राजपथ - जनपथ
सिफारिश नहीं चलेगी
कांग्रेस में जिला अध्यक्षों के चयन की नई प्रक्रिया से पार्टी के दिग्गज नेता परेशान हैं। हाईकमान ने पहले ही संदेश दे दिया है कि जिला अध्यक्षों के चयन में सिफारिशें नहीं चलेंगी। ऐसा मध्यप्रदेश कांग्रेस के जिला अध्यक्षों के चयन में हो चुका है, और बड़े नेताओं को झटका भी लगा है।
बताते हैं कि मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने अपने गृह जिले राजगढ़, और आसपास के 11 जिलों के लिए पर्यवेक्षकों के माध्यम से अपने करीबियों के नाम भेजे थे। दिग्विजय सिंह के पुत्र पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह खुद दिल्ली में डटे हुए थे। मगर पार्टी ने जयवर्धन सिंह को ही गुना जिले का अध्यक्ष बना दिया। गुना, केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का संसदीय क्षेत्र है, और वो कांग्रेस में रहते दिग्विजय सिंह के धुर विरोधी रहे हैं। कहा जाता है कि सिंधिया ने दिग्विजय सिंह की वजह से कांग्रेस छोड़ी थी। अब दिग्विजय सिंह पिता-पुत्र को गुना इलाके में पार्टी को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी दे दी गई।
छत्तीसगढ़ में भी कुछ इसी तरह का डर कांग्रेस के बड़े नेताओं को सता रहा है। अब तक जिलाध्यक्षों के चयन में स्थानीय बड़े नेताओं की पसंद को तवज्जो मिलती रही है। मगर इस बार ऐसा हो पाएगा, इसकी संभावना कम दिख रही है। इसका अंदाजा उस वक्त लगा, जब एआईसीसी पर्यवेक्षकों की नियुक्ति के बाद जिले का आबंटन होना था। चर्चा है कि पीसीसी ने पर्यवेक्षकों के लिए अपनी तरफ से जो जिला प्रस्तावित किया था, पार्टी हाईकमान ने बदल दिया। ऐसे में जिला अध्यक्षों के चयन में बड़े नेताओं की पसंद को दरकिनार कर दिया जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
संगठन या चुनाव

कांग्रेस ने जिला अध्यक्षों के लिए कुछ मापदंड भी तैयार किए हैं। इसमें यह है कि जिला अध्यक्षों को विधानसभा या लोकसभा टिकट नहीं दी जाएगी। हालांकि पहले भी इस तरह की बातें पार्टी के अंदरखाने में चलती रही हैं। मगर इसका पालन नहीं हो पाता था। मोहन मरकाम को प्रदेश अध्यक्ष पद से सिर्फ इसलिए हटाया गया था कि वो विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। मगर मरकाम की जगह प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद दीपक बैज ने सांसद रहते हुए अडक़र विधानसभा की टिकट हासिल कर ली थी, लेकिन चुनाव नहीं जीत पाए।
विधानसभा चुनाव में दुर्ग ग्रामीण, महासमुंद, और एक-दो अन्य जिलों के अध्यक्षों ने भी चुनाव लड़ा था। और ज्यादातर चुनाव हार गए। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि विशेषकर जिलाध्यक्ष के चुनाव लडऩे से संगठन का काम प्रभावित हो जाता है। इससे चुनाव में नुकसान उठाना पड़ता रहा है। अब नए नियम को कड़ाई से पालन किया जाएगा। देखना है कि इसका कितना पालन हो पाता है।
साहित्य युवाओं का शौक बन रहा...

ये कोई क्रिकेटर नहीं, फिल्म स्टार नहीं। देश बदल रहा है। रायपुर में आयोजित हिंद युग्म उत्सव 2025 के साहित्य समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल के पास ऑटोग्राफ के लिए युवाओं की लंबी कतार लगी रही। मार्च 2025 में उन्हें ज्ञानपीठ सम्मान मिला, जो हिंदी साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार है। छत्तीसगढ़ के पहले लेखक हैं, जिन्हें यह सम्मान मिला। फोटो में वृद्ध लेखक टेबल पर बैठे किताबें साइन कर रहे हैं। उनके सामने युवा लडक़े-लड़कियां किताबें थामे उत्साहित खड़े हैं। चेहरे पर मुस्कान, आंखों में श्रद्धा। क्या यह दृश्य साहित्य के प्रति नई पीढ़ी के लगाव को नहीं दिखाता?
उनके उपन्यास दीवार में एक खिडक़ी रहती थी की हाल ही में हजारों प्रतियां बिकीं। प्रकाशकों से छह महीने की रॉयल्टी के रूप में बड़ी धनराशि मिली, जो 60-70 लाख तक पहुंच सकती है


