राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : अब भी देवतुल्य?
31-Jan-2025 2:38 PM
राजपथ-जनपथ : अब भी देवतुल्य?

अब भी देवतुल्य?

भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को देवतुल्य निरूपित करती आई है। पार्टी के नेता अपने उद्बोधन में कार्यकर्ताओं को देवतुल्य कहते हैं। इन देवतुल्य कार्यकर्ताओं ने धमतरी जिले के नगरी में गुरुवार को पार्टी दफ्तर में जो कुछ किया, उसने 25 साल पहले रायपुर के एकात्म परिसर की घटना की याद दिला दी। 

उस समय भी देवतुल्य कार्यकर्ताओं ने बृजमोहन अग्रवाल को विधानसभा का नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाने पर एकात्म परिसर में तोडफ़ोड़ की थी, और बाहर गाडिय़ों में आग लगा दी थी। नगरी के दफ्तर में तोडफ़ोड़ उस समय शुरू हुई, जब जिला संगठन ने पार्टी समर्थित जिला प्रत्याशियों की सूची जारी की। स्थानीय कार्यकर्ता जिनके लिए समर्थन चाह रहे थे, उनकी जगह किसी और के लिए समर्थन की घोषणा कर दी गई। पार्टी दफ्तर के बाहर नाराज कार्यकर्ताओं ने बकायदा बैनर लगा दिया जिसमें लिखा है-यहां टिकट बिकता है। 

देवतुल्य कार्यकर्ताओं की हरकत से पार्टी संगठन के नेता खफा हैं। ऐसा नहीं है कि भाजपा के कार्यकर्ताओं ने अपने गुस्से का इजहार किया है। कांग्रेस में भी कार्यकर्ता इस तरह की प्रतिक्रिया दे चुके हैं। वर्ष-2018 के विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने पर निवर्तमान मेयर ऐजाज ढेबर के समर्थकों ने राजीव भवन में तोडफ़ोड़ की थी। 

ढेबर ने बाद में अपने खर्चे से मरम्मत करवाकर मामला शांत कराया। इस बार भी कुछ इसी तरह की घटना राजीव भवन में भी घट सकती थी। कुछ प्रत्याशियों के नाम लीक हो गए थे। इसके लिए कार्यकर्ताओं ने राजीव भवन परिसर में खूब हंगामा किया। तोडफ़ोड़ से बचने के लिए पार्टी ने सूची सुबह 5 बजे जारी की। तब तक ज्यादातर कार्यकर्ता घर जा चुके थे, और इस वजह से कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। राजनीतिक दलों के लिए ‘देव’ कब ‘दानव’ बन जाए कोई नहीं जानता।

कोहली और बाबर आजम 

रायपुर नगर निगम के भगवती चरण शुक्ल वार्ड में निवर्तमान मेयर एजाज ढेबर के चुनाव मैदान में उतरने से यहां मुकाबला हाईप्रोफाइल हो गया है। ढेबर के खिलाफ भाजपा ने व्यापारी नेता अमर गिदवानी को उतारा है, जो कि छह महीने पहले ही कांग्रेस छोडक़र पार्टी में शामिल हुए हैं। 

दिलचस्प बात यह है कि भगवती चरण शुक्ल वार्ड से कई और प्रत्याशियों ने नामांकन लिए थे, लेकिन ढेबर, या फिर गिदवानी के प्रभाव में आकर नामांकन दाखिल नहीं किया। यहां दोनों के बीच सीधा मुकाबला है। सोशल मीडिया पर एक पोस्टर वायरल हो रहा है, जिसमें क्रिकेटर विराट कोहली, और पाकिस्तान के पूर्व कप्तान बाबर आजम की तस्वीर है, और कैप्शन में लिखा है-  ‘हू विल विन’।

गिदवानी के चुनाव मैदान में उतरने से ढेबर के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई है। यहां सिंधी-पंजाबी, और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या तकरीबन बराबर है। ऐसे में ओडिशा मूल के मतदाता यहां निर्णायक भूमिका में होंगे। कुल मिलाकर हार-जीत काफी कम मतों से होने का अनुमान लगाया जा रहा है। 

निर्विरोध चुना जाना भी जरूरी

विगत दो दशकों में ग्राम पंचायतों के वित्तीय अधिकार और प्रशासनिक स्वतंत्रता में काफी वृद्धि हुई है। ग्रामीण रोजगार योजनाओं, आवास योजनाओं का आवंटन और गांवों में होने वाले निर्माण कार्य जैसे मामलों में हर साल लाखों रुपये की आवक पंचायत फंड में होती है। इसके अतिरिक्त, वित्त आयोग से मिलने वाली सीधी राशि भी पंचायतों के खाते में जमा होती है, जिसे पंचायतें अपने विवेक से खर्च करने के लिए स्वतंत्र होती हैं।

