राजपथ - जनपथ
मास्क पहनेंगे तो ब्यूटी पॉर्लर कैसे चलेगा?
आम लोगों को जब मास्क पहनने कहा जा रहा है तो सरकार के जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों से भी इसे व्यवहार में लाने की उम्मीद की जाती है। लोग उनसे सीख लेंगे। मगर ऐसा नहीं है। अपने ही प्रदेश के कुछ आईएएस हैं। वे कोविड के बचाव के लिये बैठक लेते हैं, कोरोना गाइडलाइन का पालन कैसे कराना है अफसरों को बताते हुए भी मास्क नहीं पहनते। कई मंत्री, विधायक भी सार्वजनिक कार्यक्रमों मास्क पहने हुए नहीं दिख रहे। कई लोग पहनते हैं तो उसे डुढ्ढी में लटकाये रहते हैं। मुंह और नाक खुली रह जाती है। करीब 15 दिन पहले एक सीतापुर के एक कार्यक्रम में बिना मास्क लगाये पहुंचे खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने जवाब दिया- डर तो मुझे भी लगता है, पर मास्क पहन नहीं पाता। आगे यह भी जोड़ा- कोरोना होगा तो मुझे ही होगा न? यानि आपको चिंता करने की जरूरत नहीं।
पर सबसे नायाब जवाब है असम के वित्त मंत्री हेमन्त बिस्वा का। एक न्यूज पोर्टल ने उनसे पूछा कि केन्द्र के निर्देश के बावजूद आप मास्क क्यों नहीं पहनते? उन्होंने कहा- केन्द्र का निर्देश है, पर हम नहीं पहनते। नहीं है तो नहीं है। सवाल दोहराये जाने पर उन्होंने रहस्य बताया- हमें अपने राज्य की इकॉनॉमी को भी रिवाइव करना है। मास्क पहन लेंगे तो ब्यूटी पार्लर कैसे चलेंगे?
मास्क पहनने का आपकी खूबसूरती, ब्यूटी पार्लर से सीधा रिश्ता है यह राज मंत्री जी ने जगजाहिर कर दिया।
खतरनाक होता है, शांति से मर जाना...
बीजापुर नक्सली हमले में 22 जवानों की शहादत ने पूरे छत्तीसगढ़ को झकझोर कर रख दिया है। सभी का साहस सराहा जा रहा है। इनमें जांजगीर जिले के सब-इंस्पेक्टर दीपक भारद्वाज को भी लोग याद कर रहे हैं। नवोदय मल्हार से उन्होंने स्कूली शिक्षा ली उसके बाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में पढ़ते रहे। इसी दौरान उन्होंने बहुत मित्र बनाये। वे प्रशासनिक सेवा में जाना चाहते थे उसकी तैयारी भी कर रहे थे। इसी दौरान सब-इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा की वेकेंसी निकली और उसका फॉर्म उन्होंने भर दिया। फिटनेस और सेहत पर वह कितना ध्यान देते थे इसका अंदाजा उनकी तस्वीरों को देखकर लगाया जा सकता है। इन सब के अलावा वे साहित्य में भी रुचि रखते थे। उनके एक मित्र ने सोशल मीडिया पर अवतार सिंह संधू ‘पाश’ की एक पसंदीदा कविता शेयर की है-
मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती/ पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती/ गद्दारी और लोभ की मु_ी सबसे खतरनाक नहीं होती/ बैठे- बिठाये पकड़ा जाना बुरा/ सहमी सी में जकड़ा जाना बुरा तो/ सबसे खतरनाक नहीं होता/कपट के शोर में सही होते हुए भी दब जाना बुरा तो है/ मु_ियां भींचकर बस वक्त निकाल देना बुरा तो है/ सबसे खतरनाक नहीं होता/ सबसे खतरनाक होता है, मुर्दा शांति से मर जाना।
सोशल मीडिया पर दीपक के दोस्तों के अलावा अनेक शिक्षकों व प्रशासनिक अधिकारियों के श्रद्धांजलि से पोस्ट भरे हुए हैं। कई कर्मचारी नेताओं ने उनसे जुड़े संस्मरण याद किये हैं। दीपक के पिता राधेलाल एक कर्मचारी नेता हैं।
केन्द्रीय मदद अचानक कम क्यों हुई
नक्सल प्रभावित राज्यों को केन्द्र से हर साल बड़ी राशि मोर्चे के लिये भेजी जाती है। छत्तीसगढ़ के अलावा आंध्रप्रदेश, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा और तेलगांना ऐसे राज्यों में शामिल हैं। एक सरकारी आंकड़ा बताता है कि बीते वित्तीय वर्ष में केन्द्रीय सहायता एकदम से घटा दी गई। सन् 2019-20 और उसके पहले 2018-19 में इन राज्यों को करीब एक हजार करोड़ का आबंटन किया गया लेकिन सन् 2020-21 में राशि घटाकर, 393 करोड़ कर दी गई। छत्तीसगढ़ को भी मिलने वाली राशि एक चौथाई रह गई, जिसे नक्सल समस्या से सर्वाधिक प्रभावित राज्य माना जाता है। छत्तीसगढ़ को पिछला आबंटन 71.25 करोड़ रुपये ही था जबकि 2019-20 में 266.54 करोड़ मिले थे।
क्या पिछले साल कोविड समस्या के कारण आर्थिक संकट के चलते आबंटन घटाना पड़ा? या फिर उसके पहले के दो साल में किये गये हजार-हजार करोड़ का कोई नतीजा नहीं मिलता, पाया गया? नक्सलियों से लोहा लेने में इस आबंटन की कमी का कोई असर है? इन सवालों पर शायद अब बात हो।