राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : बीजेपी जागेगी?
13-Jul-2025 6:43 PM
राजपथ-जनपथ : बीजेपी जागेगी?

बीजेपी जागेगी?

हर शहर में न सिर्फ त्यौहारों के पहले, बल्कि अब तो साल भर तरह-तरह की सेल चलती रहती है। बड़ी होटलों से लेकर सार्वजनिक सभा भवनों तक कई किस्म के नए-पुराने सामानों को तरह-तरह के झांसे वाले इश्तहार देकर बेचा जाता है। अखबारों में पूरे-पूरे पेज के इश्तहार छपते हैं, और इनमें दावे देखने लायक रहते हैं। अभी आज चल रही ऐसी एक बिक्री के बारे में लिखा गया है कि उसका मकसद सेल लगाकर माल बेचना नहीं है। कंपनी पर बैंक का अत्यंत दबाव होने के कारण कंपनी अपनी प्रीमियम स्टॉक की सस्ती बिक्री करने पर मजबूर है। इश्तहार में लिखा गया है- हमारी कंपनी के द्वारा न पहले कभी सेल लगाई गई है, न इसके बाद कभी लगाई जाएगी।

दिलचस्प बात यह है कि पूरे पेज के इश्तहार में कंपनी का कोई जिक्र ही नहीं है। ऐसे खुले झूठे दावों पर समाज या सरकार की तरफ से किसी कार्रवाई की जागरूकता भी नहीं है। ऐसा ही एक दूसरा इश्तहार एक दूसरे होटल में लगी सेल का है, जो कह रहा है कि उच्च मुद्रास्फीति की वजह से कंपनी के गोदाम में स्टॉक ओवरफ्लो हो गया है, इसलिए हम आपको इतना बड़ा डिस्काउंट दे रहे हैं।

अब यह वाला दावा कुछ अधिक दिलचस्प इसलिए है कि इसे देखकर जब हमने जानने की कोशिश की कि भारत में मुद्रास्फीति की क्या हालत है, तो पता लगा कि ग्राहक मूल्य सूचकांक एकदम गिरा हुआ है क्योंकि कई कारोबार में मुद्रास्फीति एकदम नीचे आ गई है, और थोक मुद्रास्फीति भी रिकॉर्ड नीचे है।

अब देश की ऐसी अर्थव्यवस्था के रहते हुए भी अगर कोई फर्जी कंपनी फर्जी कारोबार के लिए इश्तहार देकर देश को उच्च मुद्रास्फीति का शिकार बतला रही है, तो फिर देश-प्रदेश की सत्तारूढ़ पार्टी की भी तो कोई जिम्मेदारी बनती है कि ऐसी सेल में जाकर धंधेबाजों से पूछे कि देश की अर्थव्यवस्था पर ऐसा झूठा इल्जाम क्यों लगाया जा रहा है। लेकिन जब तक किसी पार्टी का ऐसा कोई कार्यक्रम टाईप होकर न आ जाए, तब तक भला किसको परवाह है कि देश की अर्थव्यवस्था का नाम हो रहा है, या वह बदनाम हो रही है।

परदेश का मोह

राज्य सरकार के अफसरों की विदेशों से आमदरफ्त जारी है। वहीं विधानसभा के मानसून सत्र के बाद सरकार के मंत्रियों के विदेश दौरे शुरू होने वाले हैं। एक-दो मंत्रियों के विभाग में विदेश यात्रा के लिए प्रस्ताव तैयार किए जा रहे हैं।

बड़े राजनीतिक ओहदेदारों के विदेश दौरों की अनुमति पीएमओ ही देता है। ऐसे में एक बड़े ओहदेदार को दूसरी बार अनुमति न दिए जाने को लेकर चर्चाएं हैं। हालांकि  देश के किसी भी राज्य के ऐसे ओहदेदार को अब तक विदेश दौरे की अनुमति नहीं दी गई है। अपने साहब भी पूरी तैयारी से गए कूच किए थे लेकिन अनुमति न मिलने पर दिल्ली में ही भेंट मुलाकात कर लौट आए। बताया जा रहा है कि साहब एक प्रयास और करने वाले हैं। इससे परे स्पीकर अक्टूबर में कामनवेल्थ संसदीय सम्मेलन में भाग लेने अफ्रीकी देश जाने वाले हैं।

