कौन परदेसिया, कौन इम्पोर्टेड?
महाराष्ट्र के चुनाव में शिवसेना के शिंदे गुट की उम्मीदवार शाइना चुडासमा की एक शिकायत पर मुम्बई पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है। उनकी शिकायत शिवसेना के उद्धव गुट के उम्मीदवार अरविंद सावंत के खिलाफ है जिन्होंने अपने एक बयान में शाइना का नाम लिए बिना कहा था- उनकी हालत देखिए आप, जिंदगी भर वो भाजपा में रही, फिर वो दूसरी पार्टी में गईं। हमारे यहां इम्पोर्टेड माल नहीं चलता, हमारे यहां ओरिजनल माल चलता है। इस बयान को शाइना ने अपना अपमान माना है।
इस ताजा एफआईआर से यह याद पड़ता है कि कुछ दिन पहले ही छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की दक्षिण विधानसभा सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार आकाश शर्मा को भाजपा के लोगों ने बाहरी बताया था क्योंकि वे पड़ोस के जिले में रहे थे, और अब बरसों से रायपुर में ही रह रहे हैं। चुनाव में ऐसे नारे उछालने वाले कुछ भी याद नहीं रखते। भाजपा के ही दिलीप सिंह जूदेव खरसिया जाकर अर्जुन सिंह के खिलाफ लड़े थे जो कि मध्यप्रदेश से आकर खरसिया में लड़ रहे थे। बाद में दिलीप सिंह जूदेव बिलासपुर आकर रेणु जोगी के खिलाफ लोकसभा का चुनाव भी लड़े थे।
राजधानी रायपुर से गौरीशंकर अग्रवाल अपने पैतृक इलाके कसडोल जाकर चुनाव लड़ते थे, जबकि वे पूरी जिंदगी से रहे रायपुर में थे। और दूसरी तरफ उनके मुकाबले कांग्रेस से रायपुर से जाकर कसडोल से चुनाव लडऩे वाले राजकमल सिंघानिया आज के विवाद के पैमाने पर तो पूरी तरह परदेसिया थे। कसडोल से ही द्वारिका प्रसाद मिश्र आकर 1963 में चुनाव लड़े थे, और बाद में उनके प्रतिद्वंद्वी कमल नारायण शर्मा ने चुनाव याचिका दाखिल की थी। यहां पर विद्याचरण पूरी जिंदगी महासमुंद से लड़ते रहे, जबकि वे वहां रहे कभी नहीं। जोगी महासमुंद से लड़ते रहे, जिनका वहां से कोई रिश्ता नहीं था। भूपेश बघेल तो कभी रायपुर संसदीय से लड़े, तो कभी राजनांदगांव संसदीय सीट से।
राष्ट्रीय स्तर पर परदेसिया बहू की सोच भी बड़ा फ्लॉप तर्क रही। सोनिया गांधी को विदेशी मूल का बताते हुए जो एनसीपी बनी थी, वह तो आज कांग्रेस की सबसे करीबी मददगार पार्टी बन चुकी है। यह तर्क फ्लॉप इसलिए रहा कि भाजपा की एक सबसे पूजनीय नेता विजयाराजे सिंधिया नेपाल से शादी होकर भारत आई थीं, इसलिए विदेशी बहू का पूरा तर्क बोगस रहा। अब देश के भीतर किसी को भी बाहरी, परदेसिया या इम्पोर्टेड माल कहना बेकार बात है।
रायपुर के विवाद में कांग्रेसी नेताओं ने बृजमोहन अग्रवाल और सुनील सोनी के छत्तीसगढ़ के बाहर के मूल की बात उठाई है। जिस दिन वे ऐसा बयान दे रहे थे, उस दिन प्रियंका गांधी केरल जाकर मलयाली लोगों के बीच मंच से अंग्रेजी में भाषण दे रही थीं, जिसका मलयाली अनुवाद बगल के दूसरे माईक पर सुनाया जा रहा था। देश के भीतर अब कुछ आहरी-बाहरी नहीं है। जो लोग सोनिया का नाम लेकर राजनीति चलाते रहे, संसद में सिर मुंडाने को तैयार रहे, वे लोग आज उस कमला हैरिस को लेकर खुशी में नाच रहे हैं जो कि भारत से गई हुई एक तमिल महिला से अमरीका में ही पैदा हुई थी। जो बाहर जाकर कामयाब हो जाए वे अमरीकी, और ब्रिटिश भी भारतवंशी, और जो भारत में नहीं सुहाए, वे शादी की आधी सदी बाद भी परदेसी! हालांकि लोगों को इस सिलसिले में जर्सी नस्ल की गाय जैसी भाषा को भी याद रखना चाहिए, उसे भूलना नहीं चाहिए।
