राजपथ - जनपथ
चिता की आग पर बनी चाय...
छत्तीसगढ़ के एक सबसे सीनियर फोटो-जर्नलिस्ट गोकुल सोनी ने अपनी जिंदगी का एक असल किस्सा बताया है, राजधानी रायपुर शहर का।
यह जगह एक श्मशान घाट है। सामान्यत: यहाँ सभी लोगों का अंतिम संस्कार होता है, लेकिन फिर भी इसे मारवाड़ी श्मशान घाट कहा जाता है। इसके नाम के पीछे एक बड़ा कारण है, जिसे मैं किसी और दिन विस्तार से बताऊँगा। आज मैं आपसे अपने बचपन की एक घटना साझा करना चाहता हूँ, जो इसी श्मशान घाट से जुड़ी है।
अस्सी के दशक की बात है। इस श्मशान घाट में उस समय एक अघोर बाबा रहा करते थे उनका नाम था कल्लू बाबा। वे हमेशा काला कपड़ा ही पहना करते थे। बढ़ी हुई दाढ़ी से उनका चेहरा बड़ा डरावना लगता था। मेरे पिता जी से उनकी मित्रता थी। पिता जी कभी - कभी उनसे मिलने जाया करते थे। एक दिन वे मुझे भी अपने साथ ले गए। मेरे पिता जी मिलिट्री में थे, इसलिए उन्हें न डर-भय छूता था और न ही वे छुआ-छूत जैसी बातों को मानते थे।
जब मैं पहली बार वहाँ पहुँचा तो देखा, श्मशान घाट परिसर के जिस कमरे में बाबा रहते थे उसके सामने एक विशाल पीपल का पेड़ था। उस पेड़ पर असली नरमुंडों ( खोपडिय़ों ) की माला टंगी हुई थी। मेरा बाल मन सिहर उठा। नजरें अनायास ही उन मुंडों पर टिक गईं और मन में एक अजीब-सी दहशत बैठ गई।
इसी बीच बाबा ने पिता जी से कहा—सोनी जी आओ, चाय पीते हैं।
उन्होंने एक जर्मन (एल्युमिनियम) के बर्तन में पानी डाला, उसमें चायपत्ती, शक्कर और दूध डाला और फिर उस बर्तन को एक लंबी चिमटी में फँसाकर उठा लिया। मैं यह देखकर चौंक गया कि बाबा उसे पास ही जल रही चिता की आग पर रख रहे हैं! कुछ ही देर में चाय खौलने लगी। बाबा ने बर्तन उतारा और चाय तीन कपों में बाँट दी—एक कप पिता जी को दिया, दूसरा खुद रख लिया और तीसरा मेरी ओर बढ़ा दिया।
कप मेरे हाथ तक पहुँचा ही था कि मेरा दिल जोर-जोर से धडक़ने लगा। मन ही मन मैं सोच रहा था—क्या मैं सचमुच चिता की आग पर बनी चाय पी लूँगा ? मेरे चेहरे के भाव देखकर पिता जी सब समझ गए। उन्होंने मुस्कुराते हुए बाबा से कहा— बाबा, बेटा चाय नहीं पीता। और इस तरह मैं उस दिन चिता में बनी चाय पीने से बच गया।
आज भी जब-जब मैं किसी के अंतिम संस्कार में उस श्मशान घाट में जाता हूँ, यह घटना आँखों के सामने ताज़ा हो जाती है।
अब आप बताइए—अगर उस दिन मेरी जगह आप होते, तो क्या आप चिता की आग पर बनी चाय पी लेते ? अपने विचार ज़रूर साझा कीजिएगा।
कुछ अच्छी चर्चा हो जाए
मनरेगा के कार्यों, और भुगतान पर नजर रखने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने सभी पंचायतों में क्यूआर कोड प्रणाली शुरू की है। धीरे-धीरे यह प्रणाली चर्चा का विषय बन गई है, और इसकी गूंज राष्ट्रीय स्तर पर होने लगी है। भारत सरकार ने पिछले दिनों एक बैठक में मनरेगा आयुक्त तारण प्रकाश सिन्हा की न सिर्फ तारीफ की, बल्कि इस प्रणाली को पूरे देश में लागू करने की बात कही। ताकि मनरेगा के कार्यों में पारदर्शिता आ सके।
