई कार्यकर्ता ने जानकारी हासिल की है, उससे मालूम हो रहा है कि पिछले साल ये ट्रेनें 84 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़ीं, इस साल तो 81 किलोमीटर की ही रफ्तार से चल रही हैं। बिलासपुर नागपुर ट्रेन की समय सारिणी देखने से ही मालूम हो जाता है कि इसका शेड्यूल ही करीब 82 किलोमीटर प्रति घंटे का है। इसकी टाइमिंग के दौरान कई ट्रेनों और मालगाडिय़ों को रोके जाने के बावजूद यह आजकल 15-20 मिनट की देरी से चलने लगी है। शताब्दी, राजधानी, दुरंतो आदि दूसरी तेज ट्रेनों की स्पीड भी करीब 70 किलोमीटर है। आम लोग जिन सुपर फास्ट ट्रेनों में सफर करते हैं उनकी औसत गति भी 53 किलोमीटर प्रति घंटा है। वंदेभारत ट्रेनों में किराया अधिक होने के कारण वैसे भी यात्रियों की रुचि नहीं ले रहे हैं। कुछ दिन पहले बिलासपुर नागपुर वंदेभारत को लेकर रिपोर्ट आई थी कि इसमें औसत 600 से 700 यात्री सफर कर रहे हैं जबकि सीटें 1140 हैं। अब स्पीड को लेकर हुए नए खुलासे का क्या असर होगा, देखना होगा। कोई आरटीआई कार्यकर्ता शायद आने वाले दिनों में यह भी पता करे कि इसके परिचालन से रेलवे को कुछ फायदा हो भी रहा है या तेजस की तरह भारी नुकसान। यह जानना जरूरी इसलिए है क्योंकि रेलवे हर टिकट में यह बताती है कि यात्री किराये का कितना प्रतिशत वह खुद वहन कर रहा है।
फोन नंबरों की सेंधमारी...
यदि आपके बच्चे ने 10वीं-12वीं बोर्ड की परीक्षा, खासकर सीबीएसई पैटर्न से दिलाई है और अभी तक आपके फोन नंबर पर कोचिंग सेंटर्स और निजी कॉलेज, यूनिवर्सिटी से फोन नहीं आ रहे हैं तो आप खुशकिस्मत हैं। छत्तीसगढ़ में हजारों पालकों के लिए इन दिनों यह सिरदर्द बना हुआ है। न दिन देखना, न रात-एक के बाद एक अनजान नंबरों से फोन आ रहे हैं। ये फोन अच्छे कोचिंग सेंटर्स में नीट, जेईई, मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि की कोचिंग रियायती दर पर कराने का ऑफर दे रहे हैं। कुछ अच्छे कॉलेजों में सीधे प्रवेश दिलाने की बात भी कर रहे हैं। दरअसल, सीबीएसई एग्जाम देने वाले परीक्षार्थी अपना या अपने पैरेंट्स का फोन नंबर परीक्षा फॉर्म में भरते हैं। ये डेटा गोपनीय होना चाहिए। सीबीएसई का दावा भी यही है- उसका कहना है कि हमारा डाटा राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र से नियंत्रित है। इसे एक इन्क्रिप्टेड स्ट्रांग रूम में रखा जाता है। कोचिंग सेंटर्स जहां बच्चे पढऩे के लिए जाते हैं, लीक वहां से होते होंगे।
यह पहले भी हो चुका है। सन् 2018 में खबर आई थी कि गुजरात बोर्ड में परीक्षा देने वाले 2.20 लाख छात्रों के मोबाइल नंबर, ई मेल आईडी और दूसरे व्यक्तिगत विवरण ऑनलाइन बेचे जा रहे हैं। केवल 3 हजार से लेकर 10 हजार रुपये के भुगतान पर। मामला इतना गंभीर था कि तब के कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसकी सीबीआई जांच की मांग की थी। संभवत: जांच की भी गई। सीबीएसई का यह तर्क भी सही हो सकता है कि अधिकांश बच्चे निजी कोचिंग सेंटर में भी अपना डिटेल देते हैं, वहां से लीक हो रहा होगा। पर क्या कोचिंग सेंटर्स को ऐसा करने की छूट है? दूसरा खतरा यह भी है कि ये फोन नंबर जब बाजार में उपलब्ध हों तो ऑनलाइन ठगी के रैकेट के पास भी वह जा सकता है, जो अभिभावकों को जाल में फंसाकर उनके बैंक खाते को साफ कर देंगे।
हमारे यहां महंगाई भी कम...
