राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : जस्टिस मुल्ला याद आते हैं...
06-Aug-2019
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : जस्टिस मुल्ला याद आते हैं...

जस्टिस मुल्ला याद आते हैं...

छत्तीसगढ़ में पुलिस का हाल यह है कि अलग-अलग आईजी रेंज, और अलग-अलग जिलों में संगठित भ्रष्टाचार देखने लायक है। एक आईजी ने अभी कुछ समय पहले 80 हजार रूपए का एक पिल्ला खरीदा है जिसके बारे में उनके मातहत बताते हैं कि इसका भुगतान एक नए बने जिले के पुलिस से किया गया था, और पिल्ले को लेने के लिए दो सिपाही राजधानी रायपुर की पुलिस लाईन से भेजे गए थे। 

इसी तरह जिलों और आईजी रेंज में सारा महकमा जानता है कि साहब की तरफ से चोरी के कबाड़ की खरीद-बिक्री का ठेका किस अफसर को दिया गया है, कौन सा अफसर जुआ-सट्टा से वसूली-उगाही का इंचार्ज बनाया गया है, और कौन रेत की अवैध खुदाई के धंधे का इंचार्ज बनाया गया है। बिलासपुर और कोरबा के पूरे इलाके में कोयले का अवैध कारोबार करने वाले सारे लोगों को मालूम है कि उन्हें प्रति ट्रक पैसा किसे पहुंचाना है। पुलिस विभाग का यह संगठित भ्रष्टाचार देखकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक वक्त के मशहूर जज, जस्टिस आनंद नारायण मुल्ला का वह विख्यात फैसला याद पड़ता है जिसमें उन्होंने लिखा था- 'मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ यह कह रहा हूं कि पूरे भारत में एक भी ऐसा अपराधी गिरोह नहीं है जिसका जुर्म का रिकॉर्ड भारतीय पुलिस के संगठित जुर्म के आसपास भी फटक सकता हो।Ó 

छत्तीसगढ़ में पुलिस के मुखिया चाहे बदल जाएं, फील्ड में अफसर चाहे बदल जाएं, लेकिन यह संगठित भ्रष्टाचार निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की नजरों के नीचे, और हो सकता है कि उनकी अनुमति, सहमति, और भागीदारी से चलता हो। पिछली रमन सरकार के समय के जिन पुलिस अफसरों पर आज कार्रवाई हो रही है, आज के पुलिस अफसर पांच बरस बाद ऐसी ही कार्रवाई के लिए फिट कैंडीडेट रहेंगे। कोयले के काले कारोबार में छत्तीसगढ़ में हर बरस दसियों हजार करोड़ की संगठित चोरी होती है, और बिलासपुर-सरगुजा के जानकार जानते-बताते हैं कि पुलिस की हिस्सेदारी के बिना एक टोकरा कोयला भी चोरी नहीं हो सकता। 

पुलिस और प्रशासन के जानकार लोगों के बीच बैठें तो तुरंत ही यह पता लगने लगता है कि कौन सा अफसर किस भ्रष्टाचार में लगा हुआ है। अब 80 हजार का पिल्ला खरीदने वाले अफसर ने पुलिस कल्याण कोष से ढाई-तीन लाख रूपए के घरेलू सामान भी खरीद लिए, लेकिन इस कोष के इंचार्ज एसपी ने भुगतान से मना कर दिया, तो अब बाकी पुलिस वाले मिलकर दो नंबर के कोष से इसका भुगतान कर रहे हैं। इसके अलावा अफसर का भिलाई में मकान बन रहा है, और जाहिर है कि उसकी लागत जुटाने के लिए एक-एक करके पुराने विभागीय मामले खत्म किए जा रहे हैं, नए मामले दर्ज किए जा रहे हैं, और फिर उनको खत्म करके मकान की और लागत जुटाई जा रही है। 

सुब्रमणियम से नाराजगी
कांग्रेस के कश्मीरी नेता छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस बीवीआर सुब्रमणियम से नाखुश चल रहे हैं। सुब्रमणियम वहां के मुख्यसचिव हैं। सुब्रमणियम करीब डेढ़ साल से जम्मू-कश्मीर का प्रशासन संभाल रहे हैं और केन्द्र सरकार उनके काम से खुश भी है। मगर, जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम गुलाम नबी आजाद को लगता है कि सुब्रमणियम भाजपा के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं। 

सुनते हैं कि गुलाम नबी आजाद ने छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी पीएल पुनिया को सुब्रमणियम को वापस छत्तीसगढ़ बुलाने की सलाह दी है। इस पर पुनिया ने आजाद से कहा कि उन्होंने सुब्रमणियम को लेकर अच्छा ही सुना है। वे डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते उनके सचिव रह चुके हैं। तब आजाद ने उनसे कहा कि वे जम्मू-कश्मीर में गैर भाजपाई नेताओं की नहीं सुन रहे हैं। चाहे तो छत्तीसगढ़ सरकार उन्हें अपने यहां का मुख्य सचिव बना सकती है। पुनिया ने इस पर छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल से चर्चा करने की बात कही है। 

कई बार ऐसा हुआ जब राज्य सरकार ने अड़कर केन्द्र में पदस्थ अपने कैडर के अफसरों को वापस बुलाया है। तमिलनाडु की सीएम जयललिता ने पी शंकर को केन्द्र सरकार से लड़कर उन्हें वापस बुलाया था और मुख्य सचिव बनाया। हाल ही में राजस्थान की गहलोत सरकार ने यह तय किया है कि किसी भी अफसर को केन्द्र में नहीं भेजा जाएगा। यहां खुद सीएम भूपेश बघेल ने मौजूदा मुख्य सचिव सुनील कुजूर को एक्टेंशन देने की सिफारिश केन्द्र सरकार से की है, तो ऐसे में सुब्रमणियम को छत्तीसगढ़ बुलाए जाने की संभावना नहीं है। इस खबर से सुब्रमणियम के छत्तीसगढ़ के दो दूसरे बैचमैट सीके खेतान और आरपी मंडल के लिए अगला मुख्य सचिव बनने का मुकाबला थोड़ा सा हल्का हो सकता है। 

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