चिरमिरी में किरकिरी का खतरा
नगरीय निकायों में बुधवार को मतदान के बाद चुनाव नतीजों का आकलन किया जा रहा है। भाजपा के रणनीतिकारों को उम्मीद है कि 10 में से 9 नगर निगम पार्टी जीत सकती है। सिर्फ चिरमिरी को लेकर संशय है। इससे परे कांग्रेस के नेता अनौपचारिक चर्चा में तीन नगर निगमों में जीत का भरोसा जता रहे हैं।
भाजपा को रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, और राजनांदगांव व जगदलपुर व धमतरी, रायगढ़ में स्पष्ट जीत की उम्मीद है। इन निगमों में अच्छी खासी मार्जिन से भाजपा के मेयर प्रत्याशियों के जीत का दावा किया जा रहा है। पार्टी नेताओं का आकलन है कि भाजपा को अंबिकापुर, और कोरबा में मामूली अंतर से जीत मिल सकती है। जबकि चिरमिरी में कुछ भी हो सकता है। इससे परे कांग्रेस कोरबा, अंबिकापुर, और चिरमिरी को लेकर उम्मीद से है।
कांग्रेस का नगर पालिका, और नगर पंचायतों में प्रदर्शन बेहतर रह सकता है। सरगुजा संभाग में मनेन्द्रगढ़ जैसी नगर पालिका में कांग्रेस प्रत्याशी भारी रही है। खुद सीएम विष्णुदेव साय के विधानसभा क्षेत्र कुनकुरी के नगर पालिका में कांग्रेस ने तगड़ी टक्कर दी है। यहां सामाजिक समीकरण के चलते मुकाबला नजदीकी रहा है। कुल मिलाकर मतदान के बाद भाजपा के रणनीतिकार खुश नजर आ रहे हैं। 15 तारीख को चुनाव नतीजे आने तक हार-जीत का आकलन चलता रहेगा।
अरबपति की वापिसी किस कीमत पर?
कांग्रेस में मतदान खत्म होते ही डेढ़ दर्जन बागी नेताओं की पार्टी में वापिसी हो गई। पार्टी ने निष्कासित-निलंबित नेताओं की कांग्रेस में वापिसी के लिए छानबीन समिति बनाई थी। चर्चा है कि समिति की अनुशंसा से पहले ही बागियों को पार्टी में वापस ले लिया गया। इस पूरे मामले पर पार्टी के कई प्रमुख नेताओं ने अलग-अलग स्तरों पर अपनी नाराजगी जताई है।
जिन नेताओं को पार्टी में वापस लिया गया है उनमें रायपुर उत्तर के निर्दलीय प्रत्याशी अजीत कुकरेजा भी हैं। कहा जा रहा है कि अजीत कुकरेजा को पार्टी में वापस लाने में पूर्व मेयर एजाज ढेबर की भूमिका अहम रही है। अजीत, ढेबर के चुनाव प्रचार में लगे हुए थे। और फिर मतदान खत्म होते ही ढेबर ने उन्हें पार्टी में लेने के लिए प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को तैयार किया। चर्चा है कि छानबीन समिति के सदस्यों को इसकी भनक भी नहीं लगी है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष धनेंद्र साहू, बागियों की वापिसी से नाखुश बताए जाते हैं। इस पूरे मामले पर आने वाले दिनों में कांग्रेस के भीतर विवाद खड़ा हो सकता है।
मतदान के लिए उदासीन क्यों?
