राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : रसूख का नशा और सडक़ पर तमाशा
13-Oct-2025 6:31 PM
राजपथ-जनपथ : रसूख का नशा और सडक़ पर तमाशा

रसूख का नशा और सडक़ पर तमाशा

नेता हों या अफसर, उनके निजी सहायकों या रिश्तेदारों की ताकत हर किसी को पता होती है। आम लोग जब ऊपर तक नहीं पहुंच पाते, तो वे उनके राजदार सहायकों के ही जरिये काम निकलवाते हैं। बहुत से लोग अपनी हैसियत छुपाकर रखते हैं, लेकिन ताकत की एक दिक्कत है, छिपती नहीं। कभी-कभी खुद-ब-खुद सार्वजनिक हो जाती है और नियम-कानून सडक़ पर रौंद दिए जाते हैं।

पिछले कुछ महीनों में ऐसे कई नजारे देखने मिले हैं। बीते जून में बलरामपुर के एक डीएसपी की पत्नी ने नीली बत्ती वाली कार की बोनट पर बैठकर रील्स बनाई और जन्मदिन मनाया। इससे पहले मार्च में रायपुर की मेयर के बेटे ने दोस्तों संग सडक़ रोककर केक काटा। अब चिरमिरी में स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल के विशेष सहायक और भाजपा नेता राजेंद्र दास ने अपनी पत्नी के साथ सडक़ पर आतिशबाज़ी कर बर्थडे मनाया और खुद ही उसका वीडियो इंस्टाग्राम पर डाल दिया।

शायद उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि वीडियो वायरल होते ही बवाल खड़ा हो जाएगा। कांग्रेस ने थाने में शिकायत कर दी और पुलिस को एफआईआर दर्ज करनी पड़ी। दरअसल हाईकोर्ट पहले ही ऐसी हरकतों पर नाराजगी जता चुका है, इसीलिए पुलिस भी मजबूर हो जाती है कार्रवाई करने को।

मगर सच्चाई यह है कि ये कार्रवाई सिर्फ दिखावे की होती हैं। बलरामपुर की तरह चिरमिरी में भी जश्न मनाने वाले पर नहीं, बल्कि कार के ड्राइवर के ऊपर ही एफआईआर दर्ज हुआ। पुलिस की पड़ताल इतनी कमजोर है कि उसे उस ड्राइवर का नाम भी नहीं मालूम, एफआईआर से गायब है। इन मामलों में धाराएं इतनी हल्की लगाई जाती हैं कि 2500 रुपये जुर्माना देकर छूट मिल जाती है।

रायपुर में मेयर के बेटे के मामले में अवश्य पुलिस ने पांच लोगों को हिरासत में लिया था क्योंकि मामला राजधानी का था और हाईकोर्ट की नजर में भी आ चुका था। लेकिन इससे पहले जब कांग्रेस से जुड़े 10-12 लोगों को ऐसी ही हरकत पर पकड़ा गया था तो उन्हें एक रात हवालात में रहना पड़ा था। निचोड़ यह है कि रसूख जब सिर चढ़ता है तो सडक़ में  जश्न मनाने पर कानून टूटने के भय की कोई जगह नहीं होती है।

महिला पर्यवेक्षक की दो टूक

कांग्रेस में जिला अध्यक्षों के चयन के लिए रायशुमारी की प्रक्रिया अंतिम चरण में हैं। ज्यादातर जिलों में तो एआईसीसी की गाइडलाइन धरी की धरी रह गई, और कई जगहों पर दावेदारों ने केन्द्रीय पर्यवेक्षकों के आगे शक्ति प्रदर्शन किया है।  अलबत्ता, कुछ पर्यवेक्षक जरूर ऐसे हैं, जो गाइडलाइन का सख्ती से पालन कर रहे हैं। इन पर्यवेक्षकों के तेवर देखकर दावेदार भी सकते में आ गए हैं।

एआईसीसी ने राजस्थान की एक महिला नेत्री को पर्यवेक्षक बनाकर भेजा है। महिला नेत्री को तीन जिलों की जिम्मेदारी दी गई है। महिला नेत्री तो सहयोगी पर्यवेक्षक प्रदेश के पूर्व मंत्री की गाड़ी में बैठने से मना कर दिया। वो खुद ऑटो में अलग-अलग ब्लॉकों में जाकर रायशुमारी कर रही हैं। इतना ही नहीं, महिला पर्यवेक्षक ने एक पूर्व विधायक का आवेदन लेने से मना कर दिया। आर्थिक रूप से बेहद सक्षम पूर्व विधायक जिलाध्यक्ष के लिए दावेदारी कर रहे हैं। मगर महिला पर्यवेक्षक के आगे उनकी एक नहीं चल पा रही है। महिला पर्यवेक्षक ने पूर्व विधायक से साफ तौर पर कह दिया कि उनकी उम्र ज्यादा हो चुकी है, और वो जिलाध्यक्ष के लिए फिट नहीं बैठते हैं।

बताते हैं कि पूर्व विधायक ने प्रदेश के शीर्ष नेताओं से संपर्क किया, और फिर बात प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट तक पहुंची। प्रदेश प्रभारी ने महिला पर्यवेक्षक से पूर्व विधायक का आवेदन लेने के लिए कह दिया। महिला पर्यवेक्षक ने प्रदेश प्रभारी की बात नहीं टाल सकीं, लेकिन उनसे साफ तौर पर कह दिया कि वो आवेदन तो ले रही हैं, लेकिन एआईसीसी में जमा नहीं करेंगी। एक-दो और पर्यवेक्षक भी महिला पर्यवेक्षक की तरह पारदर्शी तरीके से काम कर रहे हैं। इन सबके चलते दिग्गज नेता भी सशंकित हैं। अब पर्यवेक्षकों की राय को कितना महत्व मिलता है, यह देखना है। मगर महिला पर्यवेक्षक के तेवर की पार्टी के अंदरखाने में काफी चर्चा हो रही है।


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