अलंकरण और विवाद
छत्तीसगढ़ में इस बार एक वर्ष बाद राज्य अलंकरण दिए जाएंगे। पिछले वर्ष चुनाव होने की वजह से नहीं दिए जा सके थे। वैसे हर पांचवे वर्ष नहीं दिए जा रहे। और जब भी दिए जाते रहे तब तब विवादों में रहे। जिन्हें अलंकरण मिलता वो उनके आसपास के लोग प्रसन्न रहते हैं और सरकार को साधुवाद देते हैं। जिन्हें नहीं मिलता वो पूरी चयन प्रक्रिया पर ही सवाल खड़े करते हैं। उनका पहला और सीधा लक्ष्य चयन समिति के सदस्य और उनकी सिफारिश होता है। फिर प्रशासकीय विभाग के मंत्री। यह कहते हुए कि मंत्री का समर्थक, करीबी आदि आदि।
बीते 20 वर्षों में सम्मानित लोगों में ऐसे हो भी सकते हैं। खैर, इस वर्ष भी दो पुरस्कार को लेकर ऐसे ही विवाद सुनने में आ रहे हैं। चयन समिति के गठन से लेकर चयनित ग्रहिता को लेकर तरह-तरह की बात सुनने को मिल रही है। पिछले दिनों देर से शुरू हुई चयन समिति की बैठक पहले से लेकर आए नाम पर पल भर में मुहर लगाकर खत्म हो गई। अब नाम को लेकर इतना विवाद हो रहा है कि तरह-तरह के लांछन लग रहे हैं। चर्चा तो यह भी है कि इन पुरस्कारों को इस बार न देने का फैसला लिया गया है। यह सोच कर कि एक साधे सब सधे। न कि एक सधे सब नाराज।
संविदा बंद हो या रिटायरमेंट एज 70 हो
राज्य प्रशासन में संविदा नियुक्तियों को लेकर अधिकारी कर्मचारी विरोध पर उतर रहे हैं। फिलहाल यह विरोध उनके वाट्सएप ग्रुप में चर्चाएं तेज हो रही हैं। इसके मुताबिक राज्य के कुछ अधिकारी कर्मचारी जो अपने संरक्षकों को खुश रखते हैं, वे लगातार 70 सालों तक संविदा नियुक्ति पाने में कामयाब रहते हैं। पदोन्नति के पदों में संविदा नियुक्ति का नियम नहीं है,लेकिन ऐसे लोग बहुतायत में पदोन्नति के पदों पर नियुक्त हो रहे हैं। ऐसा माहौल बनाया जाता है, मानो ये लोग न रहे तो विभाग में ताला लग जाएगा।
चर्चा में लिखा जा रहा है-बाद में यही लोग नियमित पदोन्नति में बाधा खड़ा करने लग जाते हैं, ताकि येन केन प्रकरण इनकी संविदा नियुक्ति बढ़ती रहे।यह उन लोगों के साथ घोर अन्याय है,जो ईमानदारी और स्वाभिमान से सेवा करते हुए 62 साल में सेवा से मुक्त हो जाते हैं। अब समय आ गया है, कि इस घोर असमानता के खिलाफ आवाज उठाया जाना चाहिए। या तो सभी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति 70 साल करना चाहिए। या फिर सभी सेवानिवृत्त लोगों को नियुक्ति के समान अवसर देने संविदा नियुक्ति खुले विज्ञापन के द्वारा की जानी चाहिए।
इसके समर्थन में फेडरेशन के संयोजक भी सहमत हैं कि संविदा नियुक्ति हर स्तर पर बंद होना चाहिए। लिखा जा रहा है- हम इस व्यवस्था का विरोध करते है। लेकिन मैनेजमेंट वाले लोग संविदा नियुक्ति पाने में अभी भी कामयाब हो रहे है। जोरदार विरोध प्रदर्शन करने की आवश्यकता है।
संविदा नियुक्ति की प्रथा जो अभी भी अलग अलग विभागों में चल रही है उसे बंद करने हम सभी को मिलकर रोक लगवाना होगा यदि इसे रोका नहीं गया तो विभागों मे पदोन्नति और सीधी भर्ती की कार्यवाही संपूर्ण रूप से बाधित हो रही है। प्रमोशन के विभागीय पदों पर संविदा/प्रतिनियुक्ति रूप से नियुक्त प्रशासनिक अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से हटाने की मांग की जानी चाहिए।
