राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : कलेक्टर के कंधे पर झाड़ू का बोझ
14-Oct-2025 6:52 PM
राजपथ-जनपथ : कलेक्टर के कंधे पर झाड़ू का बोझ

कलेक्टर के कंधे पर झाड़ू का बोझ 

जिले के प्रशासनिक प्रमुख होने के नाते कलेक्टर राजस्व प्रशासन के सर्वोच्च अधिकारी होते हैं, सामान्य प्रशासन के भी प्रमुख होते हैं, न्यायिक अधिकारी के रूप में भी काम करते हैं। जिले में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होते हैं। विकास कार्यों का ठीक तरह से संचालन हो, केंद्र और राज्य सरकार की परियोजनाओं, महत्वाकांक्षी योजनाओं का संचालन सही तरीके से हो, इसकी भी जिम्मेदारी कलेक्टर की होती है। भूमि, खनिज, वाणिज्य कर और दूसरी तरह की राजस्व वसूली सुनिश्चित करना भी उनका काम है। राजस्व के विवादों को निपटाना उनका काम होता है। बाढ़, भूकंप, सूखे के हालात पैदा हो तो आपदा प्रबंधन भी करना होता है। आम तौर पर कलेक्टर करीब 54 विभागों के प्रभारी या फिर अध्यक्ष होते हैं। जिन विभागों के अलग-अलग प्रमुख जैसे एसपी, जिला पंचायत सीईओ, नगर निगम कमिश्नर आदि होते हैं, उन पर भी नियंत्रण कलेक्टर का ही होता है।

बस, इसी बात की व्याख्या वीरेंद्र पांडेय ने सोशल मीडिया पर कुछ अलग तरह से की है। लिखा है- इस धरती में एक प्राणी कलेक्टर है। उस पर बोझ लादते जाओ वह उफ्फ तक नहीं करता। भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था में हर काम की गठरी कलेक्टर पर लाद दी जाती है। कलेक्टर की पीठ पर वैसे ही सैकड़ों काम का बोझ है। अब छत्तीसगढ़ सरकार ने उसके कांधे पर सफाई की झाड़ू भी रख दी। कहा-अब कलेक्टर का दिन सात बजे सुबह शुरू होगा, वार्ड भ्रमण से। देखना होगा सडक़ की धूल झाड़ ली गई। नालियां बजबजा तो नहीं रही। सारे सफाई कर्मी काम पर मुस्तैद हैं कि नहीं। सरकार ने यह तो बता दिया कि दिन सात बजे शुरू होगा, नहीं बताया काम खत्म कब करना है। जिस जिले में कई नगरीय संस्थान हैं वहां क्या कलेक्टर की तादाद बढ़ाई जाएगी? महापौर और पार्षद क्यों चुने जाते हैं? आईएएस आयुक्त और जोन कमिश्नर को करोड़ों रुपए की तनख्वाह क्यों दी जाती है? तुगलकी फरमान है। ये नौकर वैसे ही एक दिन का काम तीन दिन में करते हैं।अब नए बोझ के बाद भगवान ही मालिक है, जनता का।

क्या आप पांडेय जी की बात से सहमत हैं?