बहुतों का मानना है कि अखबार, टीवी, सोशल मीडिया आदि में खबरें ज्यादा नहीं पढऩी चाहिए। नकारात्मकता, चिंता, गुस्से का भाव आता है, दिन खराब हो जाता है। पर इन भावों को नियंत्रित करने वाली खबरें भी निकलती रहती हैं। बस उसकी ज्यादा चीरफाड़ न की जाए, जो लिखा है उसे पढक़र तसल्ली रख ली जाए। जैसे, हर महीने दो महीने में सीएमआईई की सर्वे रिपोर्ट आ जाती है। बताती है कि छत्तीसगढ़ में सबसे कम बेरोजगारी, 0.1 फीसदी है। हमें खुश क्यों नहीं होना चाहिए, हरियाणा और राजस्थान में तो यह दर 25 फीसदी से अधिक है। देश में हम नंबर एक हैं।
ऐसा ही एक तबीयत खुश करने वाला आंकड़ा महंगाई को लेकर आया है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने बताया है कि छत्तीसगढ़ में मार्च महीने में खुदरा महंगाई दर पूरे देश में सबसे कम 1.88 प्रतिशत थी। सबसे ज्यादा अपने पड़ोसी राज्य तेलंगाना में 7.63 प्रतिशत थी। अपने दूसरे पड़ोसी राज्यों में भी महंगाई छत्तीसगढ़ से ज्यादा है, जैसे झारखंड में 4.26 प्रतिशत। महंगाई पर अपना रोना छोडक़र पड़ोसी की तकलीफ पर खुश हुआ जा सकता है।
आग ठंडी होने का इंतजार..
यह चांदनी-बिहारपुर का जंगल है। गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान का हिस्सा है। विभागीय अमला नदारत है और आग की लपटें तेजी से धधक रही हैं। सैकड़ों एकड़ में पेड़, वन्यजीव-जंतु और दुर्लभ पौधे बर्बाद हो रहे हैं। दावा किया जाता है कि कहां पर आग लगी है यह रायपुर के कंट्रोल रूम में सैटेलाइट के जरिये पता कर लिया जाता है, पर यहां आग बुझाने के लिए यहां कोई कोशिश होती नहीं दिखाई दे रही है। शायद अफसरों को लगता हो कि अपने आप आग बुझ जाएगी, आग बुझाने का जोखिम कौन उठाए।
बिरनपुर में कई सवाल खड़े हैं
बेमेतरा जिले के जिस बिरनपुर गांव में अभी साम्प्रदायिक तनाव हुआ और तीन हत्याएं हुईं, वहां तनाव बना हुआ है। साहू परिवार के जिस नौजवान की पहले मौत हुई, उसके दशगात्र पर राजधानी से कुछ बड़े नेताओं का जाने का कार्यक्रम था, लेकिन वहां परिवार और समाज कुछ बातों को लेकर तनाव में है इसलिए नेताओं का जाना रद्द करना पड़ा। ऐसा पता लगा है कि साहू समाज के प्रदेश संगठन ने जिस तरह मुख्यमंत्री से बात करके मुआवजे या राहत राशि की घोषणा करवाई है, उससे परिवार सहमत नहीं है।
दूसरी तरफ बेमेतरा के इस गांव वाले विधानसभा क्षेत्र साजा के विधायक, और राज्य के एक सबसे वरिष्ठ मंत्री रविन्द्र चौबे भी अब तक अपने क्षेत्र के इस गांव बिरनपुर नहीं जा पाए हैं। प्रदेश के गृहमंत्री और साहू समाज के सबसे वरिष्ठ सत्तारूढ़ नेता ताम्रध्वज साहू भी अपने ही इलाके के इस गांव में अब तक नहीं जा पाए हैं।
इससे जुड़ा हुआ एक दूसरा मामला यह भी है कि साम्प्रदायिक तनाव के बीच ही मुस्लिम समाज के दो लोगों को जंगल में पीट-पीटकर मार डाला गया था, अब तक उनके लिए किसी राहत की घोषणा सरकार की तरफ से नहीं आई है, जिससे भी लोग हैरान हैं। रायपुर से मुस्लिम समाज के लोगों ने दो लाख रूपये इक_ा करके इस परिवार को मदद दी है, लेकिन सरकार की तरफ से कुछ नहीं हुआ है, इसे लेकर भी यह समझ नहीं आ रहा है कि सरकार इसे साम्प्रदायिक तनाव से जुड़ी हुई मौतें मान रही है, या नहीं।
बिरनपुर की जिम्मेदारी किस पर?
