राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : खुदकुशी से दिखा पटवारी-भ्रष्टाचार
02-Apr-2021 6:37 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : खुदकुशी से दिखा पटवारी-भ्रष्टाचार

खुदकुशी से दिखा पटवारी-भ्रष्टाचार

बिलासपुर जिले में एक आत्महत्या के साथ जब यह पर्ची मिली कि किसान से पटवारी ने पांच हजार रूपए रिश्वत लेने के बाद भी ऋण पुस्तिका बनाकर नहीं दी, तो अब लाश और पर्ची को देखते हुए पुलिस पटवारी को गिरफ्तार करने पहुंची है।

लेकिन हैरानी इस बात की है कि पटवारी नाम की संस्था के संगठित भ्रष्टाचार का कोई मामला जब किसी आत्महत्या तक पहुंच रहा है, तब सरकार को वह दिख रहा है, उसके पहले नहीं! सच तो यह है कि किसी सरकार का डूबना तहसील और पटवारी के दफ्तर से ही शुरू होता है जहां आत्महत्या की हद तक थके हुए लोग रोजाना ही चक्कर काटते हैं, लेकिन आत्महत्या करने से किसी तरह बच जाते हैं। किसी भी सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी को यह मानकर चलना चाहिए कि उसके कार्यकाल के पांच बरस में पटवारी और तहसीलदार से जिन वोटरों का वास्ता पड़ता है, वे वोट सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ ही जाते हैं। क्योंकि बड़े-बड़े लोगों के काम पटवारी उनके घर जाकर करते हैं, इसलिए पटवारियों का भ्रष्टाचार दबे रह जाता है, उसे अनदेखा कर दिया जाता है। राजधानी रायपुर में कुछ पटवारी हल्के तो ऐसे हैं जहां से पटवारी करोड़पति बनकर ही हटते हैं। और जाहिर है कि इन जगहों पर पहुंचने के लिए भी सरकार के अलग-अलग स्तरों पर लाखों का लेन-देन होता है। बदनाम होने के लिए आरटीओ को सबसे भ्रष्ट विभाग माना जाता है जिसकी सरहदी चौकियों पर वसूली के लिए निजी लठैतों की फौज रखी जाती है। लेकिन किसी भी पटवारी के दफ्तर जाकर देखें, तो वह किराए के मकान में दफ्तर चलाते हैं, और कई निजी कर्मचारियों को नौकरी पर रखते हैं। सरकारी काम के लिए ऐसा निजी खर्च आरटीओ और पटवारी के अलावा और कौन कर सकते हैं?

टीका लगवाने की इतनी हड़बड़ी? 

45 वर्ष से अधिक उम्र के सभी लोगों को टीका लगाने की मंजूरी मिलने के बाद कई वैक्सीनेशन सेंटर्स में उमड़ी भीड़ कोरोना फैलने के नये खतरे को- आ, देख लेंगे, कह रही है। लोगों को याद होगा कि बीते साल अनेक बड़े अस्पतालों में कोरोना जांच के दौरान दूरी रखने के लिये सफेद गोल घेरे बनाये गये थे। कोरोना के संदिग्ध और दूसरे सामान्य मरीजों के कई जगह पर अस्पताल, तो कई जगह काउन्टर, कमरे भी अलग थे। इस बार ऐसा कुछ दिखाई नहीं। इस भीड़ में पहले से कोरोना संक्रमण के लक्षण वाले भी हो सकते हैं। वे कोरोना से बचने की उम्मीद में टीका लगवाने तो आ रहे होंगे पर संक्रमण फैलाकर लौट सकते हैं। पर ऐसी कोई पूछताछ टीकाकरण केन्द्रों में नहीं हो रही है। यह सही है कि न तो स्वास्थ्य विभाग, न वालेंटियर्स और न पुलिस की कोशिश से यह भीड़ संभलेगी। लोग यदि यह समझ लें कि यह वैक्सीनेशन अभी-अभी तो शुरू हुआ है। लगातार चलेगा और खासकर, छुट्टियों के दिन भी। 

गांव का मौसम गुलाबी होने लगा?

