राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : भगवाधारी कुलपति
01-Jan-2021 5:24 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : भगवाधारी कुलपति

भगवाधारी कुलपति

वैसे तो कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बलदेवभाई शर्मा को आरएसएस के विचारक के रूप में जाना जाता है। वे आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य के संपादक भी रहे, और जब राज्यपाल ने सरकार की सिफारिशों को नजरअंदाज कर बलदेवभाई शर्मा को कुलपति नियुक्त किया, तो काफी हल्ला मचा। इसके बाद से ही बलदेवभाई शर्मा अपने को निष्पक्ष बताने की कोशिश में जुटे रहे।

सुनते हैं कि सरकार के करीबी लोगों को अलग-अलग माध्यमों से वे लगातार यह बता रहे थे कि उनका कोई एजेंडा नहीं है, और न ही आरएसएस से भी सीधा कोई नाता है। मगर नए साल में लोग उस वक्त हक्का-बक्का रह गए, जब वे भगवा पोशाक पहनकर विवि पहुंचे। प्रदेश के दूसरे विवि विद्यालयों में आरएसएस अथवा भाजपा से जुड़े कुलपति हैं, मगर इस तरह का पहनावा कभी किसी का नहीं रहा। बलदेवभाई चाहे कुछ भी कहे, लेकिन कपड़े के रंग से उनकी सोच जाहिर हो ही गई।

भाजपा में सौदान की जगह शिव

आखिरकार अ_ारह बरस बाद सौदान सिंह की छत्तीसगढ़ से बिदाई हो गई। उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर चंडीगढ़ भेजा गया, और उनकी जगह बंगाल में संगठन का काम देख रहे शिवप्रकाश को अन्य राज्यों के साथ छत्तीसगढ़ संगठन का प्रभार दिया गया है। सौदान सिंह  के छत्तीसगढ़ से हटने की खबर सोशल मीडिया में छाई रही। पार्टी के कुछ लोगों ने उन्हें फेसबुक पर जमकर कोसा, और छत्तीसगढ़ में भाजपा की दुर्दशा के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहरा दिया। अंदर की खबर यह है कि प्रदेश के ज्यादातर सांसद उनके खिलाफ मुखर थे, और राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष से शिकायत भी की थी।

वैसे तो विधानसभा चुनाव में हार के बाद से ही उन्हें हटाने की मांग जोर पकडऩेे लगी थी। भाजपा विधायक दल के नेता के चयन के बाद से पार्टी के एक खेमे ने तो सौदान सिंह से राजनीतिक चर्चा करना भी बंद कर दिया था। सौदान सिंह पर गुट विशेष को संरक्षण देने का आरोप लगते रहा है। कुछ लोग याद करते हैं कि वर्ष-2002 में जब वे छत्तीसगढ़ आए, तब सबको साथ लेकर चलने पर जोर देते थे। उस समय सौदान सिंह के प्रदेश महामंत्री (संगठन) पद पर होने के बाद भी एकतरफा फैसले नहीं लेते थे। हालांकि उस समय प्रदेश भाजपा में लखीराम अग्रवाल, बलीराम कश्यप, दिलीप सिंह जूदेव, ताराचंद साहू और रमेश बैस जैसे बड़े नेता मौजूद थे। रमन सिंह के साथ सौदान सिंह की तालमेल बढिय़ा रहा। मगर वे रमन विरोधी नेताओं को साध नहीं सके।

लखीराम, बलीराम, दिलीप सिंह जूदेव के निधन और फिर ताराचंद साहू के पार्टी से बाहर चले जाने के बाद सौदान सिंह की पार्टी में पकड़ मजबूत होती चली गई। संघ की पृष्ठभूमि से आए सौदान सिंह को राष्ट्रीय स्तर पर संगठन में जिम्मेदारी दी गई, लेकिन छत्तीसगढ़ से उनका मोह नहीं छूटा।

जिलाध्यक्ष तक की नियुक्तियों में सौदान सिंह का सीधा दखल रहता था। प्रदेश और जिला संगठन में नियुक्ति के बाद तो असंतुष्ट नेताओं ने उनके खिलाफ सीधा मोर्चा खोल दिया था। नई प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी रायपुर आई, तो कुछ बड़े नेताओं ने मौका पाकर सौदान सिंह के खिलाफ शिकायतें की। वाट्सअप पर प्रदेश प्रभारी को लगातार जानकारी दी जाने लगी थी। पार्टी के भीतर आदिवासी नेता नंदकुमार साय की अगुवाई में लामबंद हो गए थे, और उन्होंने पिछलेेेे दिनों खुले तौर पर बैठक भी की थी। इससे भी पार्टी हाईकमान के कान खड़े हो गए। नंदकुमार साय समेत ज्यादातर पार्टी के बड़े आदिवासी नेता सौदान सिंह के धुर विरोधी माने जाते हैं।