बिरनपुर कांड के बाद इलाके में सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने की कोशिशें चल रही हैं। प्रशासनिक अमला ग्रामीणों के साथ लगातार बैठकें कर रहा है। इन सबके बीच सरकार में घटना के कारणों, और परिस्थितियों पर मंथन भी हो रहा है।
बताते हैं कि सीएम को दो मंत्रियों ने अनौपचारिक चर्चा में घटना के पीछे पुलिस की लापरवाही की ओर इशारा किया। इसके बाद सीएम ने तुरंत फोन लगाकर पुलिस के एक आला अफसर को जमकर फटकार भी लगाई है।
चर्चा है कि कवर्धा के बाद साजा के बिरनपुर घटना के बाद आने वाले समय में इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति रोकने के लिए कई बड़े कदम उठाए जा सकते हैं। इसमें निचले स्तर तक पुलिस अमले में बदलाव होगा। बदलाव की शुरुआत आईपीएस अफसरों के फेरबदल से हो सकती है। देखना है कि आगे क्या कुछ होता है।
चुनाव के पहले झगड़ा शुरू
भाजपा के सिंधी नेता, और पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी, और चेम्बर अध्यक्ष अमर पारवानी के बीच कुछ समय पहले हुआ सुलह-समझौता टूट गया है। कम से कम हाल के श्रीचंद के फेसबुक पोस्ट को देखकर तो ऐसा ही लगता है।
बिरनपुर घटना के चलते विहिप ने कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ बंद बुलाया था। चेम्बर ने बंद का खुलकर समर्थन नहीं किया। बावजूद इसके बंद को सफल बताया जा रहा है। अब इस पर श्रीचंद ने पारवानी का नाम लिए बिना हमला बोला है। उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा कि चेम्बर ने दाऊजी के चरणों में घुटने टेके। चेम्बर को समर्पित कर दिया दाऊजी के चरणों में।
चुनाव नजदीक आ रहे हैं, और रायपुर उत्तर से भाजपा टिकट के बड़े दावेदार अमर पारवानी पर श्रीचंद ने जिस तरह तीखे तेवर दिखा रहे हैं, उसे टिकट के झगड़े के रूप में देखा जा रहा है। संकेत साफ है कि लड़ाई आने वाले दिनों में और तेज होगी।
इसे भी गिन लीजिए विकास में
कोविड महामारी के नाम पर रेलवे ने यात्रियों को जिस तरह परेशान करना शुरू किया तो उससे अब तक छुटकारा नहीं मिल पाया है। रेलवे जोन के दर्जनों स्टापेज खत्म कर दिए गए। रेल टिकटों पर रियायतें बंद कर दी गईं। ऊपर से, स्पेशल के नाम पर किराया बढ़ाना, ‘अधोसंरचना विकास’ के नाम पर आए दिन घंटों यात्री गाडिय़ों का देर होना आम बात है। यात्रियों को रेलवे बोझ मानकर चलती है जो लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के विरुद्ध है। यात्री टिकटों में लिखा होता है कि आपके किराये का 57 प्रतिशत भारतीय रेलवे वहन करता है। मानो, मालभाड़े से होने वाली कमाई उसके अपने घर की हो।
