राजपथ - जनपथ

कोंडागांव में डिजिटल शिकायतें...
बस्तर के कोंडागांव जिले की साक्षरता 64 प्रतिशत है। यह देश के 59.5 प्रतिशत औसत से अधिक तो है ही, छत्तीसगढ़ के भी 63.6 से कुछ अधिक ही है। पर केवल अक्षर ज्ञान वाली साक्षरता नहीं, डिजिटल साक्षरता में यह जिला आगे दिखाई दे रहा है। यहां प्रशासन ने लोगों की समस्याओं, शिकायतों को सुनने के लिए एक मोबाइल ऐप- ‘कोंडानार’ लांच किया है। इस ऐप में बीते कुछ समय के भीतर ही लगभग 14 हजार 374 आवेदन आ चुके हैं। इसका मतलब यही हुआ कि दूर-दूर बसे गांवों के लोग जिन्हें कलेक्टर, एसडीएम के दफ्तर पहुंचने में खासी परेशानी महसूस करते हैं। खर्च के साथ-साथ पूरा दिन लग जाता है और अधिकारी कई बार दफ्तर में मिलते नहीं। अब यहां के ग्रामीण मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर सीधे ऐप पर शिकायतें दर्ज करा रहे हैं। 14 हजार से अधिक शिकायतों का आना प्रशासन की उम्मीदों से बहुत ज्यादा है। इसीलिये अब तक 650 आवेदनों का निराकरण हो पाया है। यह जरूर है कि ज्यादातर आवेदनों में मांगे हैं, जैसे राशन कार्ड, हेंडपंप, पेयजल, शिक्षक आदि। वैसे डिजिटली साक्षर होना एक बात है, डिजिटली जागरूक होना दूसरी बात। क्यों नहीं, इस तरह के ऐप हर जिले के लिये तैयार किए जाने चाहिए। वैसे भी सफर बहुत महंगा होता जा रहा है। दफ्तरों में हर सप्ताह कम से कम दो दिन छुट्टी भी तो अब तय कर दी गई है।
नीति आयोग की छत्तीसगढ़ बैठक...
नीति आयोग केंद्र की संस्था है। कुछ मामलों में राजनैतिक दबाव इसके सदस्यों पर आता होगा, पर हमेशा नहीं। इसमें अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं, जिनकी स्वतंत्र राय किसी राजनीति से प्रेरित नहीं होती। राज्य में हुई कल आयोग की बैठक में सदस्यों ने छत्तीसगढ़ सरकार की प्रशंसा की, योजनाओं को लागू करने में सफलता के लिये दाद दी, नये प्रयोगों को सराहा। इनमें गोधन न्याय योजना तो है ही, इज ऑफ डुईंग बिजनेस तथा दलहन तिलहन के उत्पादन में बढ़ोतरी का विशेष तौर पर उल्लेख हुआ। वरिष्ठ कृषि सलाहकार नीलम पटेल ने तो कहा कि कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों में छत्तीसगढ़ में जो काम हो रहे हैं उससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। केंद्र में जब यूपीए की सरकार थी और छत्तीसगढ़ में भाजपा की, तब भी कई बार केंद्रीय दलों और केंद्र के मंत्री छत्तीसगढ़ सरकार की तारीफ करके लौट जाते थे। कांग्रेस के लिये असमंजस की स्थिति पैदा हो जाती थी। जिन मुद्दों पर वे सरकार को घेरने के फिराक में होते थे, उन पर शांत बैठना पड़ता था। अभी भाजपा की ओर से प्रतिक्रिया नहीं आई है कि नीति आयोग की तारीफ को लेकर वह क्या सोच रही है।
प्रशासन को दिखाया आईना..
सरगुजा के अनेक गांव दूर-दराज पहाडिय़ों के बीच बसे हैं। बरसात में तो कई रास्ते बंद हो जाते हैं, दूसरे मौसम में भी सिर्फ पगडंडियों के सहारे रास्ता नापना होता है। मैनपाट इलाके के अंतर्गत आने वाले परपटिया ग्राम पंचायत के ग्रामीणों ने दर्जनों पर जन समस्या निवारण शिविरों में ज्ञापन आवेदन दिए। कलेक्टोरेट जाकर भी गुहार लगाई, लेकिन मुख्य मार्ग तक पहुंचने के लिये सडक़ बनाने की मांग पूरी नहीं की गई। जनप्रतिनिधि और अधिकारी दोनों कहते थे कि घुमावदार पहाड़ी है, सडक़ नहीं बन पाएगी। ग्रामीणों ने वर्षों इंतजार के बाद इस छह किलोमीटर रास्ते को तैयार करने के लिये खुद श्रमदान शुरू किया है। इस सडक को बनाकर वे यह भी बता रहे हैं कि पहाड़ी काटना इतना मुश्किल भी नहीं था। सडक़ बन जाएगी तो ग्रामीणों को पगडंडी पर चलकर मुख्य मार्ग पहुंचने की मजबूरी नहीं रह जाएगी।