राजपथ - जनपथ
जूता प्रकरण पर पोस्ट का दूसरा सिरा...
सुप्रीम कोर्ट में जूता फेंकने की घटना की जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कड़ी भर्त्सना की, तभी भाजपा कार्यकर्ताओं को यह स्पष्ट हो गया था कि उन्हें इस मामले क्या स्टैंड लेना है। यह अलग बात है कि सोशल मीडिया पर भाजपा, सनातन और हिंदुत्ववादी विचारधारा से जुड़े अनेक लोगों ने उस जूता फेंकने वाले वकील की सराहना करते हुए पोस्ट डाले हैं और सीजेआई को हिंदू देवी-देवताओं का अपमान करने वाला व्यक्ति बताया है।
ऐसे माहौल में जब पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ के सरकारी वकील सतीश गुप्ता की एक पोस्ट को साझा करते हुए एक्स हैंडल पर प्रतिक्रिया दी, तो वह तुरंत सुर्खियों में आ गई। दरअसल, बघेल की पोस्ट के बाद ही अधिकांश लोगों को यह पता चला कि हाईकोर्ट के किसी वकील ने इस प्रकरण पर कुछ लिखा है। बघेल की वही पोस्ट अब सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से साझा की जा रही है।
हालांकि, बघेल की पोस्ट से यह स्पष्ट नहीं होता कि गुप्ता ने यह टिप्पणी किस प्लेटफॉर्म पर की। एक्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम या किसी अन्य मंच पर। वास्तव में यह पोस्ट अधिवक्ताओं के एक निजी व्हाट्सऐप ग्रुप में डाली गई थी। बघेल उस ग्रुप में तो हैं नहीं, इसलिये अनुमान है कि बघेल के किसी समर्थक या शुभचिंतक ने यह पोस्ट उन्हें भेजी, जिसके बाद बघेल ने उसे साझा कर दिया और मामला चर्चा में आ गया।
पोस्ट के बाद जब विवाद बढ़ा, तो सतीश गुप्ता ने भी एक वीडियो जारी कर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि बघेल उनके परिवार का विरोध करते रहे हैं। बघेल की वजह से ही उनके पिता (राधा कृष्ण गुप्ता) को मार्कफेड अध्यक्ष पद से हटना पड़ा था और उस सदमे में उनकी मृत्यु हो गई। जिस पोस्ट की बात की जा रही है, वह वास्तव में एक फॉरवर्डेड मैसेज था, जिसे उन्होंने वकीलों के ग्रुप में इस टिप्पणी के साथ साझा किया था कि हमारे संगठन को इस घटना की निंदा करनी चाहिए। गुप्ता का कहना है कि बघेल ने पोस्ट को क्रॉप कर उस हिस्से को हटा दिया, जिसमें निंदा का उल्लेख था।
सवाल उठ सकता है कि जब यह एक निजी समूह की पोस्ट थी, तो उसे उस ग्रुप से बाहर के व्यक्ति को सार्वजनिक करना चाहिए या नहीं। ग्रुप से जुड़े कुछ सदस्यों का कहना जरूर है कि विवाद बढऩे के बाद वह पोस्ट हटा दी गई है, जबकि कुछ का यह भी कहना है कि गुप्ता ने पोस्ट तो डाली थी, पर निंदा की थी या नहीं, यह मालूम नहीं।
अब उस पुराने प्रकरण पर नजर डालें, जिसका जिक्र करते हुए बघेल पर आरोप लगाया गया है। गुप्ता के पिता स्व. राधा कृष्ण गुप्ता को छह साल पहले मार्कफेड अध्यक्ष पद से हटना पड़ा था। उनकी नियुक्ति डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल में हुई थी। जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी, तो कई निगम-मंडलों के अध्यक्षों ने स्वेच्छा से इस्तीफा दिया, कुछ को पद छोडऩे के लिए विवश किया गया।
इसी दौरान प्रेमनगर (सरगुजा) की अटेम विपणन समिति पर अनियमितताओं का आरोप लगा और उसे लिक्विडेशन में भेज दिया गया। उप पंजीयक ने जांच में पाया था कि समिति ने आठ लाख रुपये की लागत से गोदाम नियमों के विरुद्ध बनवाया था। चूंकि राधा कृष्ण गुप्ता इसी समिति से प्रतिनिधि चुने गए थे, समिति के भंग होते ही उनकी सदस्यता समाप्त हो गई और परिणामस्वरूप मार्कफेड अध्यक्ष का पद भी छिन गया।
डॉ. रमन सिंह के लंबे समय तक निजी सहायक रहे ओमप्रकाश गुप्ता, सतीश गुप्ता के निकट संबंधी बताए जाते हैं। ओमप्रकाश गुप्ता कुछ अलग कारणों से भी चर्चा में रहे हैं।
सतीश गुप्ता पहली बार सरकारी वकील नहीं बने हैं। वे कांग्रेस शासन को छोडक़र लगभग लगातार इस पद पर हैं। इस आधार पर माना जा सकता है कि उन्होंने जो भी टिप्पणी अपने ग्रुप में की, वह सचेत रूप से और सोच-समझकर की होगी, और जो प्रतिक्रिया वीडियो में दी है- वह भी खरी होगी।
हाथी गुरूमुख का साथी...