बहरहाल जिक्र हो रहा है रेलवे की ओर से मनेंद्रगढ़ में रखे गए केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह के कार्यक्रम का। यहां उन्होंने हरी झंडी दिखाई। किसलिए? मनेंद्रगढ़ में चिरमिरी-अनूपपुर ट्रेन का स्टापेज शुरू होने पर। अब इसके पीछे की कुछ कहानी भी है। इस ट्रेन का पहले स्टॉपेज यहां था। महामारी के बाद रेलवे ने अंधाधुंध जो स्टापेज खत्म किए जिसमें इसे भी शामिल कर लिया गया। यह कोई सुपर फास्ट या शताब्दी एक्सप्रेस जैसी ट्रेन नहीं, पैसेंजर ही है। यह केंद्रीय राज्य मंत्री के इलाके में ही हुआ कि जिला मुख्यालय जैसे महत्वपूर्ण स्टेशन में अचानक इस जरूरी ट्रेन का रुकना बंद हो गया। जिला मुख्यालय होने से पहले भी मनेंद्रगढ़ आसपास के कई जिलों, शहरों और दर्जनों कस्बों का व्यापारिक केंद्र है ही। लोगों ने नाराजगी जताई। मंत्री से शिकायत की, रेलवे अफसरों को ज्ञापन दिए। बात नहीं सुनी गई तो थक-हारकर चार व्यवसायियों ने बीते मार्च माह में हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। मार्च के आखिरी हफ्ते में रेलवे को जवाब देना था, दाखिल नहीं हो पाया। अब कुछ दिन बाद इस मामले की फिर सुनवाई है। इस तरह से इस स्टॉपेज के लिए न तो मंत्री का कुछ किया हुआ दिखा है, न ही रेलवे अफसरों का दिल खुद से पसीजा है। स्टॉपेज शुरू करना एक तरह से उनकी मजबूरी थी, ताकि अगली सुनवाई में हाईकोर्ट में याचिका निराकृत हो जाए। वैसे तो बिना समारोह हर रोज रेलवे रोजाना किसी-किसी स्टेशन में स्टापेज देती रहती है। पर यहां स्टॉपेज शुरू ससमारोह हुआ, हरी झंडी दिखाते हुए मंत्री जी की तस्वीरें आईं। कार्यक्रम में उन्होंने रेलवे की तारीफ में ढेर सारी बातें की। चुनाव करीब हैं, सो मंच काम आया। पर, सरगुजा, कोरिया की रेलवे से जुड़ी अनेक बड़ी-बड़ी मांगों का अब तक कुछ नहीं हुआ है। लोग उम्मीद कर रहे हैं कि सांसद का प्रतिनिधित्व मंत्रिमंडल में है तो वे अपने प्रभाव से नागपुर, रायपुर तक सीधी ट्रेन सेवा शुरू कराएं। दशकों से रुके बरवाडीह, भटगांव और श्योपुर रेल लाइन का अधूरा काम कराएं।
एक खूबसूरत तस्वीर भाईचारे की
देश, छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ के किसी कोने के शहर गांवों की असली तस्वीर यही है। उस सुकमा की भी जहां कुछ अप्रिय घटनाएं हाल ही में हुई। जैन मुनि मणिप्रभ सुरेश्वर यहां के प्रवास पर हैं। मुस्लिम समाज के लोग उनका स्वागत कर रहे हैं।
यही है बस्तर का एंबुलेंस?
