राजपथ - जनपथ
रेलवे का कीर्तिमान यात्रियों की जान की कीमत पर?
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे बिलासपुर ने हाल ही में माल लदान का नया रिकॉर्ड बनाया। यह खबर 4 नवंबर की सुबह अखबारों में प्रमुखता से प्रकाशित हुई। रेलवे अधिकारियों के अनुसार, 150 मिलियन टन माल लदान का लक्ष्य पूरा करने में जहां पिछले वर्षों में 265 से 244 दिन लगते थे, वहीं इस वित्तीय वर्ष 2025-26 में यह लक्ष्य केवल 216 दिनों में हासिल कर लिया गया।
रेलवे ने गर्व के साथ कहा कि यह उपलब्धि बिलासपुर, रायपुर और नागपुर मंडलों के संयुक्त प्रयासों से संभव हुई, जिनमें से दो मंडल छत्तीसगढ़ में स्थित हैं। इन मालगाडिय़ों में सबसे अधिक परिवहन कोयले का हुआ, जबकि इस्पात, सीमेंट, खाद्यान्न और अन्य खनिज पदार्थों का भी बड़ा हिस्सा शामिल था।
रेलवे ने अपनी पीठ थपथपाते हुए यह भी कहा था कि यह सफलता संरचनात्मक सुधार और परिचालन क्षमता में बढ़ोतरी का परिणाम है।
लेकिन इसी दिन शाम, 4 नवंबर को, रेलवे के इन दावों की सच्चाई एक भीषण हादसे में उजागर हो गई। गेवरा से बिलासपुर आ रही एक पैसेंजर ट्रेन की टक्कर मालगाड़ी से हो गई। इस दुर्घटना में 11 लोगों की मौत हुई और लगभग दो दर्जन यात्री घायल हुए। हादसे की वास्तविक वजह जांच के बाद सामने आएगी, लेकिन इसने कई परिवारों को उजाड़ दिया है और रेलवे के प्रति भरोसे में कमी आई है।
ज्यादातर हताहत स्थानीय यात्री हैं। वही लोग जिन्हें अब तक इस बात पर गर्व है कि उनका दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे देश का सबसे अधिक राजस्व अर्जित करने वाला जोन है। गौर करने लायक है कि बीते वित्तीय वर्ष 2024-25 में एसईसीआर का कुल राजस्व 31,325 करोड़ रुपये रहा, जो वर्ष 2023-24 के 29,640 करोड़ रुपये से लगभग 1,600 करोड़ रुपये अधिक था।
रेलवे ने फेस्टिवल स्पेशल ट्रेनों का हवाला देकर यह दावा किया था कि वह यात्रियों की सुविधा का भी ध्यान रखता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि आए दिन ट्रेनों को यह कहते हुए रद्द किया जाता है कि रेल परिचालन के आधुनिकीकरण और विस्तार का कार्य चल रहा है।दूसरी ओर ऐसी दुर्घटनाएं यह साफ कर देती हैं कि यह आधुनिकीकरण और विस्तार मालगाडिय़ों के लिए हो रहा है। नई लोकल या इंटरसिटी ट्रेनों के लिए ट्रैक नहीं होने का हवाला दिया जाता है।
हाल ही में रेलवे ने सिग्नलिंग की नई तकनीक का जोरदार प्रचार किया था। कहा गया कि अब एक ही ट्रैक पर दो ट्रेनें आगे-पीछे चल सकती हैं, और उनके बीच मात्र 300 मीटर की दूरी होने पर भी टक्कर की कोई संभावना नहीं रहेगी। अब सवाल उठता है, क्या बिलासपुर-गतौरा के बीच हुआ हादसा उसी तकनीक की विफलता का नतीजा है?
जांच के बाद कारण चाहे जो भी निकले, सामान्यत: ऐसे मामलों में कुछ फील्ड स्टाफ या तकनीशियनों को निलंबित या बर्खास्त कर दिया जाता है। लेकिन सवाल असली तो यह है कि क्या इस बार रेल प्रशासन माल परिवहन की बढ़ती रफ्तार के बीच यात्री सुरक्षा पर कोई सबक लेगा ?
