राजपथ - जनपथ

उधर संसद, इधर विधानसभा
इधर छत्तीसगढ़ की राजधानी नया रायपुर में राज्य की पहली औपचारिक विधानसभा की इमारत बनने जा रही है, और उधर दिल्ली में संसद की नई इमारत का काम शुरू होना है। जब छत्तीसगढ़ राज्य बना तो विधानसभा का पहला सत्र तो राजकुमार कॉलेज के अहाते में एक शामियाने में हुआ था, और उसके बाद शहर में खाली पड़ी हुई केन्द्र सरकार की एक इमारत में विधानसभा लगी। जब विद्याचरण शुक्ल केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री थे तब उन्होंने रायपुर में केन्द्र सरकार का जल संसाधन का एक संस्थान मंजूर करवाया था, और उसी इमारत में मामूली फेरबदल करके पिछले करीब 20 बरस से वहां विधानसभा चल रही है। अब नया रायपुर में जाहिर है कि जिस तरह हर इमारत कुछ अधिक ही आलीशान बन रही हैं, विधानसभा भी वैसी ही बनेगी। किफायत की सोच का सरकार में अधिक महत्व नहीं रहता, इसलिए अधिक से अधिक आलीशान बनाने की सोच न सिर्फ सरकार में रहती है, बल्कि जब बिलासपुर में हाईकोर्ट की इमारत बन रही थी, तब उस वक्त के जजों ने सरकार से अधिक से अधिक बजट मंजूर करवाया, और खर्च किया।
दूसरी तरफ संसद की नई इमारत के खिलाफ शरद यादव ने आज लिखा है कि 11 बार सांसद रहने के बाद मुझे यह कहना मेरी ड्यूटी लगती है कि संसद को नई इमारत की जरूरत नहीं है। इसी इमारत को मजबूत किया जा सकता है या इसमें सुधार हो सकता है। उन्होंने लिखा कि ये इमारतें दिल्ली के इस हिस्से में हिन्दुस्तान की विरासत और इतिहास हैं।
संसद की यह इमारत अंग्रेजों के वक्त बनी थी, और उनके फैसलों में किफायत की कोई जगह नहीं होती थी। लेकिन आजाद हिन्दुस्तान की सरकारों को इस गरीब देश के लोगों की रकम अपनी निजी रकम से भी अधिक कंजूसी से खर्चनी चाहिए।
नई बातें पुरानी यादें...
राजधानी रायपुर में आज इस बात को लेकर पिछले मंत्री राजेश मूणत कलेक्टर तक पहुंचे कि गणेश विसर्जन की झांकियों के अभिनंदन के लिए हर बरस की तरह इस बार उन्हें जगह नहीं दी जा रही है। इससे कुछ पुरानी यादें ताजा होती हैं जब महाकोशल कला वीथिका के संस्थापक कल्याण प्रसाद शर्मा विसर्जन झांकियों पर पुरस्कार रखते थे, और पत्रकारों को जज बनाकर रात भर एक पुरानी दुकान की चबूतरे पर बिठाते थे। वक्त के साथ-साथ गणेश विसर्जन शोरगुल और अंधाधुंध चीनी रौशनी का मामला हो गया है। उस वक्त शहर में एक संगीत समिति भी होती थी, जिसका नाम रायपुर संगीत समिति था, और उसमें तमाम गायक-संगीतकार स्थानीय लोग थे, और उनका कार्यक्रम सुनने के लिए लोग रात भर खड़े भी रहते थे। एक-दो आर्केस्ट्रा पार्टी नागपुर से भी बुलाई जाती थीं, और उन्हें सुनने भीड़ बड़ी भारी लगती थी। वक्त गुजर गया और पुराने लोगों के बीच ऐसी यादें बची हुई हैं। आज सबसे बड़े कारोबार वाले एमजी रोड पर एक मुकुंदलाल पेंटर हुआ करते थे, जो वहीं बैठकर मूर्तियां बनाते थे। उनकी बनाई प्रतिमाएं चूंकि अधिक खूबसूरत रहती थीं, इसलिए महंगे में बिकती थीं।
पत्रकारिता विवि बापू से दूर...
छत्तीसगढ़ सरकार गांधी के ग्राम स्वराज के फार्मूले पर काम कर रही है। गांधीजी के विकास को मॉडल को समझने और समझाने के लिए लगातार कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे हैं। सूबे के मुखिया भूपेश बघेल भी ऐसे ही कार्यक्रम में शामिल होकर साफ संदेश दे रहे हैं कि उनकी सरकार बापू के बताए रास्ते पर चलने की कोशिश कर रही है। बापू की जयंती के मौके पर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जा रहा है। कुपोषण के खिलाफ राज्य सरकार 2 अक्टूबर से पूरे प्रदेश में अभियान चलाने वाली है। राज्य की कांग्रेस सरकार की मंशा एकदम साफ है, इसके बावजूद छत्तीसगढ़ के पत्रकारिता विवि में उलटी गंगा बह रही है। पिछले दिनों राजधानी के रविशंकर विवि में गांधी और आधुनिक भारत विषय पर सेमीनार का आयोजन किया गया। जिसमें सीएम भी शामिल थे, लेकिन इस कार्यक्रम में पत्रकारिता विवि के स्टूडेंट्स और शिक्षकों को जाने की इजाजत नहीं मिली। यहां उसी दिन शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम रखा गया था। विवि में इस बात की जमकर चर्चा है कि गांधी तो हमारे राष्ट्रपिता हैं। यह कोई राजनीतिक आयोजन भी नहीं था। ऐसे में कार्यक्रम से दूरी बनाने का कोई तर्क नहीं है। ऐसे में बड़ा सवाल यह कि अब तो छत्तीसगढ़ में सरकार बदल गई है फिर भी विवि में अभी भी पुरानी सरकार का राज चल रहा है। गर ऐसी चर्चाओं में दम है तब तो सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए, क्योंकि अब गांधी बाबा के मार्ग पर चलना चाहते हैं, लेकिन दूसरी तरफ नई पीढ़ी को इससे वंचित करने का काम उनके नाक के नीचे विवि प्रशासन द्वारा किया जा रहा है।
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