बस्तर में सडक़ और स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने की कोशिश को नक्सल विरोध का सामना करना पड़ता है। कई बार ग्रामीणों को सामने रखकर नक्सली सडक़ और अस्पताल खोलने के खिलाफ आंदोलन करते हैं। ग्राम सभा से प्रस्ताव पारित नहीं होने देते। सडक़ों को मंजूरी यदि दे भी दी गई तो उसकी चौड़ाई ज्यादा नहीं हो इसका भी दबाव रहता है। दूर-दूर तक फैले बस्तर में कई नए जिले राज्य बनने के बाद से बन चुके पर जिला मुख्यालय से दूरी दर्जनों गांवों की कम नहीं हुई हैं। ऐसा ही एक गांव बोदली है, जो अपने बस्तर जिला मुख्यालय से 135 किलोमीटर दूर है। दंतेवाड़ा जिले में यह शामिल नहीं है, जबकि यह सिर्फ 35 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां का एक 14 साल का बालक कमलू पेड़ से गिरकर दो दिन पहले घायल हो गया। 108 पर फोन करके ग्रामीण एंबुलेंस का इंतजार करते रहे। 10 घंटे तक कोई रिस्पांस नहीं मिला। तब तक जड़ी बूटी के जरिये इलाज चलता रहा। जिला मुख्यालय बस्तर 135 किलोमीटर दूर, सडक़ें दुरुस्त नहीं। दंतेवाड़ा पास है पर दूसरा जिला है, वहां से एंबुलेंस आई नहीं। रास्ते में एबुंलेंस मिल जाएगी इस उम्मीद में कांवर में कमलू को लिटाकर परिजन सडक़ पर निकल गए। 9 किलोमीटर चलते रहे, कोई मदद नहीं मिली। आखिरकार, एक ने बारसूर जाकर प्राइवेट जीप बुक कराई और फिर कमलू को अस्पताल पहुंचाया गया। अब कमलू की स्थिति में सुधार है। पर सवाल उठता है कि विस्तृत रूप से फैले बस्तर में, जहां अब भी सडक़ें दुरुस्त नहीं हो पाई हैं, अस्पताल मीलों दूर हैं, वहां जिला मुख्यालय की बाधा अनिवार्य रूप से होनी चाहिए। क्यों नहीं स्वास्थ्य की आपात सेवाओं के लिए एक दूसरे जिले के बीच तालमेल होना चाहिए। यहां तो किसी तरह से प्राइवेट गाड़ी की व्यवस्था कर ली गई और घायल बालक की जान भी बचा ली गई लेकिन दूर-दूर बसे बीजापुर, नारायणपुर, सुकमा जिलों के सैकड़ों गांवों में कितने ही लोग इलाज के अभाव में दम तोड़ देते होंगे और उनकी खबर बाहर भी नहीं आती होगी।
बैस को लेकर अटकलें
दो दिन पहले पीएम से मुलाकात के बाद महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस की छत्तीसगढ़ वापसी की अटकलें लगाई जा रही हैं। बैस को दो महीना पहले ही झारखण्ड की जगह महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया गया था। पार्टी हल्कों में इस बात की चर्चा है कि बैस को विधानसभा आम चुनाव की वजह से फिर से प्रदेश की राजनीति में भेजा जा सकता है।
बैस के पक्ष में यह तर्क दिया जा रहा है कि वो पार्टी के पिछड़ा वर्ग के बड़े चेहरा हैं। बैस की अपने कुर्मी समाज में अच्छी पकड़ है। वैसे तो नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल, धरमलाल कौशिक, और अजय चंद्राकर भी इसी वर्ग से आते हैं। मगर बैस को ज्यादा प्रभावशाली माना जाता है।
सात बार के सांसद बैस को भाजपा ने पिछले चुनाव में टिकट नहीं दी थी। उन्हें एक तरह से सक्रिय राजनीति से अलग कर दिया गया था। अब जब पार्टी के अंदरखाने में सीएम भूपेश बघेल के मुकाबले पिछड़ा वर्ग, और मजबूत कुर्मी चेहरे की बात आ रही है, तो बैस फिट बैठ रहे हैं। पार्टी के कुछ नेताओं का दावा है कि पखवाड़े भर के भीतर सब कुछ तय हो जाएगा। देखना है आगे क्या होता है?
