राजपथ - जनपथ
सोशल मीडिया कुम्भ के मेले जैसा होता है. इस पर हर किसी को अपनी मर्जी का कुछ ना कुछ करने की गुंजाईश मिलती है. अब कोरोना के बीच कुछ लोग बेबस लोगों की तकलीफदेह कहानियां पोस्ट कर रहे हैं, एक वीडियो इतना दर्दनाक है कि एक महिला बिहार की सड़कों पर छोटे से बच्चे को लेकर दौड़ रही है उसे एम्बुलेंस नहीं मिल रही, और दौड़ते हुए ही उसकी गोद में बच्चे/बच्ची की मौत हो जाती है. कुछ लोग हॉस्पिटल्स के डॉक्टर-नर्सों के वीडियो पोस्ट कर रहे हैं कि किस तरह वे बिना सही मास्क, पोशाक, और दस्तानों के रात-दिन कोरोना मरीजों से जूझ रहे हैं. मोर्चे पर ही मर जाने वाले डॉक्टरों के वीडियो भी पोस्ट हो रहे हैं. भूखे मजदूरों के भी कई वीडियो पोस्ट हो रहे हैं, कि किस तरह वे रस्ते में कई दिनों से फंसे हुए भूखे हैं. बेरोजगारों के वीडियो की तो कोई जगह ही नहीं है।
इन्हीं के बीच-बीच कई लतीफे पोस्ट हो रहे हैं, मजेदार कार्टून पोस्ट हो रहे हैं, गुलाबजामुन बनाकर उसकी तस्वीर पोस्ट हो रही है, और हिन्दुस्तानी महिलाओं के बीच इस देश में भी और पश्चिम में भी हो रहे साड़ी -चैलेंज की तस्वीरें पोस्ट हो रही है, किसी संपन्न विदेश से तो साड़ी चैलेंज का वीडियो भी आया है. कुछ लोग अपने कुत्तों की फोटो पोस्ट कर रहे हैं, तो कुछ ने चैलेंज किया है कि अपने किसी पर्यटन की फोटो पोस्ट करें।
अपने सोशल मीडिया पेज पर से गुजरते हुए इतनी जल्दी-जल्दी झटके लगते हैं, दिमाग भन्ना जाता है. भूख, और गुलाबजामुन, नर्स बिना मास्क के, और संपन्न महिला घर में बनारसी साडिय़ां बदल-बदलकर। बुजुर्गों की जुबान में कहें तो सरद-गरम हो जाने का खतरा लगता है दिमाग को।
सरकारी स्मगलिंग
खबर है कि कोरबा के बाद राजनांदगांव जिला कोरोना संक्रमण का नया केन्द्र हो सकता है। वैसे तो अभी तक राजनांदगांव में कोरोना के एक ही मरीज का पता चला है और वह भी ठीक हो चुका है। बावजूद इसके इस सीमावर्ती जिले को स्वास्थ्य अफसर कोरोना के मामले में काफी संवेदनशील मान रहे हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार और स्थानीय प्रशासन कुछ नहीं कर रही है। महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की सीमा से सटे इस जिले को पूरी तरह सील कर दिया गया है। कलेक्टर खुद इस पर निगरानी रखे हुए हैं और बाहर से आने वाले लोगों को यहां प्रवेश की अनुमति नहीं दे रहे हैं। इसके लिए उन्हें नेताओं का कोपभाजन भी बनना पड़ रहा है।
सुनते हैं कि कई प्रभावशाली लोगों ने महाराष्ट्र से अपने लोगों को राजनांदगांव लाने के लिए तोड़ निकाल लिया है और परिवहन विभाग के लोगों से सांठ-गांठ कर महाराष्ट्र से अपने लोगों को नांदगांव लाने में सफल रहे हैं। महाराष्ट्र में कोरोना बेकाबू हो रहा है और देश में कोरोना के सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में ही आए हैं। ऐसे में बिना किसी जांच के बाहर से आए लोगों से राजनांदगांव में कोरोना संक्रमण का खतरा मंडरा रहा है।