राजपथ - जनपथ
स्मार्ट सड़क और स्मार्ट नेता
रायपुर स्मार्ट सिटी की एक सड़क को स्मार्ट बनाने की दिशा में काम चल रहा है। फिलहाल सड़क तलाशने में ही अफसरों को दिक्कत हो रही है। सुनते हैं कि एक सड़क चिन्हित जरूर की गई है, लेकिन उसको लेकर विवाद चल रहा है। चर्चा है कि सड़क के किनारे सत्तारूढ़ दल के एक प्रभावशाली नेता की जमीन है। नेताजी की तरफ से भी सड़क को स्मार्ट बनाने के लिए काफी दबाव भी है। मगर ऊंचे ओहदे पर बैठे नेताजी के खिलाफ कई तरह की शिकायतें सीएम तक पहुंची है। ऐसे में अफसर उक्त सड़क को स्मार्ट बनाने का प्रस्ताव तैयार नहीं कर पा रहे हैं।
कुछ इसी तरह की स्थिति महाराजबंद तालाब के किनारे की सड़क की है। इस सड़क को स्मार्ट बनाया जा रहा है। यानी इस सड़क में अंडरग्राउंड डक, ड्रेनेज-सीवरेज और अंडरग्राउंड इलेक्ट्रिक-वाटर सिस्टम होगा। 25 साल तक इस सड़क की खुदाई नहीं हो सकी है। दिलचस्प बात यह है कि सड़क के आस-पास बसाहट नहीं है। चूंकि आगे महामाया मंदिर के आसपास की गरीब बस्तियां हैं इसलिए भारी वाहनों की आवाजाही भी कम रहेगी। ऐसे में सड़क तो सुरक्षित रहेगी ही। एक बात और, कि सड़क के किनारे भाजपा नेताओं ने जमीन खरीद ली है। यानी स्मार्ट सड़क से आम लोगों को फायदा हो न हो, भाजपा नेता की कौडिय़ों की जमीन करोड़ों की हो गई है।
कुछ अनौपचारिक सा नुक्कड़ टी-कैफे
बड़े-बड़े ब्रांड की कॉफी शॉप का बिल बड़ा-बड़ा बनता है। ऐसे में छत्तीसगढ़ में रायपुर से शुरू करके ऐसे टी-सेंटर शुरू हुए हैं जो कि कम दाम पर चाय-कॉफी और खाने-पीने के सामान रखते हैं। शहर के एक नौजवान प्रियंक पटेल ने ऐसा नुक्कड़ टी-कैफे तो शुरू किया ही है, उसके साथ सामाजिक सरोकार की कई बातों को जोड़ा भी है। वहां पर काम करने वाले जितने कर्मचारी हैं, वे या तो सुन-बोल नहीं सकते, या फिर वे थर्डजेंडर समुदाय के हैं। कुल मिलाकर ऐसे कर्मचारी जिन्हें आमतौर पर कोई काम पर न रखे, और जिनसे या तो लिखकर बात हो सकती है, या इशारों की जुबान में, वे ही वहां काम करते दिखते हैं। पहली बार वहां गए लोगों को कुछ अटपटा जरूर लगता है, लेकिन धीरे-धीरे बिना जुबान भी बात होने लगती है। लोगों को कागज पर लिखकर ऑर्डर देना होता है, और इशारों से ही बिल बन जाता है।
इसे शुरू करने वाले प्रियंक पटेल ने इसके भीतर तरह-तरह की रचनात्मक और साहित्यिक गतिविधियों के लिए भी एक कोना बनाया है, एक बुकशॉप बनाई है, और हैण्डलूम के कपड़ों की बिक्री का एक कोना भी है। जलविहार कॉलोनी में एक घर मेें ही मामूली फेरबदल करके, मामूली साज-सज्जा करके यह जिंदा जगह विकसित की गई है जहां समय-समय पर लोग कभी किसी का तजुर्बा सुनने के लिए जुटते हैं, तो कभी किसी की कविताओं को सुनने के लिए।