राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : नुमाइश की चाह सोलर से...
19-Sep-2025 5:49 PM
राजपथ-जनपथ : नुमाइश की चाह सोलर से...

नुमाइश की चाह सोलर से...

अब तक बड़े-बड़े सरकारी, या राजनीतिक ओहदों पर बैठे हुए लोग अपनी गाडिय़ों पर पदनाम की तख्ती लगाते घूमते थे, जिसका मकसद ट्रैफिक पुलिस को डराना रहता था। अब यह मामला नीचे उतरकर मंत्रालय के किसी निज सचिव तक आ गया है। यह भी साफ नहीं है कि निज सचिव किसी अफसर के हैं, या किसी मंत्री के। खैर, जो भी हो, लोगों का अपने ओहदों की नुमाइश का शौक पूरा ही नहीं होता है। जब उनका ओहदा गुजर भी जाता है, और वे भूत बन जाते हैं, तो भी इन्हीं तख्तियों के शुरुआत में इतने बारीक अक्षरों से भूपू लिखवा लेते हैं कि जिसे पढऩे के लिए जौहरी का लेंस लगे। ताकत के मीनाबाजार की चाह जाती ही नहीं है। इसे देखकर मारुति का एक पुराना इश्तेहार याद आता है जिसमें एक छोटा बच्चा खिलौने की अपनी छोटी कार को मोटे-तगड़े लेटे हुए बाप के बदन पर दौड़ाते रहता है, और बाप के डांटने पर कहता है कि पेट्रोल खतम ही नइ होंदा है।

ताकत की नुमाइश की चाह सोलर से चलती है, उसमें पेट्रोल भी नहीं डलाना पड़ता।

पश्चिम से मनोज कुमार जैसा परहेज!

छत्तीसगढ़ के व्यापारी संगठन चेंबर ऑफ कॉमर्स के महिला विंग की मीटिंग का एक न्यौता बवाल बन गया। इसकी अध्यक्ष प्रदेश की एक प्रमुख मानसिक परामर्शदाता डॉ. इला गुप्ता हैं। उन्होंने अपनी महिला सदस्यों को जो न्यौता भेजा, उसमें एक कार्यक्रम में आने के लिए लिखा कि उसका ड्रेस कोड पश्चिमी पोशाक रहेगा, और महिलाएं अच्छे ग्लैमरस मेकअप में आएं, और यह भी दिखा सकें कि वे कैसी स्मार्ट, इंटेलिजेंट, और सेक्सी हैं।

चेंबर का यह महिला विंग सिर्फ बालिग और कामकाजी महिलाओं का है। इला गुप्ता का इसी मीटिंग के बाद जन्मदिन समारोह भी था। उन्होंने विवाद खड़ा होने पर माफी मांगते हुए यह सफाई दी है कि जन्मदिन की पार्टी के हिसाब से उन्होंने मजाक में ये बातें लिखी थीं, जो कि सिर्फ महिला सदस्यों के लिए आपसी संदेश था।

हिंदुस्तान की यह एक बड़ी दिक्कत है कि मर्द गोवा चले जाएं, थाईलैंड जाकर आ जाएं, वह सब जायज है, लेकिन महिलाएं अगर अपनी आपसी पार्टी में भी अगर बन-ठनकर पहुंचें, तो इससे मर्दानगी के अहंकार को चोट लग जाती है। अब ऐसे में माफीनामे से कम में भला मरहम-पट्टी कैसे होगी।

लेकिन हैरानी यह है कि राज्य महिला आयोग भी इस आंतरिक और निजी न्यौते पर कोड़े बरसाने के लिए कूद पड़ा है, और तो और, महिला आयोग को पश्चिमी पोशाक पर भी आपत्ति हो गई है। अब तमाम पश्चिमी चीजों का बहिष्कार करने कहा जाएगा, तो सब लोगों को बड़ी दिक्कत और असुविधा हो जाएगी, इनकी लिस्ट गिनाना ठीक नहीं है, वरना अगला निशाना इस कॉलम पर लगेगा।

सीएस पर निशाना जारी

भूपेश सरकार के आबकारी घोटाले की परतें खुल रही हैं। ईओडब्ल्यू-एसीबी ने गुरुवार को तत्कालीन आबकारी सचिव निरंजन दास को गिरफ्तार किया। दास की गिरफ्तारी पर भाजपा नेता, और अधिवक्ता नरेश चंद्र गुप्ता ने खुशी जताई है। गुप्ता घोटाले में संलिप्त लोगों की गिरफ्तारी को लेकर काफी मुखर रहे हैं, और इस सिलसिले में पीएमओ को भी पत्र लिखा था।

