राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : दुर्ग में भाजपा का दुर्ग घिर गया...
08-Nov-2019
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : दुर्ग में भाजपा का दुर्ग घिर गया...

दुर्ग में भाजपा का दुर्ग घिर गया...
भाजपा के दुर्ग-भिलाई संगठन चुनाव में गड़बड़ी की शिकायत दिल्ली दरबार तक पहुंच गई है। प्रदेश पदाधिकारियों की बैठक में खूब हल्ला मचा। पहली बार दुर्ग जिले के सरोज पांडेय विरोधी नेता, एक साथ नजर आए। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि दुर्ग-भिलाई में  सरोज के मनमाफिक ही मंडल से लेकर जिलों में पदाधिकारी तय होते हैं। प्रेम प्रकाश पांडेय की हालत तो यह हो गई थी कि वे पिछली सरकार में भले ही मंत्री थे, लेकिन जिला तो दूर, मंडल तक में एक भी पदाधिकारी उनके साथ नहीं था। हाल यह रहा कि उन्होंने पार्टी के प्रति समर्पित कार्यकर्ताओं को एकजुट कर राम दरबार नामक एक अलग संगठन खड़ा किया था जो उनके लिए पार्टी गतिविधियों का संचालन करता था।

मगर इस बार के चुनाव में विरोधी सरोज के दबदबे को खत्म करने के लिए विरोधी पूरी तरह तैयार नजर आए। इस बार प्रेमप्रकाश को सांसद विजय बघेल और जिले के एक मात्र भाजपा विधायक विद्यारतन भसीन का साथ मिला। तीनों ने मिलकर सरोज के खिलाफ आवाज बुलंद की। जब उनके साथ जब प्रदेश पदाधिकारियों की बैठक में पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर और शिवरतन शर्मा भी मुखर हुए, तो पार्टी में खलबली मच गई। 

सुनते हैं कि पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं ने दुर्ग-भिलाई के चुनाव में गड़बड़ी की शिकायतों पर प्रदेश के चुनाव अधिकारी रामप्रताप सिंह से जवाब मांगा है। मगर इन सबके चलते पार्टी के गुटीय समीकरण बनते-बिगड़ते दिखे हैं। शिवरतन शर्मा, जो कि प्रेमप्रकाश पांडेय-अजय चंद्राकर के करीबी माने जाते हैं, उनका सरोज के खिलाफ मुखर होना चौंकाने वाला रहा। दिलचस्प बात यह है कि शिवरतन शर्मा ने पिछली सरकार में मंत्री बनने के लिए सरोज से सहयोग मांगा था। 

सरोज ने शिवरतन को मंत्री बनवाने के लिए काफी प्रयास भी किया था, लेकिन सफलता नहीं मिल पाई। अब प्रदेश में सरकार तो रही नहीं, ऐसे में शिवरतन पुराने साथियों के साथ ही दिखे। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, पूरे प्रदेश में बृजमोहन-प्रेमप्रकाश और अजय खेमे के खिलाफ भले ही हों और उन्होंने नेता प्रतिपक्ष के चुनाव में इन सबको झटका भी दिया था, लेकिन दुर्ग-भिलाई की राजनीति में इस खेमे के साथ ही दिखे। 

मजे की बात यह है कि रमन विरोधी खेमे के माने जाने वाले बृजमोहन अग्रवाल बैठक में विलंब से पहुंचे। तब तक दुर्ग-भिलाई एपिसोड खत्म हो चुका था। उनके देरी से पहुंचने के भी मायने निकाले जा रहे हैं, क्योंकि उनके सरोज पांडेय से मधुर संबंध हैं। बृजमोहन के ही करीबी रायपुर सांसद सुनील सोनी को बैठक में हंगामे का अंदाजा पहले ही था इसलिए वे एक दिन पहले ही दिल्ली निकल गए। बैठक खत्म होने के बाद रायपुर पहुंचे। सौदान सिंह तो झारखंड चुनाव का बहाना बनाकर रायपुर ही नहीं आए। इतना शोर-शराबे के बाद सरोज विरोधियों की शिकायतों का निराकरण हो पाता है या नहीं, देखना है।

धार्मिक रिवाज और महिलाएं...
छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेश के बाजार देखें तो साल में आधे दिन सड़क किनारे किसी न किसी त्यौहार के सामान बिकते दिखते हैं। कभी-कभी तो ऐसा होता है कि एक त्यौहार के सामान हटे नहीं, और अगले त्यौहार के सामान ठीक उसी तरह धक्का-मुक्की करने लगते हैं जिस तरह हिन्दुस्तानी ट्रेनों में मुसाफिर उतर नहीं पाते, और नए मुसाफिर चढऩे लगते हैं, या किसी सार्वजनिक इमारत में लिफ्ट से लोग उतर नहीं पाते, और नए लोग चढऩे लगते हैं। ऐसे ही सड़क किनारों पर त्यौहारों के और भंडारों के पंडालों का भी होता है, और वे धक्का-मुक्की करते दिखते हैं। धार्मिक त्यौहारों पर इतनी बिजली चोरी होती है, और त्यौहार इस तरह लगातार चलते हैं कि बिजली दफ्तर को पता ही नहीं चलता कि किसी महीने चोरी कम हुई है, किस महीने अधिक हुई है। थानों को भी पता नहीं चलता कि कब त्यौहार कम थे, कब अधिक, कब सड़कों पर तैनाती अधिक थी, और कब सिपाही खाली थे। 

लेकिन कई धर्मों के कई त्यौहारों को देखें, तो नदी-तालाब में कचरा बढ़ाने से लेकर, सड़कों और मोहल्लों में ट्रैफिक जाम से लेकर शोरगुल बढ़ाने तक त्यौहार कई तरह से सार्वजनिक जिंदगी भी तबाह करते हैं, और निजी बदन भी। कई धर्मों में लोग तरह-तरह के उपवास करते हैं, अन्न नहीं खाते हैं, या एक वक्त खाते हैं, या सिर्फ शाम से सुबह तक खाते हैं, और इसके साथ-साथ वे इस तरह की चीजें खाते हैं जिनसे बदन को नुकसान छोड़ कुछ नहीं होता। नदियों के प्रदूषण से लेकर बदन के प्रदूषण तक, धार्मिक त्यौहार कई चीजें बढ़ाते हैं। और अगर यह देखें कि कई धर्म अपने समुदाय की महिलाओं का कितना वक्त त्यौहारों में जोतकर रखते हैं, यह समझ पड़ता है कि उसके रिवाज बनाने वाले आदमियों ने यह तय कर रखा था कि औरतों को बराबरी के कोई काम करने ही नहीं देने हैं। साल भर में जाने कितना वक्त महिलाओं को त्यौहारों की तैयारी करने, त्यौहार मनाने, और फिर पसारा समेटने में लगाना पड़ता है! जाहिर है कि इसके बाद या इसके साथ वे और कोई उत्पादक काम तो अधिक कर नहीं सकतीं।

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