राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : फिर खबरों में, नफ़ा होगा, या नुकसान ?
24-Sep-2020 6:44 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : फिर खबरों में, नफ़ा होगा, या नुकसान ?

फिर खबरों में, नफ़ा होगा, या नुकसान ?

सोशल मीडिया पर बिना प्रमाण के व्यक्तिगत आरोप लगाना कभी-कभी भारी पड़ सकता है। ऐसे ही आरोप लगाने पर मेयर एजाज ढेबर और सभापति प्रमोद दुबे, भाजपा के प्रवक्ता गौरीशंकर श्रीवास के खिलाफ पुलिस में शिकायत कर दी। अभी तक तो पुलिसिया कार्रवाई हुई नहीं है, लेकिन देर सवेर प्रकरण तूल पकड़ सकता है। उत्साही गौरीशंकर श्रीवास ने फेसबुक पर अपने पोस्ट में लिखा कि सैनिटाइजर छिडक़ाव के नाम पर करोड़ों रूपए फूंक दिया गया। इसका नतीजा सब भुगत रहे हैं।

उन्होंने सभापति पर आरोप मढ़ा कि इस पानी छिडक़ाव में अपने घर की बस (शारदा ट्रेवल्स) को लगाकर लाखों रूपए का बिल वसूल लिया। भाजपा प्रवक्ता का आरोप है, तो जबाव देना ही था। एजाज और प्रमोद दुबे, दोनों ही इस फेसबुक पोस्ट को लेकर एसएसपी से शिकायत कर आए। सुनते हैं कि जिस शारदा ट्रेवल्स की बस का जिक्र भाजपा प्रवक्ता ने फेसबुक पोस्ट में किया है, दरअसल वह सारडा एनर्जी की फायरब्रिगेड थी। सारडा ग्रुप से सैनिटाइजर छिडक़ाव के लिए गाड़ी मांगी थी। इसके लिए सारडा ग्रुप को कोई भुगतान भी नहीं हुआ। अब व्यक्तिगत आरोप लगा दिए हैं, तो प्रवक्ता को जवाब तो देना होगा।

वैसे भी यात्री बस का उपयोग सैनिटाइजर का छिडक़ाव के लिए होने की बात कुछ अटपटी लगती है। इससे पहले भी इसी तरह प्रवीण सोमानी अपहरण कांड पर पोस्ट कर गौरीशंकर श्रीवास सुर्खियों में आ गए थे। उन्होंने लिखा था कि प्रवीण सोमानी को चार करोड़ रूपए देकर छुड़ाया गया है। बाद में पुलिस ने नोटिस देकर प्रमाण मांगे, तो श्रीवास फंस गए और किसी तरह माफी मांगकर अपने को बचाया था।

इस बार अपने आरोपों पर गौरीशंकर श्रीवास को तुरंत कोई नुकसान नहीं होना है, लेकिन मेयर-सभापति उनके खिलाफ शिकायत लेकर गए हैं, तो उल्टे प्रचार पा गए। जिसकी चाह हर नेता को रहती है। प्रदेश भाजपा की कार्यकारिणी गठन होना है। संभव है कि उल्टे-सीधे आरोप लगाकर चर्चा में रहने वाले नेताओं को जगह भी मिल जाए।

कल टीवी पर किसानों का चक्काजाम या दीपिका ?

25 सितम्बर को देशभर के अनेक किसान संगठन लोकसभा और फिर उसके बाद ध्वनिमत से राज्यसभा में पारित कृषि विधेयक के विरोध में चक्काजाम, प्रदर्शन करने जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ के अनेक किसान संगठनों और सभी वामपंथी दलों ने इस आंदोलन को समर्थन दिया है। कांग्रेस भी इस बिल के विरोध में है। राज्यसभा में जिस तरह से यह बिल ध्वनिमत से पारित किया गया उसे अलोकतांत्रिक तरीका बताते हुए कार्रवाई का बहिष्कार भी कर दिया। एनडीए सरकार ने इसका फायदा यह लिया कि दो दिन में रिकॉर्ड 15 विधयेक पारित हो गये। छत्तीसगढ़ में अमूमन उग्र किसान आंदोलन बहुत कम हुए हैं। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, यूपी में किसान ज्यादा मुखर हैं। वहां प्रदर्शन जबरदस्त हो सकता है। पर आपको यह सब टीवी पर कितना दिखेगा? आखिर विपक्ष के बहिष्कार को भी आप कितना देख पाये?  दो माह से तो सुशांत राजपूत-रिया चक्रवर्ती ने सारी जगह घेर रखी है। न्यूज चैनलों के हिसाब से देखें तो कल किसान आंदोलन से भी एक बड़ा मसला है। एनसीबी के सामने बॉलीवुड एक्टर दीपिका पादुकोण को पेश होना है। फिर 26 को श्रद्धा कपूर को बुलाया गया है। तो तैयार रहिये..अगले खुलासे को जानने के लिये। किसान के लिए किस मूर्ख चैनल पर जगह होगी? चैनल भी क्या किसान की तरह भूखा मरेगा?