पहले जिला, फिर प्रदेश

प्रदेश भाजपा की नई कार्यकारिणी तैयार हो गई है, लेकिन सूची अभी जारी नहीं की जाएगी। पार्टी के रणनीतिकारों की पिछले दिनों मैनपाट में एक बैठक हुई है, जिसमें यह तय किया गया कि पहले जिलों की कार्यकारिणी  घोषित की जाएगी।

मैनपाट में प्रशिक्षण शिविर के बाद से जिलों में हलचल शुरू हो गई है। कार्यकारिणी के लिए नाम लिए जा रहे हैं। महामंत्री, और उपाध्यक्ष पदों के लिए स्थानीय प्रमुख नेताओं से रायशुमारी की प्रक्रिया चल रही है। चर्चा है कि इस माह के अंत तक जिला, और फिर प्रदेश की कार्यकारिणी घोषित कर दी जाएगी।

तबादले, खुशी कम, गम अधिक

प्रदेश में तबादलों पर फिर रोक लग गई है। अब सिर्फ समन्वय के जरिए ही तबादले हो सकते हैं। वैसे इस बार स्कूल शिक्षा समेत आधा दर्जन विभागों में तबादलों पर पहले से रोक लगी थी। पार्टी ने कार्यकर्ताओं की सिफारिश को तवज्जो देने के लिए मंत्रियों को आदेश भी दिए थे। मगर ज्यादातर जिलों से आई सूची को महत्व ही नहीं दिया गया।

चर्चा है कि रायपुर में तो बकायदा कोर कमेटी ने तबादले का प्रस्ताव तैयार किया था, और संबंधित विभाग के मंत्रियों को भेजा था। कहा जा रहा है कि रायपुर की सूची में से इक्का-दुक्का नामों को ही तबादला सूची में जगह मिल पाई। इसको लेकर संगठन के पदाधिकारी नाराज बताए जाते हैं। इसकी शिकायत भी हुई है। अब तबादले पर रोक लग गई है, इसलिए अब अगले सीजन का इंतजार करना होगा।

समंस की चाय-पानी- खुराक बंद

छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले ने ई-समंस और वारंट तामिली की जो नई डिजिटल शुरुआत की है । यह राज्य का पहला जिला बन गया है, जहां समंस, वारंट अब कागज-पत्तर की बजाय मोबाइल एप और पोर्टल से जारी और तामील किए जा रहे हैं। इससे पुलिस और कोर्ट के बीच सीधा डिजिटल ट्रैक बन गया है -किसे कब समंस दिया गया, किसने रिसीव किया, कहां दिया गया, सबकी फोटो और तारीख पोर्टल पर देखी जा रही है।

फायदा ये कि अब कोई यह बहाना नहीं बना पाएगा कि समंस मिला ही नहीं। पहले यह आम बात थी कि कई नेता, रसूखदार लोग या उनके गुर्गे समंस को हाथ में लेने से ही इंकार कर देते थे। अब सिस्टम डिजिटल हो गया है तो उम्मीद है कि वह पुरानी लापरवाही, जोड़-तोड़ और सेटिंगबाजी बंद होगी। लेकिन असली सवाल यह है कि क्या वाकई बड़े-बड़े नेताओं, अफसरों और रसूखदारों तक भी ई-समंस पहुंचेगा?

अभी शुरुआत है — देखना होगा कि जो लोग समंस को अब तक टालते रहे, या समंस देने वाले को चाय-पानी के बहाने लौटा देते थे, वे नई डिजिटल व्यवस्था में कहां तक टिक पाएंगे। पुलिस को यह दिखाना होगा कि यह ई-समंस  सब पर बराबरी से चलेगा, सिर्फ कमजोरों पर नहीं।


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