ऐसे जुगाड़ू लोग विभाग में संविदा में आ कर पूरा विभाग को उलझाए रखते है। साथ ही ये वही लोग है जिससे शासन निर्भर होती है और हमारे डीए जैसे प्रमुख अधिकारो से वंचित कराने में उत्तरदायी होते है।इसलिए सेवानिवृत्त अधिकारियों का पदोन्नति के पद पर संविदा नियुक्ति की परंपरा का विरोध होना चाहिए।
भीतरघात से बचने
रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव कांग्रेस गंभीरता से लड़ती दिख रही है। प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज, और नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत रोजाना दक्षिण के नेताओं से रूबरू हो रहे हैं। लगातार बैठकें कर रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज तो दीवाली के एक दिन पहले दक्षिण के प्रमुख नेता कन्हैया अग्रवाल, प्रमोद दुबे, ज्ञानेश शर्मा सहित कई अन्य प्रमुख नेताओं के घर भी गए।
चर्चा के बीच एक जगह दीपक बैज ने कहा भी बताते हैं कि इस बार पार्टी के खिलाफ काम करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। इस पर एक नेता ने कह भी दिया,हर बार ऐसा होता है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती है। देखना है कि पार्टी भीतरघात की शिकायत आने पर क्या करती है। फिलहाल तो सभी पार्टी के लिए काम करते दिख रहे हैं।
क्या होली और क्या दिवाली...!
दीपावली भले ही रोशनी और धन-धान्य की पूजा का पर्व हो, लेकिन इस बार जो हुड़दंग और आपराधिक घटनाएं प्रदेश में हुईं, उसने इसे होली की तरह बेकाबू बना दिया। 24 घंटों में हत्या की चार घटनाओं ने रायपुर शहर को दहशत में डाल दिया। इसके अलावा अन्य जिलों में भी हत्या, हत्या की कोशिश, आगजनी जैसी घटनाओं की भरमार रही। रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़ और कोरबा के पुलिस थानों का रोजनामचा देख लें—कई थानों में तो एक दिन में तीन-चार मामले दर्ज हुए हैं।
इस बार दिवाली की रातें होली से कम नहीं थीं—चाकू, तलवार, नशीले टेबलेट और इंजेक्शन के साथ गिरफ्तारियां होली की याद दिलाती रही। होली में जिस तरह बाइकों पर तीन-चार लोग नशे में रेस लगाते हैं, वही नजारा दिवाली पर भी देखने को मिला। फर्क सिर्फ इतना था कि होली का हुड़दंग दिन में होता है, जबकि इस बार दिवाली की धमाचौकड़ी पूरी रात चलती रही। मोहल्ले-मोहल्ले में देर रात तक पटाखों का शोर जारी रहा, जिससे विवाद भी हुए। पुलिस का रात्रि 10:30 बजे के बाद पटाखे न फोडऩे का नियम हवा में उड़ गया।
जुआ खेलने वालों पर पुलिस ने तो खूब हाथ डाला, पर बरामद रकम का हिसाब कुछ कम ही दिखाई दिया। ऐसा लग रहा है, पुलिस ने अपने अफसरों से तो शाबाशी पा ली होगी, लेकिन जनता का भरोसा जीतने में असफल रही। कानून व्यवस्था को लेकर जनता होली के दिनों जितनी ही चिंतित दिखी। दीपावली की रौनक के बीच कहीं न कहीं डर और अनिश्चितता भी दिखती रही।
दीपावली के दिन हेलोवीन
31 अक्टूबर को दीपावली का पर्व देश भर में ही नहीं, दुनिया के कई देशों में मनाया गया। पर इस बार दीपावली के ही दिन एक दूसरा पर्व भी आया जिसे हेलोवीन कहा जाता है। हेलोवीन हर साल 31 अक्टूबर को मनाया जाता है। इसमें लोग एक जगह उत्सव मनाने के लिए इक_े होते हैं। अजीबोगरीब वेशभूषा कुछ उसी तरह से पहना जाता है जैसा भारत में होली के दिन लोग पहनते हैं। ऐसी ही अमेरिका की एक मीडिया सेलिब्रिटी मेगी केलिन ने कचरा उठाने वाले बैग के साथ फोटो खिंचवाई है। भारत, विशेषकर दक्षिण भारत के बड़े शहरों में भी इस नए त्यौहार को मनाने का चलन शुरू हो चुका है।