राजपथ - जनपथ
चुनाव प्रभारी के अपने घर में...
बिलासपुर मेयर-सभापति के चुनाव में कांग्रेस को वाकओवर देने पर भाजपा ने विवाद शुरू हो गया है। यहां भाजपा बहुमत से ज्यादा दूर नहीं थी, बावजूद इसके उसने मैदान छोड़ दिया। इसको लेकर खुद पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल पार्टी नेताओं के निशाने पर आ गए हैं। अमर अग्रवाल नगरीय निकाय चुनाव के लिए पूरे प्रदेश में पार्टी के प्रभारी थे। ऐसे में उनके खुद के शहर के म्युनिसिपल में पार्टी का बुरा हाल हो गया। इससे परे जगदलपुर में भाजपा बहुमत से बहुत पीछे थी। फिर भी पूरी दमदारी से मेयर का चुनाव लड़ी और कांग्रेस को भी तोडऩे की कोशिश की, यद्यपि इसमें सफलता नहीं मिल पाई।
इसके उलट बिलासपुर में एक दिन पहले तक पार्टी ने मेयर-सभापति का चुनाव लडऩे के लिए तैयारी पूरी कर ली थी। पार्टी पर्यवेक्षक प्रेमप्रकाश पाण्डेय भी वहां पहुंच गए थे। सुनते हैं कि मेयर के नाम को लेकर अमर अग्रवाल और धरमलाल कौशिक एकराय नहीं थे। फिर नांदगांव से ज्यादा बुरा हाल होने की आशंका थी।
नांदगांव में तो सिर्फ एक पार्षद ने क्रास वोटिंग की थी, लेकिन बिलासपुर में तो 4 से 5 भाजपा पार्षदों की क्रास वोटिंग के संकेत मिल गए थे। ये पार्षद अमर अग्रवाल की पसंद पर मुहर लगाने के लिए तैयार नहीं थे। हल्ला यह भी है कि धरमलाल कौशिक और प्रेमप्रकाश पाण्डेय, किसी भी दशा में मैदान छोडऩे के पक्ष में नहीं थे। ऐसे में अमर अग्रवाल ने सीधे सौदान सिंह से चर्चा की। फिर क्या था, सौदान के हस्तक्षेप के बाद पार्टी ने चुनाव लडऩे का इरादा छोड़ दिया।
राजनीति के कुछ जानकारों का यह मानना है कि जीतने की संभावना तो नहीं थी, लेकिन क्रास वोटिंग से पार्टी भीतर ही भीतर और टूट गई होती, विपक्ष में बैठी भाजपा के लोग भी एक-दूसरे के प्रति शक से भरे रहते, और चुनाव के बाद यह एक दूसरा नुकसान हुआ रहता। ऐसे में जंग न लडक़र सिपाहियों को जख्मी होने से बचाने, और दुश्मन खेमे में जाने से रोकने के लिए ऐसा किया गया होगा।
ऐसे लोगों को सजा दिलवाएं...
कल देश भर में केन्द्र सरकार और भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं की अपील पर नागरिकता-संशोधन कानून का समर्थन दर्ज करने के लिए एक टेलीफोन नंबर तय किया गया था जिस पर लोग एक मिस्डकॉल देकर यह काम कर सकते थे। जब खर्च न करना पड़े तो हिन्दुस्तानी लोग ऐसा मिस्डकॉल देते भी हैं। और लोगों को याद है कि कुछ बरस पहले जब देश भर में भाजपा ने सदस्यता अभियान चलाया था, तो उस वक्त भी ऐसी ही मिस्डकॉल से मेंबर बनाए गए थे, और उनकी गिनती भी जाहिर की गई थी, यह एक अलग बात है कि उसके बाद के चुनाव में भाजपा को उतने वोट भी नहीं मिले थे जितने सदस्य बनाने का उसका दावा था। अब नागरिकता-समर्थन का मामला थोड़ा सा ठीक रहता, लेकिन सोशल मीडिया ट्विटर पर जिस अश्लील किस्म के आकर्षक न्यौते देकर लोगों को इस टेलीफोन नंबर पर कॉल करने के लिए उकसाया गया, उसे देखकर सब लोग हक्का-बक्का हैं। क्या किसी एक गंभीर राजनैतिक-सामाजिक मुद्दे पर समर्थन जुटाने के लिए सेक्स के आकर्षण का सहारा लिया जाना चाहिए? अब इंसाफ तो यही कहता है कि जब तक यह साबित न हो जाए कि भाजपा ने ऐसा किया, तब तक यह मानना चाहिए कि पता नहीं किसने ऐसा किया। काल्पनिक रूप से तो यह भी मानना चाहिए कि भाजपा के विरोधियों ने भाजपा को बदनाम करने के लिए उसके दिए गए नंबर को सेक्स-न्यौतों के साथ जोडक़र, फ्री-इंटरनेट, फ्री-डेटा, फ्री-नेटफ्लिक्स, मुफ्त नागरिकता का लालच दिया। लेकिन कुल मिलाकर केन्द्र सरकार भाजपा के हाथ है, और उसे या तो अपने आपको ऐसे बाजारू तरीकों से अलग होने का भरोसा दिलाना चाहिए, और ट्विटर पर दर्ज ऐसे न्यौते पोस्ट करने वाले दसियों हजार लोगों के खिलाफ जुर्म कायम करना चाहिए कि उसने भाजपा जैसी बड़ी पार्टी का नाम बदनाम करने के लिए ऐसी साजिश की है। जिन लोगों ने ऐसे झांसे पोस्ट किए हैं, उनके पिछले महीनों के ट्वीट देखें, तो उनकी राजनीतिक विचारधारा साफ दिखती है, फिर भी यह भाजपा की जिम्मेदारी है, और भाजपा अगुवाई वाली केन्द्र सरकार का अधिकार है कि ऐसे लोगों को सजा दिलवाए जिन्होंने भाजपा को ऐसी बदनामी दिलवाई है।