गुप्ता ने फेसबुक पर लिखा कि अब जांच कर छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कार्पोरेशन लिमिटेड की तत्कालीन वरिष्ठ अधिकारी को गिरफ्तार करने की बारी है। उन्होंने छत्तीसगढ़ मार्केटिंग कार्पोरेशन के उद्देश्य पर प्रकाश डाला, और लिखा कि छत्तीसगढ़ राज्य विपणन लिमिटेड पीने योग्य शराब का प्रबंधन करता है। पीने योग्य शराब एक उपभोग वस्तु है जिसमें पीने योग्य अल्कोहल या अन्य रसायन होते हैं। कार्पोरेशन की भूमिका छत्तीसगढ़ में उपभोक्ताओं को सभी प्रकार की शराब, बीयर और वाइन की खुदरा बिक्री करना है। किसी भी वस्तु की अनुपलब्धता संबंधी निर्माता द्वारा छत्तीसगढ़ में उस वस्तु को न बेचने का निर्णय छत्तीसगढ़ में कोई वस्तु जिस कीमत पर उपलब्ध है ( किसी अन्य जगह की तुलना में) वह निर्माता और राज्य उत्पाद शुल्क कानूनों द्वारा मूल्य निर्धारण को नियंत्रित करने वाले कारकों के कारण हैं।

सीएसएमसीएल शराब की खरीद की भूमिका निभाती है, और शराब की गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करने, और उन्हें उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए पर्याप्त कदम उठाती है। कार्पोरेशन के माध्यम से लाई गई शराब में बोतल के ढक्कन पर होलोग्राफिक स्टीकर चिपकाए जाते हैं। कार्पोरेशन की गतिविधि पूरी तरह छत्तीसगढ़ उत्पाद शुल्क कानूनों और उसमें बनाए गए नियमों के अनुसार पीने का निर्णय लेते समय उपभोक्ता को अपनी स्वास्थ्य  स्थिति जाननी होगी। शराब किसी भी अन्य उपभोग वस्तु की तरह स्वतंत्र रूप से विपणन योग्य वस्तु नहीं है बल्कि इसे केवल लाइसेंस के माध्यम से ही बेचा जा सकता है। इस दृष्टि से एक संदेश यह भी है कि उपभोक्ता को शराब पीते समय अपने स्वास्थ्य की भी जांच करनी होगी।

बिना शोरगुल शुरू हो गया एसआईआर

भारत निर्वाचन आयोग की घोषणा के मुताबिक बिहार के बाद अब छत्तीसगढ़ सहित देश के अन्य राज्यों में भी मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण का काम शुरू हो गया है। बिहार में वहां की विधानसभा चुनाव के कुछ माह पहले ही यह प्रक्रिया शुरू की गई। कम समय और दस्तावेजों की कमी को लेकर यह प्रक्रिया काफी विवादित हो गई, जबकि मतदाता सूची को अपडेट करना एक नियमित प्रक्रिया है। बिहार के मामले में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद यह साफ हो गया है आधार कार्ड को भी एक पहचान पत्र के तौर पर वैध दस्तावेज के रूप में मान्य किया जाएगा, भले ही यह नागरिकता का आधार हो या नहीं। पिछले तीन चार दिनों से छत्तीसगढ़ में जिलों के कलेक्टर बैठके ले रहे हैं। कुछ जिलों में एसआईआर की प्रक्रिया समझाने के लिए राजनीतिक दलों के साथ चर्चा भी की जा चुकी है, जो धीरे-धीरे बाकी जिलों में भी होगी। एसडीएम मतदाता सूची में नाम जोडऩे, हटाने और सुधारने की प्रक्रिया पर नजर रखेंगे और तहसीलदार, मातहत बीएलओ के जरिये मतदाता सूची से नामों की छंटनी करेंगे। अभी दफ्तर में ही बैठकर सरसरी तौर पर मतदाता सूचियों के अध्ययन का काम चल रहा है। बाद में बीएलए ( यानि राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों) की मदद से सर्वे का काम शुरू किया जाएगा। ऐसे मतदाताओं के नाम हटाए जाएंगे जो स्थायी रूप से बाहर जा चुके हैं, जैसे वे महिलाएं जिनकी शादी हो चुकी और अब यहां नहीं रहते। जो जीवित नहीं हैं, उनके नाम भी कटेंगे। दो जगह नाम दर्ज हो तब भी कटेगा। पिछला एसआईआर सन्  2002 में हुआ था। इसलिये 2003 की मतदाता सूची में जिन लोगों का नाम है, यदि 2025 की सूची में भी है तो उन्हें कोई दस्तावेज देने की जरूरत नहीं होगी, मगर उस पुरानी सूची में नाम नहीं है और 2025 की सूची में शामिल है, तो उन्हें अपने माता-पिता के दस्तावेज देने होंगे। 1987 के बाद जन्म लेने वाले मतदाताओं को भी दस्तावेज देने होंगे। इनमें मतदाता परिचय पत्र, आधार कार्ड, निवास प्रमाण पत्र आदि शामिल होंगे। मतदाता सूची में सुधार के लिए छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में काफी वक्त है। इस सूची के आधार पर तीन साल तक कोई चुनाव नहीं होने वाला है। बहरहाल, शहर से लेकर गांवों तक एसआईआर की हलचल शुरू हो गई है। राजस्व और शिक्षा विभाग के नियमित कामकाज पर असर भी दिखने लगा है। आम लोगों को दफ्तर पहुंचने पर बताया जा रहा है कि तहसीलदार, पटवारी एसआईआर के काम में व्यस्त हैं।


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