धमतरी से एक बड़ा दिलचस्प वीडियो आया है। वहां एक जंगली हाथी शहर पहुंच गया तो लोगों को तोडफ़ोड़ की आशंका हुई। जिस जगह वह पहुंचा वहां भूतपूर्व विधायक गुरुमुख सिंह होरा का एक बड़ा सा होर्डिंग लगा हुआ था। हाथी गुरमुख सिंह की फोटो की तरफ गया, अपनी सूंड उठाकर उनके माथे को छुआ, और आगे बढ़ गया। अब होरा की फोटो के ऐसे असर को देखते हुए कुछ लोग सोच रहे हैं कि वन विभाग को उन्हीं के दो-चार हजार होर्डिंग बनवाकर हाथीग्रस्त गाँवों में लगा देना चाहिए।
एक और राष्ट्रीय संस्थान भी चर्चा में
प्रदेश स्थित राष्ट्रीय शिक्षण संस्थान इन दिनों चर्चा में है। एक संस्थान के प्रमुख ने समय से पहले इस्तीफा दे दिया। तो एक तकनीकी संस्थान की अपने छात्र की तकनीक आधारित हरकत से देश दुनिया में चर्चा हो रही है। तो अब पड़ोसी जिले के राष्ट्रीय संस्थान के प्रमुख शिक्षाविद भी चर्चा में है। यह संस्थान राजधानी के उत्तर की ओर मध्य छत्तीसगढ़ में है। इन साहब ने छात्र जैसी हरकत तो नहीं की। लेकिन उनकी हरकत एक ऊंचे पद पर बैठे शिक्षाविद के कदाचार की श्रेणी में आता है।
लाखों का वेतन, बंगला गाड़ी जैसी मुफ्त सुविधा भोगने के बावजूद प्रोफेसर साहब की, सहायक प्राध्यापक, आफिस स्टाफ के टीए, मेडिकल बिल, ईएल अध्ययन अवकाश के बिल के टोटल और उसके प्रतिफल पर रहती है। शायद यह सोचकर कि उनके नियोक्ता केंद्रीय मानव संसाधन विभाग तो दिल्ली में है जो दूर है। ऐसा नहीं है जब बात राजधानी के राजभवन तक पहुंच गई है तो सेंट्रल विस्टा तक भी जा सकती है। और फिर उससे पहले कहीं किसी ने परेशान होकर एसीबी-ईओडब्ल्यू या सीबीआई के करप्शन विंग की मदद ले ली तो साहब मुसीबत में पड़ जाएंगे।
प्रबंधन, वाणिज्य, वित्त, विपणन, अनुसंधान में विशेष योग्यता, यूएसए, यूके, थाईलैंड, नेपाल जैसे देशों का अध्ययन भ्रमण, तीन गोल्ड व चार बेस्ट रिसर्च पेपर की उपलब्धियों का करियर एक झटके में धड़ाम। वैसे साहब का कार्यकाल एक वर्ष शेष है कहीं वे रिटायरमेंट प्लान पर तो नहीं।
एसपी कॉन्फ्रेंस बाद तबादले
अगले सप्ताह एसपी कॉन्फ्रेंस और फिर राजधानी में एक नवंबर से पुलिस कमिश्नर प्रणाली। पीएचक्यू के गलियारे में चर्चा है कि कॉन्फ्रेंस के बाद किसी भी दिन राजधानी और आसपास के जिलों की पुलिसिंग में बड़ा फेरबदल हो जाए। आईपीएस के साथ एसपीएस के पुलिस अफसर भी कम से कम अगले दो वर्ष के लिए राजधानी और करीब के जिलों में गुजारने के जुगाड़ में हैं फिर तो चुनावी पोस्टिंग होंगे। इस काम में लगे अफसरों ने जो संभावित सूची बनाई है उसके मुताबिक एएसपी एसडीओपी और डीएसपी/सीएसपी शामिल हैं।
सूत्रों का कहना है कि कई एसपीएस अधिकारी रायपुर, दुर्ग, कोरबा, बिलासपुर, रायगढ़, सरगुजा और राजनांदगांव जैसे प्रमुख जिलों में उच्च-स्तरीय कार्यभार संभालने के लिए तैयार हैं, जबकि कुछ अन्य को रणनीतिक मुख्यालयों या क्षेत्रीय इकाइयों में पुन: तैनात किया जा सकता है।
एक उल्लेखनीय चर्चा यह भी है कि वरिष्ठ महिला एसपीएस अधिकारियों को भी प्रमुख पदों पर नियुक्त किया जा सकता है, जबकि पीएचक्यू के आंतरिक कमान में संतुलन के लिए कुछ लूप लाइन फेरबदल की संभावना है।
कुल मिलाकर, तीन दर्जन से अधिक एसपीएस अधिकारियों को नई तैनाती के आदेश मिलने की उम्मीद है। अब जब यह चर्चा शुरू हो गई है, तो अंतिम समय में बदलाव या रणनीतिक देरी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। इसलिए प्रयत्नशील अफसर अपनी सतर्कता बरत रहे हैं।


