वोट के बदले मिठाई-लिफाफा
रायपुर दक्षिण में कांग्रेस, और भाजपा के दिग्गज नेताओं ने डेरा डाल दिया है। दोनों ही दलों के विधायक, पूर्व विधायक गलियों की खाक छान रहे हैं। चुनाव प्रेक्षक भी खर्च पर नजर गड़ाए हुए हैं। इन सबसे नजरें चुराकर एक प्रत्याशी की तरफ से 25 हजार पैकेट पूजन-मिठाई, और उपहार स्वरूप एक-एक हजार के लिफाफे धनतेरस के दिन मतदाताओं तक पहुंचाए भी गए। मतदान के पहले भी इसी तरह मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए लिफाफे और अन्य उपहार भेजने की तैयारी चल रही है। मतदान पर इसका कितना असर होता है, यह कहना अभी कठिन है।
सांसद-पुत्री अब कलेक्टर
आईएएस की वर्ष-2021 बैच की अफसर तुलिका प्रजापति को पहली बार कलेक्टरी का मौका मिला है। तुलिका राज्य प्रशासनिक सेवा की अफसर थीं, और फिर उन्हें आईएएस अवार्ड हुआ है। तुलिका को आदिवासी बाहुल्य मानपुर मोहला जिले में काम करने का अवसर मिला है।
अंबिकापुर की रहवासी तुलिका राजनीतिक परिवार से आती हैं। उनके पिता स्व. प्रवीण प्रजापति कांग्रेस से राज्यसभा सदस्य रहे हैं। उनकी माता हेमंती प्रजापति परियोजना अधिकारी रही हैं, और वो रिटायरमेंट के बाद कांग्रेस में सक्रिय हंै। वो लूंड्रा से टिकट की दावेदार भी थीं। इससे परे तुलिका का अब तक प्रशासनिक कैरियर बेहतर रहा है। कलेक्टर के रूप में क्या कुछ करती हैं, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
चूक या राजनीति
इसे चूक कहें या राजनीति, संस्कृति विभाग ने एक अलंकरण की घोषणा ही नहीं की। और वह भी चयन प्रक्रिया पूरी करने के बाद भी बकायदा विज्ञापन जारी कर आवेदन मंगाए गए। आवेदन भी दर्जनभर से अधिक आए। चयन समिति भी बनी, उसकी बैठक हुई, सबके कृतित्व का आंकलन भी किया। लेकिन उपराष्ट्रपति के हाथों आज कोई सम्मानित नहीं हो पाएगा। यह सम्मान, छत्तीसगढ़ के रंगमंच को विश्व थिएटर तक पहुंचाने वाले पद्मश्री स्व हबीब तनवीर की स्मृति में दिया जाना था। हबीब भाई राजधानी के बैजनाथ पारा में रहा करते थे। यह सम्मान पिछली सरकार ने दो अन्य अलंकरणों लक्ष्मण मस्तुरिया स्मृति और खुमान साव स्मृति के साथ शुरू करने की घोषणा की थी। संस्कृति विभाग ने इन दो के नाम तो घोषित किए लेकिन तनवीर की स्मृति को भूल गया। सूची में इस अलंकरण के शामिल न होने से रंगमंच के नामचीन कलाकारों ने ही यह जानकारी देते हुए अफसोस जाहिर किया है।
हाथियों की सह-अस्तित्व परेड
शांतिपूर्ण, कतारबद्ध सडक़ पार करता हाथियों का यह दल दिखाता है कि ये विशालकाय प्राणी केवल सम्मान और दूरी चाहते हैं। हसदेव अरण्य इलाके के इस वीडियो में कोरबा-अंबिकापुर हाईवे पर ग्राम मड़ई के पास गजराज परिवार का नजारा सुकून देने वाला है। हाल में छत्तीसगढ़ में करंट से चार हाथियों की दर्दनाक मौतों के बीच इस तरह का दृश्य अनमोल है, खासकर जब इस गज दल में नन्हे शावक भी शामिल हैं।
सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो को देखने से यह धारणा मजबूत होती है कि गजराज किसी पर बेवजह हमला नहीं करते। वे स्वभाव में मूल रूप से संकोची हैं। वे भी शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की जरूरत महसूस करते हैं पर उन्हें पानी और भोजन की जरूरत पूरी करने के लिए भटकना पड़ता है। जैसे ही वे सडक़ पार कर रहे थे, लोगों में उत्सुकता दिखी। दोनों ओर गाडिय़ों की कतार लग गई, जिनमें एंबुलेंस भी थीं। लोग हाथी से सुरक्षित दूरी बनाकर बिना शोरगुल किए खड़े थे। पर अफसोस कुछ लोगों ने जोर से हॉर्न बजाकर उन्हें डराने की कोशिश की। बाकी लोगों ने उन्हें फटकार लगाते हुए मना किया।
छत्तीसगढ़ के अलग-अलग भागों में हाथियों के कई दल विचरण कर रहे हैं। हाथियों की असामयिक मृत्यु और मानव के साथ उनका संघर्ष भी इसी अनुपात में बढ़ता जा रहा है। वन्यजीव प्रेमी कहते हैं कि जागरूकता और सहिष्णुता हो तो हाथी भी हमारे जंगलों में सुरक्षित और निश्चिंत रह रहेंगे। आम लोगों की जिम्मेदारी तो बनती है कि वे इसका ध्यान रखें, लेकिन हाल की घटनाएं बताती है कि वन विभाग और प्रशासन में संवेदना का अभाव है।
पढ़े-लिखे बेरोजगारों की संख्या ऐसे होगी कम
प्रदेश के कॉलेजों में इस बार स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री के लिए आवेदन की संख्या में चौंकाने वाली गिरावट आई है। पूरे प्रदेश के आंकड़े अभी नहीं मिले हैं। एक जानकारी सामने आ रही है, उसके मुताबिक इस साल बस्तर विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले 53 कॉलेजों में स्नातक स्तर पर पिछले साल की तुलना में आधे से भी कम आवेदन हुए हैं। जहां पिछले वर्ष 15,000 से अधिक प्राइवेट परीक्षार्थियों ने आवेदन किया था, वहीं इस बार अंतिम तारीख तक केवल 6,000 आवेदन ही आए हैं। स्नातकोत्तर में भी यह गिरावट दिखाई दे सकती है, जैसे ही उसकी आवेदन तिथि समाप्त होगी।
इस बदलाव का बड़ा कारण नई शिक्षा नीति 2020 है, जिसके तहत स्नातक और स्नातकोत्तर में निजी छात्रों की परीक्षा प्रक्रिया में बदलाव किए गए हैं। अब स्नातक और स्नातकोत्तर के प्रथम वर्ष में छात्रों को साल में दो सेमेस्टर की दो परीक्षाएं देनी होंगी। साथ ही असाइनमेंट के लिए 10-12 दिनों का अतिरिक्त समय भी देना होगा। पहले द्वितीय और अंतिम वर्ष में प्राइवेट परीक्षार्थियों को एक बार आवेदन और एक बार परीक्षा देने की सुविधा थी, परंतु अब केवल प्रथम वर्ष के छात्रों को नई परीक्षा प्रणाली का पालन करना होगा।
नई नीति से प्राइवेट परीक्षार्थियों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। जो छात्र समय या व्यावसायिक जिम्मेदारियों के चलते नियमित कक्षाओं में शामिल नहीं हो सकते थे, उन्हें अब बार-बार कॉलेज जाना होगा। इससे वे महिलाएं भी प्रभावित होंगी, जिन्हें पहले केवल एक बार परीक्षा देने आना पड़ता था।
प्राइवेट इनरोलमेंट घटने से कॉलेजों की आमदनी पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि कॉलेज प्राइवेट परीक्षार्थियों से कई तरह की अतिरिक्त फीस वसूलते थे, जो अब कम हो जाएगी। दूसरी ओर, अधिकतर शिक्षाविद इस बदलाव को सकारात्मक मानते हैं। उनका कहना है कि अब प्राइवेट परीक्षा से मिली डिग्री का वास्तविक मूल्यांकन हो सकेगा, और इसे हल्के में नहीं लिया जाएगा। मगर, इसी के परिणामस्वरूप भविष्य में स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री धारक बेरोजगारों की संख्या में भी कमी देखने को मिल सकती है।