राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : पति, पत्नी और वो...
12-Jun-2019
 छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : पति, पत्नी और वो...

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में डिप्टी कलेक्टर रैंक के दो लोग एक पब्लिक सेक्टर गेस्ट हाऊस में मिले, और हंगामा हो गया। इनमें से पुरूष अफसर शादीशुदा है, और पत्नी न्यायपालिका में काम करती है। खबरों के मुताबिक उसे शक था कि पति का इस दूसरी महिला अफसर से चक्कर चल रहा है, और उसने छापामार अंदाज में दोनों को बंद कमरे में पकड़ा और पुलिस भी बुला ली। अखबारी खबरों में तो बिना सुबूत नाम और तस्वीरें छापना कुछ कानूनी दिक्कत की बात भी रहती है, लेकिन मैसेंजर की मेहरबानी से अब मोबाइल फोन पर कुछ मिनटों में ही इनके फेसबुक पेज की तस्वीरें तैरने लगीं, और लोग चेहरे देखकर हैरान भी होने लगे कि इतनी सुंदर महिला अफसर इस तरह एक शादीशुदा आदमी के साथ पकड़ाई। लेकिन दिल पर किसका बस चलता है, वह न उम्र देखता, न चेहरा। बड़े-बुजुर्ग पहले से कह गए हैं, दिल लगा गधी से, तो परी क्या चीज है?
चूंकि इस प्रेम त्रिकोण में तीनों लोग सरकारी नौकरी वाले हैं इसलिए राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी भी बनती है कि कम से कम प्रेमी-प्रेमिका को तो दूर-दूर तैनात कर दे। छत्तीसगढ़ ऐसे मामले के लिए बड़ी अच्छी जगह इसलिए भी है कि एक को जशपुर और दूसरे को सुकमा में तैनात कर दिया जाए तो मोहब्बत का असली इम्तिहान भी हो जाएगा, और सरकार का कामकाज भी चलता रहेगा। हालांकि लोगों का कहना है कि जियो की मेहरबानी से लोग अब पूरे चौबीस घंटे मोहब्बत निभा भी सकते हैं, कुल चार सौ रूपए महीने में! 

उसेंडी-गागड़ा की चुप्पी का राज
आखिरकार भूपेश सरकार ने आदिवासियों के तगड़े विरोध के बाद बैलाडीला के डिपॉजिट-13 में खनन के लिए वृक्षों की कटाई पर रोक लगा दी है। साथ ही परियोजना से जुड़े सारे कार्य भी रोक दिए गए हैं।  यहां खनन का ठेका अडानी समूह को मिला हुुआ है। दिलचस्प बात यह है कि आदिवासियों के विरोध प्रदर्शन में कांग्रेस के नेता तो बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे, लेकिन भाजपा के नेता इससे दूर रहे। 

सुनते हैं कि भाजपा के रणनीतिकारों ने प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी और पूर्व मंत्री महेश गागड़ा को इस प्रकरण से जुड़े कुछ दस्तावेज देकर प्रेस कॉन्फ्रेंस लेने के लिए कहा था। दोनों नेताओं ने इसका अध्ययन किया और फिर बाद में प्रेस कॉन्फ्रेंस लेने से मना कर दिया। बैलाडीला के डिपॉजिट-13 के जिस नंदराज पर्वत पर खुदाई होनी थी वह आदिवासियों की आस्था से जुड़ा हुआ है। ये दोनों आदिवासी नेता भी यहां खनन के खिलाफ बताए जाते हैं। चूंकि खदान आबंटन से जुड़ी सारी प्रक्रिया रमन सरकार के समय हुई है और केंद्र में भी भाजपा की सरकार रही है। ऐसे में खदान को लेकर कुछ भी बोलने का मतलब अडानी के पक्ष में बोलने का होता, और अपने लिए परेशानी पैदा करने जैसा होता। यही वजह है कि कुछ बोलने से बेहतर चुप रहना उचित समझा।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चूंकि 15 बरस के विपक्षी किरदार में गैरसरकारी सामाजिक संगठनों और आंदोलनों के करीब रहे, इसलिए उन्हें आदिवासी मुद्दों की समझ भी बेहतर है। पिछली सरकार अफसरों के काबू की थी, और इस बार की सरकार में सरकार से बाहर की भी कुछ राय चलती है। नतीजा यह हुआ है कि अधिक टकराव के बिना सरकार पीछे हट गई है।

जलते में क्या पहचान?
जंगल में आग लगी। न जाने कितने जंगली जानवर जल-भुनकर मर गए। जंगली जानवरों के गोश्त के शौकीन ताक में थे कि कोई जंगली जानवर जंगल से भागते आए तो पकड़ें और गोश्त का मजा लें। बुरी तरह जला एक जानवर इनकी पकड़ में आ गया। रात का अंधेरा था, पहचान हुई कि यह तो  सांभर (हिरण की एक प्रजाति) है। बस कुछ ही मिनट में इनके हाथों इस जानवर को जान गंवानी पड़ी। गोश्त बना, दोस्तों को भी दावत में शामिल किया। परिजनों तक को भिजवाया। छककर खाकर सो गए। सुबह हुई तो एक सिल-लोढ़ा पत्थर बेचने वाला गांव आकर पूछ रहा था मेरे गधे को देखा क्या? कल जंगल की ओर गया था। गोश्त उड़ाने वालों को अब समझ में आया कि खाया क्या? अब गोश्त किसी भी जानवर का हो वह तो पच ही चुका था। 

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