एसपी के खिलाफ मंत्री समर्थक
आईपीएस यू उदय किरण को दो माह पहले ही कोरबा का पुलिस अधीक्षक बनाया गया। उनकी तैनाती के समय ही बात उठने लगी थी कि मंत्री जयसिंह अग्रवाल के समर्थकों के साथ उनका क्या रवैया होगा। दरअसल, वे इसके पहले जब कोरबा में एडिशनल एसपी थे तब मंत्री के कई समर्थकों को पुलिस ने पीटा था। पुलिस का कहना था कि वे ठेका और ट्रांसपोर्ट के अवैध कारोबार में लिप्त थे। उनके विरुद्ध काफी प्रदर्शन हुए। अब एक बार फिर मंत्री समर्थकों से उनका विवाद हो गया है। मंत्री के एक समर्थक अमरजीत सिंह के खिलाफ गैरजमानती धाराओं में अपराध दर्ज किया गया है। कोयला परिवहन के विवाद में अमरजीत पर नीलकंठ ठेका कंपनी के कर्मचारियों के साथ मारपीट करने का आरोप है। एफआईआर दर्ज होने के बाद मेयर, सभापति, जिला कांग्रेस अध्यक्ष सब एक साथ कलेक्टर, एसपी से मिले। महापौर राजकिशोर प्रसाद का कहना था कि रिपोर्ट पूरी तरह झूठी है। जिस वक्त की घटना बताई जा रही है, अमरजीत पूरे दिन मरे ही साथ थे। बतौर एसपी उदयकिरण का यह नारायणपुर और जीपीएम जिले के बाद तीसरी पदस्थापना है। कोरबा के संसाधनों के देखकर हर आईएएस, आईपीएस एक बार यहां ड्यूटी करना चाहता है, पर इस आईपीएस के बारे में लोगों की राय अलग है। एसपी ने उनकी शिकायत तो रख ली पर उनके तौर-तरीकों को जानने वाले कह रहे हैं कि यदि घटना हुई है तो रियायत की उम्मीद छोड़ दें। कुर्सी रहे न रहे, परवाह नहीं।
अजन्मे बच्चे की हिफाजत
यह टिटहरी अकेले होती तो फुर्र से उड़ जाती। पर फोटोग्रॉफर कैमरा लेकर जैसे-जैसे करीब जा रहा था वह अपने नन्हें चोंच से चीं..चीं..चीं.. कर चीखने लगी, लेकिन अपनी जगह पर डटी रही। फोटोग्रॉफर ने ठिठककर देखा, टिटहरी नीचे अपने पेट पर अंडे को सेंक रही है। फोटोग्रॉफर ने और नजदीक जाना ठीक नहीं समझा। कोटा बिलासपुर के मोहनभाठा से यह तस्वीर नरेंद्र वर्मा ने ली है।
राजकीय पशु असमिया बनेंगे !
छतीसगढ़ के बार नवापारा में असमिया जंगली वन भैसों की संख्या छह हो गई है। पहले लाए गए एक नर और एक मादा वन भैंसे पहले से बाड़े में हैं। अब चार फीमेल सबएडल्ट यहां कल पहुंच गई हैं। इनसे वन भैसों का प्रजनन करने की योजना है। वनभैंसा छत्तीसगढ़ का राज्य पशु है। ये सघन नक्सली इलाके इंद्रवती नेशनल पार्क से लेकर महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के जंगल तक देखे जाते हैं। यह रक्तशुद्ध प्रजाति में गिने जाते हैं क्योंकि ये यहां के पालतू भैसों के सम्पर्क में नहीं आए। नक्सलियों के क्षेत्र से वन भैंसों को लाने का जोखिम वन के अफसर नहीं उठा रहे हैं। अब असम से वन भैंसें लाकर प्रजनन के जरिये छतीसगढ़ में वनभैसा बढऩे की योजना पर काम चल रहा है। कहा जा सकता है कि राज्य के वन विभाग की अक्षमता सदा के लिए इतिहास में दर्ज हो रहा है। अब अपना राज्य पशु शुद्ध नहीं होगा, बल्कि उसमें असमिया रक्त भी मिश्रित होगा।
प्लास्टिक बोतल भी काम की
एक छोटे से काम से शुरुआत कीजिए। इसे घर में बच्चों से लेकर बड़े तक कोई भी आसानी से कर सकता है। पानी की बोतल घरों में आते ही रहते हैं। हर घर में हर दिन कम से कम एक या एक से अधिक प्लास्टिक की थैलियाँ आती हैं,, जैसे तेल की थैली, दूध की थैली,, किराने की थैली, शैम्पू,, साबुन, मैगी, कुरकुरे आदि। ये थैलियां हमें रोज कूड़ेदान की जगह पानी की बोतल में डालनी है। हम सप्ताह में एक बार बोतल को भर सकते हैं और फिर ढक्कन के साथ कूड़ेदान में फेंक दें। ऐसा करने से जानवर बिखरा हुआ प्लास्टिक नहीं खाएंगे। नगर के सफाई विभाग को भी प्लास्टिक कचरे के निष्पादन में सुविधा होगी। घरों में बच्चे यह काम खेल-खेल में कर रहे हैं। देश में कई एनजीओ हैं, जो इस तरह के अभियान से अब जुड़े हुए हैं। पर पहल घर से ही की जा सकती है।
लाठी भी नहीं टूटी...
