श्रमिकों का नुकसान कर रहा श्रम विभाग
छत्तीसगढ़ में असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की बड़ी तादाद है, जिनके लिए सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं बनाई गई हैं। मगर इन योजनाओं का लाभ तभी मिलेगा, जब श्रमिकों का पंजीकरण हो। समस्या यह है कि पंजीकरण की प्रक्रिया अब भी इतनी जटिल है कि लाखों मजदूर इससे वंचित रह रहे हैं।
पीरियाडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) के मुताबिक, 22 फरवरी 2025 तक राज्य में केवल 63.68त्न असंगठित श्रमिक ही ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकरण करा पाए हैं। यह राष्ट्रीय औसत (63.25त्न) से थोड़ा बेहतर जरूर है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि स्थिति संतोषजनक है। 36-37त्न मजदूर अब भी पंजीकरण से बाहर हैं, यानी उन्हें कानूनी सुरक्षा और योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ही ई श्रम पोर्टल बनाया गया है। शीर्ष अदालत ने इस विषय पर कई बार सुनवाई की और सरकार को निर्देश भी दिए। फिर भी अगर एक बड़ी आबादी इससे छूट रही है, तो इसका सीधा मतलब है कि उन तक पंजीकरण के फायदों की जानकारी नहीं पहुंच रही। वे खुद पंजीकृत कराने में असमर्थ हैं। मजदूरों के पास न तो डिजिटल संसाधन हैं, न ही तकनीकी दक्षता। दूसरी ओर, नियोक्ताओं की इसमें कोई दिलचस्पी नहीं क्योंकि पंजीकरण होते ही उनकी जवाबदेही बढ़ जाएगी।
ऐसे में सवाल उठता है कि श्रम विभाग क्या कर रहा है? उसकी जिम्मेदारी थी कि वह अभियान चलाकर हर मजदूर तक पहुंचे, मगर ऐसा लगता है कि यह उसकी प्राथमिकता में ही नहीं है। नतीजा यह कि गरीब मजदूर सरकारी लाभ से वंचित हैं और विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा है।
एयरलाईंस की कल्पनाशीलता
देश की एक प्रमुख एयरलाईंस अपने छोटे-छोटे कागज पर भी बड़े शानदार नारे लिखती है। अब खाने के साथ मिले पेपर-नेपकिन पर लिखा था- दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम।
साथ में जो पानी मिला उस ग्लास पर अलग-अलग तरफ अलग-अलग तथ्य छपे हुए थे, जिन्हें लोग इंटरनेट पर ढूंढकर अधिक जानकारी भी पा सकते हैं। एक ग्लास पर एक तरफ लिखा था- कि एक वक्त डेंटिस्ट मूंगफली को नकली दांत की तरह इस्तेमाल करते थे। उसी ग्लास पर दूसरी तरफ लिखा था-डायनामाईट बनाने में मूंगफली का इस्तेमाल होता है। ग्लास पर तीसरी तरफ लिखा था-विख्यात लेखक हेमिंग्वे का लिखते समय सबसे पसंदीदा खाना था, पीनट बटर सैंडविच।
अब बोरियत भरे और थका देने वाले हवाई सफर में ऐसी छोटी-छोटी बातें वक्त काटने में मददगार हो जाती हैं।
शिक्षित हैं, समझदार भी बनें
भोपाल की एक सडक़ पर लगे इस बोर्ड में एक कड़वा लेकिन सच्चा आईना दिखाया गया है। शिक्षा का असली उद्देश्य सिर्फ डिग्री हासिल करना नहीं, बल्कि संस्कारित होकर जिम्मेदारी निभाना भी है। अगर पढ़े-लिखे लोग भी सार्वजनिक स्थानों पर कचरा फेंकते हैं, तो उनकी पढ़ाई का क्या मतलब? जब कम पढ़ा लिखा व्यक्ति आपकी लापरवाही से फैली गंदगी साफ करने को मजबूर हो, तो यह हमारे समाज की विडंबना ही है।