राजपथ - जनपथ
पीएम के फोन का फायदा
पीएम ने पिछले दिनों जनसंघ के जमाने के दो पुराने नेता रजनीताई उपासने और देवेश्वर सिंह से फोन पर बातचीत की। रजनीताई वर्ष-77 में रायपुर शहर से विधायक रही हैं। जबकि देवेश्वर सिंह वर्ष-67 में सरगुजा जिले की लखनपुर सीट से जनसंघ के विधायक रहे। दोनों की उम्र अब 90 के आसपास हो चली है। पीएम का फोन आते ही दोनों के परिवारों में खुशी का ठिकाना नहीं रहा। पहले तो खुद दोनों नेताओं को एकाएक पीएम से बातचीत का भरोसा नहीं हुआ।
खैर, पीएम का फोन आने के बाद भाजपा में दोनों परिवार के लोगों की पूछपरख बढ़ गई है। पीएम से फोन पर बातचीत की सूचना पाते ही केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह तो अगले दिन लॉकडाउन तोडक़र देवेश्वर सिंह से मिलने पहुंच गईं। देवेश्वर सिंह बरसों से सरगुजा में रेल सुविधाओं के लिए लड़ते रहे हैं। पीएम से पांच मिनट की बातचीत में भी उन्होंने अंबिकापुर से दिल्ली तक नई ट्रेन शुरू करने की गुजारिश की। देवेश्वर के पुत्र मनीष सिंह भाजपा के पार्षद हैं और अब उन्हें काफी महत्व मिल रहा है।
कुछ इसी तरह का हाल रजनीताई के पुत्र सच्चिदानंद उपासने का भी है। हालांकि राज्य में भाजपा की सरकार रहते उन्हें सबकुछ दिया गया जिसकी चाह पार्टी कार्यकर्ताओं को रहती है। सच्चिदानंद को पार्षद, महापौर और विधायक की टिकट मिली, लेकिन वे कोई चुनाव नहीं जीत पाए। बावजूद इसके उन्हें मलाईदार दारू निगम का दायित्व सौंपा गया। इसके बाद भी उपासने की शिकायत रही है कि उन्हें टीबी डिबेट में मौका नहीं दिया जाता है, न ही उनके नाम से कोई बयान जारी होता है। इसको लेकर वे कई बार मीडिया विभाग के प्रमुख नलिनेश ठोकने से भिड़ चुके हैं। वरिष्ठ नेताओं से ठोकने की शिकायत भी कर चुके हैं। मगर पीएम के फोन के बाद अब उनकी स्थिति बदल गई है। वे प्रमुख टीवी चैनलों में अलग-अलग मुद्दों पर पार्टी का पक्ष रखते नजर आते हैं, तो अब नियमित रूप से उपासने के नाम से बयान भी जारी होने लगा है। पीएम के फोन का बड़ा फायदा हुआ है।
पत्रकारिता विवि, पत्रकारिता नहीं, राजनीति
मध्य प्रदेश में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में संजय द्विवेदी की कुलपति के रुप में ताजपोशी हो गई है। ताजपोशी, इसलिए क्योंकि मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने के ठीक दो महीने के भीतर संजय द्विवेदी की नियुक्ति हो गई है। इन दो महीनों में उन्हें दो बार प्रमोशन की सौगात मिली है। पहले उन्हें रजिस्ट्रार बनाया गया फिर अब कुलपति। पत्रकारिता विवि में इस त्वरित नियुक्ति का महत्व इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि मध्यप्रदेश में कोरोना ने कोहराम मचाकर रखा है और सरकार का भी गठन नहीं हो पाया है। इसके बावजूद वहां धड़ाधड़ नियुक्तियां और विवादित फैसले से अंदाजा लगाया जा सकता है कि राज्य सरकार की प्राथमिकता में पत्रकारिता विवि कितना ऊपर है, जबकि इसके उलट छत्तीसगढ़ में पूर्ण बहुमत वाली कांग्रेस सरकार में पत्रकारिता विवि में कुलपति की नियुक्ति भी सरकार की पसंद के खिलाफ हुई, पूरे एक साल तक तो कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय में कुलपति ही तय नहीं हो पाए, जबकि सर्कार में कई भूतपूर्व पत्रकार बैठे हुए थे, और हैं. ।
मध्यप्रदेश में पत्रकारिता विवि को प्राथमिकता दिए जाने के पीछे कई तरह की कहानियां सामने आती हैं । कहा जाता है कि साल 2018 के विधानसभा चुनाव में विवि का अमला बीजेपी के पक्ष में काम करता रहा। विवि के प्रोफेसर्स से लेकर स्टॉफ के कर्मचारी-अधिकारियों ने मीडिया, सोशल मीडिया से लेकर प्रचार-प्रसार में खूब बढ़-चढक़र हिस्सा लिया था। जिसका इनाम लगातार संजय द्विवेदी को मिल रहा है। संजय द्विवेदी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को कड़वा खुला पत्र लिखकर भी चर्चा में आए थे। खैर, जो भी बात हो सभी सरकारों की अपनी-अपनी प्राथमिकताएं होती हैं, जिसके मुताबिक वे काम करती हैं। लेकिन कई बार प्राथमिकताओं को नजर अंदाज करने से विरोधी हावी भी हो सकते हैं। यही स्थिति छत्तीसगढ़ के पत्रकारिता विवि की है, जहां सरकार विरोधी हावी होते दिखाई दे रहे हैं। विवि से जुड़े लोगों का मानना है कि पत्रकारिता विवि पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले दिनों में वहां कट्टर हिन्दूवादी सोच वालों का ही राज चलेगा। उधर, कुछ लोगों को उम्मीद है कि छत्तीसगढ़ सरकार एक्शन में आएगी और यहां के पत्रकारिता विवि का चिठ्ठी खुलेगा। इसी भरोसे में एक छत्तीसगढिय़ा और चंडीगढ़ के चितकारा विवि के प्राध्यापक आशुतोष मिश्रा ने राष्ट्रपति, यूजीसी, सीएम और राज्यपाल को ई-मेल के जरिए पत्र लिखा है, जिसमें संजय द्विवेदी की नियुक्ति रद्द करने की मांग की गई है। उन्होंने कहा है कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों राज्यों के पत्रकारिता विवि में ही उनकी नियुक्ति के खिलाफ हाईकोर्ट में मामले चल रहे हैं। छत्तीसगढ़ में संजय द्विवेदी की नियुक्ति की जांच की गई तो दोनों राज्यों के विवि पर असर पड़ेगा। हालांकि भोपाल के विवि में किसी भी नियुक्ति का सीधा कनेक्शन छत्तीसगढ़ से नहीं है, लेकिन संजय द्विवेदी दोनों राज्यों में काम कर चुके हैं, इस लिहाज से यहां असर दिखाई पड़ता है। यही कराण है कि वहां के किसी भी धमाके का असर यहां भी होता है। लोग तो इस बात से घबराए हुए हैं कि भोपाल में धमाके से रायपुर में विस्फोट न हो जाए।