कई बार नेताओं के दबाव में ऊपर के अफसर कार्रवाई तो कर देते हैं पर आदेश में कुछ सुराख छोड़ देते हैं, जिससे बचने का रास्ता मिल जाता है। पलारी, बलौदाबाजार के तहसीलदार को लेकर यही बात सामने आई थी कि विधायक शकुंतला साहू ने उन्हें रेत लदी एक गाड़ी को छोडऩे के लिए कहा, तहसीलदार ने बात नहीं मानी तो दो तीन घंटे के भीतर ही उनका तबादला करा दिया गया। राजस्व अधिकारियों के संगठन ने इस कार्रवाई पर विरोध जताया और आंदोलन की चेतावनी भी दे डाली है। पर ऐसा लगता है कि अब इसकी नौबत नहीं आएगी। तहसीलदार को हाईकोर्ट से स्थगन मिल गया है। दरअसल, दुबे को प्रतिनियुक्ति पर निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय रायपुर भेजा गया था। यह सामान्य सा नियम है कि किसी शासकीय सेवक को प्रतिनियुक्ति में भेजे जाने पर उसकी सहमति ली जाती है, साथ ही जिस दफ्तर में भेजा जा रहा है, वहां के प्रभारी को उस नाम पर एतराज नहीं होना चाहिए। इस प्रक्रिया को यहां नहीं अपनाया गया। हाईकोर्ट ने प्रारंभिक सुनवाई में स्थगन दे दिया। अब आगे शासन का पक्ष सुना जाएगा। फैसला तो दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद तो आ ही जाएगा। पर फिलहाल तो तहसीलदार दुबे पलारी से हटने के बाध्य नहीं हैं।
गलतफहमी में डल गई रेड ?
ईडी ने जिन कारोबारियों, नेताओं, और अफसरों के यहां रेड डाली है। वो एक-एक कर ईडी की कार्रवाई के खिलाफ मुखर हो रहे हैं। कुछ ऐसे भी हैं, जिनके यहां रेड नहीं डली, लेकिन उन्हें कथित तौर पर टॉर्चर किया गया। ऐसे चार लोग हाईकोर्ट भी गए हैं। उनकी याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई होगी।
नई खबर यह है कि एक-दो लोग ऐसे भी हैं जिनका कोल-परिवहन, और शराब के कारोबार से लेना-देना नहीं था। ऐसे लोगों के यहां गलतफहमी में रेड डल गई। अब ऐसे लोग भी जल्द याचिका दायर करने जा रहे हैं। कुल मिलाकर अब निगाहें कोर्ट के रूख पर हैं।
कप्तान पर भारी पड़े विधायक
कांग्रेस नेता के एक नजदीकी रिश्तेदार पुलिस में हैं, और अहम पोस्टिंग के लिए प्रयास कर रहे हैं। पहले उन्हें नए जिले में कप्तान बनाया भी गया था। लेकिन जल्द ही उनका स्थानीय विधायक से ठन गई। कप्तान ने तेवर दिखाए, और विधायक की हैसियत को नजरअंदाज कर उनके भांजे को जुआ खेलते पकड़ाए जाने पर भी नहीं छोड़ा। मगर विधायक महोदय भारी पड़ गए, और 6 महीने भी टिकने नहीं दिया। उन्हें बोरिया बिस्तर बांधने को मजबूर कर दिया। ट्रांसफर ऑर्डर निकलने के बाद रिश्तेदार ने हाथ-पांव भी मारे, लेकिन इसका कोई असर नहीं पड़ा। अब फिर से कप्तानों को बदलने का हल्ला हुआ है, तो फिर से कप्तानी के लिए कोशिश कर रहे हैं। मगर उन्हें एक मौका और मिलेगा या नहीं, यह देखना है।
रोहिंग्या तो मिले नहीं थे!
