राजपथ - जनपथ
नई नियुक्तियों ने पुराने जख्म कुरेद डाले
राज्य सरकार ने हाल ही में पांच जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों में नियुक्तियां की है। इस सूची को देखकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं का पुराना जख्म फिर ताजा हो गया है। लंबे समय से सहकारिता क्षेत्र से जुड़े बिलासपुर के तरु तिवारी उन कांग्रेस कार्यकर्ताओं में शामिल हैं, जिन्हें कांग्रेस भवन में लाठी चार्ज के दौरान चोट पहुंची। आंदोलनों में कई बार गिरफ्तारियां दी। जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष पद तत्कालीन भूपेश सरकार ने नियुक्तियां कीं, मगर वर्तमान भाजपा सरकार ने न केवल अध्यक्ष बल्कि उपाध्यक्षों का मनोनयन भी किया गया है। तिवारी ने सोशल मीडिया पर अपना गुस्सा जाहिर किया है। उनका कहना है कि इस आदेश को देखकर स्पष्ट समझ आता है कि कांग्रेस के शासन काल में जानबूझकर निष्ठावान कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की गई । जब भाजपा सरकार में सहकारी बैंकों में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बन सकते हैं तो , कांग्रेस के शासन काल में उपाध्यक्ष क्यों नहीं बनाए गए? राज्य में 6 जिला सहकारी बैंक है। उपाध्यक्ष बनाने से 6 और निष्ठावान कार्यकर्ताओं को सम्मान मिल सकता था, पर ऐसा नहीं किया गया। जानबूझ कर ऐसा किया गया । बस ऐसे ही कारण हैं कि दूसरी बार कांग्रेस की सरकार नहीं बनी, जबकि उपाध्यक्ष के साथ हर बैंक में तीन संचालक भी बनाए जा सकते थे। इससे 18 कार्यकर्ता और सम्मान पाते। तिवारी याद दिलाते हैं कि 2010 में भाजपा सरकार के दौरान उन्होंने संचालक का चुनाव लड़ा था। बराबरी का वोट मिलने के बावजूद टॉस की प्रक्रिया नहीं अपनाई गई, वरना भाजपा शासनकाल में वे एकमात्र निर्वाचित संचालक होते। कांग्रेस सरकार में मेरिट के आधार पर उनका हक था। कितनी बार तब सीएम से मिला, उपाध्यक्ष नहीं- संचालक ही बना दें लेकिन समय निकला, सरकार चली गई। यही कारण है कि आज कांग्रेस सत्ता से बाहर है। 2023 में चुनाव की तैयारियों के दौरान महासचिव पुनिया ने कहा था, सरकार तो बनाओ, हमारे पास दो से ढाई हजार पद हैं। जो लोग लाठी चलती देख कांग्रेस भवन से भाग गए, उनको सरकार बनने पर पद दिया गया।
जोड़ी फिर साथ-साथ
रिटायरमेंट के बाद कई प्रशासनिक अफसर सरकारी सुख-सुविधाओं का मोह नहीं छोड़ पाते हैं, और ऐन-केन प्रकारेण पद के लिए कोशिश भी करते हैं। इनमें बहुत सारे अफसरों को सफलता भी मिल जाती है। कुछ अफसरों की उपयोगिता सरकार समझती है, और उनके अनुभवों का लाभ लेने के लिए अलग-अलग पदों पर नियुक्ति भी देती है। मगर प्रदेश में रिटायर्ड अफसर की नियुक्ति का एक ऐसा उदाहरण सामने आया है जो पहले कभी देखने-सुनने में नहीं आया है।
बात सचिव स्तर के आईएएस अफसर अशोक अग्रवाल की है। अशोक कई जिलों के कलेक्टर रहे हैं। वो रायपुर के कमिश्नर भी रह चुके हैं। उनका पूरा प्रशासनिक करियर तकरीबन छत्तीसगढ़ में गुजरा। वो कांग्रेस, और भाजपा में अपार संपर्कों के लिए जाने जाते हैं। रिटायर होते ही उन्हें सूचना आयुक्त का पद मिल गया। सूचना आयुक्त का कार्यकाल खत्म हुआ, तो वो रेडक्रॉस सोसायटी के सचिव बन गए।
रेडक्रॉस सोसायटी में पूरे पांच साल गुजारने के बाद दो दिन पहले उन्हें राज्य निजी विश्वविद्यालय नियामक आयोग के सचिव पद पर संविदा नियुक्ति दे दी गई। दिलचस्प बात ये है कि आयोग के अध्यक्ष डॉ.वी.के.गोयल, कभी अशोक अग्रवाल के मातहत काम कर चुके हैं। अशोक अग्रवाल माध्यमिक शिक्षा मंडल के सचिव थे तब डॉ.गोयल मंडल में उपसचिव के पद पर थे। बताते हैं कि मंडल के सचिव बनने के बाद अशोक अग्रवाल ही डॉ.वी.के. गोयल को मंडल में लेकर आए थे।
तब डॉ.गोयल सहायक प्राध्यापक के पद थे। दोनों के बीच घनिष्ठता किसी से छिपी नहीं है। और अब जब अशोक अग्रवाल पूरी तरह खाली हो गए, तो डॉ. गोयल के प्रयासों से उन्हें सचिव की जिम्मेदारी मिल गई। मजे की बात ये है कि सचिव का पद पर सहायक प्राध्यापक या फिर डिप्टी कलेक्टर स्तर के अफसर ही रहते आए हैं। मगर अशोक अग्रवाल ने कई पायदान नीचे के पद पर काम करने से परहेज नहीं किया। अब जहां तक निजी विश्वविद्यालय नियामक आयोग की कार्यप्रणाली का सवाल है तो इस पर विधानसभा के शीतकालीन सत्र में काफी बातें हुई हैं।
पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने एक विधेयक की चर्चा के दौरान निजी विवि नियामक आयोग की कार्यप्रणाली पर उंगलियां उठाई है। राज्यपाल रामेन डेका तो खुलकर आयोग की कार्यप्रणाली पर नाराजगी जता चुके हैं। ऐसे में गोयल-अग्रवाल की जोड़ी आगे क्या कुछ करती है, यह देखना है।
आरोपों में दम नहीं
सरकार ने पिछले दिनों आधा दर्जन कलेक्टर बदल दिए। इनमें कोरबा कलेक्टर अजीत बसंत भी थे, जिन्हें कोरबा से सरगुजा भेजा गया है। खास बात ये है कि पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने अजीत बसंत के खिलाफ 14 बिंदुओं पर शिकायत की थी, और सरकार ने बिलासपुर कमिश्नर से जांच प्रतिवेदन मांगा था। जांच प्रतिवेदन मिलने के बाद सरकार ने अजीत बसंत को कोरबा से हटाकर सरगुजा कलेक्टर बना दिया है।
सरगुजा पुराना जिला है, और कोरबा के मुकाबले बेहतर पोस्टिंग मानी जा रही है। बिलासपुर कमिश्नर के जांच प्रतिवेदन में क्या था, यह तो सार्वजनिक नहीं हुआ है। मगर अजीत बसंत की सरगुजा पोस्टिंग से अंदाजा लगाया जा रहा है कि उनके खिलाफ आरोपों में दम नहीं है। कंवर भी सिर्फ इतना चाहते थे कि अजीत बसंत को हटा दिया जाए। सरकार ने उनकी इच्छा पूरी कर दी, और अजीत बसंत को बेहतर पोस्टिंग देकर उनका मान रख लिया है।