बताते हैं कि पंचायत ग्रामीण विकास विभाग की प्रमुख सचिव श्रीमती निहारिका बारिक सिंह ने विभागीय बैठकों में मनरेगा के कार्यों पर नजर रखने और भुगतान की स्थिति की पंचायतों को जानकारी हो सके, इसके लिए क्यूआर कोड प्रणाली शुरू करने के प्रस्ताव पर सहमति दी थी। इसके बाद प्रदेश में तकरीबन सभी जिलों में क्यूआर कोड प्रणाली लागू कर दी गई।
पंचायतों में क्यूआर कोड चस्पा किए गए, और ग्रामीण मोबाइल से इन कोड को स्कैन कर मनरेगा के पिछले पांच साल के कार्यों और भुगतान की अद्यतन स्थिति की जानकारी ले सकते हैं। क्यूआर कोड प्रणाली के चलते प्रदेश के पंचायतों में लोग अब मनरेगा के कार्यों को लेकर काफी सजग और सतर्क हो गए हैं, और मोबाइल से जानकारी लेकर वस्तुस्थिति की जानकारी ले रहे हैं। इससे मनरेगा के कार्यों में गड़बड़ी का भी पता चल रहा है।
पिछले दिनों केन्द्रीय ग्रामीण विकास विभाग की दिल्ली में उच्चस्तरीय बैठक हुई थी। इसमें मनरेगा के कार्यों और भुगतान में पारदर्शिता लाने के छत्तीसगढ़ सरकार की पहल की सराहना की। बिना कोई खर्च के जिस तरह क्यूआर कोड प्रणाली लागू की गई, उसे पूरे देश में लागू करने पर विचार हो रहा है। कोई काम अच्छा होगा तो सराहना तो होगी ही। वैसे भी छत्तीसगढ़ शराब, कोयला, और अन्य घोटालों को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में बना रहा है।
कांग्रेस संगठन में हलचल

छत्तीसगढ़ कांग्रेस में जिलाध्यक्षों के चयन के लिए 17 पर्यवेक्षक नियुक्त किए गए हैं। इन पर्यवेक्षकों को 41 संगठन जिलों में जाकर जिलाध्यक्षों के नामों का पैनल तैयार करने के लिए कहा गया है। कुछ पर्यवेक्षक तो अपने प्रदेश के बड़े नेताओं में गिने जाते हैं।
मसलन, पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय झारखंड कांग्रेस के बड़े नेता हैं। अजय कुमार लल्लू उत्तरप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके हैं। इसी तरह अन्य पर्यवेक्षकों की भी अपनी अलग पहचान है।
हर पर्यवेक्षक को दो या तीन जिले दिए गए हैं। ये पर्यवेक्षक जिलों में जाकर ब्लॉक स्तर तक के कार्यकर्ताओं से रायशुमारी करेंगे, और अधिकतम 6 नाम का पैनल हाईकमान को देंगे। रायपुर शहर और ग्रामीण जिला अध्यक्ष के लिए नागपुर के प्रफुल्ल गुडधे को पर्यवेक्षक बनाया गया है। गुडधे, महाराष्ट्र के सीएम देवेन्द्र फडनवीस के खिलाफ विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं।
अजय कुमार लल्लू को दुर्ग शहर, ग्रामीण, और भिलाई जिले के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया है। मध्यप्रदेश के विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार को बिलासपुर शहर, ग्रामीण, और मुंगेली जिले का पर्यवेक्षक बनाया गया है। इन सबको लेकर कांग्रेस में अलग ही तरह की हलचल है। वजह यह है कि पार्टी ने 6 माह पहले ही 11 जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की थी। अब उन जिलों में भी अध्यक्ष का नाम सुझाने के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त किए गए हैं। इससे जिलाध्यक्षों के साथ ही उन्हें बनवाने वाले पार्टी के बड़े नेता भी असमंजस में हैं। अब देखना है कि इन जिलाध्यक्षों को रिपीट किया जाता है, या नहीं।


