राजपथ - जनपथ
अब गिले-शिकवे बयां करने की जगह नहीं
मरवाही विधानसभा चुनाव में इतने अधिक अंतर से कांग्रेस को जीत मिली, जितनी नेताओं, कार्यकर्ताओं ने उम्मीद नहीं की थी। आखिरी वक्त तक कहते रहे- मुकाबला कड़ा है पर अच्छे वोटों से जीतेंगे। उम्मीद से ज्यादा बेहतर परिणाम आया और कांग्रेस को 38 हजार से ज्यादा मतों की बढ़त मिल गई। मतगणना और चुनाव परिणाम के बीच का एक सप्ताह सभी के लिये तनाव में गुजरा। यह भी तय कर लिया गया कि विपरीत परिणाम आने पर क्या-क्या कारण गिनाये जायेंगे। हार-जीत का फर्क कम होगा तब भी सवाल उठेंगे और जवाब लिया जायेगा। कांग्रेस के स्थानीय कार्यकर्ताओं में रोष था कि बिलासपुर और कोरबा से आये नेता-कार्यकर्ता उन पर हावी हो रहे हैं और भरोसा नहीं कर रहे हैं। मतदाताओं की खातिरदारी का सारा जिम्मा भी बाहर के नेताओं को दे दिया गया है।
जिला कांग्रेस अध्यक्ष के बेटे और भतीजे की महिलाओं से जुड़ी दो वारदातें चुनाव प्रचार के दौरान ही हो गई थी। इन महिलाओं के समाज के वोटों के फिसलने का डर बना हुआ था। इन सब पर आवाज उठाने के लिये कांग्रेस ने चुनाव परिणाम के बाद बैठक करने की योजना बना ली थी। पर नतीजा ऐसा आ गया कि किसी को कुछ कहने के लिये नहीं रह गया। अब सिर्फ जश्न जीत का मनाया जा रहा है। उल्टे भाजपा में जरूर विचार विमर्श हो रहा है कि इस बड़ी पराजय में किस-किस स्थानीय नेता की क्या भूमिका रही। एक महिला नेत्री जो टिकट की दावेदार भी थीं, उनका खामोश बैठ जाना, छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस से आखिरी दिनों में समझौता करना, जैसे मुद्दों पर पार्टी के भीतर विचार मंथन हो रहा है।
कोरोना वैक्सीन पर असमंजस
कोरोना वैक्सीन को लेकर बढ़ चढक़र दावे किए जा रहे हैं। यह कहा जा रहा है कि नए साल की शुरूआत में वैक्सीन आम लोगों तक पहुंच सकता है। केन्द्र सरकार ने तो वैक्सीन के रखरखाव के लिए राज्यों को व्यवस्था बनाने के लिए कह दिया है। मगर छत्तीसगढ़ सरकार इसको लेकर असमंजस में है। वजह यह है कि कौन सी वैक्सीन आएगी, यह तय नहीं है।
अमरीकी कंपनी फाइजर की वैक्सीन से जुड़ी जानकारी आई है, उसके मुताबिक माइनस 70 डिग्री तापमान में वैक्सीन को रखना होगा। और 15 मिनट के भीतर इसको लगाना होगा, तभी कारगर रहेगा। ऐसी वैक्सीन के लिए व्यवस्था बना पाना किसी भी सरकार के लिए बेहद कठिन है। केन्द्र सरकार ने वैक्सीन के रखरखाव के लिए व्यवस्था बनाने के लिए तो कह दिया है, लेकिन यह कब तक उपलब्ध करा पाएगी इसके बारे में कुछ नहीं कहा है।
कुछ जानकारों का अंदाजा है कि सब कुछ ठीक ठाक रहा, तो छत्तीसगढ़ में वैक्सीन की पहली खेप आने में छह माह का समय लग सकता है। तब तक मास्क और सामाजिक दूरी का पालन करने से ही कोरोना का बचाव हो सकता है।
मेहमाननवाजी नहीं हो रही प्रवासी पक्षियों की
पक्षियों की कोई सरहद नहीं होती। छत्तीसगढ़ में हर साल हजारों की संख्या में, हजारों किलोमीटर दूर चीन, साइबेरिया, तिब्बत और मध्य एशिया के देशों से करीब 70 तरह की पक्षियां पहुंचती हैं। नया रायपुर अटल नगर के सेंध जलाशय और जंगल सफारी के अंदर बने जलाशय में ये प्रवासी पक्षी आ चुके हैं। इसके अलावा धमतरी, दुर्ग, बेमेतरा, बिलासपुर के विभिन्न बांधों, तालाबों और जलाशयों में पक्षियों ने डेरा डाल रखा है। उनका ठंड का पूरा मौसम यहीं बीतेगा और जनवरी माह के आखिरी हफ्ते में लौटेंगे जब तापमान बढऩा शुरू होगा। रायपुर के जंगल सफारी में जरूर बर्ड वाचिंग टूर कराया जाता है और चारों ओर से घिरा होने के कारण यहां पक्षियों की सुरक्षा भी हो जाती है पर, बाकी स्थानों पर पक्षियों के रहवास को सहेजने के लिये कोई प्रयास नहीं किया जाता। वन विभाग दो चार जगह चेतावनी के बोर्ड लगाकर अपना कर्तव्य पूरा कर लेता है। कई जगहों से पत्थर मारकर, शोरगुल कर, तेज रफ्तार वाहन चलाकर इन पक्षियों को ठिकाना छोडऩे के लिये मजबूर कर दिया जाता है। प्रदेश में मेहमान पक्षियों की आवभगत और सुरक्षा के लिये कोई स्पष्ट नीति नहीं है।
यह तस्वीर ब्लू थ्रोट पक्षी की है जिसे नीलकंठी भी कहते हैं। दूसरे पक्षियों की आवाज की नकल करने में इसे महारत हासिल है। मात्र 15 सेंटीमीटर के इस पक्षी को हर साल बिलासपुर के नजदीक कोपरा जलाशय में देखने को मिल सकता है। यह तस्वीर छायाकार व वन्य जीव प्रेमी प्राण चड्ढा ने ली है।
फरियादी कैसे कोरोना से बचें और बचायें?
दीपावली की व्यस्तता खत्म होने के बाद प्रदेशभर में आज से चहल-पहल बढ़ गई है। हाईकोर्ट सहित प्रदेशभर की अदालतें खुल गई हैं। मंत्रालय, संचालनालय छोडक़र, सरकारी दफ्तरों में सौ फीसदी उपस्थिति का आदेश दिया गया है। अब सभा सम्मेलनों, बैठकों और स्कूलों की बारी है, बशर्ते कोरोना की दूसरी लहर प्रदेश में न पहुंचे। सरकारी कर्मचारियों को हिदायत दी गई है कि वे निजी वाहनों से दफ्तर पहुंचने की कोशिश करें क्योंकि बसों में यात्रा करने से सोशल डिस्टेंस बन नहीं पायेगा। एक तरफ सरकार बसों को चालू करने की अनुमति दे रही है तो दूसरी तरफ कर्मचारियों को निजी गाडिय़ों का इस्तेमाल करने कह रही है। दूसरी बात, अधिकारी, कर्मचारी निजी वाहन लेकर दफ्तर तो आ जायेंगे पर जिला मुख्यालय पहुंचने वाले दूर-दराज के गांवों के फरियादी, जिनकी हैसियत नहीं- कैसे निजी वाहन का इस्तेमाल करेंगे। मुलाकात तो आकर इन्हीं सरकारी कर्मचारियों से उनको करनी है। क्या तब कोरोना फैलने से रोका जा सकेगा?