राजपथ - जनपथ
एयरपोर्ट तक सफर और बेवकूफी
जो लोग देश की राजधानी दिल्ली से हवाई अड्डे के रास्ते सफर करते हैं, वे अगर पूरे रास्ते बाकी गाडिय़ों को देखें, और एयरपोर्ट तक के रास्ते को देखें तो समझ आता है कि दिल्ली में इतना प्रदूषण क्यों है। और यह बात महज दिल्ली की नहीं है, जिस-जिस शहर में एयरपोर्ट है, उन तमाम शहरों में यह बात देखने में मिलती है कि एक-एक मुसाफिर को छोडऩे के लिए बड़ी-बड़ी गाड़ी एयरपोर्ट आती-जाती है। औसतन हर मुसाफिर के लिए 50 से 100 किलोमीटर का सफर एक गाड़ी आने-जाने में करती है। एक मामूली सी समझदारी यह हो सकती है कि शहर और एयरपोर्ट के बीच, शहर के करीब कोई ऐसी खुली जगह तय कर दी जाए जहां से बसें सामान सहित लोगों को एयरपोर्ट ले जा सके, और कारें वहीं से शहर लौट जाएं। इसी तरह वे बसें लौटते में आए हुए मुसाफिरों को ऐसी जगह तक ले आएं जहां से लोग अपनी निजी कार या टैक्सी से बाकी रास्ता तय कर सकें। दिल्ली में तो यह लगता है कि ऐसी दो-तीन जगहें बनाई जा सकती हैं जिनसे हर कार के 20-25 किलोमीटर का सफर घट सकता है। अभी तक हिन्दुस्तान के किसी शहर में ऐसा देखने-सुनने में आया नहीं है कि एयरपोर्ट तक का लंबा रास्ता घटाकर शहर के किनारे एक बस स्टैंड ऐसा बनाया जाए जहां से आगे लोगों का जाना एक साथ हो सके, सड़कों पर गाडिय़ां घटें, ईंधन घटे, और प्रदूषण भी घटे। खर्च की फिक्र तो किसी को है नहीं!
टेक्नालॉजी और टोटका
दिल्ली पर ही एयरपोर्ट के ठीक पहले जो आखिरी रेडलाईट पड़ता है, उस पर सुबह-सुबह से बहुत से बच्चे थमी हुई गाडिय़ों को नींबू और मिर्च का टोटका बेचते दिखते हैं। हर कार के शीशे खटखटाते हुए वे अंधविश्वास की दहशत को दुहते हैं, और अपना पेट भी पालते हैं। अब टेक्नालॉजी के एक बड़े इस्तेमाल, हवाई सफर के पहले भी अगर ऐसा टोटका बिक रहा है, तो टेक्नालॉजी का क्या मतलब? और फिर यह भी कि जाने वाले मुसाफिर नींबू-मिर्च को ले जाकर कहां बांधेंगे? हवाई जहाज पर किसी जगह बांधेंगे, या पायलट के गले में? ([email protected])