कोरोना के खतरे से बेपरवाह एक जिला

अब जब प्रदेश का हर जिला कोरोना से आक्रांत होता जा रहा है, कलेक्टरों ने अपने-अपने जिलों में बारी-बारी लॉकडाउन दुबारा शुरू किया है। दो चार दिन के आगे-पीछे अमूमन हर जिला लॉकडाउन के घेरे में आ गया है। छोटे-छोटे जिले भी खतरा कम करने के लिये ऐसे कदम उठा रहे हैं। पर गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही जिला इन सबसे अलग है। एक बार वहां लॉकडाउन तब हुआ था, जब गिन-चुने केस थे और मौत केवल एक हुई थी। अब रोजाना पॉजिटिव केस मिल रहे हैं। इसी महीने पांच लोगों की मौत हो चुकी है और करीब 400 पॉजिटिव केस सामने आ चुके हैं। इसके बावजूद यहां लॉकडाउन को लेकर अफसरों के बीच कोई राय नहीं बनी है। हो भी कैसे, उप-चुनाव जो होने जा रहा है। हर दिन यहां नेताओं का काफिला और उसके पीछे समर्थकों की भीड़ निकल रही है। लॉकडाउन हुआ तो फिर चुनावी तैयारी कैसे होगी? इस बेपरवाही की कीमत जिले के आम लोगों को कहीं चुकाना न पड़ जाये। पता लगे कि चुनाव निपटने तक यहां आने-जाने वाला नेताओं का रेला कोरोना-वितरण केंद्र बन जायेगा !

लॉकडाउन के पहले मुनाफाखोरी

कोरोना महामारी से निपटने के लिये बारी-बारी छत्तीसगढ़ के प्राय: सभी शहरों, कस्बों में लॉकडाउन किया जा रहा है। तकनीकी तौर पर यह लॉकडाउन नहीं बल्कि पूरे क्षेत्र को कंटेनमेन्ट जोन घोषित किया जाना हुआ। केन्द्र सरकार के अनेक दिशानिर्देशों में यह भी है कि लॉकडॉउन केन्द्र की मंजूरी के बगैर नहीं किया जाना है और किया गया तो कम से कम 72 घंटे पहले इसकी सूचना सार्वजनिक करनी होगी। अब चूंकि तकनीकी रूप से लॉकडाउन है ही नहीं इसलिये अधिकारियों ने 72 घंटे पहले घोषणा करने की तकलीफ नहीं उठाई। कई जगह 48 घंटे तो कहीं कहीं 36 घंटे पहले ही पता चला कि हफ्ते, दस दिन के लिये सब कुछ बंद किया जाना है। लोग खासकर किराना सामान और सब्जियों को लेकर चिंता में पड़ गये। हर जगह से ख़बर आई कि बाज़ार में भीड़ टूट पड़ी। सब्जियां दुगने दाम पर बिकीं। हर एक जगह प्रशासन ने इस मनमानी से आंखें मूंद रखी थी, मानो उनकी जवाबदारी तो लॉकडाउन के बाद शुरू होती है। अब शिकायत भी कौन करे, लोग तो लॉकडाउन लागू होने के कारण घरों में कैद हैं और फिर क्या शिकायत करने से कुछ हो जायेगा?

फिर कई लोगों का यह भी कहना है कि सब्जीवाले अगर कुछ अधिक कमा भी ले रहे हैं, तो अगले कई दिन की कमाई तो खत्म ही है. लोग लॉक डाउन के बाद एक हफ्ते की सब्जी तो लोग अगले दिनों में खाएंगे नहीं।

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