छत्तीसगढ़ के नगरीय निकाय चुनाव अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण रहे। आमतौर पर देखे जाने वाले विवाद, झड़प, झीना-झपटी, मारपीट और प्रलोभन जैसी घटनाओं के अलावा कोई बड़ी वारदात नहीं हुई। बावजूद इसके, कई निकायों में 2019 के मुकाबले मतदान प्रतिशत घट गया। राजधानी रायपुर में केवल 49.58 प्रतिशत वोटिंग हुई, जबकि 2019 में यह आंकड़ा 53 प्रतिशत था।
चुनाव को सुगम बनाने के लिए सरकारी और निजी दफ्तरों में अवकाश घोषित किया गया था। प्रत्याशियों ने पूरी ताकत झोंक दी—गली-मोहल्लों में प्रचार, बैनर-पोस्टर, रोड-शो, रैलियां और यहां तक कि उपहार व नगदी वितरण तक हुआ। फिर भी आधे से अधिक मतदाता वोट डालने नहीं पहुंचे। यहां तक कि जिनको कोई प्रत्याशी पसंद नहीं था, वे भी नोटा दबाने नहीं निकले।
क्या मतदाताओं को यह लग रहा था कि ‘को नृप होई, हमें का हानि’? यानी कोई भी पार्षद या महापौर बने, उनके जीवन पर कोई असर नहीं पड़ेगा? या फिर सत्तारूढ़ दल की नगरीय निकायों में बढ़त के पुराने ट्रेंड को देखकर कुछ ने मान लिया कि नतीजे पहले से तय हैं और उनके वोट से कोई बदलाव नहीं होगा?
विधानसभा और लोकसभा चुनावों में महिलाओं की भागीदारी अधिक देखी गई थी, लेकिन इस बार नगरीय निकाय चुनावों में महिला मतदाता अपेक्षाकृत कम संख्या में निकलीं। क्या महतारी वंदना योजना की लाभार्थी महिलाएं भी मतदान से दूर रहीं? क्या महाकुंभ के कारण मतदान प्रभावित हुआ? क्या नामांकन और मतदान के बीच की अवधि इतनी कम थी कि प्रत्याशी मतदाताओं तक सही से पहुंच नहीं बना सके?
विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भारत निर्वाचन आयोग स्वीप कार्यक्रम के तहत व्यापक जागरूकता अभियान चलाता है, लेकिन यह राज्य निर्वाचन आयोग से संचालित चुनाव है। नगरीय निकाय चुनावों में ऐसा कोई अभियान नहीं दिखा। कुछ जिलों में प्रशासन ने जरूर अपनी ओर से पहल की थी। विधानसभा-लोकसभा चुनावों में बुजुर्गों और दिव्यांगों को घर से मतदान की सुविधा दी गई थी, लेकिन इस बार सभी को बूथ तक पहुंचना जरूरी था।
मतदान के प्रति यह उदासीनता क्यों रही, इसका सही उत्तर तो वे ही दे सकते हैं, जिन्होंने वोट नहीं डाला। पर आयोग, सरकार और राजनीतिक दलों को इस पर मंथन जरूर करना चाहिए। आखिर, लोकतंत्र में जनता की भागीदारी ही उनका सबसे बड़ा हथियार है।
देस लौटने की तैयारी में...
नॉर्दर्न पिंटेल एक सुंदर और लंबी गर्दन वाला बतख प्रजाति का पक्षी है, जिसे इसके अनोखे आकार और आकर्षक पंखों के कारण आसानी से पहचाना जा सकता है। रूस, मंगोलिया, कनाडा, कजाकिस्तान, चीन आदि में पाया जाने वाला यह प्रवासी पक्षी होता है। इसे सर्दियों में भारत सहित कई देशों में देखा जाता है। यह तस्वीर अचानकमार अभयारण्य के रास्ते पर एक दलदली जमीन से ली गई है। सर्दियों में यह भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और दक्षिण एशिया के अन्य देशों में प्रवास करता है। अब चूंकि गर्मी बढ़ रही है, ये पक्षी वापस लौटने की तैयारी में हैं। नॉर्दर्न पिंटेल की संख्या हाल के वर्षों में घट रही है, जिसका मुख्य कारण अवैध शिकार और हैबिटेट का नष्ट होना है। इसे आईयूसीएन ने रेड लिस्ट में डाल रखा है, जिसके संरक्षण की जरूरत बनी हुई है। ([email protected])