स्टडी मटेरियल बना ट्रिपल आईटी छात्र

कहा जाता है कि घर मोहल्ले समाज में घटने वाली घटनाएं फिल्मों और शैक्षणिक सत्र में उदाहरण, प्रदर्शन का माध्यम बन जाती है। वर्तमान तकनीक के दौर में इन घटनाओं का उपयोग बढ़ रहा है। चैट जीपीटी, एआई टूल जैसी तकनीक का उपयोग जहां सुविधाजनक हो गया है वहीं इसका दुरूपयोग को भी उतनी ही रफ्तार मिली हुई है।  इसी दुरूपयोग की वजह से नवा रायपुर का एक  छात्र जेल की सीखचों के पीछे जा पहुंचा है वहीं अब वह अपने ही संस्थान में स्टडी मटेरियल हो गया है। तकनीक के नेगेटिव और पॉजिटिव पक्ष को प्रस्तुत करते हुए उसके अपने ही प्रोफेसर उसका उदाहरण देकर बता रहे हैं। हाल के दिनों में ट्रिपल आईटी में मंत्रालय के 900 से अधिक अधिकारी कर्मचारियों को एआई टूल के इस्तेमाल पर ट्रेनिंग दी जा रही है। यह ट्रेनिंग सुशासन अभिसरण विभाग के द्वारा कराई जा रही है। सोमवार को एक सत्र में आईटी विशेषज्ञ ने एआई टूल के प्रशासनिक कामकाज में इस्तेमाल कितना लाभकारी और उसका दायरा विषय पर लेक्चर दिया। इसके बाद प्रशिक्षणार्थियों को संस्थान के कंप्यूटर लैब में प्रैक्टिकल भी देना था। लेक्चर में प्रोफेसर साहब ने अपने छात्र के एआई के दुरूपयोग से सहपाठी 36 छात्राओं की न्यूड तस्वीरें बनाने के घटनाक्रम को बताया। ऐसे दुरूपयोग को सौभाग्य से खोजे गए एआई को दुर्भाग्य भी बताया।

कड़ी मेहनत के लिए कमर कस लें

दो दिन के कलेक्टर-एसपी कॉन्फ्रेंस का समापन सीएम विष्णुदेव साय ने सुशासन संवाद से किया। इस दौरान उन्होंने सरकारी कामकाज में लेटलतीफी, लालफीताशाही खत्म करने पर जोर दिया। उन्होंने इस साल के पहले दिन से 10 बजे मंत्रालय, जिला कार्यालय में कामकाज शुरू करने को लेकर दिए निर्देशों की सफलता को भी रखा। एक अप्रैल से ई आफिस सिस्टम से बढ़ी पब्लिक डिलीवरी सिस्टम पर भी पीठ थपथपाई। इस सुशासन संवाद में नए मुख्य सचिव विकासशील ने अपने दिल्ली और मनीला (फिलीपींस) में कामकाज के अनुभव रखे। वैसे विकासशील, छत्तीसगढ़ में अपने पिछले कार्यकाल में भी उन अफसरों में गिने जाते रहे हैं जो समय पर दफ्तर पहुंचते रहे।

उन्होंने कहा कि ब्यूरोक्रेसी को ट्रांसफॉर्म करने का समय आ गया है। नई कार्य संस्कृति और तकनीक को अपनाए बिना सुशासन संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि जनता में विश्वास बढ़ाना है, तो उच्चाधिकारियों को खुद उदाहरण प्रस्तुत करना होगा। उन्होंने कहा कि जब हम स्वयं समय पर दफ्तर पहुंचेंगे, तभी नीचे तक अनुशासन की संस्कृति बनेगी। कर्मचारी बता रहे कि विकासशील सुबह 9 बजे दफ्तर पहुंचकर रात 9 बजे ही बंगले लौट रहे हैं। उनकी टाइमिंग, उन अफसरों के लिए चुनौती होगी जो अपने मंत्रियों की आवाजाही के आधार पर अपनी घड़ी का कांटा सेट करते रहे हैं। ऐसे में किसी दिन सीएस की चेकिंग असहज स्थिति न खड़ी कर दे।

बारहसिंघा के कितने सींग?

कान्हा नेशनल पार्क में खींची गई इस तस्वीर के बारे में सोशल मीडिया पर एक पाठक ने प्रतिक्रिया दी कि जब भी उसने सींगों को गिनने की कोशिश की, 12 नहीं मिले। पोस्ट वन्यजीव प्रेमी पत्रकार प्राण चड्ढा की है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सींग 12 ही होते हैं, आप उनकी शाखाओं को गिनिए। सिर से कितने निकले हैं, उनको नहीं। वैसे मुद्दे की बात यह है कि कान्हा का बारहसिंघा विशेष है। इसने परिस्थितियों के अनुकूल इसने अपने खुरों को विकसित किया है। इसके चलते यह सख्त भूमि पर दौड़ सकता है।  वरना यह दलदली भूमि का जीव है। कान्हा में इनकी संख्या कम होने लगी थी लेकिन पार्क प्रबंधन ने प्रयास किया तो अब यह लुप्त होने के खतरे से बाहर है।


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