सारंगढ़-बिलाईगढ़
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
सारंगढ़, 25 जनवरी। नगर के बडेमठ मन्दिर जापानी बंगला में मुख्य जजमान बसन्त तिवारी द्वारा श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ करवाया जा रहा है। कथा वाचक पंडित दिनेश शर्मा द्वारा शुकदेव जन्म, परीक्षित श्राप और अमर कथा का वर्णन करते हुए बताया कि नारद जी के कहने पर पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि उनके गले में जो मुंडमाला है वह किस की है तो भोलेनाथ ने बताया वह मुंड किसी और के नहीं बल्कि स्वयं पार्वती जी के हैं। हर जन्म में पार्वती विभिन्न रूपों में शिव की पत्नी के रूप में जब भी देह त्याग करती , शंकर जी उनके मुंड को अपने गले में धारण कर लेते । पार्वती ने हंसते हुए कहा हर जन्म में क्या मैं ही मरती रही, आप क्यों नहीं ?
शंकर जी ने कहा हमने अमर कथा सुन रखी है पार्वती जी ने कहा मुझे भी वह अमर कथा सुनाइए । शंकर जी पार्वती जी को अमर कथा सुनाने लगे। शिव-पार्वती के अलावा सिर्फ एक तोते का अंडा था जो कथा के प्रभाव से फूट गया। उसमें से श्री शुकदेव जी का प्राकट्य हुआ कथा सुनते सुनते पार्वती जी सो गई , वह पूरी कथा श्री शुकदेव जी ने सुनी और अमर हो गए । शंकर जी शुकदेव जी के पीछे उन्हें मृत्युदंड देने के लिए दौड़े। शुकदेव जी भागते भागते व्यास जी के आश्रम में पहुंचे और उनकी पत्नी के मुंह से गर्भ में प्रविष्ट हो गए। 12 वर्ष बाद श्री सुखदेव जी गर्भ से बाहर आए इस तरह श्री शुकदेव जी का जन्म हुआ। भागवत के चार अक्षर इसका तात्पर्य यह है कि - भा से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य और त त्याग जो जीवन को प्रदान करे उसे हम भागवत कहते है।


