राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : माणिक मेहता का ताजा निशाना
11-Aug-2019
 छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : माणिक मेहता का ताजा निशाना

माणिक मेहता का ताजा निशाना
छत्तीसगढ़ के ताजा हालात देखने वाले लोगों को माणिक मेहता का महत्व मालूम है। माणिक की बहन से प्रदेश के सबसे चर्चित और विवादास्पद पुलिस अफसर मुकेश गुप्ता ने शादी की थी, और मिकी मेहता की मौत के बाद माणिक लगातार मुकेश गुप्ता के खिलाफ सरकार से लेकर अदालत तक की लड़ाई लड़ रहे थे। मुकेश गुप्ता के शासनकाल में माणिक मेहता को सही-गलत कई किस्म के मामलों में गिरफ्तार करके जेल भी भेज दिया गया था, और वे अपनी माँ सहित प्रदेश के सबसे प्रताडि़त लोगों में से एक थे। अब जब भूपेश सरकार ने इस राज्य में पहली बार मुकेश गुप्ता पर कानूनी कार्रवाई शुरू की है, तो माणिक मेहता का महत्व एकदम से बढ़ गया है। बरसों पुरानी शिकायतें भी उनकी हैं, और वे सबसे बड़े गवाह भी हैं, और उनके पास कई सुबूत भी हैं। लोग मुकेश गुप्ता की आंधी चलने के दौर में माणिक से बात करने से भी कतराते थे क्योंकि माणिक और उनकी माँ के फोन पूरे वक्त टैप होते रहते थे। अब वे इस सरकार में एक आजाद नागरिक की तरह काम कर रहे हैं, और सरकार के कुछ लोगों के खिलाफ सोशल मीडिया पर लिख भी रहे हैं। कल ही उन्होंने राहुल गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांगे्रस के ट्विटर अकाउंट को टैग करते हुए छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े पुलिस अफसर पर हमला बोला है।

डीजीपी डी.एम. अवस्थी के पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन के वक्त के हिसाब-किताब पर सीएजी की आपत्तियों को गिनाते हुए उन्होंने राहुल गांधी से पूछा है कि जिस भ्रष्टाचार में राज्य सरकार ने ईओडब्ल्यू-एसीबी को जांच के आदेश दे दिए हैं, उस जांच से डी.एम. अवस्थी का नाम क्यों हटा दिया गया है? कांगे्रस और राहुल से माणिक मेहता ने सवाल किया है कि क्या कांगे्रस भी छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन सिंह सरकार के रास्ते पर चलेगी जिससे कि इस पार्टी का राज्य में शर्मनाक सफाया हो गया? राहुलजी, कब होगा न्याय?

माणिक ने पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन के हिसाब-किताब पर सीएजी की रिपोर्ट के पन्ने भी ट्विटर पर डाले हैं जो बड़ी आर्थिक अनियमितता के आंकड़ों के हैं। अब जानकार लोग माणिक के पीछे की ऐसी वर्दीधारी ताकतों के नाम की अटकलें लगा रहे हैं जिन्हें डी.एम. अवस्थी से कोई हिसाब चुकता करना है। डी.एम. अवस्थी का मानना है कि इस राज्य में अकेले माणिक मेहता को ही पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन के उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार दिखता है।

सूझा, मगर बहुत देर से...
सरकारी बंगलों के लिए खींचतान मची हुई है। कांग्रेस के कई विधायकों को बंगला आबंटित किया गया है। चूंकि मंत्री तो बनाया नहीं जा सकता था। वरिष्ठता देखकर बंगला ही दिया गया है। इसके बाद भी कई इंतजार में हैं। निगम-मंडल अध्यक्षों की घोषणा के बाद मारकाट और बढऩे वाली है। सुनते हैं कि जिला पंचायत अध्यक्ष शारदा वर्मा को उनके पांच साल के कार्यकाल के आखिरी बरस में, अभी कुछ महीने पहले सिविल लाइन में बंगला आबंटित किया गया था, वे उस बंगले में जाने ही वाली थीं कि उसे अब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मोहन मरकाम को दे दिया गया। जबकि शारदा वर्मा का कार्यकाल कुछ माह बाकी है। इससे परे पूर्व सांसद रमेश बैस त्रिपुरा के राज्यपाल बन गए हैं, लेकिन सरकारी बंगले पर उनका कब्जा बरकरार है। 

सरकारी बंगले का मोह पालने वाले राजनेताओं को दिवंगत सुषमा स्वराज से सीख लेनी चाहिए। सुषमा मंत्री पद से हटते ही तीन घंटे के भीतर सरकारी बंगला खाली कर एक तीन कमरे के निजी फ्लैट में रहने चली गई थीं। सुनते हैं कि कई सांसदों ने उन्हें अपने नाम पर बंगला आबंटित कराकर उसमें ही रहने का आग्रह किया था। कई केन्द्रीय मंत्रियों ने भी उन्हें इसी तरह का सुझाव दिया था, लेकिन वे नहीं मानीं। सुषमा ने तो सरकारी बंगले में रहने के लिए दबाव बना रहे सांसद मनोज तिवारी को झिड़क तक दिया और कहा कि सभी पूर्व लोग सरकारी बंगले में रहेंगे, तो वर्तमान लोग कहां जाएंगे। उनका मानना था कि पद से हटने के बाद सरकारी सुविधाएं नहीं लेनी चाहिए।

दो दिन पहले रायपुर के भाजपा कार्यालय में सुषमा स्वराज की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा हुई तो भाजपा नेता-कार्यकर्ता उमड़ पड़े। इस कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने याद किया कि किस तरह सुषमा स्वराज ने तुरंत ही सरकारी बंगला खाली कर दिया था। वहां मौजूद भाजपा के एक नेता ने बाहर निकलकर एक अखबारनवीस से कहा कि डॉक्टर साहब को कुछ महीने पहले यह बात सूझ गई होती तो वे मुख्यमंत्री निवास में महीनों तक नहीं रहते जिसे लेकर नए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भी बोलने का मौका मिला था। इन महीनों में भूपेश राज्य अतिथि गृह पहुना में रहकर काम कर रहे थे।

सोनिया से बड़ी उम्मीदें
सोनिया गांधी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष चुन ली गईं। पार्टी के एक बुजुर्ग नेता मानते हैं कि राजीव गांधी के बाद सोनिया ही पार्टी की सबसे सफल अध्यक्ष रही हैं। राजीव के बाद नरसिम्ह राव और सीताराम केसरी पार्टी के अध्यक्ष पद पर रहे। मगर सोनिया के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई। केन्द्र में कांग्रेस की 10 साल गठबंधन सरकार रही, 16 राज्यों में कांग्रेस-गठबंधन की सरकार रही, लेकिन राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी नहीं हो पाई। सिर्फ चार राज्यों में ही सरकार रह गई है। ऐसे में सोनिया की वापसी से कांग्रेस उम्मीद से है। छत्तीसगढ़ के लोगों को यह भी लग रहा है कि सोनिया युग की इस दूसरी किस्त में पहली किस्त के सबसे करीबी रहे मोतीलाल वोरा का महत्व भी खासा बढ़ जाएगा, एक बार फिर से।
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