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि कोरबा जिले के कटघोरा में सबसे ज्यादा कोरोना के मरीज मिले हैं। दिलचस्प बात यह है कि जिस कोरोना संक्रमित युवक के जरिए कटघोरा में कोरोना फैला वह नागपुर से ही आया था। यानी महाराष्ट्र से आए इस युवक की लापरवाही से कटघोरा कोरोना का हॉट स्पाट बन गया। परिवहन विभाग में प्रतिनियुक्ति पर आए पुलिस अफसर इस खतरे को नजर अंदाज कर जिस तरह लोगों को राजनांदगांव से प्रदेश में दाखिल करवा रहे हैं, उससे आने वाले दिनों में स्थिति और गंभीर हो सकती है।
अब मीडिया भी चौकीदार
कोरोना के इस युग में मीडिया की ड्यूटी भी चौबीस घंटे सातों दिन हो गई है। मीडिया के लोग रात-रात भर काम कर रहे हैं। कब कहां से क्या खबर मिल जाए, इसका कोई भरोसा नहीं रहता। कोरोना की नियमित बुलेटिन रात 8-9 बजे तक मिल जाती है, लेकिन उसके बाद नए मरीज या पॉजिटिव केस के अपडेट के लिए जूझना जैसी स्थिति रहती है। कटघोरा में 7 नए पॉजिटिव केस की जानकारी शनिवार आधी रात बाद मिली। इसके बाद टीवी चैनल्स, वेब पार्टल और सोशल मीडिया के जरिए रात भर खबरों और उससे जुड़े अपडेट का आदान प्रदान होता रहा। सूचना पहुंचाने का ये काम तकरीबन रात भर चलता रहा। आमतौर पर अखबार के एडिशन छूट जाने के बाद अपडेट की संभावना नहीं रहती। इसी तरह न्यूज चैनल्स में रात 12 बजे के बाद बुलेटिन रिकार्डिंग मोड पर चलते हैं, लेकिन मौजूदा हालत में ऐसी परिस्थितियां बिल्कुल नहीं रही। बुलेटिन री-रोल हो रहे हैं और अखबारों में भी देर रात खबरें अपडेट हो रही हैं। तमाम अखबारों के पोर्टल भी हैं, जिसके कारण भी पत्रकारों और मीडिया के लोगों के लिए जागते रहो-जागते रहो की चौकीदार वाली स्थिति बन गई है।
मीडिया के लिए सीखने का भी समय
कोरोना काल में मीडिया को चुनौतियों के साथ सीखने-समझने का भी मौका मिल रहा है। आधी रात के बाद कोरोना पॉजिटिव मरीजों की जानकारी सामने के बाद पता चला कि सभी को रायपुर के एम्स में शिफ्ट किया जा रहा है, तो टीवी चैनल्स और अखबारों के कैमरे वहां पहले से तैनात हो गए। पौ फूटने से पहले एम्बुलेंस सभी मरीजों को लेकर यहां पहुंच भी गई। जाहिर है कि उनका इंतजार कर रहे मीडिया के लोगों को विजुअल और फोटो भी मिल गए। कोरोना मरीजों की खबरें और तस्वीर प्रकाशित करने के लिए भी तमाम तरह के नियम कायदे हैं। मरीजों के संबंध में नाम, चेहरा को गोपनीय रखने के गाइडलाइन है। लेकिन कई बार तस्वीरों में पहचान, धर्म को गोपनीय रखना काफी मुश्किल होता है। यहां भी कुछ इसी तरह की स्थिति है। मरीजों का चेहरा भले न दिखे, लेकिन उनके पहनावे उनके धर्म को उजागर कर देते हैं। ऐसे में इस बात का ध्यान भी रखना जरुरी है कि पहचान का मतलब केवल चेहरा नहीं है, बल्कि पहनावे से लेकर आभूषण, ताबीज जैसी कई ऐसी चीजें हैं, जिनसे उनके धर्म और मजहब का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे नियम कायदों के पालन के लिए तमाम तरह की बारीकियों का ध्यान रखना भी जरुरी हो जाता है। लिहाजा, इस समय में मीडिया को सीखने का भी मौका मिल रहा है। ([email protected])