पशु ट्रॉली में नेताओं के कट-आउट

छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना की 25वीं जयंती पर जहां प्रदेशभर में रजत जयंती महोत्सव का उल्लास है, वहीं नगर निगम कोरबा की एक झांकी से विवाद खड़ा हो गया। प्रदेश मंत्रिमंडल के सदस्यों और प्रमुख जनप्रतिनिधियों के बड़े-बड़े कटआउट राज्योत्सव के लिए बनवाए गए। लेकिन आयोजन स्थल तक उन्हें लाने के लिए इस्तेमाल किया गया पशुओं को ढोने वाली गाड़ी का। खुली ट्रॉली में पोस्टर इस तरह से रखे हुए थे, मानो कोई झांकी निकाली जा रही हो। लोगों ने तस्वीर और वीडियो खींचकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। कुछ ने बड़ी व्यंग्यात्मक टिप्पणी की है। इसे नगर निगम का क्रिएटिव सोच बताने लगे। इसे राज्योत्सव की असली झांकी कहने लगे। वहीं अनेक लोगों ने इसे जनप्रतिनिधियों की गरिमा के खिलाफ करार दिया। कुछ लोगों ने कहा कि यह परिवहन की सामान्य प्रक्रिया है, बस पोस्टरों को ढंक लिया जाना था।
मामले ने तूल पकड़ा तो नगर निगम की महापौर संजू देवी राजपूत ने सख्त नाराजगी जताई। उनके निर्देश पर अपर आयुक्त ने तीन कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है, जिन्हें ट्रॉली में पोस्टर ढोने के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। निगम प्रशासन ने इसे छत्तीसगढ़ सिविल सेवा आचरण नियम 1965 का उल्लंघन माना है। वैसे यह पहला मौका नहीं है जब ऐसी लापरवाही हुई हो। बीते 11 सितम्बर को भी इसी तरह पशु ट्रॉली से नेताओं के कटआउट ढोए गए थे, तब चेतावनी देकर मामला शांत किया गया था। मगर, अब की बार ऐसा लग रहा है कि किसी न किसी कर्मचारी पर गाज गिरने वाली है।
तारीफ के मायने क्या?

पीएम नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों नए विधानसभा भवन के उद्घाटन, और फिर राज्योत्सव समारोह में स्पीकर डॉ. रमन सिंह की तारीफों के पुल बांधे, तब से राजनीतिक हलकों चर्चा हो रही है। अटकलें लगाई जा रही है कि डॉ रमन सिंह भूमिका बदल सकती है।
कई लोग तो रमन सिंह की तारीफ को उनकी भूमिका बदलने की संभावना से भी जोडक़र देख रहे हैं। कुछ लोग उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की भी संभावना जता रहे हैं। इन सबके बीच राज्य वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष, और पूर्व भाजपा नेता वीरेन्द्र पाण्डेय के एक फेसबुक पोस्ट की खूब चर्चा हो रही है। पाण्डेय ने डॉ. रमन सिंह को सतर्क रहने का सुझाव दे दिया।
उन्होंने बहुत कुछ लिखा है। पाण्डेय ने लिखा कि छत्तीसगढ़ में जो चर्चा चल रही है कि यहां दो शक्ति केन्द्र हैं, उसे एक करना है। अत: एक केन्द्र रमन सिंह को राज्यपाल बना छत्तीसगढ़ से बाहर करना है तथा अमर अग्रवाल को विधानसभा अध्यक्ष बनाना है, छत्तीसगढ़ को चौंकाना है। इन चर्चाओं के बीच पीएम के आध्यात्मिक गुरू, और मित्र माने जाने वाले जगदगुरू रामभद्राचार्य के छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान पिछले दिनों पेंड्रा में एक भविष्यवाणी को लेकर काफी चर्चा हो रही है। उन्होंने सीएम विष्णुदेव साय की पत्नी कौशल्या को आशीर्वाद देते हुए कहा कि उनके पति 2028 में फिर सीएम बनेंगे। चाहे कुछ भी हो, रमन सिंह की तारीफों के मायने तलाशे जा रहे हैं।
कांग्रेस में खींचतान जारी
कांग्रेस में जिला अध्यक्षों की नियुक्ति का मामला अटका पड़ा है। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल ने पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट पर पार्टी के प्रमुख नेता भूपेश बघेल, नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज, और टीएस सिंहदेव व ताम्रध्वज साहू से अकेले में राय ले चुके हैं। मगर अब तक सूची जारी नहीं हो पाई है।
चर्चा है कि बिहार चुनाव निपटने के बाद फिर से प्रमुख नेताओं से बात होगी, और कुछ जिले, जहां ज्यादा विवाद है वहां सहमति बनाने की कोशिश की जाएगी। सबसे ज्यादा विवाद दुर्ग शहर, बिलासपुर शहर आदि जिलाध्यक्षों के पैनल को लेकर है। कुछ पूर्व विधायकों ने भी अपनी दावेदारी ठोक दी है। इनमें अरुण वोरा, यूडी मिंज के नाम लिए जा रहे हैं।
पार्टी ने यह भी तय किया है कि जिलाध्यक्ष के लिए अधिकतम 55-60 आयु के नेताओं के नामों पर ही विचार किया जाएगा। इस बार जिलाध्यक्षों को लेकर खींचतान ज्यादा है। दावा किया जा रहा है कि नए जिलाध्यक्ष पहले से ज्यादा पॉवरफुल होंगे। प्रत्याशी चयन में उनकी अहम भूमिका होगी। सबकुछ ठीक रहा, तो 15 नवंबर के आसपास सभी 41 संगठन जिलाध्यक्षों की सूची जारी हो जाएगी।


