सारंगढ़-बिलाईगढ़
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
सारंगढ़, 24 दिसंबर। जिला सारंगढ़ बिलाईगढ़ के सामाजिक संस्था अखिल भारतीय मारवाड़ी महिला सम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीरा बथवाल के आदेश पर , छत्तीसगढ़ प्रदेशाध्यक्ष सरोज सुनालिया के निर्देश पर एवं राष्ट्रीय वित्त प्रबंधन प्रभारी रेखा महमिया के मार्गदर्शन पर सारंगढ़ शाखा अध्यक्ष मधु केजरीवाल एवं देहदान नेत्रदान प्रदेश प्रभारी शीला गर्ग के दिशा निर्देश पर अशोका पब्लिक स्कूल एवं मोना मॉडर्न विद्यालय के 11वीं और 12वीं के लगभग 500 छात्र छात्राओं के द्वारा देहदान जन जागरूकता रैली मध्यान्ह 12 बजे अग्रसेन भवन से नगर के मुख्य मार्ग अग्रसेन चौक, जय स्तंभ चौक, नंदा चौक, आजाद चौक, हटरी चौक होते हुए निकाली गई।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिला चिकित्सा अधिकारी डॉ.एफआर निराला, कार्यक्रम की अध्यक्षता रेखा महमिया, कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि संयुक्त कलेक्टर स्वप्निल तिवारी, डॉक्टर अनूप अग्रवाल, डॉक्टर ईजारदार का भव्य स्वागत अखिल भारतीय मारवाड़ी महिला सम्मेलन के अध्यक्ष उपाध्यक्ष एवं समस्त पदाधिकारियों के द्वारा पुष्पगुच्छ दे किया गया।
डॉ एफआर निराला ने कहा, मृत देह किसी काम की नहीं होती लेकिन इसी मृत देह के जरिए मेडिकल छात्र काबिल डॉक्टर अवश्य बन सकते हैं। एमबीबीएस और बीडीएस की शिक्षा में मृत देह का ठीक वैसे ही महत्व है जैसे किसी मकान के निर्माण में नींव का, लेकिन दिक्कत देहदान की कमी का है । देश की पुलिस अगर चाहें मानव शव की कमी को आसानी से पूरा कर सकती है । मतलब रेलवे, बस स्टेशनों में व दूसरे स्थानों पर पाए जाने वाली लावारिस लाशों को नदी, पोखर या अन्य स्थानों पर फेंकने, जलाने या गाडऩे के बजाय उसे वह मेडिकल कॉलेज के सुपुर्द कर सकती है। चूंकि लावारिस शव को मेडिकल कॉलेजों को सौंपने के लिए कुछ कानूनी औपचारिकताएं पूरी करनी होती है।
विशिष्ट अतिथि संयुक्त कलेक्टर स्निग्धा तिवारी ने कहा कि जब मैं मेडिकल कालेज की छात्रा थी उसमें किसी भी शव का निरीक्षण करने के लिए सभी छात्र एक साथ उस शव पर लग जाते थे, लेकिन भीड़ की वजह से हमारा यह प्रैक्टिकल शव की कमी के चलते पूरा नहीं हो पाता था। चिकित्सा विद्यालय के आंकड़े देखे तो यहां गत 5 वर्षों में 18 देहदान हुए हैं, जबकि इस वर्ष अब तक 6 देहदान हो चुके हैं । देहदान की कमी से मेडिकल शिक्षा पर सीधा असर पड़ता है। हालांकि कई संस्थाएं लोगों को देह दान के लिए प्रेरित करने का काम कर रही है।
डॉ अनूप अग्रवाल ने कहा, देहदान करने वाले व्यक्ति की मृत्यु के 6 घंटे के अंदर संबंधित मेडिकल कॉलेज के एनाटंमी विभाग को सूचना देनी होती है। इस अवधि में शव मिल जाने पर आंखों से कार्निया निकालकर 2 लोगों के जीवन में रोशनी भी की जा सकती है।
विभाग अध्यक्ष अथवा कोई भी सीनियर डॉक्टर कर्मचारियों के साथ जाकर शव को हिफाजत में लेते हैं। इस दौरान रीति रिवाज निभाने का अंतिम संस्कार किए जाने की परंपरा भी पूरी करवाई जाती है। इसे देखते हुए देहदान के पहले अंतिम संस्कार किए जाने परिजनों की इच्छा भी पूरी की जा रही है। देश के कई मेडिकल विश्वविद्यालय के एनाटमी विभाग ने इसके लिए सभी धर्मों के धर्मगुरुओं से एक करार भी किया है।