इधर, कोविड महामारी के दौरान कई पंचायतों में सरपंचों और सचिवों पर करोड़ों रुपये के गबन के आरोप लगे। कुछ सरपंचों को बर्खास्त किया गया।
फंड का ही असर है कि पंचायत चुनाव अत्यधिक खर्चीला हो गया है। सरपंच उम्मीदवार मतदाताओं को नकद पैसे, उपहार और पार्टियों के प्रबंध में भारी धनराशि खर्च करते हैं। औसतन देखा जाए तो पंचायत चुनाव में एक मतदाता पर खर्च नगरीय, विधानसभा और लोकसभा चुनावों से कहीं अधिक होता है। 

पंचायत चुनाव की प्रकृति अलग होती है। यहां उम्मीदवार अक्सर रिश्तेदार, दोस्त या पड़ोसी होते हैं, जिससे चुनावी प्रतिस्पर्धा तीव्र और व्यक्तिगत हो जाती है। पंचायतों में मिलने वाले फंड का आकर्षण इतना बढ़ गया है कि रिश्ते तक बिगड़ जाते हैं, और कई बार स्थायी दुश्मनी भी हो जाती है।

इसके बावजूद कई गांवों में समझदारी और सामूहिक सहमति की मिसाल भी देखने को मिलती है। एक राय से प्रत्याशियों का चयन कर लिया जाता है ताकि गांव में भाईचारा और सद्भाव बना रहे। उदाहरण के लिए, 2022 में राज्य में हुए पंचायत उपचुनाव के दौरान 22 सरपंच निर्विरोध चुने गए। वहीं, 2020 के आम पंचायत चुनाव में रायगढ़ जिले की 10 पंचायतों में सरपंच और पंच के सभी पद आपसी सहमति से तय किए गए, जिससे वहां चुनाव की नौबत ही नहीं आई।

हालिया उदाहरण में सूरजपुर जिले के तिलसिवां गांव में महिला सरपंच और सभी पंचों का निर्विरोध चयन कर लिया गया, और चुनाव अधिकारियों को मतदान की तैयारी से मुक्त कर दिया गया। ऐसी ही घटनाएं प्रदेश की अन्य पंचायतों से भी सामने आ रही हैं, विशेष रूप से पंच पदों पर।

ऐसी सहमति इसलिए संभव हो पाती है क्योंकि पंच और सरपंच पदों के चुनाव दलीय आधार पर नहीं होते। यदि इन पदों पर कांग्रेस और भाजपा जैसी राजनीतिक पार्टियां सक्रिय हो जाएं, तो आम सहमति में कई बाधाएं खड़ी हो सकती हैं।

एयरपोर्ट पर उड़ान कैफे

अब हमें स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट रायपुर के अलावा जगदलपुर, बिलासपुर और अंबिकापुर एयरपोर्ट में सस्ते खाने वाले ‘उड़ान कैफे’  का इंतजार है।
नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने कोलकाता के नेताजी सुभाष चंद्र बोस इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर  ‘उड़ान यात्री कैफे’   की शुरुआत की है। यह कैफे एयरपोर्ट पर किफायती भोजन उपलब्ध कराने वाला देश का पहला केंद्र है। यहां पानी की बोतल और चाय केवल 10 रुपए में मिलती है, जबकि समोसा, कॉफी और मिठाई जैसे गुलाब जामुन 20 रुपए में उपलब्ध हैं।

मालूम हो कि एयरपोर्ट पर सांसदों ने लोकसभा में महंगे खाने-पीने की वस्तुओं को लेकर सवाल उठाया गया था। उन्होंने पूछा था कि क्या सरकार एयरपोर्ट पर ऐसी कैंटीन खोल सकती है, जहां कम कीमत पर भोजन मिले। कोलकाता एयरपोर्ट इस साल अपनी 100वीं वर्षगांठ मना रहा है। इस अवसर पर  ‘उड़ान कैफे’   शुरू करने का निर्णय लिया गया। फिलहाल यह तय नहीं है कि अगला कैफे किस एयरपोर्ट पर खुलेगा।

कोलकाता के कैफे में अभी पांच वस्तुएं उपलब्ध हैं- पानी, चाय, कॉफी, समोसा और गुलाब जामुन। यात्रियों के बीच चाय और समोसा सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। हर दिन यहां लगभग 700-800 लोग आते हैं, जिनमें हर आयु वर्ग के यात्री शामिल हैं।

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