राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : नेक काम की शुरुआत पुलिस खुद से करे..
24-Oct-2020 6:21 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : नेक काम की शुरुआत पुलिस खुद से करे..

नेक काम की शुरुआत पुलिस खुद से करे..

इन दिनों पुलिस महकमा ही नहीं विभिन्न जिलों के कलेक्टर, विधि विभाग, सब मिलकर महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों को लेकर गंभीरता दिखा रहे हैं। यौन प्रताडऩा, शारीरिक हिंसा, एसिड अटैक आदि की शिकार महिलाओं को मुआवजा देने की  दो साल से रुकी फाइलें आगे बढ़ रही हैं। अब हर जिले में सूची बन रही है, कुछ जिलों में तैयार भी हो गई है और जल्द मुआवजा बांटने का सिलसिला भी शुरू हो जायेगा। चीफ सेक्रेटरी ने बीते दिनों कलेक्टरों की बैठक लेकर ऐसे मामलों में फुर्ती लाने कहा था, अब डीजीपी ने भी जिले के कप्तानों को सचेत किया है।

शुक्रवार को हुई इस बैठक में पहली बार दंड और ईनाम के नियम बनाये गये हैं। अब गूगल स्प्रेड शीट पर हर दिन जानकारी अपडेट करनी होगी। पुलिस मुख्यालय में मॉनिटरिंग के लिये महिला सेल का गठन होगा। एफआईआर दर्ज होने के 15 दिन में गिरफ्तारी नहीं हुई तो जिले को यलो अलर्ट में, गिरफ्तारी के 15 दिन में चालान पेश नहीं होगा तो रेड अलर्ट में, गिरफ्तारी के 60 दिन में चालान पेश नहीं होने पर उस जिले की पुलिस को ब्लैक लिस्ट में डाल दिया जायेगा।

जाहिर है, ब्लैक लिस्ट में आने पर अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होगी। दूसरी तरफ तेजी से परिणाम देने वाले अधिकारियों को पुरस्कृत भी किया जायेगा।

छत्तीसगढ़ में टोनही प्रताडऩा और घरेलू हिंसा के बहुत मामले आते हैं, पेंडिंग की सूची बड़ी लम्बी है। एक पर राज्य ने, दूसरे पर केन्द्र ने कानून बना रखा है, जो प्रदेश में लागू है। एक महिला हेल्प डेस्क हर थाने में बनाने और वहां महिलाओं को प्रभार देने की बात निर्भया कांड के बाद हुई थी। अधिकांश डेस्क काम नहीं कर रहे। हेल्पलाइन नंबर वैसे तो 1091 और 1090 पूरे देश के लिये है, 181 में भी फोन किया जा सकता है पर ज्यादातर महिलाओं, विशेषकर घरेलू महिलाओं को इसके बारे में पता नहीं होता।

प्रदेश के कई जिलों में पुलिस विभाग के ही कई अधिकारी, कर्मचारियों पर ही महिलाओं के विरुद्ध अपराध के अनेक मामलों की जांच और कार्रवाई रुकी हुई है। क्या ही अच्छा हो कि पुलिस विभाग लगे हाथों ऐसे मामलों की भी समीक्षा कर ले। किसी भी नेक काम की शुरूआत खुद से करना ठीक रहेगा, पुलिस पर भरोसा बढ़ेगा।

बोधघाट के विरोध पर नक्सल दृष्टि

राज्य सरकार के बड़े फैसलों में 40 साल से रुकी बोधघाट परियोजना को मंजूरी देना भी एक है। अरविन्द नेताम सहित बस्तर के अनेक नेता इस परियोजना के विरोध में हैं। परियोजना का विरोध करने वालों का तर्क है कि इससे बस्तर को लाभ नहीं, परिवार जरूर उजड़ जायेंगे। जब परियोजना की कल्पना की गई तो बिजली उत्पादन ही उद्देश्य था, जिसकी अब जरूरत नहीं रह गई हैं। अभी भी चित्रकोट, बीजापुर, बारसूर में अनेक स्थानीय नेता इस परियोजना के विरोध में एकजुट हो रहे हैं। बताया जाता है कि इसमें कांग्रेस-भाजपा दोनों ही दलों के लोग शामिल हैं।

पिछले दिनों मारडूम थाना में भाजपा नेता व पूर्व विधायक लच्छूराम कश्यप और राजाराम तोड़ेम के खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दर्ज की। इन पर आरोप है कि उन्होंने कोविड-19 महामारी पर लगाई गई पाबंदी के खिलाफ जाते हुए बैठक रखी। यहां तक तो ठीक है पर कुछ ऐसी रिपोर्ट्स भी आ रही हैं कि ग्रामीणों में इस परियोजना के लेकर मौजूद शक को भुनाने के लिये नक्सली भी उनके करीब आ रहे हैं और ग्रामीणों के बीच अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। यह मौका उन्हें क्यों मिल रहा है? किसी योजना का गुण-दोष के आधार पर समर्थन या विरोध तो किया जा सकता है।

अभी दो ही दिन हुए हैं जब मुख्यमंत्री ने बस्तर के पंचायत प्रतिनिधियों की मांग पर नई औद्योगिक परियोजनाओं को मंजूरी देने की घोषणा की है। हर परियोजना के साथ समर्थन और विरोध की आवाजें लाजिमी है, उठेंगीं। ऐसी स्थिति में यह जरूरी प्रतीत होता है कि बस्तर के सरकारी नुमाइंदे, स्थानीय प्रशासन, जल संसाधन विभाग और सम्बन्धित विभागों के अधिकारी इन योजनाओं से जुड़ी शंकाओं का वे ग्रामीणों के बीच खुद जाकर निराकरण करें। सरकारी मशीनरी के कामकाम में पारदर्शिता और विश्वसनीयता बनी रहे। विरोध को नजरअंदाज करना, प्रशासन की दांडिक शक्ति पर भरोसा रखना गलत नजरिया हो सकता है। इससे बस्तर में शांति स्थापित करने की कोशिशों को धक्का लगता रहेगा।  

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