राजपथ - जनपथ
फनसिटी से जाने देना, फन खत्म
म्युनिसिपल की तुलना में जिला पंचायत चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन कुछ बेहतर रहा है। कवर्धा, जशपुर, बस्तर और बलरामपुर में तो भाजपा का अध्यक्ष बनना ही था, लेकिन राजनांदगांव, बेमेतरा और कोरिया में अपना अध्यक्ष बिठाने के लिए काफी कुछ संसाधन झोंकना पड़ा। रायपुर में तो एक दिन पहले तक भाजपा के साथ 9 सदस्य दिख रहे थे, और पार्टी के रणनीतिकार पूरी उम्मीद पाले थे कि अध्यक्ष पद पर उनका कब्जा होगा। जबकि पिछली बार सरकार होने के बाद भी पार्टी यहां अपना अध्यक्ष नहीं बिठा पाई थी। मगर इस बार तो दुर्गति हो गई। अध्यक्ष पद के भाजपा समर्थित उम्मीदवार को बुरी हार का सामना करना पड़ा।
सुनते हैं कि रायपुर में अध्यक्ष-उपाध्यक्ष पद पर कब्जा जमाने के लिए भाजपा के रणनीतिकारों ने पुख्ता रणनीति तैयार की थी। शहर के बाहर एमएम फन सिटी में सभी जिला पंचायत सदस्यों के खाने-पीने की व्यवस्था की गई थी। खाने-पीने के बाद दो सदस्य राजू शर्मा और मोहन साहू (जिला पंचायत सदस्य पति) वहां से निकल गए। पार्टी के रणनीतिकारों ने उन्हें जाने भी दिया। वैसे भी राजू शर्मा का परिवार तो जनसंघ के जमाने से पार्टी के साथ रहा है। और वैसे भी उन्हें उपाध्यक्ष का प्रत्याशी बनाना तय हुआ था। मगर रणनीतिकार गच्चा खा गए। राजू शर्मा, मोहन साहू के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए।
दो सदस्यों के टूटने के बाद भी पार्टी के रणनीतिकारों को चमत्कार की उम्मीद थी, क्योंकि कांग्रेस समर्थित तीन सदस्य, भाजपा के संपर्क में थे, मगर चुनाव नतीजे आए, तो ठीक इसका उल्टा हुआ। अध्यक्ष चुनाव में झटका मिलने के बाद भाजपा के रणनीतिकार फिर एकजुट हुए। और अपने साथ के सदस्यों को खरी-खोटी सुनाई। बताते हैं कि दो महिला सदस्य तो रो पड़ी। बाद में साथ रहने का कसम खाकर बैठक से उठे। इसके बाद भाजपा के रणनीतिकारों ने कांग्रेस समर्थित सदस्यों पर डोरे डालना शुरू किया। कांग्रेस के जो तीन सदस्य संपर्क में थे, उनकी मतदान के पहले जरूरतें पूरी की गर्इं। तब कहीं जाकर उपाध्यक्ष पद पर भाजपा का कब्जा हो पाया।
हम नहीं तो कांग्रेस भी नहीं...
बलौदाबाजार और बेमेतरा में कांग्रेस को झटका लगा है। यहां अध्यक्ष-उपाध्यक्ष के चुनाव में भाजपा ने अजय चंद्राकर के फार्मूले पर काम किया। अजय ने चुनाव के पहले सुझाया था कि जहां अध्यक्ष-उपाध्यक्ष बना पाना संभव न हो, वहां निर्दलीय को समर्थन कर कांग्रेस को रोकने की कोशिश की जाए। पार्टी की यह रणनीति दोनों जिलों में कारगर रही।
बलौदाबाजार में तो कांग्रेस को भारी समर्थन मिला था। कांग्रेस ने जिस उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारा था, वह आर्थिक रूप से बेहद सक्षम था। सुनते हंै कि कांग्रेस उम्मीदवार ने राजीव भवन के मठाधीशों को साध लिया था। इसका नतीजा यह रहा कि जिला पंचायत सदस्यों की रायशुमारी के बिना ही उन्हें प्रत्याशी घोषित कर दिया। भाजपा को सदस्यों की नाराजगी की भनक लगी और कांग्रेस के ही एक अन्य धड़े को उचकाया। कांग्रेस के सदस्य दो फाड़ हो गए। फिर क्या था कांग्रेस समर्थित अधिकृत उम्मीदवार को हार का मुख देखना पड़ा। भाजपा के सहारे कांग्रेस के बागी प्रत्याशी को जीत हासिल हो गई।
चर्चा है कि हार के बाद कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार काफी गुस्से में हैं। उनके समर्थकों ने मतगणना स्थल के बाहर हंगामा भी मचाया था। कुछ इसी तरह का बेमेतरा में भी हुआ। यहां भाजपा ने बागी को उपाध्यक्ष का पद देकर अध्यक्ष पद हथिया लिया। इन सब जीत के बाद भी भाजपा की पंचायत चुनाव में अब तक की सबसे बड़ी हार है।
पुनिया कौन होते हैं तय करने वाले...
इन दिनों छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पुलिस लोगों को हेलमेट पहनाने की कोशिश कर रही है, और कांग्रेस पार्टी के एक विधायक यह साबित करने में लगे हैं कि जनता का सिर भीतर से खाली रहता है, उसमें कोई नाजुक चीज नहीं रहती है, और कोई खतरा नहीं रहता है, इसलिए हेलमेट पहनना जरूरी न हो। जनता के वोटों से जीतने के बाद जनता के सिर में दिमाग होने पर इतना गहरा शक छोटी बात नहीं है, और जब ऐसी जनता ने वोट दिया है, और उसे बेदिमाग समझा जा रहा है, तो आगे फिर चुनाव तो आएगा ही। चारों तरफ खबरें हैं कि कांग्रेस विधायक विकास उपाध्याय की इस बात को लेकर राष्ट्रीय कांग्रेस के छत्तीसगढ़ प्रभारी पी.एल. पुनिया से बड़ी नोंकझोंक हुई है, और विधायक ने पुनिया को ऐसा कहा जाता है कि कहा है कि अब उन्हें राजनीति क्या पुनिया से सीखनी पड़ेगी? बात तो सही है, पुनिया और उनके बेटे दोनों ही चुनाव हार चुके हैं, और विकास उपाध्याय जीते हुए विधायक हैं, इसलिए यह तय करने का हक तो विधायक का ही होना चाहिए कि जनता के सिर के भीतर दिमाग बिल्कुल भी नहीं है, हेलमेट की जरूरत बिल्कुल भी नहीं है। ([email protected])