चर्चा है कि पार्टी ने भविष्य में संभावित नुकसान से बचने के लिए सौदान सिंह को छत्तीसगढ़ से बाहर भेजने का फैसला लिया। बताते हैं कि कुछ साल पहले भी सौदान सिंह को छत्तीसगढ़ के दायित्व से मुक्त करने की कोशिश की गई थी, उस वक्त सौदान सिंह मोबाइल पार्टी दफ्तर में जमा कर अपने गांव चले गए थे। बाद में उन्हें किसी तरह मनाया गया। मगर इस बार पार्टी ने प्रचारक के दायित्व से भी मुक्त कर बड़ा फैसला ले लिया। देखना है कि प्रदेश भाजपा में फैसले का क्या असर होता है।

छापे वाले सेल्फी लेने में लग गए

कोरोना संक्रमण के चलते वैसे तो न्यू ईयर पार्टी पर रोक लगी थी। लेकिन रायपुर के तकरीबन सभी बड़े होटलों में न सिर्फ पूरी रात पार्टी चली, बल्कि जाम भी छलके। एक होटल में तो बकायदा आबकारी अमला पहुंच भी गया था। पार्टी में शामिल लोग थोड़ी देर सहम गए, और जाम से भरी गिलास इधर-उधर छिपाने की कोशिश करने लगे। मगर थोड़ी देर में नजारा बदल गया, जो अमला छापा मारने के लिए आया था वह पार्टी में मशगुल हो गया। एक महिला अफसर तो सेल्फी लेते नजर आई। फिर क्या था, उत्साह दोगुना हो गया। वैसे भी खुशी मनाने का हक सबको होता है।

तथाकथित पैसेवाले, पढ़े-लिखे

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में जिस वार्ड में लोगों ने सफाई की मुहिम छेडऩे वाले अमर बंसल को पार्षद बनाया, उस वार्ड में लोगों की नालायकी का हाल यह है कि थोक में दारू पीकर खाली बोतलें नाली में बहा देते हैं, और बोतल खाली होने की वजह से पानी पर तैरती हुई नाव की तरह जाकर कहीं फंस जाती है। चूंकि लोगों के घरों से कचरा उठाया जा रहा है, रोज दो बार उठाया जा रहा है, इसलिए यह मस्ती छाई हुई है। अगर विकसित और सभ्य देशों की तरह नाली और सडक़ किनारे फेंके गए कचरे की छानबीन करके किसी बिल या रसीद, या किसी कागज के सहारे ऐसे नालायक लोगों तक पहुंचा जा सकता, तो उनके पोस्टर सडक़ किनारे लगाने चाहिए।

दरअसल जब तक सफाई करने के लिए दलित समुदाय के गरीब लोग जिंदा हैं, तब तक ऐसी आपराधिक गैरजिम्मेदारी दिखाना लोग अपना हक समझते हैं। रात-दिन सफाई कर्मचारी नालियों में उतरकर अपनी जिंदगी घटाते हैं, और इस सहूलियत की वजह से लोग नालियों को घूरे की तरह इस्तेमाल करते हैं। किसी बारात में आए हुए मेहमानों की तरह वार्ड के लोगों की ऐसी खातिर भी जायज नहीं है जो दलितों की जिंदगी नाली में ही तय कर दे।

जो लोग सस्ती दारू की दुकानों पर गरीबों की भीड़ को हिकारत से देखते हैं, उन्हें नालियां जाम करने वाले ये महंगे ब्रांड देखने चाहिए जो कि तथाकथित पैसे वाले, और तथाकथित पढ़े-लिखे लोग ही पी रहे हैं।

सुना है कि दारू पीने से सबके लीवर खराब नहीं होते, जो नालियों को इस तरह पाटते हैं, उन्हें सफाई कर्मचारियों की बद्दुआ लगती है, और उसी से लीवर खराब होता है, दारू नाहक ही बदनाम होती है।

कैदियों के लिये कोरोना खत्म

नये साल पर हर कोई खुशी की उम्मीद करता है। पर पैरोल पर छूटे कैदियों के नसीब में ये नहीं है। ओवर क्राउडेड जेलों में जब कोरोना फैलने का खतरा दिखा तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हाईकोर्ट जज की अनुवाई में, प्रदेश में भी एक समिति बनी और ऐसे कैदियों, विचाराधीन बंदियों को पैरोल पर छोड़ा गया जिनकी कुल सजा 7 साल या उससे कम है। छत्तीसगढ़ में ऐसे मामले करीब 4 हजार थे। इनको बार-बार राहत दी गई। मार्च के आखिरी सप्ताह से लेकर जो छूटे तो रिहाई का वक्त बढ़ता गया। वे अब तक इसका फायदा उठा रहे थे। पर यह अवधि 31 दिसम्बर को खत्म हो गई है। यानि एक जनवरी 2021 की सुबह से इन्हें जेलों में हाजिरी देकर वापस बैरक में चले जाना है। आज दोपहर तक यह आंकड़ा नहीं मिला कि कितने कैदी ईमानदारी के साथ वापस जेलों में बंद होने के लिये खुद से पहुंच गये। हो सकता है कि कुछ लोग जेलों में लौटना मंजूर न करें और बाहर रहकर अपने खिलाफ एक और मुकदमा दर्ज होने के लिये तैयार रहें। एक सजायाफ्ता ने कोरोना खत्म नहीं होने और जेलों में क्षमता से अधिक कैदी होने का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी। उसे राहत मिली, पर सिर्फ 6 जनवरी तक के लिये।

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