वित्तीय वर्ष समाप्त होने के बाद जगह-जगह से जो आंकड़े आये, वे अगले साल के लिये क्या अच्छे दिन के संकेत हैं? मसलन, बीते मार्च में मारुति ने बिक्री 2020 के साल से करीब दो गुना की। टोयोटा ने तो आठ साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। किसी भी कार कम्पनी की बिक्री  इन दिनों में गिरी नहीं बल्कि रिकॉर्ड बने। जिस जीएसटी वसूली कम होने के चलते केन्द्र को राज्य सरकारों का पैसा रोकने के कारण झेंपने की नौबत आ रही है, अब तक सबसे ज्यादा सवा लाख करोड़ से भी अधिक कलेक्शन हो गया। बिजली की खपत भी करीब 25 प्रतिशत बढऩे का देशव्यापी आंकड़ा है। पावर फाइनेंस कम्पनी ने सरकार को तय से 11 सौ करोड़ अतिरिक्त लाभांश दिया। शेयर सेंसेक्स ने 50 हजार से ऊपर का आंकड़ा छू लिया। सोने के दाम बढ़ फिर बढऩे लगे हैं।

छत्तीसगढ़ की प्रमुख कम्पनियों, उपक्रमों ने भी ऐसे ही आंकड़े जारी किये हैं। जैसे एसईसीएल और एसईसीआर ने रिकॉर्ड लदान और परिवहन किया। एनएमडीसी को भी बढ़त ही मिली है। प्रदेश सरकार की रिपोर्ट भी जबरदस्त है। रजिस्ट्री शुल्क में छूट चल रहे होने के बावजूद रिकॉर्ड कलेक्शन हुआ। शराब कोरोना काल में भी इतनी बिकी कि अनुमान से अधिक मुनाफा हुआ।

ये आंकड़ों की कलाबाजी भी हो सकती है। मसलन, मारुति कार इंडस्ट्री को 2019 और 2020 में बीते कई सालों के मुकाबले शुद्ध मुनाफे में घाटा हुआ था। इस बार इसीलिये उछाल दिख रहा है। सार्वजनिक, सरकारी उपक्रमों में यह आंकड़ेबाजी और जबरदस्त होती है। वे अपनी देनदारी दिखाने से बचते हैं। ऐसी बातें ख़बरों में नहीं आती, प्राय:। 

दूसरी बात क्या कार, सोना, शेयर, शराब में पैसा लगाने वाले लोग वे ही हैं, जिनकी कोरोना काल में नौकरी छूट गई थी और नये की उम्मीद टूटी, रोजगार संकट में पड़ा। होम लोन किश्त चुकाने की हैसियत नहीं रही? या वर्षों पहले लिखी, अदम गोंडवी की बात ही सही है कि- ‘फिर लगी है होड़ सी  देखो, अमीरी औ गरीबी में..?’

संविधान पर छोटी किताब आ रही

संविधान के हिफाजत की लड़ाई लडऩे वालों ने कई बार छोटे-बड़े समारोहों में इसके प्रमुख बिन्दुओं की बुकलेट बांटी है। दूसरी ओर, हक़ीकत यह है कि देश के अधिकतर लोगों ने संविधान को पढऩे की कोशिश नहीं की। इसकी वजह यह भी हो सकती है कि किसी भी लोकतांत्रिक, संप्रभु देश का यह सबसे लम्बा लिखित संविधान है। इसमें करीब डेढ़ लाख शब्द हैं। 25 भागों में है। 448 अनुच्छेद और 104 संशोधन हैं।

इसके बावजूद जरूरी है कि खास-खास बातें आम लोगों को पता हो। खासकर नई पीढ़ी को, जिन पर आगे देश की जिम्मेदारी है। अब छत्तीसगढ़ सरकार ने इसकी मूल विशेषताओं को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने का फैसला लिया है। पहली से आठवीं तक के बच्चे इसे समझेंगे। अपने घर में चर्चा करेंगे। उम्मीद है कि प्रकाशित किताब में केवल महत्वपूर्ण बिन्दुओं को आसान भाषा में, संक्षेप में शामिल किया जा रहा हो। सरकारी स्कूलों में तो यह अनिवार्य होगा पर निजी स्कूलों में भी इसे जरूरी किया जा सकता है। पाठ्यपुस्तक निगम अपने मुनाफे से इसे छपवा रहा है। यह एक ऐसा फैसला है जिसका विरोध वे भी नहीं कर सकेंगे, जिन्होंने संविधान की अपनी सुविधा से व्याख्या कर, तोड़-मरोडक़र, लोकतांत्रिक मूल्यों, अभिव्यक्ति की आजादी को, धर्मनिरपेक्षता को, समानता के उद्देश्य को खतरे में डालने का काम किया है, कर रहे हैं।

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