याद होगा कि तीन साल पहले से भाजपा के कुछ नेता अंबिकापुर में रोहिंग्या मुसलमानों को बसाने का आरोप लगाकर आंदोलन कर रहे थे। आरोपों से सरकार और प्रशासन को घेरा जा रहा था। तब स्वास्थ्य मंत्री व स्थानीय विधायक टीएस सिंहदेव ने कलेक्टर को जांच का आदेश दिया। जांच हुई तो पता चला कि दूसरे राज्यों से पिछले कई वर्षों के दौरान झारखंड, बिहार, यूपी और मध्यप्रदेश से आकर बसे हैं। इनमें छत्तीसगढ़ के ही सबसे ज्यादा है। इन लोगों ने महामाया पहाड़ी की भूमि पर अतिक्रमण किया है। और जानकारी मिली कि ये अतिक्रमण 2007 से 2016 के बीच हुए।
बिरनपुर में हुई हिंसक वारदात के बाद स्थिति धीरे-धीरे सामान्य हो जरूर रही है पर भाजपा की ओर से ऐलान किया गया है कि हाल के वर्षों में बाहर से आए लोगों की वह सूची बनाकर जारी करेगी, क्योंकि ये ही लोग हिंसक गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। जाहिर है बाहर सेआए लोगों की यह सूची एक खास समुदाय के लोगों की बनेगी। किसी भी राज्य के नागरिक को देश के किसी भी हिस्से में जाकर काम-धंधा करने का अधिकार देता है। ऐसे में अगर दूसरे राज्य के लोग यदि छत्तीसगढ़ में आ रहे हैं तो उसे मना कैसे किया जा सकता है। ऐसा तो हर राज्य में होता है। दूसरे राज्यों से जिनकी पीढिय़ां आईं, वे आज राजनीति, कारोबार और नौकरशाही में छत्तीसगढ़ में अच्छी-अच्छी जगह पर बैठे हैं। इनमें सभी दलों से जुड़े लोग हैं, बीजेपी में भी हैं।
यह सूची कैसी होगी, किसी का दूसरे राज्य से आकर बस जाना क्या गैरकानूनी है। क्या खास तौर पर उन्हें अपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने के रूप में चिन्हित किया जा सकता है? ये सब सवाल खड़े हों न हों, पर कोशिश हो सकती है कि विधानसभा चुनाव तक मुद्दा सुलगता रहे।
टाइगर रिजर्व अभी कागजों में...
नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी से मंजूरी मिल जाने के बाद ऐसा माना जाने लगा कि तमोर पिंगला गुरुघासीदास टाइगर रिजर्व की श्रेणी में शामिल हो गया है, पर वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है। डेढ़ साल होने जा रहा है राज्य सरकार की ओर से अब तक इसका नोटिफिकेशन गजट में आया नहीं है। इसका मतलब यह है कि अभी इसे टाइगर रिजर्व का दर्जा नहीं मिला है। हाल ही में टाइगर प्रोजेक्ट के 50 साल पूरे होने पर पूरे देश में बाघों की संख्या बढऩे के आंकड़े आए। वन विभाग को इस मौके पर भी इसकी अधिसूचना जारी करने का ख्याल नहीं आया। कहीं रुकावट होने की गुंजाइश कम ही है क्योंकि टाइगर रिजर्व बनाने की मंजूरी खुद राज्य सरकार ने मांगी थी। वन विभाग का दावा है कि यहां 5 टाइगर विचरण करते हैं। मध्यप्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ में फैले 2049 वर्ग किलोमीटर कोर जोन व 780 वर्ग किलोमीटर बफर जोन वाला यह टाइगर रिजर्व अस्तित्व में आने के बाद, कहा जा रहा है कि एशिया का सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व होगा।