राजपथ - जनपथ

मास्क पहनकर खाना खाते राहुल
सोशल मीडिया पर राहुल गांधी का मजाक बनाने के लिये एक बड़ी टीम काम करती है। तमिलनाडु के एक कार्यक्रम में वे कुछ महिलाओं के साथ खाना-खाने के लिये बैठे हैं, जिसमें उन्होंने मास्क पहन रखा है। पुरानी तस्वीर अब वायरल की गई। साथ में यह कमेंट भी चस्पा किया गया कि चले हैं मोदी और योगी से मुकाबला करने। ये दुनिया के अकेले शख्स हैं, जो मास्क लगाकर भोजन कर लेते हैं। फिर भी पूछते हो कि इनको पप्पू क्यों कहा जाता है। एक फोटो में वे पंजाब के मुख्यमंत्री के साथ लंगर में बैठे हैं। इसमें भी उन्होंने मास्क पहन रखा है।
दोनों ही तस्वीरों के आईटी सेल से वायरल होने के बाद कांग्रेस की टीम सक्रिय हुई और तस्वीरों में दिखाया कि मास्क तो उन्होंने खाने से पहले उतार दिया था। तमिलनाडु की तस्वीर तो एक साल पुरानी है, तब वे वहां तीन दिन के दौरे पर थे। जवाबी ट्वीट में यह भी कहा गया कि अजूबा तो टेलीप्रॉम्टर मोदीजी हैं जो खुद मास्क नहीं पहनते पर लोगों को पहनने का ज्ञान देते हैं।
सोशल मीडिया पर कांग्रेस की सारी ताकत सफाई देने में ही निकल जाती है। ऐसी तगड़ी टीम उनके पास बचती नहीं है कि खुद मोर्चा खोलें।
केवल पांच दिन भटकें...
सरकारी महकमे की वेतन, पदोन्नति संबंधी मांगें भले ही पूरी न हों, लेकिन छुट्टियों की मुराद जरूर पूरी हो गई। पहले भी स्थानीय तीज-त्यौहारों को मिलाकर छुट्टियां कम नहीं थीं। अब सप्ताह में सिर्फ पांच दिन काम करना होगा। तर्क यह दिया गया है कि इसे कार्यक्षमता बढ़ेगी। ईंधन की खपत कम होगी। पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, परिवार के साथ समय बिता सकेंगे, आदि-आदि। कर्मचारियों का एक फायदा यह भी है कि मंगलवार या गुरुवार को किसी पर्व के चलते अवकाश हो तो सिर्फ एक दिन की छुट्टी की अर्जी देकर सीधे चार दिन के लिये ड्यूटी से बच सकते हैं। सप्ताह में दो दिन छुट्टी के एवज में ड्यूटी का समय सुबह आधा घंटे पहले सुबह 10 बजे शुरू होने का दावा है। दो दिन की छुट्टी के बाद सोमवार को सुबह 10 बजे झांकना दिलचस्प होगा कि सरकारी दफ्तरों की कौन-कौन सी कुर्सियां भर चुकी हैं। अब तक 10.30 बजे के समय का ही पालन कहां हो पाता था?
बहुत से लोगों को लगता है कि कोरोना संक्रमण के कारण वैसे भी सरकारी कामकाज की रफ्तार घटी थी। दफ्तरों में फाइलों का अंबार लगा है। पांच दिन का सप्ताह रख देने से क्या इनसे छुटकारा मिलेगा? केंद्र सरकार की बात अलग है जहां आम लोगों को ज्यादा धक्के नहीं खाने पड़ते, लेकिन ब्लॉक, तहसील और जिला मुख्यालयों में आम लोगों को बहुत रहते हैं। साहबों को अब इन्हीं पांच दिनों में बैठकें भी लेनी है, दौरे भी करने हैं। ऊपर से लोगों की समस्या सुनने के लिये भी वक्त निकालना होगा। बस, इतना ही है कि पहले फरियादियों के पास पहले 6 दिन भटकने का विकल्प था, अब पांच दिन ही भटका करेंगे।
भाषा की बेइंसाफी गूगल तक में
भाषा की राजनीति हमेशा से महिलाओं को अनदेखा करने वाली रही है, और भाषा के मुताबिक महिलाओं का अस्तित्व ही नहीं होता। भाषा का समाजशास्त्र भी अधिकतर जगहों पर महिलाओं का जिक्र न करके सिर्फ पुरुषों को ही सब कुछ मान लेता है। अब जैसे गूगल पर भाषा की गलतियां या हिज्जों की गलतियां सुलझाने वाले व्याकरण को देखें तो वह किसी महिला के लिए ‘जानी-मानी’ शब्द को ही गलत मानता है, वह उसे ‘जाने-माने’ सुझाता है। मतलब यह कि या तो वह किसी महिला को अर्थशास्त्री नहीं गिनता, या फिर वह सुनयना नाम को महिला के रूप में नहीं जानता। हमने सुनयना की जगह अलग-अलग कई तरह के महिला नाम डालकर देखे, लेकिन गूगल को उनमें से किसी भी नाम को ‘जानी-मानी’ मानने पर आपत्ति है और वह एक पुरुष की तरह जाने-माने ही सुझाता है। भाषा के ऐसे लैंगिक भेदभाव जहां दिखें वहां उसका विरोध करना चाहिए। हिंदुस्तान में मोबाइल फोन से किसी को कॉल किया जाए और वे फोन न उठाएं तो मोबाइल कंपनी का कंप्यूटर महिला की आवाज में यह संदेश सुनाता है कि आप व्यक्ति को कॉल कर रहे हैं, वह उत्तर नहीं दे रहा है, कृपया बाद में लगाएं। यानी किसी महिला के पास भी मोबाइल हो सकता है और वह भी किसी कॉल को नहीं उठा सकती है ऐसा मोबाइल कंपनी का कंप्यूटर मानता ही नहीं, क्योंकि कंपनी ने उसमें मैसेज भी उसी तरह का रिकॉर्ड किया है। ऐसी ही तमाम बेइंसाफी का विरोध किया जाना चाहिए।